करीब एक साल से मीडिया में ये खबरें आ रही हैं कि खालिस्तान आंदोलन फिर से जिंदा हो गया है. भारत में यह सबसे हिंसक अलगाववादी आंदोलनों में एक था. इसके कारण 1980 से 1995 के बेच डेढ़ दशक में कुल 21,532 लोग मारे गए जिनमें 8,090 अलगाववादी, 11,796 आम लोग और 1,746 सुरक्षाकर्मी थे. मीडिया पंजाब में हिंसा, जन विरोध, बेअदबी, और ड्रग्स की तस्करी के तमाम मामलों को प्रायः खालिस्तान आंदोलन के आशंकित उभार से जोड़ता है.
ये खबरें भी आईं कि तीन नये कृषि क़ानूनों, जिन्हें वापस ले लिया गया है, के खिलाफ चले किसान आंदोलन में खालिस्तानी तत्व घुस आए थे और उसमें खालिस्तान आंदोलन का पैसा भी लगा था. विभिन्न किसान संगठनों के मिलाकर बने संयुक्त किसान मोर्चा ने इन आरोपों का जोरदार खंडन किया. लेकिन छिटपुट हिंसा, 26 जनवरी के दिन लाल किले पर धार्मिक झंडों का फहराया जाना उन तत्वों की मौजूदगी का प्रमाण है. मीडिया के एक हलके और भाजपा के नेताओं ने भी आरोप लगाया कि पंजाब में 5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफिले को रोकने की साजिश खालिस्तानियों ने ही रची थी.
खालिस्तान आंदोलन का फिर से उभार पंजाब में 2007 के बाद हुए सभी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा रहा है. चालू चुनाव के दौरान भी कैप्टन अमरिंदर सिंह व भाजपा के गठबंधन और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के बीच इस मुद्दे पर तकरार चल रही है. खालिस्तान आंदोलन की ताजा स्थिति पर केंद्र हो या राज्य, किसी सरकार ने कोई औपचारिक विस्तृत रिपोर्ट नहीं जारी की है. गृह मंत्रालय की 2019-2020 की वार्षिक रिपोर्ट में खालिस्तान आंदोलन का कोई जिक्र नहीं है, सिवा इसके कि ‘सिख फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) नामक संगठन को ‘यूएपीए-1967 के तहत ‘गैरकानूनी संघ’ घोषित किया गया है.
1 जुलाई 2020 को नौ कुख्यात खलिस्तानियों को अगस्त 2019 में संशोधित ‘यूएपीए’ के तहत औपचारिक तौर पर आतंकवादी घोषित किया गया. मीडिया के अधिकतर विश्लेषण ‘सरकारी सूत्रों’ के आधार पर किए गए हैं जिससे कभी भी इनकार किया जा सकता है या सही होने का दवा किया जा सकता है.
तब, हकीकत क्या है? क्या खालिस्तान आंदोलन का फिर से उभार हो रहा है? या इसका कोई टुकड़ा अपने वजूद के लिए जद्दोजहद कर रहा है और अपनी मौजूदगी जताना चाहता है?
फिर से उभार के संकेत
अगस्त 2019 के बाद से ऐसी कई खबरें आई हैं कि पाकिस्तान ने पंजाब में ड्रोन से कई बार हथियार, विस्फोटक और आइईडी गिराए हैं. ‘ट्रिब्यून’ ने खबर दी थी कि बीएसएफ ने 2021 में सभी तरह के एके सीरीज़ के राइफल और पिस्तौल समेत 34 हथियार, 3322 चक्र गोला-बारूद, 485 किलो हेरोइन बरामद किए. जनवरी 2021 में, पंजाब पुलिस ने एक ‘अंडर बैरेल ग्रेनेड लॉन्चर, 3.79 किलो आरडीएक्स और 5 किलो आइईडी बरामद की. गिराए गए या बरामद किए गए हथियारों के कुल सरकारी आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
हथियारों और नशीले पदार्थों की तस्करी से साफ संकेत मिलता है कि पाकिस्तान की आइएसआइ और खालिस्तानी आतंकवादी संगठन अलगावाद को फिर से उभारने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन मेरा आकलन है कि बीएसएफ और पंजाब पुलिस ने काफी कुशलता से काम किया है और तस्करी से भेजे गए अधिकतर हथियार/गोला-बारूद/आइईडी आतंकवादियों के हाथ नहीं लगे हैं.
