नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में पदभार संभालने के तुरंत बाद, अनौपचारिक बैठक के लिए केंद्र सरकार के 77 सचिवों को अपने 7, लोक कल्याण मार्ग आवास पर बुलाया. उन्होंने उनसे कहा कि प्रोटोकॉल के बारे में चिंता न करें, किसी भी नीति या शासन संबंधी सुझाव देने के लिए RAX (सुरक्षित) लाइन पर पीएमओ को संपर्क करें.
नौ वर्षों से अधिक समय में, पूर्व सिविल सेवक सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संगठन में प्रमुख पदों पर नियुक्त हुए हैं. लेकिन नेताओं और बाबुओं के इस मेलजोल से अब कार्यकर्ताओं में कुछ नाराजगी पैदा होने लगी है, खासकर चुनाव वाले राजस्थान और मध्य प्रदेश में.
इस नाराजगी की एक झलक पिछले हफ्ते तब सामने आई जब राजस्थान भाजपा कार्यकर्ताओं का एक समूह 1980 बैच के आईएएस अधिकारी चंद्र मोहन मीणा के खिलाफ, जो अब भाजपा में हैं, के खिलाफ अपनी आपत्तियां व्यक्त करने के लिए दिल्ली में पार्टी मुख्यालय पर पहुंचा. पार्टी सूत्रों ने बताया कि मीना बस्सी विधानसभा क्षेत्र से टिकट के दावेदार हैं.
पार्टी कार्यकर्ताओं को महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मुलाकात की अनुमति दी गई. राजस्थान भाजपा के एक उपाध्यक्ष के अनुसार, उनकी चिंता यह थी कि पूर्व सिविल सेवकों पर पार्टी के प्रति वफादार रहने के लिए भरोसा नहीं किया जा सकता है, और वे लंबे समय में पार्टी संगठन में बाधा डाल सकते हैं.
राजस्थान बीजेपी के उपाध्यक्ष ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “2014 के लोकसभा चुनाव में, भाजपा ने दौसा सीट से हरीश चंद्र मीणा को मैदान में उतारा. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए. वह अब कांग्रेस विधायक हैं. क्या यह मॉडल पार्टी के लिए उपयोगी होगा? ये वे सवाल हैं जो बीजेपी कार्यकर्ताओं ने गजेंद्र शेखावत और बी.एल. संतोष के साथ दिल्ली में बैठक के दौरान उठाए, लेकिन उनके पास कोई जवाब नहीं था.”
लेकिन यह कोई अलग मामला नहीं था. राजस्थान और मध्य प्रदेश में 20 से अधिक पूर्व सिविल सेवकों की पार्टी में आमद ने काडर को “नाराज” और “हतोत्साहित” कर दिया है.
राजस्थान भाजपा एसटी मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष और बस्सी से टिकट के दावेदार जितेंद्र मीणा ने कहा कि राजस्थान में कई सीटें हैं जहां बाबू से नेता बने लोग टिकट के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा में हैं. उन्होंने कहा कि उनके सहित भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन कार्यकर्ताओं को टिकट देने से इनकार करने के लिए पार्टी को हतोत्साहित करने के लिए ‘साहेब बनाम साथी’ अभियान शुरू किया है, जिन्होंने पार्टी की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए अपना समय और प्रयास निवेश किया था.
“साहब (सिविल सेवक) जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान लोगों के कल्याण के लिए कभी काम नहीं किया, अब चुनाव से पहले टिकट मांगने आए हैं. पहले कुछ साल पार्टी के लिए काम क्यों नहीं करते? विरोध प्रदर्शन में भाग लें, जेल जाएं और फिर टिकट मांगें. वे सत्ता का आनंद लेने के बाद सेवानिवृत्ति लाभ पाने के लिए टिकट मांगने पार्टी में आते हैं.”
उन्होंने कहा कि 2014 और 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “आम भाजपा कार्यकर्ता की मदद से” चुनाव जीता “नौकरशाहों की मदद से नहीं”.
हालांकि, राजस्थान भाजपा महासचिव भजनलाल शर्मा ने स्पष्ट किया कि सभी पूर्व नौकरशाहों को टिकट नहीं मिलेगा. “टिकट जीतने की क्षमता के आधार पर दिए जाते हैं, लेकिन अन्य लोग अलग-अलग तरीकों से योगदान दे सकते हैं. हम पार्टी से जुड़े सभी लोगों के समर्थन का स्वागत करते हैं.”
