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Tuesday, 21 May, 2024
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राजे को खुश करने या राजपूतों पर जीत हासिल करने के लिए? भाटी को BJP में शामिल करने के पीछे ‘संदेश’

अमित शाह के बाद देवी सिंह भाटी शामिल हुए, नड्डा ने कोर ग्रुप की बैठक की और राजे के साथ अलग से बातचीत की. यह ऐसे समय में आया है जब राजे के वफादार इस बात से नाराज़ हैं कि उन्हें सीएम पद के लिए उम्मीदवार के तौर पर पेश नहीं किया जा रहा है.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आलाकमान, जो राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आगामी राज्य चुनावों के लिए अपने मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश करने के लिए अनिच्छुक माने जाते हैं, ने अपने वफादार देवी सिंह भाटी को शामिल करके पार्टी के दिग्गज नेता को शांत करने की कोशिश की है.

प्रभावशाली राजपूत नेता और कोलायत सीट से सात बार विधायक रहे 77-वर्षीय भाटी गुरुवार को कई अन्य लोगों के साथ भाजपा में शामिल हो गए और चार साल बाद पार्टी में लौट आए.

पार्टी द्वारा उनके प्रतिद्वंद्वी, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को उस वर्ष बीकानेर से लोकसभा टिकट दिए जाने के बाद उन्होंने स्पष्ट विरोध में 2019 में बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था. बाद में उन्होंने मेघवाल के खिलाफ अभियान भी चलाया.

भाटी को शामिल करने के एक दिन बाद गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने जयपुर में राजस्थान कोर ग्रुप की बैठक की और राजे के साथ अलग से बातचीत की.

इससे पहले पिछले सप्ताहांत राजे और जोधपुर के सांसद गजेंद्र शेखावत के बीच बातचीत हुई थी और सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक रैली हुई, जिसमें उन्होंने कहा था, “मैं प्रत्येक भाजपा कार्यकर्ता को बताना चाहता हूं कि हमारी पहचान और गौरव केवल कमल है.”

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भाजपा की राजस्थान इकाई गुटबाजी से जूझ रही है, वसुंधरा राजे के वफादार नेता उन्हें सीएम उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं करने के कारण केंद्रीय नेतृत्व से नाराज़ हैं. ऐसा कहा जाता है कि राजे खुद भी पिछले कुछ वर्षों में पार्टी में खुद को हाशिए पर धकेले जाने से असंतुष्ट हैं.

भाजपा ने कहा है कि वह राजस्थान चुनाव “सामूहिक नेतृत्व” के तहत लड़ेगी — यह बात बुधवार की कोर ग्रुप की बैठक के बाद शेखावत ने मीडिया के सामने दोहराई.

हालांकि, राजस्थान बीजेपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में पुनर्जीवित कांग्रेस का सामना करने और अपने राजपूत मतदाता-आधार को खोने की चिंता के कारण, जो राजे को कथित तौर पर दरकिनार किए जाने से परेशान है, पार्टी ने उनके वफादार के लिए दरवाजा खोल दिया है.

पदाधिकारी ने कहा, “चुनाव से पहले दो संदेश भेजने का मतलब – एक कि पार्टी राजे को समायोजित कर रही है और दूसरा राजपूत समुदाय के लिए.”

अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, “न केवल राजे भाटी के मामले को आगे बढ़ा रही थीं बल्कि मेघवाल की अनिच्छा के बावजूद, राजनाथ सिंह ने भी उन्हें शामिल करने में भूमिका निभाई.”

पदाधिकारी ने कहा, “भाटी एक बड़े सामुदायिक नेता हैं और उन्होंने भैरों सिंह शेखावत और राजे की सरकार के दौरान मंत्री के रूप में कार्य किया है. उनके शामिल होने से राजपूत मतदाताओं का दिल जीता जाएगा.”

राजस्थान बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक, अमित शाह ने राजे को आश्वासन दिया कि उनके हितों की रक्षा की जाएगी. उन्होंने कहा, “इसका मतलब है कि टिकट बांटने के दौरान उनके समर्थकों पर विचार किया जाएगा. भाटी एक उदाहरण हैं.” नेता ने कहा, अगर बीजेपी विधानसभा चुनाव जीतती है, तो उसके बाद राज्य नेतृत्व का फैसला किया जाएगा.

नेता ने बताया, “यह रणनीति हर व्यक्ति को अपनी संभावनाओं के बारे में अनुमान लगाती रहेगी और यह गुट-ग्रस्त इकाई के साथ चुनाव लड़ने का एकमात्र तरीका है. राजे कैसे प्रतिक्रिया देती हैं यह भी एक मुद्दा है क्योंकि वे जानती हैं कि अगर भाजपा उनके समर्थन के बिना चुनाव जीत गई, तो उनका करियर खत्म हो जाएगा.”

शुक्रवार को दिप्रिंट से बात करते हुए, भाटी ने कहा, “पांच साल बाद, मेरी घर वापसी हो रही है.”

उन्होंने कहा, “मुझे यकीन है कि भाजपा अगली सरकार बनाएगी. जहां तक ​​वसुंधरा जी का सवाल है, वे एक बड़ी नेता हैं जिनका पूरे राजस्थान में सम्मान है. हालांकि, पार्टी ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव में जाने का फैसला किया है, लेकिन आलाकमान ने आश्वासन दिया है कि वे उन्हें पूरा सम्मान देंगे.”

