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Wednesday, 18 December, 2024
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चुनाव से पहले पूर्व CMs बीसी रॉय, कामराज पर है BJP की नज़र, ‘उपेक्षित’ कांग्रेसी के तौर पर कर रही पेश

बीजेपी पूर्व मुख्यमंत्रियों बीसी रॉय और के कामराज के योगदान को बढ़ा-चढ़ा कर बता रही है और साथ ही बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जैसे कवियों की उपेक्षा के लिए पिछली सरकारों की आलोचना कर रही है.

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नई दिल्ली: 19 फरवरी को पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले में एक राजनीतिक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये कहते हुए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पर तीखा हमला किया कि उसने उपन्यासकार और कवि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के आवास की ‘अनदेखी’ की है जिन्होंने वंदे मातरम की रचना की थी.

मोदी ने कहा कि ये उपेक्षा टीएमसी की राजनीति को दर्शाती है जिसका फोकस देशभक्ति नहीं बल्कि ‘वोट बैंक’ और ‘तुष्टिकरण’ है.

मोदी ने कहा, ‘मुझे पता चला कि वंदे मातरम भवन, जहां बंकिम चंद्र जी पांच साल रहे थे, एक जर्जर हालत में है’. उन्होंने आगे कहा, ‘…ये बंगाल के गर्व के साथ अन्याय है. मुझे इसके पीछे एक बड़ी सियासत नज़र आती है (बंगाली आइकॉन्स की उपेक्षा) जिसके केंद्र में वोट बैंक राजनीति और तुष्टिकरण है, देशभक्ति नहीं’.

पीएम का कवि को याद करना कोई संयोग नहीं है- बीजेपी चुनाव में जा रहे पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम सूबों में कवियों और राजनेताओं से लेकर समाज सुधारकों तक बहुत सी हस्तियों को अपनाने की कोशिश कर रही है.

पिछले हफ्ते मोदी ने केरल में कई परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए 19वीं और शुरूआती 20वीं सदी के प्रसिद्ध मलयालम कवि और समाज सुधारक कुमारन आसन का हवाला दिया.

14 फरवरी को पुलवामा हमले के पीड़ितों को श्रद्धांजलि पेश करते हुए मोदी ने तमिल लेखक और कवि सुब्रहमण्यम भारती की एक कविता सुनाई.

पीएम ने कहा, ‘चलिए हथियार बनाएं, कागज़ बनाएं, कारखाने बनाएं, स्कूल बनाएं, वाहन बनाएं, जहाज़ बनाएं’. उन्होंने आगे कहा कि भारती की कल्पना से प्रेरणा लेकर भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने का एक विशाल प्रयास शुरू किया है.


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‘राजनीति में संस्कृति की अहमियत’

बीजेपी नेताओं का कहना है कि किसी भी जगह की संस्कृति को उजागर करना, उसकी राजनीति का एक अहम पहलू होता है.

पिछले दो महीने में गृह मंत्री अमित शाह, जो पश्चिम बंगाल में बीजेपी की परिवर्तन यात्राओं में हिस्सा ले रहे हैं, दार्शनिक श्री अरबिंदो के जन्म स्थान, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के आवास, नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर के घर और समाज सुधारक राजा राम मोहन रॉय के आवास का दौरा कर चुके हैं.

बीजेपी से संबद्ध डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन (एसपीएमआरएफ) के निदेशक अनिर्बान गांगुली ने, जो पार्टी की सांस्कृतिक आउटरीच की अगुवाई कर रहे हैं, समय-समय पर वादा किया कि यदि पार्टी सत्ता में आ जाती है, तो इन सांस्कृतिक आइकॉन्स के घरों का नवीनीकरण किया जाएगा.

बंगाल बीजेपी महासचिव जय प्रकाश मजूमदार ने दिप्रिंट से कहा, ‘संस्कृति राजनीति का एक अहम हिस्सा होती है’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन जो लोग इन आइकॉन्स पर कॉपीराइट का दावा करते हैं, उन्होंने इनकी विरासत को बचाए रखने के लिए क्या किया है? उन्होंने सिर्फ मूर्तियां बनवाई हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हम पूरा प्रयास कर रहे हैं कि इतिहास की किताबों में उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया जाए. हम उनकी याद को विकास और पर्यटन परियोजनाओं के साथ जोड़ रहे हैं और साथ ही आजीविका भी सुनिश्चित कर रहे हैं’.

