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Wednesday, 24 July, 2024
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हार्दिक, अल्पेश, जिग्नेश सभी आगे चल रहे- कैसी रही गुजरात की इस युवा ‘तिकड़ी’ की सियासी किस्मत

कभी राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले ठाकोर और पटेल ने भाजपा के टिकट पर गुजरात का यह विधानसभा चुनाव लड़ा था, वहीं मेवाणी, जो साल 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते थे, अब कांग्रेस के साथ हैं.

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नई दिल्ली: 2016-17 में, तीन अलग-अलग कारणों को लेकर गुजरात में तीन युवा, तेज-तर्रार चेहरे बड़ी प्रमुखता के साथ उभरे थे. इन तीनों – 29 वर्षीय हार्दिक पटेल, 47 वर्षीय अल्पेश ठाकोर और 41 वर्षीय जिग्नेश मेवाणी- को ‘हज’ के नाम से जाना जाता था. वे साल 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले इस राज्य में नेताओं की अगली पीढ़ी के सबसे प्रमुख चेहरे बन गए थे.

कभी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी रहे इन नेताओं ने तब के बाद से अलग-अलग रास्ते अपना लिए हैं. जहां ठाकोर और पटेल ने इस साल का विधानसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ा, वहीं मेवाणी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गुरुवार दोपहर करीब 2.40 बजे, पटेल वीरमगाम सीट पर 37,000 से अधिक मतों से आगे चल रहे थे, जबकि ठाकोर गांधीनगर दक्षिण में 36,000 से अधिक मतों से आगे चल रहे थे. वर्तमान विधायक मेवाणी उस समय वडगाम में लगभग 4000 मतों से आगे चल रहे थे.

हार्दिक पटेल साल 2017 में गुजरात का पिछला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सके थे क्योंकि उस समय उनकी उम्र कम थी. ठाकोर ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा था, लेकिन साल 2019 में हुए राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के खिलाफ मतदान करने के बाद भाजपा में शामिल होने के लिए उन्होंने पार्टी छोड़ दी थे. इसके बाद वह उसी साल हुए विधानसभा उपचुनाव हार गए थे. इस साल कांग्रेस में शामिल होने से पहले मेवाणी निर्दलीय विधायक थे.


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इन तीनों ने अपने नेतृत्व में उठाये गए मकसदों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की थी. जहां मेवाणी ने ऊना जिले के एक गांव में कथित गोरक्षकों द्वारा एक दलित परिवार पर किये गए हमले के बाद दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में किये गए एक आंदोलन का नेतृत्व किया था, वहीं पटेल उनके समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करने वाले ‘पाटीदार आंदोलन’ का प्रमुख चेहरा थे. दूसरी ओर, ठाकोर ने पाटीदार आंदोलन के खिलाफ अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) वर्गों के उस आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसमें इन समुदायों में से प्रत्येक की आबादी के आधार पर आरक्षण की मांग की गई थी. एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को पहले से ही नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण प्राप्त है.

दिप्रिंट इन तीनों के करियर ग्राफ पर नजर डाल रहा है…

हार्दिक पटेल

इन तीनों में से सबसे कम उम्र के प्रत्याशी 29 वर्षीय हार्दिक पटेल वीरमगाम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसे कांग्रेस ने पिछले दो चुनावों, 2012 और 2017, में जीता था. हालांकि पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के वोट शेयर में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई थी. वहीं चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस बार भाजपा 49 फीसदी से ज्यादा मतों के साथ आगे चल रही है. गुरुवार दोपहर करीब 2.40 बजे यहां आम आदमी पार्टी (आप) दूसरे नंबर पर जबकि इस पर मौजूदा रूप से काबिज कांग्रेस पार्टी तीसरे नंबर पर नजर आ रही थी.

साल 2007 में आखिरी बार यह सीट जीतने के 15 साल बाद भाजपा वीरमगाम सीट को पटेल की बदौलत एक बार फिर से अपनी झोली में वापस लाने के लिए तैयार दिख रही है.

पटेल, जो इस साल की शुरुआत में कांग्रेस छोड़ने के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे, कभी सत्ताधारी दल के कट्टर आलोचक थे. उनके एक पुराने वीडियो में उन्होंने कहा था, ‘मैं एक मर्द का बच्चा हूं, मैं भाजपा में शामिल होकर कभी आत्मसमर्पण नहीं करूंगा. हम किसान के बेटे हैं. हम लड़ेंगे और संघर्ष करेंगे, लेकिन हम भाजपा के सामने घुटने नहीं टेकेंगे.’ इस युवा नेता के भाजपा में शामिल होने के बाद ही यह वीडियो वायरल हो गया था.

साल 2018 के एक अन्य साक्षात्कार में, पटेल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते हुए कहा था, ‘मैं उनका खुलकर विरोध करता हूं. मैं इसे छिपाता नहीं. मैं अपनी पूरी ताकत से मोदी का विरोध करता हूं.’

फिर पटेल साल 2019 में राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

हालांकि, जब उन्होंने साल 2022 में पाला बदला, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे लगा कि नरेंद्रभाई का सैनिक होना मेरा कर्तव्य है … मैं रामसेतु के लिए एक छोटी सी गिलहरी बनने की कोशिश करूंगा.’