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‘नौकरशाहों पर भरोसा नहीं किया जा सकता’
जून में भाजपा में शामिल होने के कुछ समय बाद, पूर्व आईएएस अधिकारी चंद्र मोहन मीणा को राजस्थान में पार्टी की चुनाव प्रबंधन समिति का सह-संयोजक नियुक्त किया गया था. लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक, वह अब बस्सी से टिकट के दावेदार हैं जो कि दौसा लोकसभा सीट के अंतर्गत एक आरक्षित विधानसभा सीट है, जिसे भाजपा ने पिछली बार 2003 में जीता था.
यह पूछे जाने पर कि काडर पूर्व सिविल सेवक के बारे में क्या महसूस करते हैं, नारायण मीणा, जिन्हें अगस्त में राजस्थान भाजपा के एसटी मोर्चा का प्रमुख नियुक्त किया गया था, ने कहा, “पार्टी कार्यकर्ता, जिला से लेकर मंडल अध्यक्ष तक, चंद्र मोहन मीणा की उम्मीदवारी से नाराज हैं क्योंकि काडर पार्टी के लिए अथक परिश्रम करते हैं, लेकिन ऐन वक्त पर ऐसे नौकरशाहों को टिकट मिल जाता है, जिनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है. यह पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए हतोत्साहित करने वाला है.”
उन्होंने दावा किया कि पूर्व आईएएस अधिकारी का परिवार “की जड़ें कांग्रेस में” हैं.
दूसरी ओर, चंद्र मोहन मीणा ने दिप्रिंट के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि यह ‘फैसला करना पार्टी का अधिकार क्षेत्र है और पार्टी इस पर फैसला लेगी कि (उन्हें) टिकट देना है या नहीं.’
मीणा के अलावा, राजस्थान में एक दर्जन से अधिक पूर्व सिविल सेवक भाजपा के टिकट के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, जिससे पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, कार्यकर्ताओं में निराशा की भावना पैदा हुई है.
पार्टी सूत्रों ने बताया कि अलवर के पूर्व जिला कलेक्टर नन्नू मल पहाड़िया (आईएएस 2007-बैच) वीर-भुसावर सीट से टिकट के दावेदार हैं. पहाड़िया इस साल जूलाई में भाजपा में शामिल हुए.
यह पूछे जाने पर कि क्या वह टिकट की दौड़ में हैं, उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं लोगों की सेवा करने के लिए पार्टी में शामिल हुआ, अब यह पार्टी पर निर्भर है कि वह मेरी सेवा का उपयोग कैसे करना चाहती है.’
सूत्रों ने बताया कि भाजपा में शामिल होने से पहले अगस्त में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाले महेश भारद्वाज (आईपीएस 2007-बैच) रामगढ़ से टिकट के दावेदार हैं, पूर्व आईपीएस अधिकारी रामदेव सिंह खैरवा नीम का थाना से और पूर्व आईएएस अधिकारी गोपाल मीणा और पी.आर. मीणा क्रमशः जामवा रामगढ़ और सपोटरा से टिकट के दावेदार हैं.
टिप्पणी करने के लिए पूछे जाने पर भारद्वाज ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरे निर्वाचन क्षेत्र में, कार्यकर्ताओं के बीच ऐसी कोई नाराजगी नहीं है. इस निर्वाचन क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की बहुत बड़ी समस्या है; साइबर क्राइम और गौ तस्करी का बोलबाला है. इसलिए, लोग प्रशासनिक कौशल वाला नेता चाहते हैं. एक पूर्व पुलिस अधिकारी के तौर पर मुझे अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है.’
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने यह भी कहा कि तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी एस.आर. जांगिड़, हालांकि अभी तक भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं, लेकिन वह बाड़मेर से टिकट के दावेदार हो सकते हैं. 1995-बैच के आईपीएस अधिकारी, जो 2019 में सेवानिवृत्त हुए, ने 2005 में एआईएडीएमके विधायक सहित राज्य में कई डकैतियों और हत्याओं के लिए जिम्मेदार बवेरिया गिरोह के सदस्यों को पकड़ने के लिए ऑपरेशन का नेतृत्व किया था.
