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Friday, 22 November, 2024
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धुआंधार अभियान के बावजूद, पदमपुर उपचुनाव में BJD से BJP की हार ‘मिशन ओडिशा’ के लिए झटका होगी

पदमपुर में बीजेडी 38,252 वोटों से आगे चल रही है. अगर यही रुझान बना रहा तो, यह जीत उस पार्टी के लिए राहत के रूप में आएगी, जिसने पिछले महीने 2009 के बाद पहली बार उपचुनाव में हार का सामना किया था, तब बीजेपी ने धामनगर में जीत हासिल की थी.

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नई दिल्ली: ओडिशा में बीजू जनता दल भाजपा से जोरदार टक्कर के बावजूद बरगढ़ जिले की पदमपुर विधानसभा सीट को बरकरार रखने के लिए पूरी तरह तैयार है. भाजपा ने 2024 के राज्य और लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए यहां धुंआधार चुनावी अभियान चलाया था.

मौजूदा विधायक बिजय सिंह बरिहा की बेटी बीजद उम्मीदवार बरसा सिंह बरिहा गुरुवार शाम साढ़े चार बजे तक अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के प्रदीप पुरोहित से 38,252 मतों से आगे चल रही थीं.

दोनों पार्टियों के लिए पदमपुर प्रतिष्ठा की अहम लड़ाई रही है. इस जीत के साथ बीजद दिखा देगी कि ओडिशा में उसका ग्राफ नीचे नहीं गिर रहा है, भले ही वह लगातार पांच साल से सत्ता में रही हो. बीजेडी के लिए यह लड़ाई इतनी महत्वपूर्ण थी कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक खुद चुनाव प्रचार में उतरे. वह कोविड महामारी के बाद से कभी रैलियों या प्रचार में व्यक्तिगत रूप से नजर नहीं आए थे.

बीजेडी के नर्वस होने के कुछ कारण थे: नवंबर में धामनगर उपचुनाव में बीजेपी के सूर्यवंशी सूरज ने 49 फीसदी वोट हासिल कर जीत हासिल की थी. सूरज दिवंगत भाजपा विधायक बिष्णु सेठी के बेटे थे. उनकी मौत के बाद यह सीट खाली हो गई थी.

धामनगर, खासतौर पर 2009 के बाद से बीजद की पहली उपचुनाव हार थी. हालांकि पटनायक ने कहा था कि उन्हें हमेशा ‘उम्मीद’ थी कि दिवंगत विधायक की लोकप्रियता के कारण भाजपा सीट अपने पास रखने में कामयाब रहेगी. केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान- जो ओडिशा से हैं और उन्होंने भाजपा के अभियान में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी- ने तब कहा था कि यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में लोगों के भरोसे को दर्शाती है.

अगर रुझान ऐसा ही बना रहा है, तो पदमपुर का नुकसान, भाजपा की योजना को गड़बड़ा देगी, जो 2024 के आम चुनाव से पहले मिशन ओडिशा को गंभीरता से ले रहा है. पार्टी ने इस चुनावी अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, इसके लिए उसने विशेष रूप से राज्य में प्रधान की प्रतिनियुक्ति की थी. नरेंद्र तोमर और अश्विनी वैष्णव सहित अन्य केंद्रीय मंत्रियों को भी रैलियों के लिए भेजा गया था.

मतदान से पहले केंद्रीय और राज्य एजेंसियों की ओर से छापे और जवाबी हमलों ने इस पिच को ऊंचा बनाए रखा था. इसके अलावा फसल बीमा, एक विलंबित रेलवे परियोजना और पदमपुर के लिए जिला का दर्जा जैसे मुद्दों पर एक निरंतर राजनीतिक दोषारोपण का खेल चलता रहा.


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कभी भाजपा की झोली में, तो कभी बीजद के पास

लगभग 2.48 लाख मतदाताओं वाला एक ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र, जिनमें से 44 फीसदी से ज्यादा लोग अनुसूचित जनजाति से हैं और लगभग 29 प्रतिशत अनुसूचित जाति के हैं. पदमपुर पिछले कुछ चुनावों में भाजपा और बीजद के बीच झूलता रहा है.

2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी प्रदीप पुरोहित ने दिवंगत बिजय रंजन बरिहा को करीब 4500 मतों के अंतर से हराया था. 2019 में बरिहा ने पुरोहित को महज 5,000 वोटों से हराया था.

इस बार बीजेडी ने उम्मीदवार बरशा सिंह बरिहा, सीएम पटनायक की उपस्थिति और चुनाव से पहले घोषित कल्याणकारी उपायों के लिए सहानुभूति लहर पर भरोसा किया.

भाजपा के पुरोहित भी इस क्षेत्र में एक प्रसिद्ध चेहरा हैं, जो 1980 के दशक में भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड (बाल्को) की प्रस्तावित बॉक्साइट खनन गतिविधियों के खिलाफ एक आंदोलन के दौरान प्रमुखता से उभरे थे.

5 दिसंबर को हुए मतदान में इस निर्वाचन क्षेत्र ने 81 प्रतिशत से अधिक का रिकॉर्ड मतदान दर्ज किया था.


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बीजेपी के छलावा बनी धामनगर की जीत

पदमपुर उपचुनाव में, भाजपा नेताओं ने दावा किया कि धामनगर की जीत ने पार्टी को ‘गति’ प्रदान की थी, जो 2020 में बालासोर और तीर्थोल विधानसभा उपचुनाव हार गई थी. हालांकि उनके इस नैरेटिव को अब पदमपुर नुकसान से करारा झटका लगा है.

जब से भाजपा और बीजद ने 2009 में विचारधारा और सीट बंटवारे पर असहमति को लेकर अपना 11 साल पुराना गठबंधन तोड़ा, ओडिशा में दोनों की किस्मत बदल गई. जहां बीजेडी को चुनावी रूप से फायदा हुआ, वहीं बीजेपी को काफी नुकसान पहुंचा.

2004 के विधानसभा चुनाव में जब दोनों पार्टियां आखिरी बार एक साथ लड़ी थीं, तब बीजेडी को 61 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी ने 32 सीटें पर कब्जा जमाया था. 2014 में बीजेडी को 117 और बीजेपी को सिर्फ 10 सीटें मिली थीं. 2019 में बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 23 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन बीजेडी अभी भी 112 सीटों पर जीत के साथ आगे बनी रही थी.

2014 के लोकसभा चुनावों में, जो विधानसभा चुनावों के साथ-साथ हुए थे, बीजद ने 21 में से 20 सीटें जीती थीं और भाजपा को एक सीट मिली थी. लेकिन भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को बेहतर स्थिति में ले आई थी, जब उसने आठ सीटें जीतीं.

लेकिन अगर बात पैर जमाने की आती है तो ओडिशा भाजपा के लिए अभी भी फिसलन वाला राज्य बना हुआ है.

उदाहरण के लिए, इस साल की शुरुआत में हुए पंचायत चुनावों में बीजद ने 852 जिला परिषद सीटों में से 766 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को सिर्फ 42 सीटें मिलीं. यह 2017 में जीती गई 297 सीटों से एक बड़ी गिरावट थी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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