राष्ट्र धर्म पत्रिका में आडवाणी के लेख से पता चलता है कि उन्हें मोदी द्वारा राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा किए जाने से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन वे नहीं चाहेंगे कि उनका योगदान कालीन के नीचे दबा दिया जाए. शुक्रवार और शनिवार को अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खियों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया कि वे 1990 में अपनी राम रथ यात्रा में केवल एक सारथी थे और यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे जिन्हें भगवान राम ने अयोध्या में मंदिर के निर्माण के लिए चुना था.
खबरों के अनुसार, आडवाणी ने कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध पत्रिका राष्ट्र धर्म को बताया कि “पूरी” रथ यात्रा के दौरान मोदी उनके साथ थे और भगवान राम ने मोदी को “तभी” अयोध्या में मंदिर बनाने के लिए चुन लिया था.
यह देखते हुए कि मोदी 22 जनवरी को अयोध्या मंदिर में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे, राम मंदिर को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में लाने वाले प्रसिद्ध रथयात्री द्वारा मोदी का समर्थन उचित लग रहा था.
सिवाय इसके कि आडवाणी ने ऐसा कुछ नहीं कहा, टीवी चैनल और अखबार सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों द्वारा साझा किए गए एक अहस्ताक्षरित व्हाट्सएप मैसेज में रम गए थे. जब तक आडवाणी के दफ्तर ने उनका लेख, श्री राम मंदिर: एक दिव्य स्वप्न की पूर्ति, शनिवार को साझा किया — जिसे राष्ट्र धर्म द्वारा सोमवार को प्रकाशित करने की संभावना है — तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
पूर्व उप-प्रधानमंत्री शायद उन हेडलाइन्स को देखकर चकित हो गए होंगे, लेकिन क्या वरिष्ठ भाजपा नेता के लिए उन्हें नकारना बुद्धिमानी भरा कदम होता?
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श्रेय का दावा करना
आडवाणी के लेख में चार जगहों पर ‘मोदी’ का ज़िक्र है. सबसे पहले आडवाणी लिखते हैं, वे “अपने जीवनकाल में” उस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन कर “धन्य” महसूस करेंगे जब मोदी भगवान राम की मूर्ति की स्थापना करेंगे. दूसरी बार, उन्होंने उल्लेख किया कि जब 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से यात्रा शुरू हुई, तो मोदी, “जो उस समय भाजपा के एक होनहार नेता थे” मेरे, प्रमोद महाजन, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, सिकंदर बख्त और गुजरात के अन्य भाजपा पदाधिकारियों के साथ थे.
तीसरी बार आडवाणी ने मोदी का उल्लेख तब किया जब उन्होंने कहा कि अब, मंदिर “पूरा होने के अंतिम चरण” में है, वे मोदी के नेतृत्व वाली सरकार, सभी संगठनों — विशेष रूप से विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस), भाजपा, संतों, कारसेवकों और कई अन्य लोगों के प्रति कृतज्ञ हैं.
और लेख में मोदी के चौथी बार के ज़िक्र में वे कहते हैं, जब पीएम राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे, तो “वह हमारे महान भारतवर्ष के प्रत्येक नागरिक का प्रतिनिधित्व करेंगे”.
बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष ने कभी नहीं कहा कि राम रथ यात्रा के दौरान मोदी हमेशा उनके साथ थे. उनका लेख असल में मोदी को गुजरात के कई नेताओं में से एक दर्शाता है, जो यात्रा के शुरू होने पर भाजपा के कईं बड़े केंद्रीय नेताओं के साथ मौजूद थे.
1987 में भाजपा में शामिल हुए मोदी को आडवाणी उस समय एक “होनहार नेता” बताते हैं. राष्ट्र धर्म में उनके लेख से पता चलता है कि हालांकि, आडवाणी को प्रधानमंत्री से भारत के प्रत्येक नागरिक के प्रतिनिधि के रूप में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन वे नहीं चाहेंगे कि उनका अपना योगदान पूरी तरह से भुला दिया जाए.
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पार्टी जो पीछे नहीं देखती
अगस्त 2020 में मोदी ने बहुत धूमधाम से अयोध्या मंदिर में भूमि पूजन किया था. उस समय आडवाणी को आमंत्रित नहीं किया गया. 2014 के बाद से पार्टी में दरकिनार किए जाने के बाद आडवाणी चुप रहे. यह सुनकर उन्हें एक बार फिर दुख हुआ होगा कि मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्हें और मुरली मनोहर जोशी को अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने का आग्रह किया था.
