scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमराजनीतियूपी में BSP के 25 उम्मीदवारों में 7 मुस्लिम — SP-कांग्रेस के लिए संभावित चुनौती और BJP के लिए बढ़त

यूपी में BSP के 25 उम्मीदवारों में 7 मुस्लिम — SP-कांग्रेस के लिए संभावित चुनौती और BJP के लिए बढ़त

बसपा के 7 मुस्लिम उम्मीदवारों में से 4 का मुकाबला सपा-कांग्रेस गठबंधन के मुस्लिम उम्मीदवारों से अमरोहा, मुरादाबाद, संभल और सहारनपुर सीट पर होगा, जिससे भाजपा के पक्ष में वोटों का प्रति-ध्रुवीकरण हो सकता है.

Text Size:

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने रविवार को लोकसभा चुनाव के लिए कुल 25 उम्मीदवारों की दो सूचियां जारी कीं. इसकी पहली सूची में घोषित 16 उम्मीदवारों में से लगभग आधे — यानी सात — मुस्लिम हैं, एक ऐसा कदम जिससे राज्य में कांग्रेस-समाजवादी पार्टी (सपा) विपक्षी गठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचने और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मदद मिलने की संभावना है.

मुस्लिम उम्मीदवारों के अलावा, मायावती के नेतृत्व वाली पार्टी ने अपनी पहली सूची में आरक्षित सीटों से उच्च जाति के चार, ओबीसी समुदाय के दो और एससी के तीन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है.

बसपा के सात मुस्लिम उम्मीदवारों में सहारनपुर से माजिद अली, रामपुर से जीशान खान, संभल से शौलत अली, मुरादाबाद से इरफान सैफी, अमरोहा से मुजाहिद हुसैन, आंवला से आबिद अली और पीलीभीत से अनीस अहमद खान शामिल हैं.

इन सीटों में से सपा-कांग्रेस गठबंधन ने चार-सहारनपुर, संभल, मुरादाबाद और अमरोहा पर मुस्लिम उम्मीदवारों की घोषणा की है.

इसके दो ओबीसी चेहरों में मुजफ्फरनगर सीट से दारा सिंह प्रजापति और बिजनौर से जाट उम्मीदवार विजेंद्र सिंह शामिल हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पार्टी ने क्रमशः कैराना, गौतमबुद्ध नगर, बागपत और मेरठ से चार उच्च जाति के उम्मीदवारों — श्रीपाल सिंह, राजेंद्र सोलंकी, प्रवीण बंसल और देवव्रत त्यागी को भी मैदान में उतारा.

नगीना, शाहजहांपुर और बुलंदशहर की सुरक्षित सीटों से उसने क्रमशः सुरेंद्र पाल, दोदराम वर्मा और गिरीश जाटव को अपना उम्मीदवार घोषित किया है.

पार्टी ने सहारनपुर, नगीना और बिजनौर में अपने मौजूदा सांसदों को बदल दिया है, जबकि उसके अमरोहा के सांसद पहले ही कांग्रेस में जा चुके हैं.

यह फैसला बसपा के मौजूदा बिजनौर सांसद मलूक नागर के राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) नेताओं के साथ मुलाकात को लेकर सुर्खियों में रहने और सहारनपुर के सांसद हाजी फजलुर रहमान की इस घोषणा की पृष्ठभूमि में आया है कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन बीजेपी को चुनौती देने वाले किसी भी उम्मीदवार का समर्थन करेंगे. इसके अलावा, पार्टी ने अपने अमरोहा के सांसद दानिश अली को निष्कासित कर दिया था, जिन्हें शनिवार को उसी सीट से कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित कर दिया.

बाद में शाम को बसपा ने नौ और उम्मीदवारों की अपनी दूसरी सूची घोषित की. इसमें मथुरा, फतेहपुर सीकरी, फिरोज़ाबाद, कानपुर, अकबरपुर और चार आरक्षित सीटों, जिनमें हाथरस, आगरा, इटावा और जालौन शामिल हैं, के उम्मीदवार शामिल हैं.

इसने हाथरस से हेमबाबू धनगर, आगरा से पूजा अमरोही, इटावा से सारिका सिंह बघेल और जालौन से सुरेश चंद्र गौतम को मैदान में उतारा है.

