आगामी दिनों में जब आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, लोग यात्राएं करने लगेंगे और कोरोनावायरस के मामले भी तेजी से बढ़ेंगे, तब भारत को नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. तब डेटा (आंकड़े, जानकारियों) पर आधारित कदम उठाना और आम सहमति बनाकर चलना महत्वपूर्ण होगा. फिर भी, चुनौतियां रहेंगी क्योंकि वायरस पिछले तीन महीने में- जब लॉकडाउन के कारण इस पर कुछ लगाम लगा था- जितनी तेजी से फैला था उससे कहीं ज्यादा तेजी से फैलेगा और लोग इससे सुरक्षा के नियम बनाने के अलावा कामधाम शुरू करने के लिए भी जद्दोजहद करेंगे.
व्यक्तिगत साफ-सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में जागरूकता से ताकत बढ़ेगी लेकिन कई अधिकारियों और बदलते नियमों के चलते भ्रम और अनिश्चितता अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन को कमजोर करने का कारण बन सकती है. इसे दावेदारों के साथ विचार-विमर्श करके, सर्वसम्मति बनाकर और समन्वय के जरिए दूर किया जा सकता है. इसके लिए भारत में कोरोना के मामलों के बारे में सबूत और डेटा आधारित कदम उठाने की जरूरत होगी.
डेटा के बूते बनेगी बेहतर नीति
दुनिया के कुछ हिस्सों में कोरोनावायरस के मरीजों से संबंधित डेटा सार्वजनिक किए गए हैं या अनुसंधानकर्ताओं को तो बताए ही गए हैं ताकि लागू किए जाने वाले नियमों को लेकर नीति तय करने, वायरस के फैलाव की बेहतर समझ बनाने और लोगों को अपनी सुरक्षा खुद करने में सक्षम बनाने में मदद मिले.
भारत में अब तक कोरोना के काफी मामले सामने आ चुके हैं. इस वायरस के मरीजों, उनकी दूसरी बीमारियों के डेटा, और अन्य ब्योरों की मदद से वायरस के फैलाव को समझने और उसे रोकने में मदद मिल सकती है. मसलन, यह कि इटली में अगर 65 से ज्यादा उम्र के लोगों के संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है, तो भारत में 50 या किसी और उम्र के लोगों को इसका ज्यादा खतरा हो सकता है.
पहले कई तरह के टीके लगे होने के कारण या इस तरह के वायरस से पहले संक्रमित होने के कारण कुछ लोगों को कोरोनावायरस से कम खतरा हो सकता है. अगर हम यह सब अच्छी तरह जान लें तो ऐसे लोगों के लिए बाहर निकलना दूसरों के मुक़ाबले ज्यादा सुरक्षित हो सकता है.
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भारतीय आबादी की विशेषता और कोविड-19 के प्रति उसकी प्रतिक्रिया वुहान, इटली या न्यू यॉर्क की आबादी की प्रतिक्रिया से अलग हो सकती है क्योंकि उनकी जनसांख्यिकीय विशेषता और रोगों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया भिन्न होगी.
इन जानकारियों का अध्ययन करके लॉकडाउन में छूट के बाद के दौर के लिए उपयुक्त नीतिगत ढांचा और कार्य योजना तैयार की जा सकती है.
आरोग्य सेतु ऐप के उपयोग से आगामी दिनों में और ज्यादा डेटा हासिल होंगे. अच्छी बात यह है कि सरकार ने सोर्स कोड खुला रखा है और कोड में ‘बग’ दिखाने वाले के लिए ‘बड़ा इनाम’ रखा है. इसके साथ ही, सरकार को डेटा प्राइवेसी कानून बनाना चाहिए. यह संसद की सेलेक्ट कमिटी के पास पड़ा है, जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत है. डेटा प्राइवेसी के लिए पर्याप्त व्यवस्था करने के बाद भारत में कोरोना के मामलों, मौतों, संक्रमण से मुक्ति और दूसरी क्लीनिकल विशेषताओं से संबंधित डेटा से शोधकर्ताओं को वायरस के भारत में फैलाव को समझने में और बेहतर नीति बनाने में मदद मिलेगी.
