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Wednesday, 24 April, 2024
होमदेश'फोन करते रहे लेकिन कोई नहीं आया'- मोरबी में बचे लोगों की दहशत, पीड़ा और लंबे इंतजार की कहानियां

‘फोन करते रहे लेकिन कोई नहीं आया’- मोरबी में बचे लोगों की दहशत, पीड़ा और लंबे इंतजार की कहानियां

पुल गिरने के हादसे में बचे लोगों का कहना है कि अगर दमकल विभाग, पुलिस, अस्पतालों ने समय पर कार्रवाई की होती तो और लोगों की जान बचाई जा सकती थी. खबर है कि इस हादसे में 141 लोग मारे गए हैं जबकि 224 को बचा लिया गया है.

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मोरबी, गुजरात: जमीला बेन शाह भी गुजरात के उस एक सदी पुराने मोरबी पुल पर अपने परिवार के साथ मौजूद थी. अचानक पुल टूटा और जमीला बेन शाह पानी में गिर गईं. वह एक लटकती केबल को पकड़ कर अपनी जान बचाने में तो कामयाब रही लेकिन बच्चों सहित उसके परिवार के सात लोग नदी में बह गए.

वह उस केबल को तब तक कस कर पकड़े लटकी रही, जब तक कि पास के मकरानी वास इलाके के कुछ लड़के टायर ट्यूब लेकर उसे बचाने नहीं आए.

हादसे में अपनी 18 साल की बेटी को खोने वाली 44 साल की जमीला बेन ने कहा, ‘मैं नीचे पानी में गिरी तो अचानक से एक केबल हाथ में आ गई. बस उसी को पकड़े कम से कम एक घंटे तक लटकी रही. फिर मदद के लिए कुछ लोग आए. लेकिन वो दमकल विभाग या पुलिस से नहीं थे, बल्कि कुछ स्थानीय लड़के थे.’

दिप्रिंट ने हादसे में बचे हुए कई लोगों से बात की. सभी ने इतने बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने के लिए मदद में देरी और त्रासदी से निपटने में प्रशासनिक विफलता के बारे में बात की. हादसे में बचे लोगों के मुताबिक अगर अस्पताल और प्रशासन एक साथ मिलकर समय पर कार्रवाई करता तो और अधिक लोगों की जान बचाई जा सकती थी.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सोमवार शाम तक रविवार को हैंगिंग ब्रिज के गिरने से 141 लोगों की मौत हो चुकी थी और 224 लोगों को बचा लिया गया.

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मोरबी सिविल अस्पताल में शवों के बढ़ते ढेर के बीच से गुलशन राठौड़ ने अपने जिंदा बेटों को बाहर निकाला था. वह कहती हैं, ‘घंटों तक ढूंढने के बाद जब मुझे अपने बेटे नहीं मिले, तो मैं अस्पताल के मुर्दाघर में गई. उन्हें वहां लावारिस शवों के साथ लिटाया हुआ था. मैंने देखा, उनकी सांसें चल रही थीं. मैं तुरंत उन्हें पास के प्राइवेट अस्पताल ले गई.’

उनके दोनों बेटे, जिनकी उम्र 18 और 20 साल है, परिवार में अकेले कमाने वाले हैं. वह बताती हैं, ‘दोनों मिलकर लगभग 15,000 रुपये कमा लेते थे, जिससे हमारे घर का खर्च चलता है. दोनों की रीढ़ की हड्डी में चोट लगी है. अब मुझे नहीं पता कि हमारा गुजारा कैसे चलेगा. हम क्या खाएंगे या कैसे घर का किराया देंगे.’

दिप्रिंट टिप्पणियों के लिए मोरबी सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ रवि दुधरेजिया और नगर अधिकारी संदीप झाला के पास पहुंचा, लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उनकी प्रतिक्रिया मिलने के बाद खबर को अपडेट किया जाएगा.

अन्य स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि प्रशासन हर संभव प्रयास कर रहा था.

सोमवार शाम एक बयान में मोरबी के जिला कलेक्टर जी.टी. पांड्या ने उन खबरों का खंडन किया जिनमें कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की तैयारी के लिए बचाव अभियान को रोका गया था.

राज्य के फायर एंड इमरजेंसी विभाग के निदेशक के के विष्णु ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि बचाव दल ‘दुर्घटना के कुछ घंटों के भीतर मौके पर पहुंच गया था और पूरी रात बचाव अभियान चलाया गया’. इसके साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी दी थी कि 30 नावें और गोताखोरों की कई टीमें जिंदा बचे लोगों की तलाश करने में जुटी हुई हैं.


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‘हम मर रहे थे और हर कोई वीडियो बनाने में लगा था’

सोहेल शेख उस दिन दुर्भाग्य से उसी पुल पर थे. उन्होंने इस त्रासदी में अपने चचेरे भाई अल्फ़ाज़ खान को खो दिया. वह बड़ी बेबसी के साथ बताते हैं, ‘अगर हम उस दिन पुल पर नहीं गए होते, तो एक नवंबर को खान का 18वां जन्मदिन मना रहे होते.’

शेख ने कहा कि पुल गिरने के कुछ मिनट बाद उन्होंने खान को पानी में तैरते हुए देखा. उन्होंने उसे किनारे पर खींच लिया. खान की सांसे अभी भी चल रही थी लेकिन अस्पताल ले जाने का लंबा इंतजार उनकी जिंदगी ले गया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘एक घंटे तक एंबुलेंस नहीं आई. हम फोन करते रहे लेकिन कोई नहीं आया.’

जमीला बेन शाह भी याद करते हुए बताती हैं कि कैसे उन्होंने अपना परिवार खो दिया और मदद के लिए लंबा इंतजार करती रहीं. उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगा जैसे हमारे पैरों के नीचे से जमीन गायब हो गई हो. अराजकता में मैंने अपने पूरे परिवार को खो दिया.’

नीचे गिरते ही जमीला बेन के हाथ में एक केबल आ गई जिससे वह कसकर पकड़े रहीं. उन्होंने लटकते हुए अपनी 8 साल की भतीजी को पानी में बहते हुए पकड़ा था. लेकिन केबल फिसलन भरी थी और आगे बढ़ने की जद्दोजहद में उनके हाथ से बच्ची छूट गई और वह पानी में बह गई. उनकी 21 साल की बेटी, दो भाभी और उनके परिवार के तीन अन्य बच्चे भी पानी में डूब गए.

हालांकि स्थानीय लोगों ने जमीला की जान बचाई थी, लेकिन कुछ ऐसा था जिसे वह आज भी याद कर सिहर उठती हैं. उन्हें वह दहशत और पीड़ा अभी भी याद है. वह कहती हैं, ‘मैं एक घंटे तक केबल को पकड़े लटकी रही और उस एक घंटे के दौरान हर कोई हमारी दहशत,पीड़ा और दुखद संघर्ष का वीडियो रिकॉर्ड कर रहा था.’ वह कहती हैं, ‘मैंने पहले कभी किसी दूसरे इंसान के प्रति इतनी नफरत महसूस नहीं की.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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