बघेल हाथरस से पूर्व सांसद हैं जो 2009 में रालोद से सबसे कम उम्र की महिला सांसद बनीं. बाद में वे 2019 में बीजेपी में शामिल होने से पहले सपा में शामिल हो गईं. अब उन्हें बसपा ने इटावा से मैदान में उतारा है.

अमरोही कांग्रेस की प्रमुख नेता सत्या बहन की बेटी हैं, जो पहले राज्यसभा की सदस्य रह चुकी हैं. दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से ह्यूमैनिटीज़ में ग्रेजुएट, अमरोही एक व्यवसायी की पत्नी और हरियाणा के पूर्व डीजीपी की बहू हैं.

यूपी सरकार से इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त गौतम 1983 से बीएसपी से जुड़े हुए हैं और 1989 में अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (बीएएमसीईएफ) के संयोजक बने. बाद में वे एससी/एसटी के अध्यक्ष बने. राज्य बिजली निगम की कर्मचारी कल्याण समिति ने मंडल आयोग के कार्यान्वयन के दौरान एक आंदोलन का नेतृत्व किया.

धनगर आगरा के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और पार्टी के पुराने नेता जगदीश प्रसाद धनगर के बेटे हैं, जो बसपा के शुरुआती दिनों में पार्टी के संस्थापक कांशीराम से जुड़े थे. अन्य पांच सीटों से बसपा ने उच्च जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनमें तीन ब्राह्मण, एक वैश्य और एक राजपूत शामिल हैं.

मथुरा से बसपा ने पत्रकार और वकील कमलकांत उपमन्यु को मैदान में उतारा है, जबकि क्षेत्र के पूर्व ब्लॉक प्रमुख राम निवास शर्मा को फतेहपुर सीकरी से मैदान में उतारा गया है. शर्मा ने 1993 में सपा के टिकट पर फतेहपुर सीकरी से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए और बाद में 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा द्वारा टिकट नहीं दिए जाने के बाद उन्होंने खुद को राजनीति से दूर कर लिया.

व्यवसायी और अधिवक्ता सतेंद्र जैन सोली फिरोजाबाद से बसपा के उम्मीदवार हैं. जैन, जो वैश्य जाति से हैं, पहली बार आए हैं, जो क्षेत्र में खुली नालियों और सड़कों के जल-जमाव के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए अभियान चलाने के लिए जाने जाते हैं.

कानपुर सीट से बसपा ने कुलदीप भदौरिया को मैदान में उतारा है और कानपुर देहात की अकबरपुर सीट से राजेंद्र कुमार द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया है. छात्र राजनीति में भाग लेकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले भदौरिया ने क्षेत्र में डीएवी कॉलेज के छात्र संघ के महासचिव के रूप में कार्य किया है. उनका एक व्यवसाय है और वे एक वकील भी हैं. इस बीच, व्यवसायी द्विवेदी पिछले दो दशकों से बसपा से जुड़े हुए हैं.


यह भी पढ़ें: केजरीवाल की गिरफ्तारी से AAP-BJP में विवाद खत्म, अगर बने रहे CM तो दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की संभावनाएं


4 सीटों पर BSP और SP-कांग्रेस के बीच टक्कर

कांग्रेस ने शनिवार को पूर्व बसपा नेता इमरान मसूद और दानिश अली को क्रमश: सहारनपुर और अमरोहा से अपना उम्मीदवार घोषित किया, वहीं सपा ने रविवार को मौजूदा लोकसभा सांसद एसटी हसन को मुरादाबाद से अपना उम्मीदवार घोषित किया है. अखिलेश-यादव के नेतृत्व वाली पार्टी ने पहले ही शफीकुर रहमान बर्क के पोते जिया-उर रहमान को संभल से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.

यादव ने हाल ही में सपा के वरिष्ठ नेता और मुस्लिम समुदाय में पार्टी के प्रमुख व्यक्ति आजम खान से सीतापुर जेल में मुलाकात की थी. पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि बैठक में रामपुर सीट के संभावित उम्मीदवारों को लेकर भी चर्चा हुई.

बसपा द्वारा रविवार को घोषित 16 उम्मीदवारों में से सपा-कांग्रेस गठबंधन ने पहले ही अमरोहा, सहारनपुर, संभल, मोरादाबाद, नगीना, पीलीभीत, आंवला, शाहजहांपुर, गौतमबुद्ध नगर, बागपत, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और कैराना के निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों का खुलासा कर दिया है.

