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Monday, 6 May, 2024
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उत्तराखंड में बागी नेताओं से निपटना कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए क्यों है चुनौती

2017 के चुनाव में 70 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा में भाजपा ने 57 और कांग्रेस ने 11 सीटें जीती थीं. दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.

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देहरादून: उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में अब एक हफ्ते का समय बचा है और कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही एक जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि राज्य में दोनों ही दलों के कई नेता अपनी पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशियों के खिलाफ मैदान में ताल ठोंक रहे हैं.

कांग्रेस उम्मीदवारों, जिसमें उत्तराखंड के पूर्व सीएम और चुनाव अभियान समिति के प्रमुख हरीश रावत भी शामिल हैं, को कम से कम नौ सीटों पर बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ करीब एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में इसी तरह की चुनौती है. यही नहीं कई निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्याशियों के खिलाफ पार्टी कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी है.

हालांकि, दोनों पार्टियां आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ नामांकन दाखिल करने वाले कुछ बागियों को चुनाव लड़ने से रोकने में कामयाब रही हैं लेकिन 20 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में बागी प्रत्याशी बड़ी चुनौती बने हुए हैं.

कांग्रेस और भाजपा दोनों के कई नेता बागी प्रत्याशियों के तौर पर मैदान में हैं, जिन्हें अपने क्षेत्रों से टिकट मिलने की उम्मीद थी लेकिन पार्टी की तरफ से इनकार के बाद बगावत पर उतर आए. इनमें भाजपा के कुछ मौजूदा विधायक भी शामिल हैं, जिन्हें चुनाव-पूर्व सर्वेक्षणों में खराब प्रदर्शन के आधार पर टिकट देने से इनकार कर दिया गया था.

उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान होगा, जिसमें कुल 632 उम्मीदवार मैदान में हैं.

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2017 के चुनाव में 70 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा में भाजपा ने 57 और कांग्रेस ने 11 सीटें जीती थीं. दो सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी.


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कांग्रेस के बागी

नामांकन वापसी की समय सीमा सोमवार को बीत जाने के बाद भी यमुनोत्री, बाजपुर, रुद्रप्रयाग, सितारगंज, रामनगर, बागेश्वर, घनसाली, देहरादून कैंट और किच्छा निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस के बागी उम्मीदवार मैदान में बने हुए हैं.

कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश मूलत: रावत रामनगर विधानसभा सीट से प्रत्याशी थे. लेकिन कांग्रेस नेता रंजीत रावत भी यहां से अपनी दावेदारी जता रहे थे और टिकट न मिलने पर उन्होंने रावत के खिलाफ एक बागी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया था.

इसने पार्टी को पूर्व मुख्यमंत्री को रामनगर की जगह लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में मैदान में उतारने के लिए बाध्य कर दिया, और वहां से संध्या दलकोटी के नामांकन को रद्द कर दिया गया. हालांकि, दलकोटी ने अपना नामांकन वापस लेने से इनकार कर दिया और एक निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं.

कांग्रेस नेताओं का कहना है कि दलकोटी, जिन्हें औपचारिक तौर पर बुधवार शाम पार्टी से निकाल दिया गया, का इस सीट पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि रावत को भाजपा के मौजूदा विधायक नवीन चंद्र दुमका का समर्थन प्राप्त है, जिन्हें उनकी पार्टी ने टिकट देने से मना कर दिया है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरीश रावत के करीबी सहयोगी जसबीर सिंह रावत का कहना है, ‘उन्हें पार्टी के लिए काम करने को मनाने के प्रयास किए गए थे. संध्या दलकोटी पार्टी की एक महत्वपूर्ण सदस्य थीं और हम सभी उनका सम्मान करते हैं, लेकिन उनके अपनी बात पर अड़ने के कारण हमें उन्हें निष्कासित करना पड़ा. वह यह समझने को तैयार नहीं थीं कि पार्टी नेतृत्व के निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि मौजूदा भाजपा विधायक ने भी हरीश रावत का समर्थन किया है. बहरहाल, दलकोटी की बगावत से हमारी जीत में कोई बाधा नहीं आएगी. हरीश रावत बड़े अंतर से जीत हासिल करेंगे.’

कांग्रेस को यमुनोत्री में भी इसी तरह की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जहां पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार दीपक बिजलवान के खिलाफ कांग्रेस के बागी नेता संजय डोभाल चुनाव मैदान में हैं, जिन्हें इस बार वहां से टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा था.

हालांकि, ऋषिकेश में कांग्रेस एक और बागी उम्मीदवार शूरबीर सिंह सजवान को अपना नामांकन वापस लेने के लिए मनाने में सफल रही है.

मुख्य विपक्षी दल के लिए एक बड़ी चिंता रुद्रप्रयाग की है, जहां कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार प्रदीप थपलियाल को दो बार विधायक रह चुके मतबर सिंह कंडारी के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने टिकट न मिलने से नाराज होकर अपना नामांकन वापस लेने से इनकार कर दिया है.

