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Wednesday, 24 April, 2024
होममत-विमतआर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद करना भारत के हित में, चीन जैसी अमीरी का सपना उसे ले डूबी

आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद करना भारत के हित में, चीन जैसी अमीरी का सपना उसे ले डूबी

राजपक्षे सरकार को चीन के फंड वाली कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बंद कर देना चाहिए, जिनसे कर्ज का बोझ ज्यादा और कमाई थोड़ी है.

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श्रीलंका की आर्थिक मुश्किलों पर सरसरी नज़र डालने से ही दक्षिण एशिया के किसी देश की आंख खुल जाएंगी, जो सोचते हैं कि चीन की बेल्ट एंड रोड पहल- भारी कर्ज और आर्थिक फिजूलखर्ची में डूबे देश को अमीर बना सकती है.

श्रीलंका की आर्थिक तकलीफें कदम-दर-कदम दिखाती हैं कि कैसे कोई देश दिवालियापन और आर्थिक मंदी को बुलावा देता है.

कई मिली जुली वजहों से श्रीलंका लाचारी और शायद संवैधानिक संकट की हालत में पहुंच गया है. अगर रोजमर्रा की तकलीफ इसी तरह बढ़ती रही तो किसी भी समय श्रीलंका की राजनैतिक स्थिति हिंसक मोड़ ले सकती है, जिसका असर उसके पड़ोसियों, खासकर भारत पर पड़ेगा. नई दिल्ली ने हिंद महासागर के रणनीतिक महत्व वाले पड़ोसी को उबारने के लिए बड़ी तेजी और बेहद सतर्कता के साथ हाथ बढ़ाया है.

ऊर्जा, खाद्यान्न, जरूरी सामान और दवाइयों के लिए आयात पर काफी निर्भर देश के लिए महज 2.31 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार दु:स्वप्न जैसा है. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने स्वीकार किया है कि उनके देश का 10 अरब डॉलर का व्यापार घाटा है- ये हालात को किसी भी तरह आसान नहीं बनाता है.

डेढ़ दशक पहले एलटीटीई से लड़ाई के प्रमुख रणनीतिकार माने जाने वाले मंजे हुए नेता होने के नाते उन्हें और उनके भाई को पता होना चाहिए था कि वे अपने पूर्ववर्तियों से क्या विरासत में ले रहे हैं. 2019 में की गई टैक्स कटौती का कोई फल तो नहीं मिला, बल्कि राजस्व घाटा और हो गया.

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श्रीलंका के दुखों का अंत नहीं

नरेंद्र मोदी सरकार की स्थानीय उत्पादकों को मदद करने, आत्मनिर्भरता, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस और सरकारी खर्चों में कटौती का मॉडल श्रीलंका अपना सकता था. इसके अलावा राजपक्षे सरकार चीन के फंड से चलने वाली कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को बंद कर सकती था, जिनमें कर्ज का बोझ ज्यादा और कमाई कम है. वह रासायनिक खाद पर प्रतिबंध लगाकर ऑर्गेनिक खेती में प्रयोग करने के बदले कृषि उपज बढ़ाने और पर्यटन उद्योग में जान फूंकने पर जोर दे सकता था. पर्यटन क्षेत्र तो ईस्टर बम धमाकों और कोविड-19 महामारी के थपेड़ों से बुरी तरह झटका खाया हुआ है.

आर्थिक तंगी की वजह से मेडिकल उपभोक्ता सामग्रियों की किल्लत हो गई है, जो कि श्रीलंका के मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के आयात का अहम हिस्सा है. अलबत्ता वहां भारत के आयुर्वेद की तरह सघन स्वदेशी चिकित्सा प्रणाली का लाभ जरूर है, मगर श्रीलंका में आधुनिक दवाइयों और जरूरी मेडिकल सामान के पर्याप्त उत्पादन की सुविधाएं नहीं हैं. श्रीलंका को भारतीय दवा कंपनियों को अपने यहां उत्पादन इकाइयां लगाने का निमंत्रण देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और निवेश तथा ग्रीनफिल्ड उद्योगों को लगाने के नियमों में ढील देनी चाहिए.

