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Wednesday, 20 November, 2024
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न मोदी, न ब्रांड हिंदुत्व- उत्तराखंड का चुनाव होगा जमीन से जुड़े असली मुद्दों पर- कांग्रेस नेता हरीश रावत

पूर्व सीएम ने कहा कि कांग्रेस जिन प्रमुख मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी, उनमे रोज़गार सृजन, नौकरियों में महिलाओं को प्राथमिकता, और LPG सिलिंडर के बढ़ते दामों पर एक सीमा लगाया जाना शामिल हैं.

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देहरादून: कांग्रेस 14 फरवरी के उत्तराखंड विधानसभा चुनावों को ज़मीन से जुड़े वास्तविक मुद्दों से जोड़ने में सफल हो गई है, जिसकी वजह से बीजेपी भी ‘मोदी, बीजेपी ब्रांड हिंदुत्व और बीजेपी ब्रांड राष्ट्रवाद पर ज़ोर देने की बजाय उन्हीं मुद्दों की बात करने पर मजबूर हो गई है’, ये कहना है पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का.

दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में उत्तराखंड में कांग्रेस प्रचार-प्रभारी ने कहा कि उनकी पार्टी जिन प्रमुख मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी, उनमें रोज़गार सृजन, नौकरियों में महिलाओं को प्राथमिकता और एलपीजी सिलिंडर के दामों पर एक ऊपरी सीमा लगाया जाना शामिल है. इस बात को अहमियत न देते हुए कि कांग्रेस ने अभी तक किसी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, रावत ने कहा कि ऐसे मुद्दे अहम नहीं हैं, क्योंकि ये चुनाव सिर्फ स्थानीय मुद्दों को लेकर है.

जब कांग्रेस ने उन्हें नैनीताल ज़िले के लालकुआं चुनाव क्षेत्र से खड़ा करने का फैसला किया और उन्हें उनके पुराने गढ़ रामनगर से लड़ाने का अपना फैसला बदल दिया, उसके कुछ ही दिन बाद दिप्रिंट ने रावत के साथ, पार्टी की चुनावी संभावनाओं, गुटबाज़ी, और कई दूसरे मुद्दों पर बात की.

उन्होंने अपनी बेटी अनुपमा रावत के हरिद्वार (ग्रामीण) सीट से खड़ा किए जाने पर भी बात की, हालांकि कांग्रेस का फॉर्मूला ‘एक परिवार एक सीट’ था और साथ ही हिंदूवाद-बनाम-हिंदुत्व की बहस और उत्तराखंड की राजनीति में नई दाख़िल हुई आम आदमी पार्टी (आप) पर भी अपने विचार रखे.


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कांग्रेस का CM चेहरा, BJP और हिंदुवाद

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने एक रणनीति के तहत, अधिकारिक रूप से रावत को सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, जिससे ये सुनिश्चित हो सके कि गुटबाज़ी को और बढ़ावा न मिले. एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘इतने सारे ख़ेमे हैं और किसी अधिकारिक सीएम चेहरे को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए वो सभी जीत हासिल करने के लिए काम कर रहे हैं.’

लेकिन, रावत इसी बात पर क़ायम थे कि पार्टी ने इस मुद्दे को फिलहाल अलग रख दिया है. पूर्व सीएम ने कहा, ‘एक संदेश जाना चाहिए था कि प्रचार की अगुवाई कौन करेगा. पार्टी नेतृत्व इसपर क़ायम है कि वो हरीश रावत होंगे. ये ऐलान पार्टी ने किया था. अब ये काफी होना चाहिए.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि हम सीएम चेहरा घोषित करते हैं कि नहीं, चूंकि ये चुनाव केवल स्थानीय मुद्दों को लेकर है. यही कारण है कि बीजेपी भी ‘मोदी, बीजेपी ब्रांड हिंदुत्व, और बीजेपी ब्रांड राष्ट्रवाद पर ज़ोर देने की बजाय, स्थानीय मुद्दों की बात करने पर मजबूर हो गई है’.

रावत ने ये भी कहा कि वो उत्तराखंड में ‘संघर्ष का सांकेतिक चेहरा हैं’. उन्होंने कहा, ‘मैं इस संघर्ष की अगुवाई कर रहा हूं. मैं बस इतना ही जानता हूं. संघर्ष के बाद हम जीतेंगे, और उसके बाद कुछ परंपराएं हैं जिन्हें निभाना होगा जो हम करेंगे. मैंने पार्टी से कभी नहीं कहा कि मुझे सीएम चेहरा घोषित करे. पार्टी जो भी फैसला करेगी मुझे मंज़ूर होगा.’