लेकिन सत्तारूढ़ टीएमसी का कहना है कि सियासी पैंतरेबाज़ियों के अलावा ये और कुछ नहीं हैं.

पूर्व टीएमसी सांसद और हार्वर्ड प्रोफेसर, सुगत बोस ने कहा, ‘ये विरासत को बचाने की कोई सांस्कृतिक लड़ाई नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद का सहारा लेकर और उसे बंगाली संस्कृति के साथ जोड़कर बंगाली हिंदू वोट को एकजुट करने की राजनीतिक लड़ाई है’.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये सीधे-सीधे, बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है. इलाहबाद के जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में सामाजिक इतिहास के प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी ने कहा, ‘धार्मिक एकीकरण के लिए बीजेपी ने पहले राम, कृष्ण और बुद्ध का इस्तेमाल किया. अगले स्तर पर उसने जातीय एकीकरण के लिए सुहेलदेव और गोकुल सिंह जाट जैसी, हाशिए पर पड़ी जातियों के, मध्यकालीन नायकों का इस्तेमाल किया’.

तिवारी ने आगे कहा, ‘विचारधाराओं के साथ विश्वासघात और उनकी उपेक्षा के वृहत कथानक के लिए पार्टी अब स्वतंत्रता संग्राम के नायकों तथा सांस्कृतिक आइकॉन्स को अपना रही है’. उन्होंने ये भी कहा कि ‘चाहे वो बंगाल हो, यूपी हो या कोई भी दूसरा सूबा हो, वो बहुत चालाकी के साथ इनफ्रास्ट्रक्चर बना रहे हैं और उसे आजीविका तथा आइकॉन्स के साथ जोड़कर, उन्हें इतिहास की पुस्तकों में भी शामिल कर रहे हैं’.


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कांग्रेस नेताओं को अपनाना

सांस्कृतिक आइकॉन्स को उजागर करने के अलावा, बीजेपी ‘उपेक्षित’ कांग्रेसी दिग्गजों को अपनाने की, अपनी अज़माई और परखी हुई रणनीति को जारी रखे हुए हैं. फिलहाल इसकी नज़र दो चुनावी राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों पर है- पश्चिम बंगाल के डॉ बिधान चंद्र रॉय और तमिलनाडु के के कामराज.

26 फरवरी को बीजेपी ने तमिलनाडु में एक विवाद खड़ा कर दिया, जब कोयंबटूर में पीएम की रैली में तत्कालीन मद्रास सूबे के तीसरे मुख्यमंत्री के कामराज का कटआउट नज़र आया.

कट्टर कांग्रेसी और एक समय उसके अध्यक्ष रहे कामराज को 1964 में भारत के पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री और फिर 1966 में नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी को भारत का प्रधानमंत्री बनवाने का श्रेय दिया जाता है.

जहां कामराज की विरासत के साथ, बीजेपी की ये छेड़छाड़ हाल ही की है, वहीं पार्टी बिधान चंद्र रॉय पर, जो 1948 से 1962 तक पश्चिम बंगाल के सीएम रहे, काफी समय से दावेदारी की फिराक में रही है.

1 जुलाई 2019 को रॉय की जयंती पर, प्रधानमंत्री ने डॉक्टरों और पूर्व सीएम को श्रद्धांजलि दी, जो खुद एक प्रतिष्ठित मेडिकल डॉक्टर थे. पहली जुलाई, जो संयोग से रॉय की पुण्यतिथि भी है, हर साल डॉक्टर्स दिवस के रूप में मनाई जाती है.

पिछले साल, पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने रॉय का ये कहते हुए अभिवादन किया था कि वो पश्चिम बंगाल में विकास लेकर आए थे.

घोष ने दिप्रिंट से कहा, ‘गांधी और पटेल की तरह, विकास के उनके नज़रिए के लिए, हम बीसी रॉय के आभारी हैं’. उन्होंने ये भी कहा, ‘हम उनकी परिकल्पना से कुछ प्रेरणा लेना चाहते हैं, जो टीएमसी शासन में तबाह हो गई है’.

