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Friday, 22 November, 2024
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क्यों हिमाचल चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले BJP नेताओं पर न दबाव काम आया और न ही समझाना

भाजपा के समझाने और काफी प्रयासों के बावजूद हिमाचल प्रदेश में बागी नेता टिकट न मिलने के बाद एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर पार्टी की संभावनाओं को खतरे में डाले हुए हैं.

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नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को होने वाले चुनाव से कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी को अपने ही बागी नेताओं से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. 68 सदस्यीय विधानसभा की एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर पार्टी के बागी नेता निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए मैदान में खड़े हैं.

भाजपा ने सोमवार को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए ऐसे पांच नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया. इनमें चार पूर्व विधायक- किन्नौर से तेजवंत सिंह नेगी, आनी से किशोरी लाल, इंदौरा से मनोहर धीमान और नालागढ़ से केएल ठाकुर- और अब तक के हिमाचल प्रदेश उपाध्यक्षों में से एक कृपाल परमार शामिल हैं.

पार्टी से टिकट न मिल पाने के बाद सभी चार विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि परमार फतेहपुर में भाजपा उम्मीदवार राकेश पठानिया के खिलाफ खड़े हैं.

एक छठे नेता राम सिंह- राज्य भाजपा के एक अन्य उपाध्यक्ष- को पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार नरोत्तम ठाकुर के खिलाफ कुल्लू से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने के लिए मंगलवार को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.

भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा बागियों को मनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं. पिछले एक सप्ताह में एक के बाद एक लगातार बातचीत के बाद वह तीन नेताओं को मनाने में कामयाब भी रहे. दौड़ से बाहर होने वाले नेताओं में पूर्व सांसद महेश्वर सिंह, जिन्होंने कुल्लू सदर से अपना नामांकन दाखिल किया था, युवराज कपूर जिन्होंने करसोग से लड़ने की योजना बनाई थी और धर्मशाला के पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष अनिल चौधरी शामिल हैं.

फिर भी 17 से ज्यादा भाजपा नेता अभी भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं.

राम सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह लोगों की लड़ाई है. मैं आमजन का प्रतिनिधि हूं. मैंने नरोत्तम ठाकुर को पहले कभी नहीं देखा. पार्टी ने मुझे और महेश्वर सिंह को टिकट नहीं दिया और नए आने वालों को पुरस्कृत कर रहे हैं. यह उन पार्टी कार्यकर्ताओं का अपमान है जो इतने लंबे समय से पार्टी के लिए काम कर रहे थे.’

हिमाचल प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘सिर्फ नतीजे ही बताएंगे कि हमारा प्रयोग सही था या गलत.’

उन्होंने कहा, ‘इस बार पार्टी के नेता दबाव और समझाने के बावजूद आलाकमान की बात मानने को तैयार नहीं हैं. कई लोग हमारे टिकट बंटवारे के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि ‘शीर्ष (हिमाचल) नेतृत्व विरोधाभासी आंतरिक सर्वे रिपोर्टों के कारण कई सीटों को लेकर भ्रम की स्थिति में था.’

भाजपा उपाध्यक्ष रतन सिंह पाल ने स्वीकार किया कि कई जगहों पर टिकट बंटवारे को लेकर समस्या है, लेकिन उन्हें विश्वास है कि लोग सिर्फ भाजपा के चुनाव चिन्ह के लिए मतदान करेंगे.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हर कार्यकर्ता टिकट चाहता है लेकिन सभी के लिए ऐसा संभव नहीं है. यह दर्शाता है कि हम सत्ता में तब आ रहे हैं जब हर निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी के टिकटों की भारी भीड़ है. कैडर आधारित पार्टी में लोग सिर्फ पार्टी के चुनाव चिन्ह पर वोट करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘जो कोई भी इस तरह की बात कर रहा है उसे याद रखना चाहिए कि वे जो कुछ भी हैं पार्टी के कारण हैं. हमें यकीन है कि कुछ जगहों पर बगावत के बावजूद हमें बहुमत मिलेगा और हम हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाएंगे.’


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विद्रोहियों से मिलें

छह निष्कासित नेताओं के अलावा भाजपा के कुछ और भी प्रमुख बागी नेता हैं जिन्होंने पार्टी के दबाव और सब्जबाग दिखाए जाने के बावजूद चुनाव लड़ने की कसम खाई है. इसमें मंडी के पूर्व सचिव और मीडिया प्रभारी प्रवीण शर्मा के साथ-साथ कांगड़ा के कुलभाष चंद चौधरी, शाहपुर में जोगिंदर सिंह, धर्मशाला में भाजपा अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष विपिन नेहरिया, बंजार में हितेश्वर सिंह, सुंदरनगर में अभिषेक ठाकुर, झंडुता में आर.आर. कोंडल, बिलासपुर में सुभाष शर्मा और पछड़ में मनीष तोमर शामिल हैं. ये सभी निर्दलीय के रूप में भाजपा उम्मीदवारों के खिलाफ लड़ रहे हैं.

सीएम जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी में नचन सीट से बागी नेता ज्ञानचंद खड़े हैं. सुंदरनगर से पूर्व मंत्री रूप सिंह के बेटे अभिषेक ठाकुर बीजेपी महासचिव राकेश जामवाल के खिलाफ खड़े हैं तो वहीं बागी नेता प्रवीण शर्मा मंडी सदर में पूर्व केंद्रीय मंत्री मंत्री सुखराम के बेटे अनिल शर्मा को चुनौती दे रहे हैं.