बीजेपी उत्तराखंड में अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण को लेकर कांग्रेस की आलोचना करती रही है, और प्रदेश पार्टी प्रमुख तथा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी दोनों ने आरोप लगाया है कि रावत ने सत्ता में आने पर एक मुस्लिम विश्वविद्यालय स्थापित करने का वादा किया है. बीजेपी ने इस मुद्दे को लेकर कई प्रेस कांफ्रेंस की हैं और इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी कांग्रेस तथा रावत पर भी निशाना साधती रही है, लेकिन कांग्रेस नेता ने इससे इनकार किया.

रावत ने कहा, ‘मैंने कभी किसी के साथ ऐसी बात नहीं की है. किसी मुसलमान भाई ने ऐसी मांग नहीं की है. बीजेपी को ऐसे झूठे दावे करने और हमें दोष देने की आदत है. हम एक यूनिवर्सिटी को संस्कृत विश्विविद्यालय के तौर पर समर्पित करेंगे. हम दून यूनिवर्सिटी में महर्षि वाल्मीकि के नाम पर एक चेयर स्थापित करने की भी कोशिश करेंगे’.

उन्होंने आगे कहा कि हिंदुत्व और हिंदुवाद पर, वो विवेकानंद और महात्मा गांधी की शिक्षा को मानते हैं, जबकि बीजेपी का ज़ोर ऐसे ‘हिंदुत्व ब्रांड’ पर है, जो ‘असहनशीलता और नफरत’ को बढ़ावा देता है.

रावत ने आरोप लगाया, ‘हिंदू का जो ये नया ब्रांड आया है, जो महात्मा गांधी की हत्या करता है, जो हिंदू असहनशीलता को बढ़ावा देता है, हम उस हिंदू को नहीं जानते’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम वासुदेव कुटुम्बकम, सहनशीलता, और मानवतावाद में यक़ीन रखते हैं. हम उस पर यक़ीन रखते हैं जो विवेकानंद ने कहा है, कि हिंदू धर्म दयालु है और वो मानवतावाद में विश्वास रखता है. ये सबको साथ लेकर चलता है, और इसमें अन्य सभी की अगुवाई करने की क्षमता है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कोई नया हिंदू धर्म है तो उसका पता बीजेपी को होगा. मुझे नहीं मालूम कि उन्होंने इसे कहां से गढ़ा है, कौन से शब्दकोष से लिया है’.

ये पहली बार नहीं है कि किसी कांग्रेस नेता ने, हिंदुवाद और हिंदुत्व पर बहस शुरू की है. राहुल गांधी ने इसे लेकर अकसर बीजेपी पर निशाना साधा है.

रावत ने कहा, ‘मैं किसी नर्म या सख़्त हिंदुत्व को नहीं जानता. मैं सिर्फ हिंदू को जानता हूं. मैं एक हिंदू हूं. टीका लगाने से अगर मैं कोई सख़्त हिंदू बन जाता हूं, तो मैं इसे नहीं मानता. लेकिन भगवान की प्रार्थना करने के बाद, मैं अपने माथे पर टीका लगाता हूं. ऐसे करने से मुझे शांति मिलती है’.

रावत ने कहा ‘हिंदू वो है जो अपने धर्म में आस्था रखता है, लेकिन दूसरे धर्मों का भी आदर करता है. मैं इस नए ब्राण्ड के हिंदुओं को नहीं जानता, जो सिर्फ मोदी में आस्था रखते हैं. मैं उस राष्ट्रवाद में यक़ीन रखता हूं जो अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ा था. उस राष्ट्रवाद में यक़ीन रखता हूं जो लोगों को जोड़ता है, उन्हें तोड़ता नहीं है’.


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कांग्रेस के वादे

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि उत्तराखंड अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है, और संसाधन पूरी तरह सूख गए हैं.

उन्होंने कहा, ‘लोगों में बेरोज़गारी से भी नाराज़गी बढ़ी है, जो राज्य के समग्र विकास में बाधक हो रहा है. हम संसाधन जुटाने से शुरुआत करेंगे. हम एक अलग काउंसिल बनाएंगे जो इस तरह के अध्ययन करेगी’.

