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Wednesday, 5 November, 2025
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नेपाल में पुलिस का सामूहिक इस्तीफा गहरे संकट की ओर इशारा, अंतरिम सरकार के पास समय कम है

जमीनी हालात अभी भी ‘नया नेपाल’ बनने को लेकर निराशाजनक हैं. यह शब्द 2008 में लोकतंत्र आने और राजशाही खत्म होने के बाद खूब चलन में आया था.

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करीब 50 दिन हो चुके हैं जब नेपाल में एक बड़े जेन ज़ी-नेतृत्व वाले आंदोलन ने चुनी हुई सरकार को गिरा दिया था. अब अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की सरकार के सामने 5 मार्च 2026 तक चुनाव कराने की कठिन चुनौती है. छह महीने की यह समय-सीमा इसलिए रखी गई थी ताकि देश में एक नया राजनीतिक ढांचा लोकतांत्रिक तरीके से तैयार हो सके और जेन ज़ी युवाओं की मुख्य मांगों — बेहतर शासन, भ्रष्टाचार पर कार्रवाई, नई नौकरियों का सृजन और राजनीतिक स्थिरता — को संबोधित किया जा सके.

लेकिन फिलहाल आंतरिक हालात बहुत निराशाजनक हैं क्योंकि तीन प्रमुख पक्ष — सरकार, राजनीतिक दल और जेन ज़ी — अभी भी आगे की राह पर बातचीत कर रहे हैं और इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि सरकार कैसे बनेगी, जेन ज़ी की भूमिका क्या होगी और क्या पारंपरिक राजनीतिक दल अपने भीतर बड़े सुधार करने के लिए तैयार हैं.

30 अक्टूबर को इन तीनों पक्षों ने सितंबर आंदोलन के बाद पहली बार साथ बैठकर चुनाव की दिशा पर चर्चा की. राजनीतिक दल चुनाव कराने पर सहमत हैं. लेकिन कुछ मुद्दों पर मतभेद है — जैसे प्रतिनिधि सभा का सितंबर में राष्ट्रपति द्वारा भंग किया जाना, जिसे CPN-UML असंवैधानिक बताकर बहाल करने की मांग कर रही है. वहीं राजावादी दल राष्ट्रिया प्रजातन्त्रिक पार्टी साम्राज्य वापस लाने की मांग कर रहा है.

नेपाली कांग्रेस जैसे अन्य दलों का कहना है कि मार्च का महीना पहाड़ी इलाकों में कड़ाके की ठंड के कारण चुनाव के लिए उपयुक्त नहीं है. कई दल समय बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही देश की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी चिंता है, जो चुनाव कराने के लिए पर्याप्त और उपयुक्त नहीं मानी जा रही है.

अंतरिम सरकार के लिए प्रगति

जमीनी हालात ‘नया नेपाल’ के उभरने को लेकर अभी भी निराशाजनक हैं. यह शब्द 2008 में लोकतंत्र आने और राजशाही खत्म होने के बाद बहुत लोकप्रिय हुआ था. लेकिन आज भी यह सिर्फ चर्चा में रहता है, कोई ठोस प्रगति या नतीजा दिखाई नहीं देता. इसलिए इसमें दोबारा सुर्खियों में आने पर हैरानी नहीं है.

अच्छी खबर यह है कि स्थिति पूरी तरह से जाम नहीं हुई है. अंतरिम सरकार धीरे-धीरे मंत्रिमंडल का विस्तार कर रही है. अब कैबिनेट में दस मंत्री हैं, जिनके पास गृह, ऊर्जा, शिक्षा और विज्ञान, संचार और सूचना, स्वास्थ्य, खेल और युवा मामलों जैसे विभाग हैं. विदेश, रोजगार और रक्षा जैसे अहम मंत्रालय अभी भी प्रधानमंत्री के पास हैं.

लेकिन एक अजीब और दिलचस्प विकास हो रहा है, जो तय समय सीमा में चुनाव कराने में देरी की वजह बन सकता है, ऊपर बताए गए कारणों के अलावा. जेन ज़ी आंदोलन के बाद पिछले तीन महीनों में नेपाल पुलिस और सशस्त्र पुलिस बल के करीब 1,000 कर्मियों ने कथित इस्तीफा दे दिया है.

