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Saturday, 20 April, 2024
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मोदी जी, क्या आप जानते हैं कि हिंदू राष्ट्र पर बाबा साहेब के क्या विचार थे?

प्रधानमंत्री को आंबेडकर के नाम का इस्तेमाल करने से पहले सौ बार सोचना चाहिए. कांग्रेस की आलोचना बाबा साहेब ने जरूर की है, लेकिन हिंदू धर्म, हिंदू राष्ट्र और हिंदू महासभा पर उनके विचार ज्यादा तीखे हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 फरवरी को लोकसभा के अपने करीब 100 मिनट के भाषण में कांग्रेस पर हमला बोलने के लिए डॉ. आंबेडकर का इस्तेमाल किया. उन्होंने डॉ. आंबेडकर को उद्धृत करते हुए कहा कि ‘डॉ. आंबेडकर हमेशा अपने समय से आगे सोचते थे, उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में शामिल होना आत्महत्या के बराबर है.’

प्रधानमंत्री जी, डॉ. आंबेडकर का कांग्रेस खिलाफ इस्तेमाल करने से पहले आपको सोचना चाहिए था क्योंकि बाबा साहेब और उनके विचार, कांग्रेस की तुलना में आपकी विचारधारा, राजनीति और कार्यक्रम के लिए ज्यादा तीखे और खतरनाक हैं. हिंदू राष्ट्र की जो परियोजना संघ-भाजपा और आपका आपका सबसे बड़ा सपना है, उसे हर कीमत पर रोकने का आह्वान डॉ. आंबेडकर ने किया था.


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उन्होंने था कि ‘यदि हिंदू राज की स्थापना सच में हो जाती है तो निःसंदेह यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होगा. चाहे हिंदू कुछ भी कहें, हिंदू धर्म स्वतंत्रता, समानता और मैत्री के लिए एक खतरा है. यह लोकतंत्र के लिए असंगत है. किसी भी कीमत पर हिंदू राज को स्थापित होने से रोका जाना चाहिए.’ (डॉ. आंबेडकर, थॉट्स ऑन पाकिस्तान -संपूर्ण वांग्मय खंड-8, पृष्ठ-358).

आंबेडकर के लिए हिंदू राष्ट्र का सीधा अर्थ द्विज वर्चस्व यानी ब्राह्मणवाद की स्थापना था. वे हिंदू राष्ट्र को मुसलमानों पर हिंदुओं के वर्चस्व तक सीमित नहीं करते थे, जैसा कि भारत के प्रगतिशील वामपंथी या उदारवादी लोग करते हैं. उनके लिए हिंदू राष्ट्र का मतलब दलित, ओबीसी और महिलाओं पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना था.

प्रधानमंत्री जी, जिस हिंदू धर्म का गुणगान करते आप नहीं थकते, उसके खिलाफ डॉ. आंबेडकर आजीवन संघर्ष करते रहे और अंत उन्होंने उसका परित्याग कर दिया. वे आपके प्रिय धर्म से किस कदर नफरत करते थे, इसका अंदाज आप उनके इस कथन से लगा सकते हैं कि उन्होंने कहा था कि हिंदू धर्म में जन्म लेने के लिए मैं स्वतंत्र नहीं था, लेकिन हिंदू धर्म में मैं मरूंगा नहीं.’

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एनिहिलेशन ऑफ कास्ट यानी जाति का विनाश में वे पहली बार ये कहते हैं कि वे हिंदू नहीं रहेंगे. जरा अपने प्रिय हिंदू धर्म के बारे में उनकी राय जान लीजिए. उन्होंने लिखा कि ‘मैं हिन्दुओं और हिन्दू धर्म से इसलिए घृणा करता हूं, उसको तिरस्कृत करता हूं, क्योंकि मैं आश्वस्त हूं कि वह गलत आदर्शों को पोषित करता है और गलत सामाजिक जीवन जीता है. मेरा हिन्दुओं और हिन्दू धर्म से मतभेद उनके सामाजिक आचार में केवल कमियों को लेकर नहीं है. यह झगड़ा ज्यादातर सिद्धांतों को लेकर है, आदर्शों को लेकर है.’

वे साफ शब्दों में कहते हैं कि हिन्दू धर्म के प्रति उनकी घृणा का सबसे बड़ा कारण जाति है, उनका मानना था कि हिन्दू धर्म का प्राण जाति है और इन हिन्दुओं ने अपने इस जाति के जहर को सिखों, मुसलमानों और क्रिश्चियन में भी फैला दिया है. वे लिखते हैं कि ‘इसमें कोई सन्देह नहीं कि जाति आधारभूत रूप से हिन्दुओं का प्राण है. लेकिन हिन्दुओं ने सारा वातावरण गंदा कर दिया है और सिख, मुस्लिम और क्रिश्चियन सभी इससे पीड़ित हैं.’