पार्टी सूत्रों के अनुसार, भाजपा टिकट के लिए एक और दावेदार, पूर्व सीबीआई विशेष निदेशक मदन लाल शर्मा हैं, जो राजस्थान कैडर के 1972 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं, जिनकी जड़ें अलवर में हैं, जो अभी तक आधिकारिक तौर पर भाजपा में शामिल नहीं हुए हैं. सूची में पूर्व आईपीएस अधिकारी महेंद्र चौधरी, जो नागौर से हैं और जयपुर के पूर्व संभागीय आयुक्त के.सी. वर्मा भी शामिल हैं.
मप्र में पूर्व सिविल सेवक मैदान में
खांडवा के पूर्व जिला कलेक्टर और भोपाल के संभागीय आयुक्त कवींद्र कियावत (आईएएस 2000-बैच) इस साल अगस्त में भाजपा में शामिल हुए. उन्हें राज्य भाजपा की घोषणापत्र समिति का सदस्य बनाया गया था और पार्टी सूत्रों के अनुसार, अब वह मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए मंदसौर से टिकट के दावेदार भी हैं.
हालांकि, कियावत ने कहा कि पार्टी ने अभी उनसे विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए नहीं कहा है. उन्होंने कहा, “कई योग्य लोग हैं. यह पार्टी को तय करना है कि मेरे लिए कौन सी भूमिका सबसे उपयुक्त है,”
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि महेश कुमार अग्रवाल (आईएएस 2000-बैच) के अलावा पन्ना के पूर्व जिला कलेक्टर रवींद्र मिश्रा (आईएएस 2002-बैच) और जबलपुर नगर निगम के पूर्व आयुक्त वेदप्रकाश शर्मा भी टिकट की दौड़ में हैं.
ये तीनों अगस्त में बीजेपी में शामिल हुए थे.
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‘मोदी को नौकरशाही पर भरोसा’
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी के कार्यकाल के दौरान, सीएमओ – तब बड़े पैमाने पर टेक्नोक्रेट के. कैलाशनाथन, ए.के. शर्मा और जी.सी. मुर्मू व अन्य लोगों के द्वारा मैनेज किया जाता था जिन्हें मंत्रियों से भी ज्यादा शक्ति का प्रयोग करते हुए भी देखा जाता था. हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी सेवारत या पूर्व सिविल सेवक को राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया.
2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह बदल गया.
वर्तमान में, टेक्नोक्रेट केंद्रीय मंत्रिमंडल में विदेशी मामले, शहरी विकास, बिजली और कानून और न्याय सहित प्रमुख विभाग रखते हैं.
अपने पहले कार्यकाल (2014-19) में, मोदी ने चार टेक्नोक्रेट को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया: आर.के. सिंह (आईएएस 1975-बैच), हरदीप सिंह पुरी (आईएफएस 1974-बैच), के.जे. अल्फोंस (आईएएस 1979-बैच) और सत्यपाल सिंह (आईपीएस 1980 बैच).
वर्तमान में, अश्विनी वैष्णव (आईएएस 1994-बैच), जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के निजी सचिव के रूप में भी काम किया, केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं और उनके पास रेलवे, संचार, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे तीन बड़े विभाग हैं.
इसी तरह, हरदीप सिंह पुरी के पास शहरी विकास और पेट्रोलियम विभाग हैं, जबकि आर.के. सिंह बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री हैं, और अर्जुन राम मेघवाल (आईएएस 1999-बैच) कानून और न्याय, संसदीय मामलों और संस्कृति राज्य मंत्री (एमओएस) हैं. मेघवाल राजस्थान बीजेपी की घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष भी हैं.
वहीं, सोम प्रकाश (आईएएस 1988-बैच) वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री हैं.
जबकि टेक्नोक्रेट के प्रति भाजपा की आत्मीयता कोई नई बात नहीं है, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि पूर्व सिविल सेवक भी अब प्रमुख संगठनात्मक भूमिकाओं में कदम रख रहे हैं जो पहले कैडरों के लिए आरक्षित थे, उन्होंने उदाहरण के तौर पर तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष के रूप में के. अन्नामलाई (आईपीएस 2011-बैच) की नियुक्ति का हवाला दिया.
दूसरा उदाहरण रायपुर के पूर्व कलेक्टर ओ.पी. चौधरी (आईएएस 2005-बैच) का है. चौधरी भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने के दो दिन बाद अगस्त 2018 में भाजपा में शामिल हुए. पार्टी आलाकमान के पसंदीदा के रूप में देखे जाने वाले, उन्हें 2022 में छत्तीसगढ़ में भाजपा का महासचिव नियुक्त किया गया था और इस साल के अंत में होने वाले छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम हो सकता है.
