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Thursday, 21 November, 2024
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कभी दरकिनार कर दिए गए BJP की यूथ विंग के पूर्व प्रमुख ने कैसे फिर मोदी का भरोसा जीता, गुजरात में मिला टिकट

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि मोदी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ निकटता ने अमित ठाकेर की सियासी संभावनाओं को धूमिल कर दिया था. राजनीति में कदम रखने के करीब 30 साल बाद अब वह भाजपा के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

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अहमदाबाद: 1978 में भाजपा की यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) को स्थापित किए जाने के बाद से अब तक इसकी जिम्मेदारी 14 अध्यक्षों ने संभाली है, जिनमें से 13 सांसद, विधायक, पार्टी अध्यक्ष, मुख्यमंत्री, राज्यपाल या केंद्रीय मंत्री के पद तक पहुंच चुके हैं.

अमित ठाकेर एकमात्र ऐसे अपवाद हैं जो भाजयुमो अध्यक्ष पद पर रहने के बावजूद अब तक सत्ता के गलियारों से बाहर रहे हैं. उन्होंने 2007 से 2010 तक भाजयुमो अध्यक्ष के तौर पर कार्य किया था. बहरहाल, अब ठाकेर अहमदाबाद जिले की वेजलपुर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ने को तैयार हैं.

अमित ठाकेर ने अपने 30 साल से अधिक के राजनीतिक करियर में कई बार सुर्खियां बटोरीं, जिसमें अभिनेता आमिर खान अभिनीत फिल्म फना के खिलाफ गुजरात में राज्यव्यापी विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व करना शामिल है. लेकिन माना जाता है कि भाजपा नेताओं राजनाथ सिंह और संजय जोशी के साथ निकटता ने आगे उनकी राजनीतिक संभावनाओं को धूमिल कर दिया.

अहमदाबाद स्थित अपने मामूली से घर में बैठे ठाकेर ने दिप्रिंट को बताया, ‘पार्टी ने मुझे जो जिम्मेदारियां सौंपी, मैंने उन्हें पूरी ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ निभाया. कभी-कभी हवा आपके खिलाफ रहती है लेकिन अच्छी बात है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मेरे काम को जानते हैं. इस बार, मैंने स्थानीय स्तर पर ही टिकट के लिए आवेदन किया था और यह जानकार हैरान रह गया कि पार्टी ने मुझे चुन लिया है. राजनीति में कभी देर नहीं होती.’

यह बताते हुए कि 2012 और 2017 दोनों ही चुनावों में भाजपा के खाते में आई वेजलपुर में ‘जीतने की क्षमता जैसी कोई समस्या नहीं है’. इस विधानसभा क्षेत्र में पार्टी प्रभारी रश्मी कांत शाह ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का ‘गांधीनगर और अहमदाबाद के मतदाताओं के साथ घनिष्ठ रिश्ता है.’

उन्होंने कहा, ‘यहां (वेजलपुर) एक बड़ी अल्पसंख्यक आबादी के बावजूद किशोरभाई चौहान ने दोनों चुनाव जीते लेकिन सत्ता विरोधी लहर की वजह से उन्हें टिकट नहीं दिया गया है और उनके स्थान पर एक नए चेहरे को चुना गया.’

वेजलपुर एक शहरी निर्वाचन क्षेत्र है, जहां एक लाख से अधिक मुस्लिम और करीब 2.6 लाख हिंदू रहते हैं. यहां ठाकेर पर दांव लगाकर भाजपा ये सीट अपने खाते में बनाए रखने की उम्मीद तो कर ही रही है, यह कभी बिसरा दिए गए पूर्व युवा मोर्चा प्रमुख का राजनीतिक भाग्य चमकाने की भी एक कोशिश है.