कथित तौर पर पटेल के पास भाजपा पर हमला करने और फिर बाद में उसी पार्टी में शामिल होने के अपने कारण थे. पिछले महीने दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा था, ‘कांग्रेस को (कश्मीर में) अनुच्छेद 370 को हटाए जाने और श्री राम जन्मभूमि के फैसले (साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा) दोनों को लेकर समस्या थी. मैं इससे कभी समझौता नहीं कर सकता. मैं एक हिंदू हूं और धार्मिक भावनाएं रखता हूं. मैं यह भी चाहता था कि धारा 370 को हटाया जाए और अयोध्या में राम मंदिर बनाया जाए.‘

अल्पेश ठाकोर

साल 2019 में कांग्रेस का दामन छोड़ने से पहले ठाकोर को एक समय पर राहुल गांधी का काफी करीबी माना जाता था.

साल 2016 में, ठाकोर ने पाटीदार आरक्षण आंदोलन का मुकाबला करने के लिए ओएसएस (ओबीसी, एससी, एसटी) एकता मंच की शुरुआत की थी. ठाकोर के अनुसार, पारंपरिक रूप से एक कृषि आधारित जाति रहे पाटीदारों को दिया गया आरक्षण मौजूदा कोटा धारकों के लिए हानिकारक होगा. ओबीसी वर्ग के गुजरात की आबादी का 52 प्रतिशत हिस्सा होने का अनुमान है. ठाकोर ने राज्य में जनसंख्या के अनुपात के आधार पर सभी के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण का सुझाव दिया था.

वह साल 2017 में राहुल गांधी की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हुए थे और उस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में राधनपुर सीट से 15,000 से भी अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की थी.

हालांकि, कभी कट्टर भाजपा आलोचक रहे ठाकोर ने बाद में सत्ताधारी दल का रुख कर लिया. वह साल 2019 में राधनपुर उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर 3,800 वोटों से हार गए थे.

गुरुवार दोपहर करीब 2.40 बजे तक ठाकोर 53 फीसदी से ज्यादा वोटों के साथ सबसे आगे चल रहे थे. और चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, साल 2012 और 2017 में भी, इस ठाकोर-समुदाय बहुल सीट पर भाजपा का लगभग 50 प्रतिशत से अधिक का वोट शेयर बरकरार रहा था. पिछले दो चुनावों में यहां से पार्टी के विजयी उम्मीदवार शंभूजी ठाकोर थे.

भाजपा में शामिल होने के बाद ठाकोर ने कहा था, ‘मेरा गलत स्कूल में दाखिला हो गया था. (वहां के) शिक्षक कमजोर थे और वे लोगों के लहजे को कभी नहीं समझ पाए. इसलिए, अपने समुदाय और अपने लोगों के हित में, मैंने उस स्कूल को छोड़ दिया और एक नए स्कूल में शामिल हो गया.’

जिग्नेश मेवाणी

जिग्नेश मेवाणी उन तीनों में से एकमात्र नेता हैं जो विपक्ष के खेमें में टिके रहे हैं.

साल 2017 में हुए पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में मेवाणी एक निर्दलीय विधायक के रूप में चुने गए थे. हालांकि इस बार मेवाणी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मुस्लिम और दलित मतदाताओं के प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्र वडगाम को कांग्रेस के गढ़ के रूप में देखा जाता है. फिर भी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के उम्मीदवार कल्पेश सुंधिया के चुनावी मैदान में मौजूद होने से मेवाणी के लिए यह चुनाव मुश्किल हो सकता था.

गुरुवार दोपहर करीब 2.40 बजे मेवाणी लगभग 4000 वोटों से आगे चल रहे थे.

मेवाणी साल 2016 में दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरोध में हुए एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए प्रमुखता के साथ सामने आए थे. यह आंदोलन एक ऐसी घटना से शुरू हुआ था, जिसमें एक दलित परिवार के सदस्यों को कथित रूप से कुछ गोरक्षकों द्वारा पीटा गया था. मोटा समधियाला गांव में हुई इस घटना के वीडियो वायरल हो गए थे जिसकी वजह से दलितों में गुस्सा फैल गया था.

उस समय एक बहुत छोटी से पहचान वाले सामाजिक कार्यकर्ता और वकील रहे मेवाणी ने अहमदाबाद से ऊना (जिसमें अब अमरेली जिला का हिस्सा बन गया मोटा समधियाला गांव शामिल था) तक एक मार्च शुरू किया और राज्य में एक लोकप्रिय दलित चेहरे के रूप में उभरे.

गुजरात विधानसभा चुनाव के खत्म होने के बाद, मेवाणी द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए एक बड़ी भूमिका की उम्मीद है.

पिछले महीने दिप्रिंट के साथ एक इंटरव्यू के दौरान मेवाणी ने कहा था, ‘मैं सिर्फ एक चुनाव लड़ने या सिर्फ एक विधायक बनने के लिए नहीं बना हूं. मैं पूरे भारत में जाना चाहता हूं. पार्टी भी यही चाहती है.’

भाजपा के एक और कार्यकाल के साथ गुजरात सरकार में वापसी करने के लिए तैयार दिखने के साथ पटेल और ठाकोर द्वारा भी आने वाले समय में अपने लिए बड़ी भूमिकाएं तलाशे जाने की संभावना है. हालांकि, पार्टी के साथ उनके प्रतिकूल रिश्तों वाले अतीत की छांव से उनके भविष्य पर सवाल उठने की संभावना है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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