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Thursday, 10 October, 2024
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‘आप का दलित चेहरा और अंबेडकरवादी’ हैं धर्मांतरण विवाद पर इस्तीफा देने वाले दिल्ली के पूर्व मंत्री गौतम

दो बार के विधायक गौतम ने रविवार को मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनके पास सोशल वेलफेयर, एससी-एसटी सहित अन्य विभागों के मंत्रालय थे. इसके अलावा SC/ ST के युवाओं के लिए छात्रवृत्ति योजना की जिम्मेदारी भी थी.

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नई दिल्ली: वह साल 2016 था, जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सीमापुरी से पहली बार विधायक रहे राजेंद्र पाल गौतम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था. आम आदमी पार्टी ने इससे एक साल पहले ही दिल्ली विधानसभा चुनावों में 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की थी.

54 वर्षीय गौतम केजरीवाल कैबिनेट के ‘दलित चेहरे’ के रूप में आप की पहली पसंद नहीं थे. लेकिन उन्होंने समाज कल्याण, एससी और एसटी कल्याण सहित कई विभागों की जिम्मेदारी अच्छे से संभाली. वह चर्चाओं में रहे बिना अपने काम करते रहे.

AAP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य गौतम ने पिछले सप्ताह करोल बाग में एक कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति के बाद रविवार को दिल्ली सरकार में एक मंत्री के रूप में इस्तीफा दे दिया. दरअसल उनके इस कार्यक्रम में शामिल होने से एक राजनीतिक विवाद शुरू हो गया था.

5 अक्टूबर को गौतम के एक समारोह में भाग लेने के वीडियो सामने आए, जहां वह अंबेडकर के परपोते राजरत्न अम्बेडकर के साथ, 1956 में नागपुर में एक कार्यक्रम में हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में परिवर्तित के समय अम्बेडकर द्वारा निर्धारित ‘22 प्रतिज्ञाओं’ को दोहराते हुए नजर आए.

भारतीय जनता पार्टी ने गौतम पर हिंदू देवी-देवताओं के बहिष्कार की शपथ लेकर कथित तौर पर ‘हिंदू धर्म की निंदा’ करने का आरोप लगाया और उनके इस्तीफे की मांग की. दिल्ली भाजपा नेताओं ने आप पर ‘हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने’ का भी आरोप लगाया.

अपने इस्तीफे में गौतम ने लिखा कि समाज का एक सदस्य होने के नाते व्यक्तिगत रूप से इस वह इस समारोह में शामिल हुए थे. इसका आम आदमी पार्टी और उनके मंत्री होने से कुछ लेना-देना नहीं था. उन्होंने इस मुद्दे पर भाजपा पर ‘गंदी राजनीति’ करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने कहा, अपनी पार्टी के हितों को ध्यान में रखते हुए मैंने यह पद छोड़ने का फैसला किया है.

आप के एक वरिष्ठ नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘पिछले कुछ सालों में वह (गौतम) भारत भर में ऐसे कई समारोह में शामिल हुए हैं, लेकिन यह कभी राजनीतिक मुद्दा नहीं बना.’


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‘कट्टर अम्बेडकरवादी’

पेशे से एक वकील गौतम अपने आंतरिक दायरे में एक दलित अधिकार कार्यकर्ता, एक कट्टर अंबेडकरवादी और एक उत्साही पाठक के रूप में जाने जाते हैं. दो बार के विधायक बौद्ध धर्म को मानते हैं और एनजीओ ‘मिशन जय भीम’ के संस्थापक हैं, जिसने 5 अक्टूबर के समारोह को आयोजित करने में मदद की थी.

पहले उद्धृत आप नेता ने बताया, ‘श्री गौतम एक कट्टर अंबेडकरवादी हैं’ उनके मुताबिक, पूर्व मंत्री के पास अपने घर में कई बुकशेल्फ़ हैं, जो सिर्फ अंबेडकर पर लिखी किताबें से भरी पड़ी हैं.’

2015 में 48,821 मतों के अंतर से जीतने वाले गौतम ने 2020 में न सिर्फ सीमापुरी सीट को बरकरार रखा, बल्कि अपनी जीत के अंतर को 56,108 तक बढ़ा दिया था.

