scorecardresearch
Thursday, 18 April, 2024
होमदेशविशेषज्ञों ने कहा, जून-जुलाई में आ सकते हैं 50-60 लाख गर्भपात के मामले, सरकार को करनी होगी खास तैयारी

विशेषज्ञों ने कहा, जून-जुलाई में आ सकते हैं 50-60 लाख गर्भपात के मामले, सरकार को करनी होगी खास तैयारी

विशेषज्ञों का अनुमान है कि जिन महिलाओं के गर्भधारण का 20 हफ्ता पूरा नहीं हुआ है ऐसी करीब 50 से 60 लाख महिलाएं इन दो महीनों में गर्भपात करा सकती है. आंकड़ों के अनुसार करीब 13 लाख महिलाएं हर महीने गर्भपात कराती हैं

Text Size:

नई दिल्ली: आने वाले 2 महीने में जब लॉकडाउन समाप्त होगा उस दौरान गर्भपात कराने वाली महिलाओं की संख्या में जबर्दस्त इज़ाफ़ा होने वाला है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि जिन महिलाओं के गर्भधारण का 20 हफ्ता पूरा नहीं हुआ है ऐसी करीब 50 से 60 लाख महिलाएं इन 2 महीनों में गर्भपात करा सकती हैं.

महिलाओं के गर्भपात की यह संख्या गांव या शहर की नहीं बल्कि पूरे देश में बराबरी से बढ़ेगी. इसीलिए चिकित्सा जगत से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले 2 महीने जून-जुलाई में खास तरह की तैयारियों की जरूरत होगी.

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि इस दौरान निजी अस्पताल और क्लीनिक वाले मनमानी कीमत वसूलेंगे, इस पर भी सरकार को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.


यह भी पढ़ें: मधुमेह, हृदय रोग और अस्थमा के रोगियों को कोविड-19 से बचाव के लिए क्या करना चाहिए


महंगा होगा गर्भपात कराना

फाउंडेशन फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विस इंडिया के सीईओ वीएस चंद्रशेखर ने दिप्रिंट को बताया, पिछले वर्षों के आंकड़े के अनुसार अमूमन हर महीने देशभर में 13 लाख महिलाएं गर्भपात कराती हैं.

‘हमारा शोध कहता है कि पहले और दूसरे लॉकडाउन में करीब 18 लाख या इससे थोड़ी अधिक महिलाओं को गर्भपात की सुविधा नहीं मिल पाई है. जिस वजह से आने वाले महीनों में गर्भपात के आंकड़ों में जबर्दस्त उछाल देखने को मिल सकता है.’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

वीएस चंद्रशेखर आगे कहते हैं, ‘इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि 13 लाख महिलाएं तो हर महीने गर्भपात कराती ही हैं लेकिन वो महिलाएं जो इस लॉकडाउन के दौरान फैमिली प्लानिंग, कंट्रासेप्टिव या फिर अन्य साधनों का उपयोग नहीं कर पाईं उन महिलाएं की संख्या भी लगभग इतने के बराबर ही है.

‘पिछले 3 महीने मार्च, अप्रैल और मई के आंकड़े में 39 लाख महिलाएं के साथ आप इसे असुरक्षित सेक्स के मामलों को जोड़ते हैं तो यह करीब 50 से 60 फीसदी के आंकड़े तक जाता है जो गर्भपात के लिए क्लीनिक, अस्पतालों के चक्कर लगाएंगी.’

इस दौरान निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में गर्भपात कराना भी महंगा हो जाएगा. वह आगे बताते हैं, ‘आने वाले समय में कोविड टेस्ट अगर सरकार की तरफ से मेंडेटरी कर दिया जाता है तो उसका बोझ भी गर्भवती महिलाओं पर पड़ेगा और जो खर्च 2 हजार से पांच हजार में हो जाता है उसके साथ 4500 रुपये अतिरिक्त देने पड़ेंगे.’

पिछले 60 दिनों से देश में लॉकडाउन चल रहा है. इस लॉकडाउन असर सिर्फ देश की अर्थव्यवस्था पर ही नहीं बल्कि इसका बड़ा असर फैमिली प्लानिंग कार्यक्रम पर भी पड़ने जा रहा है और देशभर में करीब 2.56 करोड़ लोग इससे प्रभावित होने जा रहे हैं. जो इस लॉकडाउन के दौरान गर्भपात या इससे जुड़ी सेवाओं का उपयोग नहीं ले पाएंगे.

वहीं चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों का यह भी मानना है कि भविष्य में आने वाली आपदाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार को अभी से महिलाओं के स्वास्थ्य और गर्भपात से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए एक खास तरह की तैयारियां करने की आवश्यकता है.

उन्होंने कहा अमूमन देश में हर महीने 12-13 लाख गर्भपात कराया जाता है और यह सुरक्षित गर्भपात का आंकड़ा है यानी साल में करीब 1.5 करोड़ के करीब गर्भपात कराए जाते हैं. लेकिन पिछले 60 दिनों में पूर्ण लॉकडाउन की वजह से अगर हम कम से कम आंके तो यह आंकड़ा हर महीने बढ़कर 15-20 लाख होने की संभावना है.