पिछले दो दशकों में आतंकवादी हिंसा का स्तर काफी नीचा रहा है. ‘इंस्टीट्यूट ऑफ कन्फ़्लिक्ट मैनेजमेंट’ की एक परियोजना के तहत ‘खालिस्तान एक्सट्रीमिज़्म मॉनिटर’ 2000 से सरकारी सूत्रों द्वारा प्राप्त आंकड़ों को संकलित कर रहा है. इसके मुताबिक, खालिस्तानी आतंकवादी हिंसा में 38 मौतें हुई हैं. इनमें 35 आम लोग, और 3 आतंकवादी हैं. इस हिंसा में कोई सुरक्षाकर्मी नहीं मारा गया है. 2000-07 के बीच 21 आम लोग मारे गए. 2008-15 के बीच कोई हिंसक घटना नहीं हुई. लेकिन 2016 के बाद से अब तक 14 आम लोग और 3 आतंकवादी मारे गए हैं. ज़्यादातर आरएसएस और डेरों के धार्मिक या धार्मिक-राजनीतिक नेता और सिख धर्म के कथित विरोधियों को निशाना बनाकर किए गए हमलों में मारे गए. लेकिन, 2016 के बाद के आंकड़े संकेत देते हैं कि खालिस्तानी आंदोलन को फिर से जिंदा करने की शुरुआती कोशिशें की गई हैं.
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सिखों के ‘जीवित गुरु’ गुरुग्रंथ साहिब के प्रति बेअदबी पंजाब में बहुत संवेदनशील मुद्दा रहा है. अतीत में, आतंकवाद के उभार और बेअदबी के बीच आंतरिक संबंध रहा है. निरंकारी संप्रदाय के मुखिया बाबा गुरुचरण सिंह द्वारा कथित बेअदबी के कारण 13 अप्रैल 1978 को अखंड कीर्तनी जत्था व दमदमी टकसाल और निरंकारियों के बीच हिंसक टक्कर में अखंड कीर्तनी जत्था के 13 सदस्य मारे गए. इसके साथ संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले उभरे. मेरे विचार से, पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन और आतंकवाद की शुरुआत यहीं से हुई. 1980 के दशक में गुरुद्वारों और मंदिरों को अपवित्र किए जाने घटनाओं का इस्तेमाल धार्मिक आधार पर विद्वेष फैलाने और आतंकवाद को भड़काने के लिए किया जाता रह. 1982(9) में हिंदुओं के मंदिरों को अपवित्र किए जाने और 1986 में नकोदर बेअदबी कांड इसके उल्लेखनीय उदाहरण हैं.
2015 के बरगरी बेअदबी मामले के बाद ऐसे कई मामले हुए. दिसंबर 2021 में लगातार ऐसे दो मामले हुए. दो अज्ञात लोगों को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला. एक को स्वर्ण मंदिर परिसर में मारा गया, तो दूसरे को, जो एक मामूली चोर था, कपूरथला के एक गुरुद्वारे में मारा गया. बेअदबी के मामले सांप्रदायिक तत्वों द्वारा गड़बड़ी फैलाने के इरादे से किए जाते हैं, नेता लोग चुनावी फायदा उठाने के लिए भी ऐसे मामलों को शह देते हैं या यह काम दिमागी तौर से असंतुलित लोग भी करते हैं. ‘लिंचिंग’ के मामलों की निंदा न होने और इसके साथ इनकी कमजोर पुलिस तहक़ीक़ात होने से अटकलों और अफवाहों को बल मिलताहै. पिछले अनुभव यही बताते हैं कि ऐसी घटनाओं का सबसे ज्यादा फायदा आइएसआइ या खालिस्तानी आतंकवादी उठाते हैं.