सबसे बड़े बागी परमार हैं, जिन्होंने ‘नड्डा और खुद हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के फोन कॉल्स’ के बावजूद चुनाव छोड़ने से इनकार कर दिया है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘चाहे मैं जीतूं या हारूं, मैं पार्टी में एक मूल्य प्रणाली स्थापित करने के लिए चुनाव लड़ूंगा. जीवन में इस समय मैं जनता की मांग पर चुनाव लड़ना चाहता हूं. कई बार वादे किए गए लेकिन पूरे नहीं किए गए.’

भाजपा ने जब रीता धीमान को इंदौरा- एक आरक्षित सीट- से मैदान में उतारने का फैसला किया तो पूर्व विधायक मनोहर धीमान ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ने का मन बना लिया. इसी तरह बीजेपी के जवाली विधायक अर्जुन सिंह ने भी अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

पिछले साल घरेलू हिंसा के आरोपों का सामना करने वाले नेता विधायक विशाल नेहरिया को जब धर्मशाला से टिकट नहीं दिया गया, तो उनके समर्थकों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.

चंबा में विद्रोह की धमकी ने कथित तौर पर भाजपा को अपना उम्मीदवार बदलने के लिए मजबूर कर दिया. पार्टी ने पहले इंदिरा कपूर को अपना उम्मीदवार घोषित किया था. लेकिन इसके बाद मौजूदा विधायक पवन नैय्यर ने विरोध में अपने समर्थकों की बैठक बुला ली.

परेशानी को भांपते हुए पार्टी ने अपने कदम पीछे की ओर खींच लिए और नैय्यर की पत्नी नीलम को नए उम्मीदवार के रूप में घोषित कर दिया. कपूर अब निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं.

हालांकि पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि कपूर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदलने का फैसला किया था.

अगस्त 2021 में चंबा जिला परिषद के पूर्व सदस्य कपूर और कई अन्य लोगों को विकास परियोजनाओं के लिए दिए गए अनुदान के गबन के लिए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी.

नड्डा के गृह जिले बिलासपुर में सुभाष शर्मा बीजेपी के एक अन्य महासचिव त्रिलोक जामवाल को चुनौती दे रहे हैं. कुल्लू से महेश्वर सिंह ने अपना नामांकन वापस ले लिया है लेकिन राम सिंह अभी भी मैदान में हैं. कांगड़ा में कांग्रेस से शामिल हुए भाजपा प्रत्याशी पवन काजल का मुकाबला बागी कुलभाष चौधरी से है.


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‘हममें और कांग्रेस में क्या अंतर है?’

बागी नेताओं के मुताबिक, ‘दलबदलुओं’ को बीजेपी का टिकट दिए जाने के कारण वे ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. विधायकों के आंतरिक सर्वेक्षण और सत्ता विरोधी लहर के आधार पर टिकट बांटने की भाजपा की नई नीति पर कई लोगों ने नाखुशी जाहिर की.

निष्कासित नेता किशोरी लाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने पार्टी को आगे ले जाने के लिए काफी काम किया है. लेकिन उन्होंने इसका इनाम हमें न देकर एक दलबदलू को देना ज्यादा मुनासिब समझा. वो दलबदलू जो सिर्फ छह महीने पहले टिकट पाने के लिए पार्टी के साथ शामिल हुए थे और जिन्होंने अतीत में पीएम मोदी पर आरोप लगाए थे. लेकिन पार्टी उनके पापों को भूल गई और इसके बजाय अपने ही कार्यकर्ता को दंडित कर दिया.’

उन्होंने कहा, ‘मेरी लड़ाई उन लोगों के खिलाफ है जो आखिरी वक्त में कैडर की अनदेखी करते हैं. भाजपा ने ‘जीतने की क्षमता’ के नाम पर लोकेंद्र कुमार (अन्नी में) को टिकट दिया है.’

2012 में निर्दलीय के रूप में इंदौर से जीते और 2017 में भाजपा में शामिल हुए धीमान ने कहा कि उस साल उनसे वादा किया गया था कि उन्हें अगले विधानसभा चुनाव के लिए टिकट दिया जाएगा. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जब मैं शामिल हुआ तो इस पार्टी ने टिकट का वादा किया था, लेकिन उन्होंने अपनी बात का मान नहीं रखा.’

नालागढ़ में पूर्व विधायक ठाकुर की जगह भी कांग्रेस से आए एक दलबदलू को टिकट दे दिया गया. वहीं मौजूदा विधायक एल.एस.राणा ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने एक ‘वफादार कार्यकर्ता’ की अनदेखी की है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने अपना जीवन बीजेपी में बिताया है, लेकिन आखिरी समय में कांग्रेस के एक टर्नकोट को टिकट दिया गया. यह अब एक धर्म युद्ध है- पार्टी-हॉपर के खिलाफ और पार्टी को शुद्ध करने के लिए भी.’

एक अन्य बागी उम्मीदवार ने कहा, ‘सर्वे के आधार पर टिकट बांटने की यह नई संस्कृति राजनीतिक कार्यकर्ताओं का करियर खत्म कर रही है. इस तरह के निजी सर्वेक्षणों की कोई विश्वसनीयता नहीं है और अगर पार्टी सत्ता विरोधी लहर को मात देने के बारे में वास्तव में गंभीर है, तो विधायकों को एक साल पहले इस बारे बताया जाना चाहिए था ताकि वे अपने काम में सुधार कर पाते.’

नेता ने कहा कि कार्यकर्ता ‘पार्टी में अपने जीवन के इतने साल लगा देते हैं. लेकिन अगर आखिरी समय पर उन्हें टर्नकोट और बाहर से आए उम्मीदवारों की वजह से टिकट नहीं दिया जाता है, तो कैडर-आधारित संगठन का पूरा विचार कमजोर हो जाता है.’

नेता ने सवाल किया, ‘तो फिर हममें और कांग्रेस में क्या फर्क है?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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