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Thursday, 2 May, 2024
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बंगाल के ग्रामीण चुनावों में BJP को फायदा हुआ, गढ़ों में हार बताती है कि 2024 से पहले रणनीति की जरूरत है

हालांकि यह टीएमसी के बाद दूसरे स्थान पर रही, पार्टी ने अपने 2018 के प्रदर्शन में सुधार किया, लेकिन उत्तर बंगाल के अपने गढ़ों और जंगल महल क्षेत्र में आदिवासी सीटों पर समर्थन खो दिया है.

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल ग्रामीण चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने बड़ी जीत दर्ज की, जिससे उसे 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले बढ़ावा मिलेगा. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जो दूसरे स्थान पर रही, ने नतीजों के लिए चुनावी हिंसा और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी की “सड़क राजनीति” को जिम्मेदार ठहराया है.

राज्य में विभिन्न पार्टी नेताओं ने मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की तैनाती नहीं होने, “टीएमसी के हमले का मुकाबला करने के लिए रणनीति की कमी” और “कम कैडर आत्मविश्वास” के कारण पार्टी कार्यकर्ताओं में “डर” को भी जिम्मेदार ठहराया.

पंचायत चुनाव, जिसके नतीजे मंगलवार को आने शुरू हुए, हिंसा से प्रभावित हुए और कम से कम 18 मौतें हुईं. नतीजे टीएमसी के लिए राहत की तरह हैं, जिसने राज्य में सेंट्रल फंड के आवंटन को चुनावी मुद्दा बनाया था, जबकि भाजपा ने घोटालों में टीएमसी नेताओं की कथित संलिप्तता को मुद्दा बनाया था.

चुनाव आयोग (ईसी) के आंकड़ों के मुताबिक, टीएमसी ने 3,317 ग्राम पंचायतों की 63,229 सीटों में से 42,299 सीटें जीती हैं. बुधवार सुबह भाजपा 9,370 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है और 180 पर आगे चल रही है.

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या सीपीआई (एम) ने 2,935 सीटें जीती हैं, जबकि कांग्रेस ने ग्राम पंचायतों में 2,540 सीटें जीती हैं.

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20 जिला परिषदों के चुनावों में, टीएमसी ने 928 सीटों में से 563 सीटें हासिल की हैं, जबकि बीजेपी ने 24 सीटें जीती हैं. 9,730 सीटों वाली 341 पंचायत समितियों में, टीएमसी ने 5,433 और बीजेपी ने 601 सीटें हासिल की हैं. इस रिपोर्ट के दाखिल होने के समय गिनती जारी थी. .

भाजपा ने 2018 के ग्रामीण इलाकों में चुनावों में अपने प्रदर्शन में अभी सुधार किया है, जहां उसने ग्राम पंचायत में टीएमसी की 38,000 सीटों के मुकाबले 5,700 सीटें जीतीं. लेकिन नतीजों पर करीब से नजर डालने पर पता चलता है कि उसने उत्तरी बंगाल के अपने गढ़ और जंगल महल क्षेत्र (जिसमें पुरुलिया, बांकुरा और झाड़ग्राम शामिल हैं) की आदिवासी सीटों पर समर्थन खो दिया है, जो पार्टी के लिए चिंता का विषय हो सकता है.

भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया, “2018 में, हमारे पास (पश्चिम बंगाल में) केवल तीन विधायक और दो सांसद थे. आज हमारे पास 70 विधायक और 16 सांसद हैं.

खराब प्रदर्शन को आंशिक रूप से हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा, “2018 में, हम (कई जगहों पर) नामांकन भी दाखिल नहीं कर सके थे. इस बार, पार्टी ने इसे दो दिनों के अंदर किसी तरह इसे मैनेज किया ..लेकिन एक बार टार्गेट वॉयलेंस शुरू होने के बाद, हम अपने कैडर को सुरक्षा प्रदान करने में विफल रहे. मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बलों की तैनाती नहीं की गई जिससे कार्यकर्ताओं में डर पैदा हो गया.’

हालांकि पार्टी के प्रदर्शन से संतुष्ट भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष ने दावा किया कि राज्य चुनाव आयोग ने एक भी शिकायत पर कार्रवाई नहीं की.

राज्य इकाई के नेता राहुल सिन्हा ने टीएमसी की जीत का श्रेय उनकी रणनीति को दिया. “उन्होंने (टीएमसी) असंतुष्ट नेताओं को व्यस्त रखने और उन्हें पाला बदलने से रोकने के लिए अंतिम समय में नामांकन दाखिल किया. नामांकन के बाद उन्होंने डर पैदा करने के लिए हिंसा शुरू कर दी.”

उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव और लोकसभा चुनाव की तुलना नहीं की जानी चाहिए. “लोकसभा चुनावों में, मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा केंद्रीय बलों को तैनात किया जाएगा और इससे पूरा खेल बदल जाएगा. यह मोदी के नाम पर लड़ा जाएगा और ममता उस पर नियंत्रण नहीं कर सकतीं…भाजपा बहुत बेहतर प्रदर्शन करेगी.”


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टीएमसी के क्या काम आया

भाजपा के राज्य प्रमुख सिन्हा के अनुसार, टीएमसी ने “दिखाया है कि वे सड़क की राजनीति में कितने चतुर हैं”.

उन्होंने कहा, “…(2018 में) केंद्रीय बलों को चकमा देने के लिए एकल चरण के चुनाव की अच्छी तरह से गणना की गई थी, फिर भी, केवल 30 प्रतिशत नामांकन के बावजूद, हमें अधिक सीटें मिलीं.”

राज्य में पार्टी की महासचिव अग्निमित्रा पॉल ने इस बीच कहा कि मुख्यमंत्री “ममता बनर्जी के गुंडों ने जबरन मतदान (प्रक्रिया) पूरी कराई.”

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “केंद्रीय बलों को बूथों के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी, वहां कोई सीसीटीवी कैमरे नहीं थे… कोई राज्य पुलिस और केंद्रीय पुलिस तैनात नहीं थी.”

राज्य के एक अन्य नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “केवल सुवेंदु अधिकारी (जिन्होंने 2020 में टीएमसी से पाला बदल लिया और वर्तमान विपक्ष के नेता हैं) हर जिले में जीत सुनिश्चित नहीं कर सकते. उनके नंदीग्राम जिले में उम्मीदवार जीते लेकिन उनमें से कई ने मोदी के नाम पर ऐसा किया…उन्होंने टीएमसी के हमले का मुकाबला करने के लिए कोई रणनीति नहीं बनाई. इसके साथ ही कैडर के आत्मविश्वास की कमी और उनके बीच डर ने हमारे प्रदर्शन को खराब कर दिया.”

स्थानीय चुनावों को बड़ी चुनौती बताते हुए बीजेपी के एक केंद्रीय नेता ने कहा, ‘हमें केंद्रीय बलों को तैनात करने का अदालती आदेश मिला है. बल लाए गए लेकिन एसईसी ने उन्हें संवेदनशील बूथों की सूची उपलब्ध नहीं कराई…बहुत बड़ा भ्रम था…तीन चरण के चुनाव के लिए बल की तैनाती बेहतर होनी चाहिए थी.”

नाम न छापने का अनुरोध करते हुए, एक उत्साहित पार्टी महासचिव ने कहा, “2018 (चुनाव) के विपरीत, जहां टीएमसी ने निर्विरोध 34 सीटें जीतीं, इस बार उन्हें हमारे कैडर के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. हमने अपने जमीनी कैडर को मजबूत किया है जो लोकसभा के लिए काम करेगा…स्थानीय निकाय चुनावों के लिए बनाए गए कैडर 2024 में जमीन पर लड़ेंगे.

बंगाल और ग्रामीण चुनाव

बंगाल में ग्रामीण चुनाव आम तौर पर लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले होते हैं, जो अक्सर बाद के लिए माहौल तैयार करते हैं. इसलिए, ग्रामीण चुनावों में भारी जीत, जिसमें राज्य की 65 प्रतिशत आबादी शामिल है, अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले जीतने वाली पार्टी को बड़ा बढ़ावा मिलने की संभावना है.

जब उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में 2008 के पंचायत चुनाव लड़े तो ममता बनर्जी ने तत्कालीन सत्तारूढ़ वाम मोर्चा की संख्या को घटाकर आधा कर दिया. एक साल बाद, उन्होंने लोकसभा चुनाव में 19 सीटों के साथ भारी जीत दर्ज की.

2018 के पंचायत चुनावों में बीजेपी ने टीएमसी के खिलाफ बढ़त हासिल की और 19 फीसदी वोट और 5,900 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल के रूप में वामपंथियों की जगह ले ली. टीएमसी ने अपना प्रदर्शन दोहराते हुए 34 प्रतिशत सीटें निर्विरोध जीत लीं. पार्टी ने 2019 में 42 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत हासिल की थी.

(संपादन/ अनुवाद- पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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