इस सन्दर्भ में एक और नाम जो सामने आता है वह है ए.के. शर्मा (आईएएस 1988-बैच), जिन्होंने गुजरात सीएमओ में सचिव और बाद में पीएमओ में संयुक्त सचिव के रूप में कार्य किया. शर्मा को जून 2021 में उत्तर प्रदेश भाजपा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया. राज्य में भाजपा की सत्ता में वापसी के बाद मार्च 2022 में उन्हें योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का पद, जो पहले राजनीतिक नियुक्तियों के लिए भी आरक्षित था, अब पूर्व आईपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा के पास है, जो 2012 में भाजपा में शामिल हुए थे.
इस बीच, सफल चुनावी शुरुआत करने वाले बाबुओं से नेता बने लोगों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के पूर्व संयुक्त निदेशक राजेश्वर सिंह (पीपीएस 1994-बैच) शामिल हैं, जिन्होंने 2022 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और बाद में लखनऊ के सरोजिनी नगर से बीजेपी के टिकट पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीते थे. कानपुर के पूर्व पुलिस आयुक्त असीम अरुण (आईपीएस 1994-बैच) ने भी 2022 में कन्नौज सदर से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनावी शुरुआत की, जहां उन्होंने मौजूदा समाजवादी पार्टी विधायक को हराया.
2019 के लोकसभा चुनावों में भी, भाजपा ने अन्य पूर्व सिविल सेवकों में अपराजिता सारंगी (आईएएस 1994-बैच), बृजेंद्र सिंह (आईएएस 1998-बैच) और पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह को मैदान में उतारा था.
साथ ही, मोदी सरकार ने उन पूर्व सिविल सेवकों को भी समायोजित किया है, जिन्होंने औपचारिक रूप से चुनावी राजनीति में प्रवेश नहीं किया था.
नृपेंद्र मिश्रा (आईएएस 1967-बैच) अगस्त 2019 तक पीएम के प्रधान सचिव के रूप में कार्यरत थे, जब उन्हें अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की देखरेख के लिए समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. जी.सी. मुर्मू को 2019 में जम्मू-कश्मीर का पहला लेफ्टिनेंट गवर्नर और 2020 में भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक नियुक्त किया गया था.
2013 में सेवानिवृत्त होने वाले के. कैलाशनाथन को पिछले दिसंबर में एक और एक्सटेंशन दिया गया था, जिससे उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव के रूप में काम करना जारी रखा. इस बार उन्हें एक साल के एक्सटेंशन दिया गया था. और पूर्व आईपीएस अधिकारी और यूपी के पूर्व डीजीपी बृजलाल, जो अब भाजपा में हैं, 2020 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए और वर्तमान में गृह मामलों पर हाउस पैनल के प्रमुख हैं.
सरकार में सिविल सेवकों के प्रभाव पर टिप्पणी करने के लिए पूछे जाने पर, एक केंद्रीय मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को इस साल जुलाई में सरकार के ‘विज़न 2047’ के रोडमैप पर चर्चा के लिए आयोजित केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बारे में बताया.
“एक या दो को छोड़कर अधिकांश मंत्री दर्शक थे. प्रेजेंटेशन सचिवों द्वारा दिया गया और उन्होंने ही सवालों के जवाब दिए. विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने में मंत्रियों की कोई भागीदारी नहीं थी.
मंत्री ने कहा, “पीएमओ मंत्रियों की व्यस्तता पर नजर रखता है और यहां तक कि यह भी तय करता है कि उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए कहां तैनात किया जाना है.”
गुजरात में मोदी के साथ काम कर चुके एक पूर्व सिविल सेवक ने कहा, “मोदी नौकरशाही पर भरोसा करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि वे (योजनाओं, परियोजनाओं के) कार्यान्वयन में तेजी लाते हैं. राजनेता किसी विचार को क्रियान्वित करने से पहले विभिन्न जोखिमों और उसके परिणामों पर विचार करते हैं, जबकि नौकरशाह आदेशों का पालन करते हैं.
उन्होंने कहा कि मोदी ने “नौकरशाहों को जवाबी तर्क पेश करने की अनुमति देकर उनका विश्वास हासिल किया; यही कारण है कि उनका निष्पादन किसी भी अन्य प्रधानमंत्री की तुलना में तेज़ है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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