पंजाब में नशाखोरी बहुत फ़ैल गई है. इसके साथ, पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर तस्करी का संकेत मिलता है कि ‘नार्को’ आतंकवाद का इस्तेमाल खालिस्तानी आंदोलन को जिंदा करने के लिए किया जा रहा है.
श्री गुरुद्वारा प्रबन्धक कमिटी (एसजीपीसी) पर अकालियों का वर्चस्व है और वह लगभग उनकी धार्मिक शाखा के रूप में काम करती है. धार्मिक/राजनीतिक/चुनावी कारणों से वह सिख कौम के उन ‘शहीदों’ का समय-समय पर किसी-न-किसी रूप में सम्मान करती रहती है, जो खालिस्तानी आंदोलन से जुड़े हुए थे. 2013 में एसजीपीसी ने संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले और दूसरे ‘शहीदों’ के लिए अकाल तख्त के पास ही एक स्मारक बनवाया और हाल में उसने उनकी तस्वीर के प्रदर्शन की अनुमति दी. इस तरह के कदम आतंकवादियों का हौसला ही बढ़ाते हैं.
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नेता और संगठन
पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए आज संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले जैसा कोई चमत्कारी नेता मौजूद नहीं है. पंजाब में अलगाववाद के दौरान सक्रिय रहे राजनीतिक/धार्मिक संगठनों के बचे-खुचे टुकड़े ही रह गए हैं. कभी भिंडरांवाले के भतीजे अमरीक सिंह के नेतृत्व में चलने वाले ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन आज गुटों में बंट गया है और मुख्यतः सिख धर्म के प्रचार में जुटा हुआ है. भिंडरांवाले का राजनीतिक संगठन दल खालसा पर प्रतिबंध जब 1998 में खत्म हो गया तो उसने खुद को फिर से सक्रिय किया. लेकिन अब वह अपने पुराने स्वरूप की परछाई भर रह गया है. उसके समर्थक नाम को ही बचे हैं. कभी धार्मिक आतिवाद की पाठशाला माना जाने वाले दमदमी टकसाल की जो हालत बन गई है वही सब कुछ साफ कर देती है. आज वह भाजपा का पिछलग्गू है.
खालिस्तानी आंदोलन को चलाने वाले खुले संगठन अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी से काम कर रहे हैं. आर्थिक संपन्नता और खुला लोकतांत्रिक समाज प्रवासी सिखों को ‘सिख राज’ का शानदार अतीत आकर्षित करता है. यह अतीत जिसके बारे में धारणा यह जुड़ी है कि केवल 11 फीसदी सिख आबादी के साथ महाराजा रणजीत सिंह खैबर से लेकर सतलुज तक के पूरे क्षेत्र पर राज करते थे. उनमें सारे धर्मपरायण सिख नहीं हैं लेकिन सिख पहचान के प्रति गहरी प्रतिबद्धता रखते हैं.
सबसे प्रमुख सिख संगठन है अमेरिका का ‘सिख फॉर जस्टिस, जो पंजाब को भारत से अलग करने के सवाल पर ‘जनमत संग्रह 2020’ को आगे बढ़ा रहा है. इस जनमत संग्रह का पहला चरण ब्रिटेन में 31 अक्तूबर 2021 को इंदिरा गांधी की बरसी के दिन शुरू किया गया. इस संगठन का मुखिया गुरुपतवंत सिंह खालिस्तान समर्थक गतिविधियों को शुरू करने वालों और धमकियां जारी करने वालों के लिए पुरस्कार की घोषणाएं करने के लिए जाना जाता है. 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने वाले और पंजाब के दौरे पर गए मोदी के काफिले को रोकने वाले के लिए उसने पुरस्कारों की घोषणा की. जो लोग उसके विचारों और कामों की खिलाफत करते हैं उनके लिए वह धमकियां जारी करता रहता है. बताया जाता है कि वह खालिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादियों के गठजोड़ ‘के-2’ को बढ़ावा दे रहा है. कनाडा स्थित ‘वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन’ दूसरा प्रमुख संगठन है जिसकी शाखाएं कई देशों में हैं. ‘नेशनल सिख यूथ फेडरेशन’ ब्रिटेन में सक्रिय है. ‘काउंसिल फॉर खालिस्तान’ अमेरिका में सक्रिय है.
