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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतस्टेन स्वामी ने पूरा जीवन गरीबों और शोषितों की सेवा में लगा दिया, उन्होंने अपनी 'कमिटमेंट' की कीमत चुकाई

स्टेन स्वामी ने पूरा जीवन गरीबों और शोषितों की सेवा में लगा दिया, उन्होंने अपनी ‘कमिटमेंट’ की कीमत चुकाई

स्टेन स्वामी अपनी गोद ली संतानों यानी झारखंड के आदिवासियों के बीच मरना पसंद करते. लेकिन सरकार और एनआईए ने कुछ और ही सोच रखा था.

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स्टेन स्वामी ने सोमवार दोपहर मुंबई के बांद्रा स्थित होली फैमिली अस्पताल में अंतिम सांस ली. इसके साथ ही झारखंड के जंगलों के बीच नरेंद्र मोदी सरकार की विकास की अज्ञात योजना का एक कांटा हट गया. जो लोग उन्हें रास्ते से हटाना चाहते थे, वो तो खुश होंगे लेकिन हो सकता है कि घड़ियाली आंसू बहाए जा रहे हों.

इस प्राचीन भूमि के जिन नागरिकों के पास दिल बचा हुआ है, वो तो वास्तव में एक-दो आंसू बहाएंगे ही. मैं भी उन लोगों में से हूं जिन्हें वाकई दुख हो रहा है. मेरे जैसे कई और भी होंगे, कुछ मुखर लेकिन ज्यादातर मौन रहकर शोक जताने वाले हैं, जिनके मन-मस्तिष्क में अन्याय के प्रति अरुचि की भावना घर कर गई है. मुझे जेसुइट पादरी के सह-धर्मवादी की श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन शोक जताने वाले विशाल बहुमत पर संकीर्ण भावनाओं से भरे होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता.


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स्टेन के खिलाफ मामला

इस आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता को जेल में क्यों डाला गया? पहला, ‘माओवादी समर्थक’ रुझान के लिए! फिर, ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अन्य वामपंथी बुद्धिजीवियों के साथ मिलकर सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रची, जिसे माओवादी मान्यता नहीं देते. माना तो यह तक जाता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश रची थी! ऐसे गंभीर आरोप साबित करने वाले सबूत कथित तौर पर उस कंप्यूटर में हैं जिसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इस साल के शुरू में जब्त कर लिया था. जैसा कि मुझे समझ आता है कि स्टेन स्वामी को सख्त गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, जिसमें 2019 में हुए संशोधन से ‘आतंकवाद’ का आरोप झेलने वालों के लिए जमानत पर बाहर आना असंभव हो गया है- के तहत जेल में रखना सुनिश्चित करने के लिए इन सबूतों को जांच की केस डायरी के तौर पर मजिस्ट्रेट को दिखाए जाने के अलावा तो कोर्ट के सामने भी नहीं लाया गया है.

भीमा-कोरेगांव ‘साजिश’ के मामले में एक अन्य सह-आरोपी रोना विल्सन को कथित तौर पर एक पेन ड्राइव मुहैया कराई गई थी जिसमें एनआईए के अनुसार, अपराध का मुख्य सबूत था. विल्सन की तरफ से बचाव पक्ष की टीम ने वह विस्फोटक सबूत मैसाचुसेट्स, अमेरिका स्थित बोस्टन के एक प्रमुख फॉरेंसिक विशेषज्ञ को भेजा. विशेषज्ञ की राय थी कि इस साक्ष्य को विल्सन के कंप्यूटर में कुछ सालों के दौरान बड़ी ही चालाकी से मालवेयर के माध्यम से डाला गया था.

द वाशिंगटन पोस्ट  की तरफ से उनकी यह राय अमेरिका के अन्य विशेषज्ञों को भेजी गई और उन्होंने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी. बोस्टन के विशेषज्ञ का कहना था कि उन्होंने कई सालों तक इसी क्षेत्र में काम करने के बावजूद झूठे सबूतों को कंप्यूटर पर इतनी सफाई से डाला जाना नहीं देखा. मुझे यह स्वीकारने में थोड़ी शर्म महसूस होती है कि मैं तकनीकी मामलों में अनपढ़ ही हूं. मेरे नाती-पोते इस कमजोरी के लिए मुझ पर हंसते हैं. जल्द ही, मेरे परपोते-पोतियां भी उनमें शामिल हो जाएंगे लेकिन सच्चाई यह है कि मैं यह कह पाने की स्थिति में नहीं हूं कि अपराध कैसे हुआ.

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यह एक ऐसा रहस्य है जो तभी सुलझ सकता है जब सरकार सच्चाई सामने लाना चाहे. फिलहाल तो इसके कारिंदे अपनी बंदूकें ताने खड़े हैं. उनका दावा है कि उनके विशेषज्ञों ने अपनी राय दे दी है और वे क्षेत्र से बाहर के विशेषज्ञों की विरोधाभासी राय पर विचार नहीं करेंगे, जिन्हें वे कोई मान्यता नहीं देते हैं.