AAP के अधिकांश शीर्ष नेतृत्व की तरह गौतम 2011 इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) आंदोलन का हिस्सा नहीं थे. वह 2014 में पार्टी में शामिल हुए. उन्होंने अगले साल विधानसभा चुनाव जीता और सामाजिक कल्याण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण, गुरुद्वारा चुनाव और रजिस्ट्रार सहकारी समितियों के प्रभार के साथ 2016 में केजरीवाल मंत्रिमंडल में शामिल हुए.

दिल्ली मंत्रिमंडल में सात मंत्री पद हैं, जिनमें से एक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के व्यक्ति के लिए आरक्षित है.

हालांकि गौतम अरविंद केजरीवाल की पहली पसंद नहीं थे.

2015 में AAP की प्रचंड जीत के बाद केजरीवाल ने संदीप कुमार को आरक्षित कैबिनेट बर्थ के लिए चुना और उन्हें सामाजिक कल्याण, एससी / एसटी कल्याण और महिला एवं बाल विकास सहित विभागों का प्रभार सौंपा. गौतम के विपरीत कुमार IAC के दिनों से केजरीवाल को जानते थे. लेकिन अगस्त 2016 में उनका एक विवादास्पद वीडियो सामने आने के बाद सुल्तानपुर माजरा के विधायक AAP नेतृत्व की पसंद नहीं रहे.

आप के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘मंत्री पद के लिए अगली पसंद राखी बिड़ला थीं, जो अन्ना (हजारे) आंदोलन के दिनों से आप नेतृत्व के साथ जुड़ी थीं. लेकिन उन्हें उसी साल दिल्ली डिप्टी स्पीकर बनाया जा चुका था. बॉस (केजरीवाल) ने तब राजेंद्र पाल गौतम को मौका देने का फैसला किया और उन्हें जो विभाग सौंपे गए, वास्तव में उन्होंने वहां अच्छा प्रदर्शन किया.’

‘आप के लिए महत्वपूर्ण’

2019 में गौतम दिल्ली में AAP सरकार की प्रमुख परियोजनाओं में से एक – जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना के पीछे मुख्य पावर बनकर उभरे. यह आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिए एक छात्रवृत्ति योजना है, जिससे उन्हें प्रमुख कोचिंग केंद्रों में नामांकन करने में मदद मिलती है. ताकि ये छात्र मेडिकल और इंजीनियरिंग से जुड़ी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर सकें.

नाम न बताने की शर्त पर दिल्ली के एक अन्य वरिष्ठ आप पदाधिकारी ने कहा कि गौतम के ‘नेतृत्व गुणों’ के साथ-साथ ‘भारत भर में दलित समूहों और नागरिक अधिकार समूहों के साथ बहुत अच्छे संबंध’ हैं.

कार्यकर्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह आप के लिए काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि दिल्ली की 20 प्रतिशत से ज्यादा आबादी में दलित समुदाय के लोग हैं. उन्होंने दिल्ली के साथ-साथ पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश सहित अन्य राज्यों में चुनाव अभियानों के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई है.’

आप ने मार्च में पंजाब के चुनावों में जीत हासिल की, लेकिन वह उत्तराखंड या उत्तरप्रदेश में एक भी सीट हासिल करने में नाकाम रही. पार्टी अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी राज्यों में अपना विस्तार करने के लिए काम कर रही है.

गौतम के इस्तीफे के साथ, AAP अब इस सवाल से जूझ रही है कि क्या उनके मंत्रिमंडल से बाहर होने से चुनावी राज्यों में दलित मतदाताओं के बीच पार्टी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान हो सकता है.

एक अन्य वरिष्ठ आप नेता ने कहा, ‘हमने धार्मिक मुद्दों से सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए अतीत में ऐसे परिदृश्यों का आकलन किया है. हमारा विचार एक अलग राजनीतिक जगह बनाने का है जो विकास, कल्याण, नौकरियों, बेहतर जीवन आदि पर आधारित हो. हमारी सोच इस बात के साथ जुड़ी है कि मुख्य रूप से लोगों के लिए क्या मायने रखता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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