जेन-जी विरोध प्रदर्शनों का इस्तीफों में योगदान

31 अक्टूबर को काठमांडू पोस्ट ने रिपोर्ट किया कि “नेपाल पुलिस के करीब 450 और सशस्त्र पुलिस बल (APF) के लगभग 550 कर्मियों ने, जिनमें ऊपरी और निचले दोनों स्तरों के अधिकारी शामिल हैं, नौकरी छोड़ दी है. कुछ ने 20 साल की सेवा पूरी कर ली थी, जबकि कुछ केवल पांच साल काम करने के बाद ही चले गए.” रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि “जेन ज़ी आंदोलन ने कई कर्मियों का मनोबल गिराया है, जिससे इस्तीफों की संख्या बढ़ी है.”

ये इस्तीफे कुछ संशोधनों की वजह से भी आए हैं, जिनमें सुविधाओं और सामाजिक सुरक्षा में कटौती शामिल है. लेकिन इसे जेन ज़ी आंदोलन की पृष्ठभूमि में देखना ज़रूरी है, जिसमें नागरिकों, जेन ज़ी कार्यकर्ताओं और कुछ पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी. नेपाल की राजनीतिक स्थिति अभी भी अनिश्चित है और स्थिरता दूर की बात है. ऐसे में ये इस्तीफे दो अहम बातें दिखाते हैं.

पहली, सरकारी नौकरी जैसे पुलिस में पैसा और सामाजिक सुरक्षा तो मिलती है, लेकिन यह जोखिम भरी होती है और जान का खतरा भी हमेशा रहता है. माओवादी विद्रोह के दौरान पुलिस लगातार हमलों का निशाना बनी. 1996 से 2006 के बीच माओवादियों ने कई थानों पर हमला किया, हथियार लूटे और कई पुलिसकर्मी मारे गए. इसमें कोई शक नहीं कि पुलिस, सुरक्षा देने के साथ-साथ, जेन ज़ी या माओवादियों जैसी ताकतों से भी लड़ने के जोखिम में रहती है, जिन्हें राजनीतिक नेतृत्व खतरा मानता है. इससे दुविधा और मनोबल टूटना स्वाभाविक है.

दूसरी, पिछले तीन दशकों में नेपाल से विदेशों — ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, जापान और खाड़ी देशों — में बड़े पैमाने पर पलायन बढ़ा है. बेरोज़गारी, जो जेन ज़ी आंदोलन का मुख्य कारण थी, राजनीतिक अस्थिरता, बार-बार की रुकावटें और असुरक्षित माहौल के बीच, लोग बाहर नौकरी को ज़्यादा सुरक्षित और बेहतर विकल्प मानते हैं. इसलिए जेन ज़ी आंदोलन एक नए तरह की निराशा को जन्म दे सकता है, जहाँ देश छोड़ना बेहतर समझा जाए.

अंत में, एक ‘नया नेपाल’ बनाने के लिए मजबूत लोकतंत्र, स्वतंत्र संस्थाएं — न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका — अच्छा शासन और देश में अवसर चाहिए. इसके लिए गंभीर राजनीतिक सुधार ज़रूरी हैं. लेकिन अंतरिम सरकार के पास चुनाव से पहले केवल पाँच महीने बचे हैं, इसलिए यह लगभग असंभव है. हां, पारंपरिक दल अगर अपनी आंतरिक संरचना ठीक करें और पिछले 17 साल से राजनीति पर काबिज़ बूढ़े नेतृत्व से आगे बढ़ें, तो कुछ बदलाव संभव है.

साथ ही, पुलिस और सशस्त्र पुलिस के बढ़ते इस्तीफे एक परेशान करने वाला संकेत हैं. यह सिर्फ जेन ज़ी की मांगों या अंतरिम सरकार की क्षमता का मुद्दा नहीं है. यह सरकारी नौकरियों के आकर्षण के कम होने और लोगों की सुरक्षा, सम्मान और बेहतर जीवन की गहरी खोज को दिखाता है.

ऋषि गुप्ता ग्लोबल अफेयर्स पर कॉमेंटेटर हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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