गुजरात भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘ठाकेर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच आपसी कलह के शिकार बने लेकिन उन्होंने कभी सार्वजनिक तौर पर कभी इस पर अपना मुंह नहीं खोला और पार्टी के लिए काम करते रहे. 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी निष्ठा और धैर्य के कुछ नतीजे सामने आने लगे और उन्हें एक अलग संगठनात्मक भूमिका मिली.’

उन्होंने कहा, ‘उन्हें (ठाकेर को) राज्य की आदिवासी बेल्ट खासकर भावनगर में भाजपा के जिला प्रभारी के तौर पर अच्छी-खासी पैठ बना लेने के लिए सराहा गया. फिर 2016 में उन्हें राज्य भाजपा में बतौर सचिव शामिल किया गया, जब जीतू वघानी को गुजरात भाजपा अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. अमित शाह ने उन्हें पश्चिम बंगाल में भी तैनात किया, लेकिन पार्टी का टिकट अब तक उनकी पहुंच से बाहर ही रहा था.’


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फिल्म फना का विरोध और मोदी संग रिश्ते

वर्ष था 2002 और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी राजकोट पश्चिम से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे. भाजपा युवा मोर्चा की गुजरात इकाई ने अपने तत्कालीन अध्यक्ष ठाकेर के लिए टिकट मांगी लेकिन गुजरात भाजपा प्रमुख राजेंद्र सिंह राणा ने उसके अनुरोध को ठुकरा दिया.

ठाकेर इसके बाद 2006 में तब फिर सुर्खियों में आए जब उन्होंने आमिर खान अभिनीत फिल्म फना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि अभिनेता की तरफ से एक्टिविस्ट मेधा पाटकर की अगुआई वाले नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) का सार्वजनिक तौर पर समर्थन किया जा रहा था और इस बात ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी की नाराजगी बढ़ा दी थी. उस समय 35 वर्षीय ठाकेर ने खुलेआम फिल्म का पोस्टर फाड़ा और साथ ही यह सुनिश्चित किया कि ऐसा करते समय उनकी फोटो अच्छी खिंचे.

ठाकेर के नेतृत्व में युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने पूरे राज्य में प्रदर्शन किया, जिसमें धमकी दी गई कि अगर आमिर खान ने माफी नहीं मांगी तो फिल्म की रिलीज रोक दी जाएगी. इतना बवाल देखते हुए मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ऑफ गुजरात ने मांगों को मान लिया और थिएटरों पर हमले की आशंका देख फिल्म को प्रदर्शित न करने का फैसला किया.

राजनाथ सिंह 2007 में जब भाजपा अध्यक्ष के पद पर आसीन थे, तभी उनका ध्यान विरोध-प्रदर्शनों में ठाकेर की भूमिका पर गया और उन्होंने धर्मेंद्र प्रधान की जगह उन्हें युवा मोर्चा अध्यक्ष बनाने का फैसला किया.

लेकिन राजनीति में जैसे-जैसे ठाकेर का ग्राफ बढ़ा, मोदी के साथ उनके समीकरण बिगड़ते गए. इसकी एक वजह यह भी थी कि ठाकेर भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य संजय जोशी के करीबी थे, जिनके मोदी के साथ समीकरण बहुत अच्छे नहीं रहे हैं.

उन सालों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी के भाजपा के शीर्ष नेताओं, खासकर राजनाथ सिंह और सुषमा स्वराज के साथ संबंध उतने सहज नहीं थे, जितने नजर आते थे. बावजूद इसके वह केशुभाई पटेल को दरकिनार करने और संजय जोशी को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कराने में सफल रहे.

गुजरात की राजनीति में थोड़ी-बहुत हैसियत रखने वाले ठाकेर को जोशी और राजनाथ सिंह के साथ निकटता के कारण राज्य में ‘दिल्ली का आदमी’ माना जाता था.

