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Saturday, 20 April, 2024
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48 उम्मीदवार, 41 जीते— गुजरात में BJP के रिकॉर्ड तोड़ जीत में पाटीदारों ने निभाई निर्णायक भूमिका

पाटीदार समुदाय के गढ़ सौराष्ट्र में भाजपा ने कुल 48 सीटों में से 39 पर जीत हासिल की है, जहां 2017 में उसे सिर्फ सीटें मिली थीं.

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नई दिल्ली: गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में जिस पाटीदार समुदाय के कारण भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सीटों की संख्या घटकर 99 पर सिमट गई थी, उसकी वजह से ही इस बार पार्टी 150 का आंकड़ा पार करके एक नया रिकॉर्ड बनाने में सफल रही है.

भाजपा की गुजरात इकाई के एक आंतरिक विश्लेषण से आधार पर, दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, 2022 के विधानसभा चुनावों में इस समुदाय के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी की तरफ से मैदान में उतारे गए कुल 48 पाटीदार उम्मीदवारों में से 41 ने जीत हासिल की है.

भाजपा के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन में पाटीदारों की भूमिका के बारे में जानकारी देते हुए एक वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस ने 41 पाटीदार उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन केवल तीन जीते जबकि पाटीदार युवाओं के समर्थन की उम्मीद कर रही आम आदमी पार्टी (आप) ने 55 प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिनमें से केवल 2 जीते.

गुजरात भाजपा के एक सूत्र ने कहा, ‘जहां तक बात ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय की है तो भाजपा ने 57 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 48 जीते. वहीं, कांग्रेस ने 49 ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें सिर्फ 3 ने जीत हासिल की. आप ने 30 उम्मीदवारों को उतारा था लेकिन केवल एक सीट जीती.’

भाजपा के पाले में लौटे पाटीदार

कुल मिलाकर, पाटीदार गुजरात की कुल 6.90 करोड़ की आबादी में लगभग 1.5 करोड़ हैं और माना जाता है कि वे करीब 55-60 सीटों पर जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

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गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 48 सौराष्ट्र क्षेत्र में हैं, जो पाटीदार समुदाय का गढ़ है. इस बार भाजपा ने इन 48 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की है, जिसमें वो सीटें भी शामिल हैं, जिन पर पाटीदारों का दबदबा नहीं है.


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2017 में पाटीदार आंदोलन ने इस समुदाय को भाजपा से दूर कर दिया था और क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन काफी खराब रहा था. भाजपा ने उस साल सौराष्ट्र में सिर्फ 19 सीटें जीतीं, जबकि 2012 में उसे 30 सीटों पर सफलता मिली थीं. कांग्रेस ने 2017 में 28 सीटें जीतीं, जबकि 2012 में उसे 15 सीटें ही मिली थीं. 2017 में इस क्षेत्र में खराब प्रदर्शन ही भाजपा की कुल सीटें 99 तक सिमट जाने का एक बड़ा कारण था.

2017 के कोटा आंदोलन को अब लंबा वक्त बीत चुका है और माना जा रहा है कि सामान्य श्रेणी की नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के केंद्र के फैसले ने गुजरात में पाटीदार समुदाय की भावनाओं को बदलने में अहम भूमिका निभाई और उन्होंने खुद को फिर भाजपा के साथ जोड़ने का फैसला किया.

गुजरात भाजपा के प्रवक्ता यमल व्यास ने कहा, ‘चुनाव से पहले जब हम कह रहे थे कि चूंकि भाजपा ने पाटीदारों की सभी प्रमुख चिंताओं को दूर कर दिया है, इसलिए यह समुदाय हमें पूरे दिल से वोट देगा तो किसी को हम पर भरोसा नहीं हो रहा था. चाहे युवा हो या पूरी आबादी, यह तथ्य कि हमने ‘उच्च जातियों’ के बीच ईडब्ल्यूएस को नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशत कोटा दिया है, और यह कि हमने गुजरात में उनके लिए (जो कोटा में कवर नहीं है) एक स्पेशल लोन का भी प्रावधान किया है—चाहे कोई नया व्यवसाय शुरू करना हो या शैक्षिक उद्देश्य के लिए चाहिए हो—की सभी ने सराहना की है.’