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स्टेन की ‘गलती’

यह रुख बिना मुकदमे के जेल में बंद 15 अन्य आरोपियों के मामले में भी आजाद दुनिया की न्यायपूर्ण व्यवस्था की अवधारणा के खिलाफ है. एक ऐसी सरकार के लिए, जो मूल जनजातियों को कानूनन मिले अधिकारों पर जोर देकर विकास कार्यों को रोकने वाले वामपंथी कार्यकर्ताओं को रास्ते से हटाना चाहती हो, जाहिर है कि बहुत कुछ दांव पर लगा है. आदिवासियों की जमीन का, खासकर यदि वे आरक्षित वन क्षेत्र में रहते हैं तो, किसी अन्य कार्य में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. ये कानून सरकारों की तरफ से ही बनाए गए हैं जो अपने बनाए कानूनों को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ती. लेकिन इसके विपरीत, वास्तव में वे उम्मीद करते हैं कि इन कानूनों का उल्लंघन हो और इस प्रक्रिया में उनकी अपनी जेबें और सरकार का खजाना भरा जाए.

ऐसे निहित स्वार्थी तत्वों के लिए स्टेन स्वामी रास्ते का रोड़ा थे. उन्होंने आदिवासियों को न केवल कानूनों के बारे में जानकारी दी बल्कि सक्रिय तौर पर उनकी ओर से वकालत भी की. जागरूक और सशक्त समुदाय एक ऐसी समस्या है जिसे सरकार, कोई भी सरकार, अपने रास्ते से हटाना चाहेगी. ऐसा लगता है कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दुष्ट प्रकृति के और निश्चित तौर पर अपराधी तत्वों की सेवाएं ली गईं.

जरा ठहरें और मालवेयर के माध्यम से कंप्यूटर में जानबूझकर झूठे सबूत डाले जाने की संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करें. बोस्टन के विशेषज्ञ का कहना है कि साइबर अपराध को बेनकाब करने के अपने इतने लंबे कैरियर में उन्होंने कभी इतनी चतुराई के साथ काम किया जाना नहीं देखा. जाहिर है, भले ही कुछ बुराइयां हों लेकिन हमारे देश में प्रतिभा बहुत है. ऐसी प्रतिभाओं का इस्तेमाल पश्चिम और पूर्व में बैठे हमारे शत्रु पड़ोसियों का मुकाबला करने के लिए किया जाना चाहिए. यदि हमारे बीच में वाकई ऐसी प्रतिभाएं हैं, तो सरकार को उनका फायदा उठाना चाहिए लेकिन अपने ही उन नागरिकों के खिलाफ नहीं जो असहाय और हमेशा से ही शोषित रहे वर्गों की मदद के लिए आगे आते हैं.

84 वर्षीय कैथोलिक जेसुइट पादरी स्टेन स्वामी, जिन्हें मुझे अपनी तरफ से श्रद्धांजलि अवश्य अर्पित करनी चाहिए- एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन दोस्तों के नाम कर दिया. मनुष्य के लिए इससे बड़ा प्रेम कोई और हो ही नहीं सकता. जेसुइट ऑर्डर में बेहद कड़ाई से ऐसी विनयशीलता का पालन करने को कहा जाता है. कैथोलिक चर्च साम्यवाद का घोर आलोचक है, माओवादी दर्शन इसके लिए अभिशाप है. फादर स्टेन ही नहीं किसी भी जेसुइट के लिए सालों से चलती आ रही उस हिदायत की अवहेलना करना मुमकिन ही नहीं था. सरकार के लिए हमें यह विश्वास दिलाना हास्यास्पद ही है कि स्टेन स्वामी प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में शामिल हो सकते हैं.

फादर स्टेन स्वामी ने गरीबों और शोषितों की सेवा करने में अपना जीवन लगा दिया. और अपनी प्रतिबद्धता की कीमत भी चुकाई. एक तमिल होने के बावजूद उन्होंने अपने राज्य तमिलनाडु के बजाये आदिवासियों के प्रांत झारखंड को चुना. वह अपनी गोद ली संतानों यानी झारखंड के आदिवासियों के बीच मरना पसंद करते.

लेकिन मोदी सरकार और एनआईए ने कुछ और ही सोच रखा था. स्टेन स्वामी के लिए एकमात्र सांत्वना यही थी कि बांद्रा स्थित होली फैमिली अस्पताल में वह उन लोगों के बीच थे जो उनसे प्रेम करते थे और उनकी परवाह करते थे.

(लेखक एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त और गुजरात और पंजाब के पूर्व डीजीपी रह चुके हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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