राष्ट्र धर्म में आडवाणी का लेख उन लोगों द्वारा अलगाव में छोड़े गए एक वयोवृद्ध नेता की उत्कट अपील की तरह लगता है, जिन्हें उन्होंने अपने सुनहरे दिनों में आगे बढ़ाया था. उनकी पार्टी के सहयोगियों को कम से कम उनके योगदान को याद रखना चाहिए, भले ही वे जिसे मलयालम लेखक एमटी वासुदेवन नायर “औपचारिक नेतृत्व पूजन” कहते हैं, कितना भी पसंद करते हों.
अगर मोदी ने भी अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में आडवाणी के योगदान के बारे में बात नहीं की है, तो शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि वह प्राण प्रतिष्ठा समारोह की तैयारी में बहुत व्यस्त हैं और 11-दिवसीय विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं.
सच तो यह है कि आडवाणी भले ही अपने पुराने दिनों की यादों में खोए हों, लेकिन भाजपा आगे बढ़ चुकी है. यह एक दूरदर्शी पार्टी है. 1980 और 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वालों को प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रित किया गया है. आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार और कई अन्य जो शायद अपने गौरवशाली दिनों को याद कर रहे हैं, उनके लिए अच्छा रहेगा कि वे इससे उबरें और आगे बढ़ें.
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किसने निभाई बड़ी भूमिका?
वायरल व्हाट्सएप मैसेज आडवाणी के लिए एक संकेत है: हेडलाइन्स को देखें और तदनुसार अपने अतीत को वर्तमान के साथ ढाल लें. उनका लेख, अनजाने में ही सही, लेकिन एक बड़ा सवाल उठाता है जिसका जवाब आज उनका कोई भी सहयोगी नहीं देना चाहेगा: अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में किसने बड़ी भूमिका निभाई — आडवाणी या मोदी?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसके निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने के बाद भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसका श्रेय मोदी को देते हुए कहा था यह “बहुत संतुष्टि की बात” है कि राम मंदिर मुद्दा “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के तहत हल हो गया”.
उन्होंने कहा, “जब भी इस देश का इतिहास लिखा जाएगा, केंद्र में भाजपा सरकार का यह कार्यकाल स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.”
2014 के बाद से हमने कई भाजपा नेताओं को उनकी राम रथ यात्रा के लिए खुले तौर पर आडवाणी की प्रशंसा करते हुए नहीं सुना है, जिन्होंने पार्टी के गठन के एक दशक बाद केंद्र में सरकार बनवाने और 16 साल बाद — पार्टी का पहला प्रधानमंत्री बनने के सक्षम बनाया.
क्या आपने पिछले कुछ हफ्तों में किसी बीजेपी नेता को आडवाणी या रथ यात्रा का ज़िक्र करते हुए सुना है? सच तो यह है कि रथयात्रा के आधार तैयार करने और भाजपा को एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत बनाए बिना अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण संभव नहीं हो सकता था. अगर बाबरी मस्जिद अभी भी मौजूद होती तो क्या सुप्रीम कोर्ट मंदिर निर्माण को मंजूरी दे सकता था?
ऐसा कहने के बाद अगर भाजपा के लिए मोदी को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता तो क्या मंदिर का निर्माण हो पाता? अगर, उन्होंने विपक्ष को इतना चूर-चूर नहीं कर दिया होता कि उनका अपने वैचारिक विश्वास पर से भरोसा उठ जाए? चलिए हम मान लेते हैं कि न्यायपालिका स्वतंत्र है और सुप्रीम कोर्ट के राम जन्मभूमि फैसले का एक मजबूत राजनीतिक कार्यपालिका से कोई लेना-देना नहीं था, ना ही इस बात से कि मोदी अब तक की सबसे वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध सरकार की अध्यक्षता कर रहे हैं. न्यायिक फैसले के लिए भाजपा नेताओं द्वारा उन्हें श्रेय दिया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं.
हालांकि, तथ्य यह है कि मोदी ने ऐसा सामाजिक और राजनीतिक माहौल तैयार किया जिसमें राम मंदिर के फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, क्योंकि मुसलमानों के एक वर्ग ने इसे सारे विवाद को खत्म करने की दिशा में एक पहल की तरफ देखा और दूसरे वर्गों को इसका विरोध करने का कोई मतलब नहीं दिखा.
राम मंदिर निर्माण में ज्यादा योगदान मोदी का था या आडवाणी का, इसका कोई आसान जवाब नहीं है. ये भक्तों की श्रद्धा है, चाहे वे इसे आडवाणी के जल्द ही प्रकाशित होने वाले लेख में पाएं या व्हाट्सएप मैसेज की हेडलाइन्स में.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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