बीजेपी इस बात का भी हवाला दे रही है कि रॉय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नज़दीक थे, जो बीजेपी की पूर्ववर्ती जनसंघ के संस्थापक थे.

पार्टी सांसद सुभाष सरकार ने दिप्रिंट से कहा कि एक और कारण है जिसकी वजह से बीजेपी रॉय के प्रति नर्म है. सरकार के अनुसार, 1953 में श्रीनगर में हुई मुखर्जी की मौत की जांच के लिए रॉय ने तब के प्रधानमंत्री जवाहराल नेहरू को लिखा था.

इसी महीने अपने राज्य सभा भाषण में पीएम मोदी ने सी सुब्रहमण्यम का भी ज़िक्र किया, जो शास्त्री मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री थे और जो एमएस स्वामीनाथन के साथ मिलकर हरित क्रांति को लागू करने में सहायक रहे.

पीएम कृषि सुधारों के प्रतिरोध की बात कर रहे थे, जब उन्होंने उल्लेख किया कि किस तरह, लाल बहादुर शास्त्री को भी हरित क्रांति के दौरान, ‘वाम शक्तियों’ के विरोध का सामना करना पड़ा था और उन्होंने सी सुब्रहमण्यम को कृषि मंत्री नियुक्त किया, जब दूसरे राजनीतिज्ञों को ‘डर था’ कि इस विभाग को लेने से किसान नाराज़ हो जाएंगे और उनके राजनीतिक करियर्स पर असर पड़ेगा.

सुब्रहमण्यम का ताल्लुक भी तमिलनाडु से था.

रॉय और कामराज, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ, कांग्रेस नेताओं के उस समूह में शामिल हो गए हैं जिसे बीजेपी ने हाल ही में अपनाने की कोशिश की है.

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के राजनीतिक विशेषज्ञ संजय कुमार ने बीजेपी की इस रणनीति के लिए कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की ये एक बड़ी भारी विफलता है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम से मिली अपनी विरासत को सुरक्षित नहीं रखा है. बीजेपी लोगों को यकीन दिलाने में कामयाब हो गई है कि कांग्रेस ने पटेल, बोस, शास्त्री और राव को उचित सम्मान नहीं दिया है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘कांग्रेस ने तो बोस जयंती, पटेल की वर्षगांठ या शात्री की जयंती तक नहीं मनाई, जब वो सत्ता में थी. नरसिम्हा राव को तो भूल ही जाइए, जिन्हें अपने जीवन में और मरने के बाद भी अपमानित किया गया. इसमें मोदी की क्या गलती है, अगर वो इन आइकॉन्स को छीन रहे हैं, जब कांग्रेस का अतीत में उसे कोई जुड़ाव नहीं रहा है? वो गांधी परिवार के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रही है’.

बीजेपी प्रवक्ता आरपी सिंह ने कहा, ‘हमारी विरासत तो भूल जाइए, कांग्रेस ने 60 साल तक राज किया है और वो कोई नेहरू मेमोरियल या इंदिरा मेमोरियल तक नहीं बना पाई’.

उन्होंने आगे कहा, ‘उन्हें जाकर गांधीनगर संग्रहालय और पटेल प्रतिमा प्रोजेक्ट देखना चाहिए. उन्होंने अपने खुद के नरसिम्हा राव का अपमान किया, जो उनके प्रधानमंत्री थे. अगर वो राष्ट्रीय नायकों को भूल गए हैं, तो हमारा फर्ज़ है कि उन्हें वो गर्व और प्रतिष्ठा दिलाएं, जिसके वो हकदार हैं’.

लेकिन कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि बीजेपी और प्रधानमंत्री को इतिहास का कोई ज्ञान नहीं है. श्रीनेत ने कहा, ‘वो (मोदी) कबीर से लेकर गुरु नानक तक, हर किसी की विरासत पर दावा ठोंक रहे हैं लेकिन आखिर में उन्होंने (अहमदाबाद के) सरदार पटेल स्टेडियम का नाम अपने नाम पर रख दिया. इससे उनका दोगलापन ज़ाहिर होता है’. उन्होंने ये भी कहा, ‘ये सब वोटों के लिए हो रहा है, इसका विरासत से कोई लेना-देना नहीं है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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