यह भी पढ़ें: आईवीएफ के जरिए मां बनने की अधिकतम उम्र होगी 50 वर्ष, सरकार करेगी नियम कड़े


75 फीसदी महिलाएं नहीं पहुंच सकीं क्लीनिक

प्रतिज्ञा कैपेंन के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य और गर्भधारण से जुड़ी समस्याओं के बीच ‘भारत में कोविड-19 फैमिली प्लानिंग और सुरक्षित गर्भपात सर्विस’ को लेकर हुई बातचीत में फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया की प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. रिचा साल्वी ने दिप्रिंट को बताया, ‘पिछले साल की तुलना में बीते 2 महीने में करीब 75 फीसदी फुट फॉल कम हुई है यानी लोग क्लीनिक तक नहीं पहुंचे हैं. और जो 25 फीसदी लोग पहुंच भी पाए हैं वह भी चौथे लॉकडाउन में मिली थोड़ी राहत के बाद ही.’

रिचा आगे बताती हैं कि इसेंशियल सर्विस होने के बाद और स्वास्थ्य और गृह मंत्रालय के आदेश के बाद भी राज्य स्तर और जिला स्तर पर क्लीनिक खोलने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. रिचा ने बताया उनके अंदर देशभर में 40 क्लीनिक आते हैं जिसमें 2 महीने में महज 1200 गर्भपात ही किए जा सके हैं जिसमें 360 सर्जिकल थे.

वहीं फाउंडेशन ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विस के सीईओ वीएस चंद्रशेखर ने बताया,’ सितंबर तक करीब 2.56 करोड़ जोड़े गर्भपात या फिर इससे जुड़ी सेवाओं का उपयोग नहीं कर पाएंगे.

पिछले 2 वर्षों के आंकड़ों से तुलना करते हुए चंद्रशेखर दिप्रिंट को बताते हैं कि औसतन लॉकडाउन में 6.9 लाख नसबंदी, 9.7 लाख आईयूडी, इंजेक्शन योग्य गर्भ निरोधकों में 5.8 लाख डोज साथ ही गर्भनिरोधक गोलियों के 2.3 करोड़ साइकिल, 9.2 लाख आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां और 40.6 करोड़ कंडोम नहीं खरीदे जा सके हैं जो यह दिखाते हैं कि आने वाले समय में अनवांछित गर्भधारण की संख्या बढ़ने जा रही है.

यही नहीं शोध में यह भी पाया गया है कि 23.8 लाख अनपेक्षित गर्भधारण में 14.5 लाख जोड़े गर्भपात कराएंगे जिनमें से 8.34 सही स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं होने की वजह से असुरक्षित गर्भपात का सहारा लेगें जिसमें महिलाओं की मृत्यु दर भी बढ़ सकती है.

चंद्रशेखर आगे कहते हैं कि सब कुछ करने के बाद भी करीब 6.79 लाख नवजात का जन्म होगा.


यह भी पढ़ें: बिना प्रिस्क्रिप्शन ‘टर्मिनेशन पिल्स’ न मिलने और असुरक्षित गर्भपात कराने से महिलाओं के बिगड़ेंगे हालात- विशेषज्ञ


इपस डेवलपमेंट फाउंडेशन, और प्रतिज्ञा अभियान सीएजी (CAG) सदस्य, और सीईओ विनोज मैनिंग बताते हैं, ‘अगर ये जोड़े किसी जुगाड़ से गर्भपात कराते हैं तो करीब 18 लाख महिलाएं गर्भपात नहीं करा पाएंगी. सरकार को लॉकडाउन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए.’

यह पूछे जाने पर कि गर्भपात कराने वालों में शहरी महिलाएं अधिक होंगी या ग्रामीण महिलाएं विनोज कहते हैं, ‘हालांकि, हमारे पास वास्तव में ग्रामीण और शहरी गर्भपात की मांग का कोई अनुमान नहीं है. ऐसा अनुमान है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले महीनों में गर्भपात की मांग में वृद्धि होगी.

‘इसकी वजह यह भी है कि भारत में लगभग 65% महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों में रहती हैं और गर्भनिरोधक और आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों तक उनकी पहुंच लॉकडाउन के दौरान नहीं हो सकी है. इसलिए यह आराम से अनुमान लगाया जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्र में गर्भपात की मांग न केवल अधिक होगी, बल्कि यह भी कि ग्रामीण भारत में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक पहुंचने में अधिक कठिनाई का सामना करना होगा.’

चंद्रशेखर ने कहा, ‘महाराष्ट्र, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में यह स्थिति तब विकट हो जाती है जब यहां टर्मिनेशन पिल्स पर पूरी तरह से पाबंदी है.’

वहीं पॉपुलेशन हेल्थ सर्विस के सीईओ विवेक मल्होत्रा ने बताया कि इस दौरान कंट्रासेप्टिव, कंडोम और ओरल कंट्रासेप्टिव में जबर्दस्त गिरावट देखी गई.

मल्होत्रा ने यह भी बताया कि चूंकि कंडोम का लोग साप्ताहिक स्टॉक रखते हैं जबकि कंट्रासेप्टिव भी डे बाई डे खरीदा जाता है इसलिए भी यह परेशानी देखी गई है. वहीं कई जगहों पर खासकर गांवों में यह आउट स्टॉक भी रहे जिसकी वजह से ये परेशानियां हुई हैं.

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. Lagta hai yeh lekh kisi modi bhakt ka hai…lage hath yh bhi bata dete kis ki darkar banna thi…bjp ki sarkar nahi banne ka dukh jitna is lekh ke lekhak ko hai itna dukh shayad bjp ko bhi nahi hoga…lagta hai in mahashay ne gujrat ki study nahi ki shayad waha bjp ki gov. hai isliye ….sharm aati hai ese lekh padte hue or ese lekhak per…sharm ki bat hai…

Comments are closed.