हालांकि, गठबंधन ने अभी तक रामपुर और बुलंदशहर निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों को अंतिम रूप नहीं दिया है, जो क्रमशः सपा और कांग्रेस को आवंटित किए गए हैं.

बसपा द्वारा अब तक घोषित सात मुस्लिम उम्मीदवारों में से चार अमरोहा, मुरादाबाद, संभल और सहारनपुर की सीटों पर एक ही समुदाय के सपा-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवारों से लड़ेंगे.

अमरोहा में कांग्रेस के दानिश अली का मुकाबला बसपा के मुजाहिद हुसैन से होगा, जबकि मुरादाबाद में बसपा के इरफान सैफी का मुकाबला सपा के मौजूदा सांसद एसटी हसन से होगा, जबकि सहारनपुर में मुकाबला कांग्रेस के इमरान मसूद और बसपा के माजिद अली के बीच होगा. संभल में बसपा के शौलत अली का मुकाबला सपा के जिया-उर रहमान बर्क से होगा.

2019 के आम चुनाव में जब दोनों पार्टियों ने गठबंधन किया था तो ये चारों सीटें एसपी-बीएसपी गठबंधन के खाते में चली गई थीं.

विश्लेषकों के मुताबिक, अच्छे उम्मीदवारों की कमी के कारण बसपा ने कई नए चेहरों पर दांव लगाया है. इसके अलावा, वे बताते हैं, मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर, उनकी कोशिश मुस्लिम बहुल सीटों पर समुदाय को अपने पक्ष में करने की होगी, जो सपा-कांग्रेस गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है.

अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मिर्जा असमर बेग ने दिप्रिंट को बताया, “मायावती ने हमेशा किसी अन्य की तुलना में अधिक मुसलमानों को मैदान में उतारा है, जहां भी मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां सपा और बसपा दोनों ही मुस्लिम उम्मीदवार उतारना चाहते हैं और वोट शेयर का फायदा उठाना चाहते हैं. हालांकि, इसका परिणाम आम तौर पर वोटों का प्रति-ध्रुवीकरण होता है, जिससे ऐसी सीटों पर भाजपा को मदद मिल सकती है.”

बेग ने कहा कि 2019 में सपा और बसपा गठबंधन में लड़ रहे थे और कुल 15 सीटें जीतीं, जिनमें से बीएसपी और एसपी-आरएलडी गठबंधन दोनों ने चार पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं.

बेग ने कहा, “जबकि पहले पार्टियां सहयोगी थीं, अब वे दुश्मन की तरह लड़ रही हैं. बसपा के लिए सपा को हराना मुख्य लक्ष्य बन जाता है और अगर भाजपा, जो कि एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है, जीत भी जाए तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी. पार्टियों की एक-दूसरे के निर्वाचन क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है, चाहे वे मुसलमान हों जो आमतौर पर अपने सुनहरे दिनों में सपा या ओबीसी, या यहां तक ​​कि एससी का पक्ष लेने के लिए जाने जाते हैं.” उन्होंने कहा, “चुनावी माहौल को देखते हुए इससे भाजपा को मदद मिलने की अधिक संभावना है, जो ज़ाहिर तौर पर सांप्रदायिक माहौल और केंद्र में सत्ता में होने के करिश्मे के कारण भाजपा के पक्ष में है.”

बेग ने कहा कि बसपा द्वारा श्रीपाल सिंह, राजेंद्र सोलंकी, प्रवीण बंसल, आबिद अली, शौलत अली, देवव्रत त्यागी जैसे कम चर्चित चेहरों को मैदान में उतारने से यह भी पता चलता है कि उसे उम्मीदवारों की कमी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कई लोग अब पार्टी के लिए लड़ने को तैयार नहीं हैं.

उन्होंने कहा, “इसके पीछे वित्तीय कारण हो सकते हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव लड़ने में भारी लागत आती है और यह भी कि स्थापित राजनेता बसपा की गिरती राजनीतिक किस्मत को देखते हुए हारने के लिए लड़ना नहीं चाहते हैं. इसके अलावा, यह दर्शाता है कि मायावती में विश्वास की कमी हो गई है और इसलिए वह कम चर्चित उम्मीदवारों को मैदान में उतार रही हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘बस्तर से अनुच्छेद 370’ तक — बॉलीवुड में प्रोपेगेंडा फिल्में BJP की ताकत को बढ़ा रही हैं


 

share & View comments