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Sunday, 22 December, 2024
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कर्नाटक चुनावों की आहट के बीच आपस में झगड़ते मंत्रियों ने बढ़ाईं CM बोम्मई की मुश्किलें

अंदरूनी कलह और राज्य प्रशासन तथा CM के पद पर अपनी ही कैबिनेट के मंत्रियों की टिप्पणियां CM बासवराज बोम्मई के लिए परेशानियां पैदा कर रही हैं. असेम्बली चुनाव मई 2023 में या उससे पहले होने हैं.

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नई दिल्ली: ऐसे समय जब कर्नाटक में असेंबली चुनाव दस्तक देने जा रहे हैं- राज्य में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार- दक्षिण का अकेला सूबा जहां पार्टी सत्ता में है- अपने ही मंत्रियों के हाथों लगाई आग को बुझाने में लगी है, जिसमें मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई सरकार के भीतर ही परेशानी का सामना कर रहे हैं.

असेंबली चुनाव मई 2023 में या उससे पहले होने हैं और बीजेपी अपने कार्यकाल को दोहराना चाह रही है. लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व के आश्वासनों के बावजूद कि पार्टी बोम्मई की अगुवाई में ही चुनाव लड़ेगी, बीते सप्ताह सीएम के अपने ही दो मंत्रियों की टिप्पणियों ने उन्हें शर्मसार कर दिया है.

मंगलवार को बेलारी में एक आयोजन में कर्नाटक परिवहन मंत्री बी श्रीरामुलु ने कहा कि वो कांग्रेस नेता सिद्धारमैया को फिर से सीएम देखना चाहते हैं.

श्रीरामुलु ने कांग्रेस नेता के बारे में कहा, ‘हम केवल राजनीतिक कारणों से एक दूसरे की आलोचना करते हैं, इसमें निजी कुछ नहीं है. हम अच्छे दोस्त हैं. मैं ये बयान इसलिए दे रहा हूं कि मैं किसी का ग़ुलाम नहीं हूं. मुझे यकीन है कि एक दिन सिद्धारमैया भी, मुझे मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं’.

श्रीरामुलु की टिप्पणियों से कुछ दिन पहले ही, राज्य के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी और भास्कर नाम के एक सामाजिक कार्यकर्त्ता के बीच फोन पर हुई कथित बातचीत लीक हो गई थी. उसमें मंत्री को कथित रूप से कहते हुए सुना गया था, ‘हमारी सरकार काम नहीं कर रही है. हम केवल इसलिए काम चला रहे हैं क्योंकि (असेंबली चुनावों में) सिर्फ आठ महीने बचे हैं’.

हालांकि नुकसान कम करने की कोशिश करते हुए सीएम ने कहा कि मधुस्वामी की टिप्पणियां एक ‘अलग संदर्भ’ में की गईं थीं, लेकिन कई मंत्रियों ने ‘सरकार को शर्मसार’ करने वाले दोनों मंत्रियों के इस्तीफे की मांग की है.

कांग्रेस, जो अगले साल राज्य में सत्ता वापसी की उम्मीद कर रही है, प्रदेश बीजेपी में मच रही अंदरूनी कलह का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.

मंगलवार को एक ट्वीट में कर्नाटक कांग्रेस प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने लिखा: ‘कमजोर दिल के सीएम बोम्मई और कर्नाटक में बीजेपी सरकार की हकीकत सामने आ गई है- ये एक डूबता हुआ जहाज है. कन्नड़ लोग तत्काल रूप से बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने के इंतजार में हैं’.

दिप्रिंट से बात करते हुए कर्नाटक बीजेपी के एक उपाध्यक्ष ने कहा, ‘कर्नाटक के प्रतिस्पर्धी नेता जानते हैं कि बोम्मई सिर्फ फिलहाल के लिए मुख्यमंत्री हैं. चुनावों से पहले या बाद में उन्हें बदला जाएगा, इसलिए शीर्ष नेतृत्व की ओर से ये भ्रम की स्थिति राज्य में अनिश्चितता पैदा करती है, जिसके नतीजे में नेताओं में भी भ्रम पैदा हो रहा है और महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए अवसर पैदा हो रहे हैं, जो मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं’.

बीजेपे के इनकार के बावजूद कि बोम्मई को बदला जाएगा, राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अफवाहें लगातार बनी हुई हैं. अप्रैल में, पूर्व कर्नाटक सीएम जगदीश शेट्टार ने अमित शाह से मुलाकात की थी जिससे अटकलों का बाजार गर्म हो गया था. बुधवार को वरिष्ठ बीजेपी विधायक बासनगौड़ा पाटिल का ये कहते हुए हवाला दिया गया, ‘अगर मैं सीएम उम्मीदवार होता हूं, तो हम (224-सदस्यीय असेंबली में) आसानी से 150 सीटें जीत जाएंगे’.

इसके अलावा, बीजेपी कर्नाटक प्रभारी अरुण सिंह के राज्य के दौरे ने अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया कि पार्टी अभी भी बोम्मई नेतृत्व के जमीनी असर का आंकलन कर रही है.


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अंदरूनी फसाद

श्रीरामुलु की टिप्पणियों की अहमियत बेलारी जिले में उनके राजनीतिक रसूख को देखते हुए बढ़ जाती है, जहां से वो लगातार चार बार असेंबली चुनाव जीत चुके हैं. ये सब बेलारी खनन घोटाले में उनकी कथित संलिप्तता के बावजूद है. उनकी बहन जे शांता बेलारी लोकसभा सीट से सांसद हैं.