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि महिला मोर्चा द्वारा घर-घर जाकर संपर्क कार्यक्रम के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं ने यह भी सुनिश्चित किया कि लाभार्थियों को जमीनी स्तर पर लाभ मिल रहा है या नहीं, इस पर नजर रखी जाए.

भाजपा गुजरात में राजनीतिक रूप से सबसे प्रभावशाली समुदाय पाटीदार समुदाय को लुभाने के लिए ठोस प्रयास करती रही है. 2021 में, पार्टी ने मुख्यमंत्री विजय रूपानी की जगह भूपेंद्र पटेल को कुर्सी पर बैठाया. इस साल चुनावों से पहले उसने हार्दिक पटेल को पार्टी में शामिल किया, जो 2015 में गुजरात में पाटीदार आंदोलन के साथ सुर्खियों में आए थे, जिस दौरान उन्होंने ओबीसी के दर्जे और समुदाय को आरक्षण के लिए लड़ाई लड़ी थी.

चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजकोट में एक मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल का उद्घाटन भी किया, जो व्यापक स्तर पर पाटीदारों के प्रभुत्व वाला क्षेत्र है. इसके अलावा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जिन्होंने गुजरात अभियान का नेतृत्व किया, ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि अगर भाजपा फिर सत्ता में आती है तो सीएम भूपेंद्र पटेल को बनाए रखा जाएगा, जबकि भाजपा आम तौर पर ऐसा नहीं करती है.

दूसरे भाजपा नेता ने आगे कहा कि पाटीदारों के अलावा, कई अन्य ‘उच्च जाति’ समुदायों, खासकर महिलाओं ने भी भाजपा और उसकी नीतियों का समर्थन किया. उन्होंने कहा, ‘आपको यह समझना होगा कि 2017 में स्थिति कुछ अलग थी और समुदाय नाराज था लेकिन भाजपा ने उनके सभी मुद्दों को सुलझा लिया है. साथ ही, जब समुदाय ने देखा कि हार्दिक पटेल जैसे युवा नेता भाजपा में शामिल हो गए हैं, तो उन्होंने महसूस किया कि केवल भाजपा ही उनके कल्याण के लिए काम कर सकती है.’

दलित, आदिवासी स्ट्राइक रेट भी ज्यादा

भाजपा ने आदिवासियों और दलित समुदायों से चुने गए उम्मीदवारों की मदद से इस वर्ग का भी वोट हासिल किया.

ऊपर उद्धृत भाजपा सूत्र ने बताया कि पार्टी ने 27 आदिवासी उम्मीदवारों को टिकट दिए थे, उनमें से 23 जीते. इसके उलट कांग्रेस ने 28 आदिवासी उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिनमें 3 जीते. आप के टिकट पर 29 आदिवासी उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा लेकिन जीत सिर्फ 1 की हुई.

भाजपा सूत्र ने आगे कहा, ‘जहां तक बात दलित समुदाय की है तो भाजपा ने 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिसमें 11 जीते. वहीं, कांग्रेस ने 14 को टिकट दिया, जिसमें से 2 को जीत मिली, जबकि आप ने 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें केवल एक जीता.

सवर्ण भी भाजपा के साथ आए

गुजरात भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया ब्राह्मण, जैन और क्षत्रिय जैसे सवर्ण, भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक बने रहे हैं. पार्टी ने उच्च जाति के 37 उम्मीदवारों को टिकट दिए थे, उनमें से 33 जीते हैं.

कांग्रेस ने उच्च जाति के 50 उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से 6 जीते जबकि आप ने 52 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन केवल एक ही जीत हासिल कर पाया.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(अनुवादः रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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