मेघवाल के साथ अपने लंबे समय से चले आ रहे टकराव पर उन्होंने कहा, “गुरुवार को हम (राजस्थान प्रभारी) अरुण सिंह की मौजूदगी में मिले और हम भाजपा को सत्ता में वापस लाने के लिए मिलकर काम करेंगे.”


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कौन हैं भाटी?

भाटी, जिनकी राजस्थान के बीकानेर और जोधपुर क्षेत्रों में पकड़ मानी जाती है, लंबे समय से राजे को भाजपा का सीएम चेहरा बनाने की मांग करते रहे हैं. अगस्त में उन्होंने कथित तौर पर कहा कि वे तभी भाजपा में शामिल होंगे जब राजे को राज्य इकाई का प्रभार दिया जाएगा.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि मेघवाल ने पार्टी में उनकी दोबारा एंट्री रोकने की कोशिश की. मेघवाल के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता 2018 से शुरू हुई, जब भाजपा ने कोलायत सीट से भाटी की बहू पूनम कंवर को टिकट दिया था. वो चुनाव हार गईं और भाटी ने आरोप लगाया कि मेघवाल ने उनके खिलाफ प्रचार किया था.

भाटी को पार्टी में शामिल करने में भी ज़ाहिर तौर पर किसान राजस्थान इकाई के प्रमुख सतीश पूनिया ने रोक लगा दी थी, जिनके साथ राजे के रिश्ते खराब थे.

2022 में राजे की बीकानेर यात्रा के दौरान, भाटी ने अपने समर्थकों को जुटाने में मदद की थी और घोषणा की थी कि वे भाजपा में लौटने की योजना बना रहे हैं, लेकिन पार्टी ने नेताओं की दोबारा वापसी पर फैसला लेने के लिए मेघवाल के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया, जो भाटी के बारे में फैसले पर बैठी.

इस महीने की शुरुआत में राजे के एक अन्य वफादार कैलाश मेघवाल ने मीडिया पर आरोप लगाया कि “राजे के समर्थकों को पार्टी में अलग कर दिया गया और अपमानित किया गया”.

अब जब भाटी पार्टी में शामिल हो गए हैं, तो भाजपा सूत्रों ने कहा, इससे मेघवाल के बेटे रवि शेखर को कोलायत से टिकट मिलने की संभावना कम हो गई है.


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पार्टी नेतृत्व ‘ऑप्टिक्स का मैनेजमेंट’

बीजेपी आलाकमान की राजे के साथ लंबे समय से खींचतान चल रही है, उन्होंने उनकी सक्रिय भागीदारी के बिना कई जन लामबंदी कार्यक्रम आयोजित किए, जिन्हें जनता में ज्यादा समर्थन नहीं मिला.

पूर्व सीएम ने महिलाओं के खिलाफ अत्याचार, पेपर लीक और राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति के खिलाफ रैलियों और इस महीने की परिवर्तन यात्राओं के विरोध में जून-जुलाई में भाजपा के ‘नहीं सहेगा राजस्थान’ आंदोलन में भाग नहीं लिया.

बीजेपी ने अगस्त में दो चुनाव समितियों की भी घोषणा की लेकिन राजे को किसी में भी जगह नहीं मिली.

राजस्थान के एक दूसरे नेता के मुताबिक, पैनल उनके कद के अनुरूप नहीं थे. उन्होंने कहा, “हालांकि, पार्टी पीढ़ीगत बदलाव की तलाश में है, लेकिन वे इस बात का ध्यान रख रहीं हैं कि राजे पर ज्यादा दबाव न डाला जाए और यह आभास देना चाहती है कि यह उनके सम्मान के अनुरूप है.”

उन्होंने कहा कि, जून में उदयपुर रैली के दौरान, अमित शाह ने हस्तक्षेप करते हुए विधानसभा में विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राजे भाषण दें.

अपनी राजस्थान इकाई में शांति बनाने की एक और कोशिश में भाजपा नेतृत्व ने इस मार्च में पूनिया की जगह “अधिक तटस्थ” सी.पी. जोशी को राज्य इकाई प्रमुख नियुक्त कर दिया.

राजस्थान बीजेपी के तीसरे नेता ने दिप्रिंट को बताया, “जनता से पहले ऑप्टिक्स को मैनेज करना हाईकमान की एक सोची-समझी रणनीति है ताकि वोट न खोएं. वो यह संदेश देना चाहते हैं कि पार्टी राजे को सम्मान दे रही है, लेकिन उन्हें वास्तविक अधिकार दिए बिना. वे राज्य इकाई पर नियंत्रण रखना चाहते हैं.

उन्होंने कहा कि नेतृत्व को डर है कि शक्तिशाली राजे के साथ, वे इकाई पर नियंत्रण खो देंगे क्योंकि उनकी अपनी कार्यशैली है. साथ ही, वे चुनाव जीतने के लिए प्रचार अभियान में उनका सक्रिय समर्थन चाहते हैं.

हालांकि, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि यह “फैसला” लिया गया था कि भाजपा “सामूहिक नेतृत्व के तहत चुनाव लड़ेगी”.

उन्होंने कहा, “कोई अस्पष्टता नहीं है और पार्टी हर दिन बढ़त हासिल कर रही है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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