गुजरात भाजपा के एक सूत्र ने 2007 के गुजरात विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार चयन के लिए आयोजित पार्टी की चुनाव समिति की बैठक को याद करते हुए बताया कि पार्टी के एक नेता ने ठाकेर के नाम की सिफारिश की थी. सूत्र ने कहा कि मोदी ने तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से कहा था कि ‘वह (ठाकेर) एक राष्ट्रीय नेता हैं और उन्हें भारत में कहीं भी मैदान में उतारा जा सकता है, लेकिन उन्हें गुजरात से टिकट नहीं दिया जाना चाहिए.’

2010 में जब नितिन गडकरी ने भाजपा अध्यक्ष का पद संभाला था तब ठाकेर पार्टी सचिव के तौर पर पदोन्नति की उम्मीद कर रहे थे. हालांकि, आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख दिवंगत के.एस. सुदर्शन के समर्थन से वरुण गांधी सचिव बना दिए गए और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली का समर्थन रखने वाले अनुराग ठाकुर को ठाकेर की जगह युवा मोर्चा का अध्यक्ष पद मिल गया.

ठाकेर भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ी अपनी पृष्ठभूमि के मद्देनजर राजनीतिक मोर्चे पर आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह तैयार थे, लेकिन उन्हें कभी मौका नहीं मिला. उन्होंने 2007 में अपनी तरफ से पूरी कोशिश भी की लेकिन पार्टी ने गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें टिकट नहीं दिया. 2012 में उन्हें फिर टिकट से वंचित कर दिया गया लेकिन पार्टी की डायस्पोरा विंग ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी (ओएफबीजेपी) का सह-संयोजक नियुक्त किया गया.

उसके बाद से वह आणंद, भावनगर जिलों में भाजपा प्रभारी के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं.


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कैसा रहा अन्य भाजयुमो अध्यक्षों का सियासी सफर

1978 से 1980 तक पहले अध्यक्ष के तौर पर भारतीय जनता युवा मोर्चा की जिम्मेदारी संभालने वाले कलराज मिश्र अब राजस्थान के राज्यपाल हैं. उनके उत्तराधिकारी बने सत्यदेव सिंह ने 1986 तक यह पद संभाला और बाद में सांसद बने. सत्यदेव के बाद यह पद प्रमोद महाजन के पास रहा, जो बाद में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी बने.

महाजन के बाद भाजयुमो अध्यक्ष पर आसीन रहे राजनाथ सिंह ने भी राजनीति में एक शानदार मुकाम हासिल किया है. वह यूपी के मुख्यमंत्री बने, भाजपा अध्यक्ष रहे और अब देश के रक्षा मंत्री हैं. राजनाथ के बाद भाजयुमो दफ्तर में अध्यक्ष की कुर्सी जेपी नड्डा ने संभाली, जो 2019 से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.

1994 में नड्डा की जगह उमा भारती ने ली, जो मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. उमा भारती ने कमान रामाशीष राय को सौंपी, जो 2000 तक भाजयुमो प्रमुख रहे. फिर उनकी जगह लाए गए शिवराज सिंह चौहान फिलहाल मध्य प्रदेश के सीएम तो हैं ही, इससे पहले भी तीन बार यह पद संभाल चुके हैं.

चौहान के बाद भाजयुमो अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने वाले जी. किशन रेड्डी, धर्मेंद्र प्रधान और अनुराग ठाकुर सभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में बतौर मंत्री कार्यरत हैं.

युवा मोर्चा के मौजूदा अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या बेंगलुरू दक्षिण से सांसद हैं, जबकि उनकी पूर्ववर्ती पूनम महाजन मुंबई उत्तर मध्य से सांसद हैं. वहीं, भाजयुमो के पूर्व प्रमुख रामाशीष राय क्रमशः विधायक और एमएलसी के तौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रहे हैं.

ठाकेर ही भाजयुमो के एकमात्र ऐसे अध्यक्ष रहे हैं जो कभी किसी निर्वाचित पद पर नहीं रहे और अब अपनी एक नई राजनीतिक यात्रा की तरफ अगला कदम बढ़ा रहे हैं.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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