इसके अलावा, एसटी वाल्मीकि समुदाय के सदस्य और नेता होने के नाते, श्रीरामुलु का पड़ोसी जिलों कोप्पल, रायचूर, और गडग में भी काफी प्रभाव है जहां वाल्मीकियों की आबादी बड़ी संख्या में है.

उनकी टिप्पणियों से पहले ही उनके साथी मंत्री मधुस्वामी ने भी बोम्मई सरकार पर टिप्पणियां कीं थीं जिनसे एक विवाद खड़ा हो गया है.

एक समय ऐसा लगता था कि मधुस्वामी कर्नाटक सीएम बन जाएंगे. 2021 में जब बीजेपी ताकतवर लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को बदलना चाह रही थी, तो चार बार के विधायक मधुस्वामी पार्टी द्वारा बनाई गई सूची में काफी ऊपर थे. लेकिन बोम्मई के पक्ष में उनकी अनदेखी कर दी गई और उन्हें कानून विभाग दे दिया गया.

एक ऑडियो क्लिप में वायरल हो गई. इसमें मधुस्वामी, भास्कर के साथ एक बातचीत में उन सहकारी बैंकों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे, जो 50,000 रुपए के कर्ज के नवीनीकरण के लिए किसानों से 1,300 रुपए वसूलते थे, वो  कथित रूप से कहते हुए सुने गए,  ‘मैं इन मुद्दों से परिचित हूं. मैंने सोमशेखर को इससे अवगत करा दिया है. वो कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. फिर मैं क्या करूं?’

सहकारी मंत्री एसटी सोमशेखर गौड़ा ने अपने सहकर्मी की टिप्पणी की आलोचना करते हुए कहा, ‘मधुस्वामी इस भ्रम में हैं कि अकेले वही समझदार हैं और उनके पास सारे मंत्रालयों का ज्ञान है. उन्हें इस भ्रम से बाहर आना चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया है कि सरकार लड़खड़ा रही है. मुझे लगता है कि ये बस उनका विभाग है जो लड़खड़ा रहा है’.

कर्नाटक बागवानी मंत्री मुनीरत्ना ने भी मधुस्वामी की टिप्पणियों को ‘अनुचित’ करार दिया. उन्होंने कहा, ‘वो प्रदेश कैबिनेट का हिस्सा हैं और उनका सरकार के खिलाफ ऐसी टिप्पणी करना अनुचित है, जिसका वो हिस्सा हैं. अगर राज्य सरकार काम नहीं कर रही है तो उसके लिए वो भी जिम्मेदार हैं और ऐसी बात करने से पहले उन्हें सरकार को छोड़ देना चाहिए’.

हालांकि कानून मंत्री ने पलटवार किया है, ‘वो कौन होते हैं कैबिनेट से मेरा इस्तीफा मांगने वाले? केवल मुख्यमंत्री मुझसे इस्तीफे के लिए कह सकते हैं. मैंने उन्हें अपने मुद्दे से अवगत करा दिया है, और वो मेरे कारणों से संतुष्ट हो गए हैं. मुझे एक कॉलर ने उकसाया था और मैंने उसी संदर्भ में प्रतिक्रिया दी थी’.

‘निष्क्रियता’, हालात से ‘गलत ढंग से निपटना’

ऐसा पहली बार नहीं है कि बोम्मई का प्रशासन जांच के घेरे में आया है. इसी साल, हिजाब विवाद के दौरान उन्हें सीएम के तौर पर अपनी सबसे बड़ी आजमाइश से गुजरना पड़ा. ये विवाद महीनों तक सुर्खियों में बना रहा जिसके नतीजे में बड़े पैमानों पर छात्रों के विरोध प्रदर्शन हुए और जिससे आगे चलकर बीजेपी को विपक्ष की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा.

जुलाई में, बीजेपी की युवा विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा (बीजेवाईएम) के एक सदस्य प्रवीण नेत्तारू की हत्या के नतीजे में, पार्टी वर्कर्स और हिंदुत्वा कार्यकर्त्ताओं ने सरकार पर ‘निष्क्रियता’ और उन्हें बचाने में विफल रहने का आरोप लगाया- जिसके परिणामस्वरूप तनावपूर्ण स्थितियों को संभालने की बोम्मई की क्षमता पर सवाल खड़े किए गए.

इसके अलावा, बोम्मई को उस समय भी बचाव की मुद्दा में आना पड़ा था, जब मार्च में उनके शासन को भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा था.

बेलगावी के एक ठेकेदार संतोष पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखकर आरोप लगाया था कि तत्कालीन मंत्री केएस ईश्वरप्पा और उनके साथी कुछ बिलों को पास करने के लिए, उन्हें ‘कमीशन’ के लिए परेशान कर रहे हैं. ये कोई अकेली घटना नहीं थी- कर्नाटक प्रदेश ठेकेदार एसोसिएशन ने राजनेताओं और अधिकारियों पर सरकारी टेंडर्स में 40 प्रतिशत तक कमीशन मांगने का आरोप लगाया था.

अप्रैल में पाटिल के मुर्दा पाए जाने के बाद, ईश्वरप्पा ने ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. पाटिल की मौत उडुपी के एक होटल में कथित रूप से खुदकुशी से हुई. व्हाट्सएप मैसेज के रूप में एक कथित सुसाइड नोट में पाटिल ने अपनी मौत के लिए ईश्वरप्पा को जिम्मेदार ठहराया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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