रावत ने आगे कहा, ‘साथ ही साथ हम रिक्तियों को भरने, और रोज़गार सृजन का काम शुरू करेंगे, चूंकि युवाओं का काफी हद तक मोहभंग हो चुका है. हम समाज के सभी वर्गों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करेंगे’. उन्होंने ये भी कहा कि उनकी सरकार ये सुनिश्चित करने की दिशा में भी काम करेगी, कि एलपीजी सिलिण्डर के दाम 500 रुपए से ऊपर न जाएं.

गुटबाज़ी

पूर्व मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि कुछ महीने पहले जब उन्होंने चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी, तो कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई अव्यवस्था की हालत में थी. कमान संभालने से पहले रावत कांग्रेस के पंजाब प्रभारी के नाते, वहां पार्टी के मामलात देखने में व्यस्त थे. लेकिन उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस गुटबाज़ी से, उत्तराखंड में पार्टी की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

रावत ने कहा, ‘मेरे सामने दो बुनियादी चुनौतियां थीं. पहली ये, कि संगठन (उत्तराखंड) पूरी तरह निष्क्रिय था. दूसरी ये, कि मुझे लेकर प्रदेश इकाई के नेताओं का रवैया काफी प्रतिकूल था. उनका आचरण बहुत ख़राब था. लेकिन मैं उस स्थिति को संभाल रहा हूं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं पंजाब को लेकर व्यस्त था, लेकिन फिर भी मैं उत्तराखंड के लिए कुछ समय निकाल लेता था. बाद में उन्होंने मुझसे सूबे की कमान संभालने को कहा, और अब स्थिति पूरी तरह से हमारे पक्ष में बदल गई है. पार्टी कार्यकर्त्ताओं में अब उत्साह है, और मतदाता हमारे पक्ष में बोल रहे हैं’.

‘पार्टी कार्यकर्त्ता एकजुट हैं और उन्हें काफी विश्वास है कि कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी. वो ये भी जानते हैं कि एक ज़रा सी ग़लती, हमारे लिए महंगी साबित हो सकती है, और इसलिए वो किसी गुटबाज़ी में नहीं पड़ रहे हैं. कुछ पार्टी नेता भले ही ऐसा कर रहे हों, लेकिन हमारी कोशिश रहती है कि ऐसे मुद्दों को ज़्यादा अहमियत न दी जाए’.

बेटी को टिकट मिला

हरिद्वार (ग्रामीण) से रावत की बेटी को टिकट दिए जाने के बाद प्रदेश इकाई में काफी नाराज़गी थी, क्योंकि कांग्रेस ने उत्तराखंड और दूसरे राज्यों में, ‘एक परिवार एक टिकट’ के फॉर्मूले पर चलने का फैसला किया था.

इसी फॉर्मूले के तहत पंजाब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के भाई मनोहर सिंह को टिकट नहीं दिया गया था (वो अब एक निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं), जबकि उत्तराखंड कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत को, जो हाल ही में बीजेपी छोड़कर पार्टी में वापस आए थे, चुनावा में नहीं उतारा गया क्योंकि उनकी बहू अनुकृति गुसाईं को लेंसडाउन से टिकट दिया गया था.

हरीश रावत ने कहा, ‘मेरे परिवार और मैंने इस अवसर के लिए 20 साल इंतज़ार किया है. जिन दिन ये आलोचक ऐसा अवसर पाने के लिए 22 साल इंतज़ार कर लेंगे, उस दिन वो आकर मुझसे सवाल कर सकते हैं. मेरी बेटी 10 साल से उस सीट पर काम कर रही है, जो कांग्रेस ने कभी नहीं जीती. वो ऐसी सीट पर मेहनत कर रही है, जो परंपरागत रूप से बीजेपी के पास रही है. पूर्व उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस ने कभी ये सीट नहीं जीती. 1980 के दशक के बाद से हमने ये सीट नहीं जीती है’.

उत्तराखंड राजनीति में आप का प्रवेश

आप भी, जो पंजाब में एक प्रमुख खिलाड़ी है, इस मरतबा उत्तराखंड में असेम्बली चुनाव लड़ रही है. लेकिन, रावत ने कहा कि चुनाव परिणामों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा.

उन्होंने आप के साथ तिकोने संघर्ष की बात को ख़ारिज कर दिया, और आगे कहा कि चुनावों से मात्र कुछ महीने पहले, किसी पार्टी के पैराशूट के ज़रिए राज्य में उतर जाने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा. उन्होंने कहा, ‘उत्तराखंड की राजनीति में वोट काटने वालों के लिए कोई जगह नहीं है. ये मुक़ाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है, और लोग जानते हैं कि कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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