हालांकि, बागी उम्मीदवारों के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस नेताओं का दावा है कि वे उनकी वजह से पार्टी की जीत की संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

कांग्रेस प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी ने कहा, ‘पार्टी नेतृत्व ने कुछ को छोड़कर अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में बगावत पर सफलतापूर्वक काबू पा लिया है. वैसे भी, इससे हमारी जीत की संभावनाओं पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर उनके प्रभाव को बेअसर कर देगी. जिन लोगों ने पार्टी लाइन पर काम करने से इनकार कर दिया, उन्हें बाहर का दरवाजा दिखाया जा रहा है.’

राज्य कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता राजीव महर्षि ने कहा, ‘कांग्रेस को भाजपा की तुलना में कम ही बगावत का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा को करीब-करीब आधे निर्वाचन क्षेत्रों में बागियों का सामना करना पड़ रहा है. इनमें 13 सीटों पर असंतोष सबसे ज्यादा है, जहां पार्टी के मौजूदा विधायकों का टिकट कटा है. हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व बाकी विद्रोहियों को भी मनाने की कोशिश कर रहा है.’


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भाजपा के बागी

भाजपा को करीब एक दर्जन सीटों पर अपनी ही पार्टी के नेताओं के विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है, जबकि पार्टी चार बागियों को नामांकन वापसी के लिए मनाने में कामयाब रही है. इसमें तीन डोईवाला निर्वाचन क्षेत्र के हैं, जहां पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत मौजूदा विधायक हैं. रावत ने यहां से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है. हालांकि, डोईवाला से निर्दलीय के तौर पर भाजपा के एक बागी जितेंद्र सिंह नेगी अभी भी मैदान में हैं.

अन्य विधानसभा क्षेत्रों में जहां भाजपा के आधिकारिक उम्मीदवारों को बागी उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें कुमाऊं क्षेत्र में आने वाली रुद्रपुर, भीमताल और किच्छा सीट और गढ़वाल के धनोल्टी, देहरादून कैंट, धर्मपुर, यमुनोत्री, कर्णप्रयाग, चकराता, घनसाली और कोटद्वार आदि निर्वाचन क्षेत्र शामिल हैं.

इन निर्वाचन क्षेत्रों में खुली बगावत के अलावा भाजपा को देहरादून जिले की रायपुर और राजपुर रोड विधानसभा सीटों, नैनीताल की कालाढूंगी, पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट, हरिद्वार जिले के पीरां कलियर और पौड़ी जिले की श्रीनगर सीट पर खासे असंतोष का सामना करना पड़ रहा है, जहां से भाजपा नेता और राज्य के मंत्री धन सिंह रावत फिर से चुनाव मैदान में हैं.

हालांकि, भाजपा अपने बागियों के खिलाफ किसी कार्रवाई की जल्दबाजी में नहीं है क्योंकि वह अभी भी उनका असंतोष दूर करने की कोशिशें कर रही है.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने दिप्रिंट से कहा, ‘यदि बागी पीछे हटने को तैयार नहीं होते हैं तो अंतिम उपाय अनुशासनात्मक कार्रवाई या पार्टी से निष्कासन होगा. हम अभी भी उन्हें पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ काम नहीं करने के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि नामांकन वापस लेने की समयसीमा बीत चुकी है.’

कौशिक ने कहा, ‘उन्हें थोड़ा समय देना चाहिए. हमें यकीन है कि वे बात को समझेंगे अन्यथा अनुशासनात्मक कार्रवाई तो अंतिम विकल्प है ही.’


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बगावत के कारण

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी के लिए बागियों से निपटना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.

नाम न छापने की शर्त पर उक्त नेता ने कहा, ‘स्थानीय कार्यकर्ताओं की पार्टी विरोधी गतिविधियां जितनी बताई जा रही हैं, उससे कहीं ज्यादा हैं. अगर पार्टी ने अपना नजरिया नहीं बदला तो वे पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाले साबित हो सकते हैं.’

उनके मुताबिक, ‘ज्यादातर बगावत उन सीटों पर नजर आ रही है जहां चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि मौजूदा विधायकों को टिकट मिला तो अपने खराब प्रदर्शन के कारण वे सीट गंवा देंगे. आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने वाले लगभग सभी बागी अपने निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी पैनल का हिस्सा थे.’

देहरादून के राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह रावत का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही असंतोष का सामना कर रहे हैं, लेकिन सत्ताधारी दल को बागी उम्मीदवारों से ज्यादा नुकसान पहुंचने के आसार हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस बार कई भाजपा नेताओं ने टिकट मिलने की काफी ज्यादा उम्मीदें पाल रखी थीं, खासकर तब जब पार्टी नेतृत्व ने ऐसे संकेत देने शुरू कर दिए कि खराब प्रदर्शन करने वाले करीब 25 मौजूदा विधायकों के टिकट कट सकते हैं. यह उनकी चुनाव पूर्व सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी नजर आया लेकिन टिकट वितरण में ऐसा नहीं दिखा.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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