‘जाति का विनाश’ किताब का उद्देश्य बताते हुए उन्होंने लिखा है कि ‘मैं हिन्दुओं को यह एहसास कराना चाहता हूं कि वे भारत के बीमार लोग हैं, और उनकी बीमारी अन्य भारतीयों के स्वास्थ्य और खुशी के लिए खतरा है’ इसका कारण बताते हुए वे लिखते हैं कि ‘हिन्दुओं की पूरी की पूरी आचार-नीति जंगली कबीलों की नीति की तरह संकुचित एवं दूषित है, जिसमें सही या गलत, अच्छा या बुरा, बस अपने जाति बन्धु को ही मान्यता है. इनमें सद्गुणों का पक्ष लेने तथा दुर्गुणों के तिरस्कार की कोई परवाह न होकर, जाति का पक्ष लेने का मामला सर्वोपरि रहता है.’

प्रधानमंत्री जी, जिस श्रीराम को संघ-भाजपा और आप भारतीय राष्ट्र का आदर्श प्रतीक नायक मानते हैं. उनके संदर्भ में उन्होंने दलित-बहुजन समाज को प्रतीज्ञा दिलाई थी कि वे राम को न तो अवतार मानेंगे और न ही उनकी पूजा करेंगे. उनकी 22 प्रतिज्ञाओं में पहली और दूसरी प्रतिज्ञा इस प्रकार है-

1- मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा

2- मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूंगा और न ही मैं उनकी पूजा करूंगा

ऐसे आंबेडकर को कोट करने से पहले आपको सोचना चाहिए. आंबेडकर को कांग्रेस से शिकायत थी, लेकिन वे आपकी विचारधारा को मानवता के लिए खतरा मानते थे.

हां यह सच है कि वे हमेशा खुले तौर पर हिंदूवादी राजनीति करने वाले कट्टरपंथी हिंदुओं और छद्म तौर पर धर्मनिरपेक्षता की राजनीति करने वाले नरम हिंदुओं को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते थे. हिंदू महासभा और कांग्रेस की तुलना करते हुए आंबेडकर ने पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन नामक अपनी किताब में दो टूक शब्दों में कहा, ‘यह कहने का कोई लाभ नहीं है कि कांग्रेस हिंदू संगठन नहीं है. यह एक ऐसा संगठन है, जो अपने गठन में हिंदू ही है, वह हिंदू मानस की ही अभिव्यक्ति करेगा और हिंदू आकांक्षाओं का ही समर्थन करेगा. कांग्रेस और हिंदू महासभा में बस इतना ही अंतर है कि जहां हिंदू महासभा अपने कथनों में अधिक अभद्र है और अपने कृत्यों में भी कठोर है, वहीं कांग्रेस नीति-निपुण और शिष्ट है. इस तथ्यगत अंतर के अलावा कांग्रेस और हिंदू महासभा के बीच कोई अंतर नहीं है’.

प्रधानमंत्री जी आप जानते हैं कि यह वही अखिल भारत हिन्दू महासभा है, जिसकी स्थापना 1915 में हुई थी. आपके आर्दश नायक विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे. संघ के संस्थापक केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे. बालकृष्ण शिवराम मुंजे हिन्दू महासभा के सदस्य थे. बाद में मुंजे 1927-28 में इसके अध्यक्ष बने, जो संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के राजनीतिक गुरू भी थे.


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हां यह सच है कि डॉ. आंबेडकर कांग्रेस को भी हिंदुओं का संगठन ही मानते थे. आजादी के पहले जिसका लक्ष्य उच्च जातीय हिंदुओं और उच्च जातीय हिंदू पूंजीपतियों को सत्ता दिलाना था. डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस पार्टी के बारे में साफ शब्दों में कहा था कि ‘कांग्रेस मध्यवर्गीय हिंदुओं की संस्था है, जिसको हिदू पूंजीपतियों का समर्थन प्राप्त है, जिसका लक्ष्य भारतीयों की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि ब्रिटेन के नियंत्रण से मुक्त होना और सत्ता प्राप्त कर लेना है, जो इस समय अंग्रेजों की मुट्ठी में हैं.’ (डॉ. आंबेडकर, संपूर्ण वांग्यमय, खंड-17, पृ.3) उनका यह कथन सच भी साबित हुआ.

प्रधानमंत्री जी, डॉ. आंबेडकर का इस्तेमाल करने से पहले आपको सोचना चाहिए, क्योंकि उनके आदर्श, सपने विचार और संघर्ष आपकी हिंदू राष्ट्र की पूरी परियोजना को मिट्टी में मिला सकते हैं.

(लेखक फारवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक हैं.)

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