ये संगठन सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय हैं और सिख प्रवासियों तथा पंजाब के लोगों को प्रभावित करने के अलावा सिखों से जुड़ी हर घटना की ज़िम्मेदारी लेकर उसका फायदा उठाते हैं. पंजाब में उनकी कोई शाखा नहीं है और न उनके सदस्य सक्रिय हैं. लेकिन वे पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों को पैसे देते हैं और पंजाब के राजनीतिक दलों को गुप्त चंदे देकर राजनीतिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. पंजाब के औसतन हर परिवार का एक सदस्य विदेश में है. परिवार उसके भेजे पैसे से गुजारा करता है और अगर वह खालिस्तान समर्थक है तो परोक्ष रूप से उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करता है.
पंजाब में अलगाववाद को बढ़ावा देने वाले आतंकवादी संगठनों के बचे-खुचे गुट अब पाकिस्तान में हैं. उनमें प्रमुख हैं बब्बर खालसा इंटरनेशनल, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स, खालिस्तान कमांडो फोर्स और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स. इनके सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, और कनाडा में खुले तौर पर सक्रिय हैं. पंजाब में इनके इक्का दुक्का गुप्त सदस्य ही हैं, जिसका अंदाजा पंजाब में हिंसा के स्तर से लगता है. ये गुट पाकिस्तान में गुरुद्वारों की यात्रा करने गए तीर्थ यात्रियों को प्रभावित करने की कोशिश करते रहते हैं.
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आकलन और संभावित परिणाम
आइएसआइ, पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुट और अमेरिका-ब्रिटेन-कनाडा-जर्मनी में सक्रिय आतंकवादी गुट खालिस्तानी आंदोलन को जिंदा करने की पूरी कोशिश करते रहे हैं मगर पंजाब में उनकी कोई पूछ नहीं है. लेकिन मैं दूसरे लेख में जिन कमजोरियों का जिक्र कर चुका हूं वे व्यापक हैं, और हालात को बिगड़ने में ज्यादा समय नहीं लगता.
उभरते खतरे का सामना करने के लिए पंजाब पुलिस में नयी जान फूंकने और सीमा पर सुरक्षा इंतज़ामों को अत्याधुनिक तकनीक की मदद से कसने की जरूरत है. प्रचार का मुख्य साधन साइबर स्पेस है, जिसकी सावधानी से निगरानी करने के अलावा उस पर जवाबी कार्यक्रम चलाना जरूरी है. पंजाब में राजनीतिक दलों को राज्य की वित्त व्यवस्था के प्रबंधन के मामले में आत्म निरीक्षण करना चाहिए. राज्य पर 2.87 लाख करोड़ रुपये के कर्ज का भारी बोझ है जबकि उसकी सालाना आमदनी 70,000 करोड़ ही है. इसके कारण विकास पिछड़ा तो लोग ‘खालिस्तानी स्वप्नलोक’ की ओर आकर्षित हो सकते हैं.
सरकार को खालिस्तानी आंदोलन की स्थिति पर एक श्वेतपत्र जारी करना चाहिए ताकि मीडिया का एक खेमा राजनीतिक फायदा उठाने के लिए सनसनीखेज खबरें न दे और सिख समुदाय को बदनाम न करे.
और अंत में, अहम बात यह है कि पंजाब के लोग भी देश में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता, हिंसा और भेदभाव पर नज़र रखे हुए हैं. याद रहे कि पंजाब में अलगाववाद को भड़काने के तमाम कारणों में एक, धार्मिक भेदभाव का एहसास भी था. अगर यह भावना फैली कि ‘अगला निशाना हमें बनाया जा सकता है’ तो यह पंजाब के लिए अनर्थकारी साबित होगी.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)
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