भारत के निजी क्षेत्र को मौके का लाभ उठाना चाहिए और श्रीलंका की मेडिकल जरूरत के सामान के मामले में आत्मनिर्भर होने, बल्कि आने वाले समय में निर्यात करने लायक बनाने में मदद करनी चाहिए.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने श्रीलंका के कुछ अस्पतालों में दवाइयों और अन्य जरूरी सामान की कमी की वजह से सर्जरी टालने की खबरों पर चिंता जताई है. नई दिल्ली को गंभीर मरीजों को प्राथमिकता के आधार पर मेडिकल वीज़ा जारी करने पर विचार करना चाहिए.


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संकट में भारत का पड़ोसी

खाद्यान्न संकट दूसरा गंभीर मुद्दा है जिससे व्यापक असंतोष भड़क सकता है और सड़कों पर लोग उतर सकते हैं. अराजकता की स्थिति से न कोलंबो का भला होगा, ना ही ये नई दिल्ली के हक में होगा. संवैधानिक मशीनरी और कानून के राज के ढह जाने से असामाजिक तत्वों को शह मिलेगी, जो ऐसे दुश्मन ताकतों के हाथों में खेल सकते हैं, जिससे हिंद महासागर में भारत के सुरक्षा हित प्रभावित हो सकते हैं.

आर्थिक संकट की वजह से दक्षिण में पड़ोस के भारतीय तटों की ओर लोगों का पलायन हो सकता है. कम से कम 16 शरणार्थियों के तमिलनाडु में पहुंचने की खबर है. बाद में यह शरणार्थियों की बाढ़ में बदल सकता है, जिन्हें मानवीय आधार पर शरण देनी होगी. इसका तमिलनाडु की वित्तीय हालत पर गंभीर असर पड़ेगा और वह यह बोझ केंद्र सरकार पर डालेगा. इसके अलावा, नए शरणार्थियों के आने से तमिलनाडु के शिविरों में पहले से रह रहे करीब एक लाख लोगों के बीच और संख्या बढ़ जाएगी.

यही नहीं, शरणार्थी समस्या गंभीर मोड़ भी ले सकती है, अगर उनमें एलटीटीई के स्लीपर सेल घुस जाएं और भारत भूमि पर अपनी आतंकी गतिविधियां फिर शुरू कर दें. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने हाल ही में एलटीटीई से संबंधित पांच लोगों को गिरफ्तार किया, जिन पर एलटीटीई के स्लीपर सेल को वित्तीय मदद देने के आरोप हैं.

नई दिल्ली की ‘पड़ोसी पहले’ की नीति के जवाब में कोलंबो ने ‘भारत पहले’ की नीति अपनाई है. मित्रवत श्रीलंका हिंद महासागर में भारत की सुरक्षा चिंताओं पर गौर करने की बेहतर स्थिति में होगा. इसके अलावा, श्रीलंका दो मुख्य मार्गों स्वेज नहर और मलक्का की खाड़ी के बीच में है और हिंद महासागर के संकरे समुद्री मार्ग से कार्गो की आवाजाही का मुख्य मार्ग है.

कोलंबो बंदरगाह आवाजाही में बहुत घंटे बचाता है, चटगांव जाने के लिए सौ घंटे और जेएनपीटी के 31 घंटे के बदले आठ घंटे में सफर पूरा हो जाता है. लिहाजा खर्चे काफी कम हो जाते हैं. नई दिल्ली के पास कोलंबो को मौजूदा संकट से उबारने, कोलंबो में बंदरगाह निर्माण गतिविधियों और त्रिंकोमाली में टैंक प्रोजेक्ट को जारी रखने की कई वजहें हैं.

रणनीतिक क्षेत्र में मजबूत पैठ बनाने की दीर्घकालीन नज़रिए पर विचार किया जाना चाहिए.

(लेखक ऑर्गेनाइज़र के पूर्व संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @seshadrichari . व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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