नियमों की बाढ़ और अर्थव्यवस्था पर उनका असर
आगामी दिनों में व्यक्तिगत आचरण, यात्रा, क्वारेंटाइन आदि से संबंधित नियमों को लेकर उलझन एक बड़ी समस्या बन सकती है. नियम दिन-ब-दिन, स्थान-दर-स्थान बदल सकते हैं. इसका सबसे बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.
अनिश्चितता जितनी बढ़ेगी, नियमों में उतने ही बदलाव होंगे और इसके कारण अर्थव्यवस्था को उबरने में दिक्कत होगी, और लोगों को अपनी आजीविका कमाने में मुश्किल होगी. सबसे बड़ी पहेली यह है कि आदर्श स्थिति तो यह होगी कि निर्णय प्रक्रिया का विकेन्द्रीकरण हो, लेकिन वास्तविकता में नियम बनाने की जिम्मेवारी जब हजारों अलग-अलग अधिकारियों को सौंप दी जाएगी तब अनिश्चितता की गुंजाइश और बढ़ेगी. खुद को सुरक्षित रखते हुए जिंदगी और रोजगार को पटरी पर लाने की पहेली को हल करना बहुत कठिन साबित होगा. स्थानीय समाधानों को ढूंढने में कठिनाई और इसके साथ ही तमाम अधिकारियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकना एक बड़ी चुनौती साबित होने वाली है.
केंद्र से लेकर प्रदेश, ज़िला, शहर, पंचायत, सरपंच आदि तक सरकार के तमाम स्तरों पर, एयरलाइन से लेकर आरडब्लूए, नियोक्ताओं, बाजार समितियों, कुलपतियों, स्कूलों-कॉलेजों के प्रिंसिपलों से लेकर सत्ता व ज़िम्मेदारी के पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति यह नियम बनाने में जुट जाएगा कि कामधाम करते हुए कैसे सुरक्षित रहा जा सकता है.
यह माहौल व्यवसाय और लोगों के लिए भी काफी कठिनाई भरा साबित होगा. जरा किसी ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म जैसे देशव्यापी व्यवसाय के बारे में सोचिए. उसे पता करना होगा कि जिस दिन वह अपना माल रवाना कर रहा है उस दिन और जिस दिन उसका माल पहुंचेगा उस दिन हर ज़िले में नियम क्या हैं. माल भेजने और पहुंचने के बीच नियम बदल गए तो डिलीवरी करने वालों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. कुछ आरडब्लूए अंदर आने नहीं देंगे या गेट पर ही सामान छोड़ देने को कहेंगे. कुछ जगहों पर पुलिसवाले आवश्यक और अनावश्यक वस्तु का भेद करके डिलीवरी वालों को रोक देंगे.
हम देख चुके हैं कि हवाई यात्रा के नियमों को लेकर भ्रम के कारण यात्रियों को कितनी परेशानी हुई. कई यात्रियों को हवाई अड्डा पहुंचने के बाद पता चला कि उनकी फ्लाइट रद्द हो चुकी है. यह इसलिए हुआ क्योंकि राज्यों ने फ्लाइट के आगमन को लेकर अलग-अलग नियम बना दिए. यहां तक कि क्वारेंटाइन के नियम भी हर राज्य में अलग-अलग हैं. ऐसी परेशानियों के कारण कई यात्री यात्रा करने से ही दूर रहेंगे. अनिश्चितता जितनी होगी, लोग अपना पैसा लगाने से उतना ही दूर भागेंगे.
आम राय बनाइए, लोगों को सूचित कीजिए
भ्रम से बचने के लिए सलाह-मशविरे, आम राय बनाने और सभी दावेदारों से तालमेल की प्रक्रिया जरूरी है. परेशानी, सत्ता की मनमानी और अराजकता से बचने के लिए प्रदेश और जिला अधिकारियों को सुरक्षा और सुविधा के बीच नाजुक संतुलन बनाकर चलना होगा.
आगामी महीनों में कहीं ज्यादा सहयोग की जरूरत होगी, जितनी कि अब तक शायद हमने नहीं देखी होगी. जनहित में एजेंसियों और अधिकारियों को लोगों को पर्याप्त समय देना होगा ताकि वे आगे की योजना बना सकें.
(लेखिका एक अर्थशास्त्री हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनान्स में प्रोफेसर हैं. ये उनके निजी विचार हैं)
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