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Friday, 29 March, 2024
होममत-विमतहॉट स्प्रिंग्स पर भारत और चीन के रुख दो बिंदुओं पर अटके हुए हैं- चांग चेनमो और 1959 क्लेम लाइन

हॉट स्प्रिंग्स पर भारत और चीन के रुख दो बिंदुओं पर अटके हुए हैं- चांग चेनमो और 1959 क्लेम लाइन

पिछलेदो वर्षों में नक्शों/उपग्रह चित्रों के साथ कोई सरकारी ब्रीफिंग नहीं की गई. जनता को उधर के भौगोलिक इलाके और फौजी कार्रवाई की स्थिति के बारे में कुछ पता नहीं है और सरकार खंडन और लीपापोती करके कन्नी काटती रही है.

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इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी सूत्रों के हवाले से 9 अप्रैल को अपने मुखपृष्ठ पर खबर छापी है कि भारत ने हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से सेना हटाने के चीन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है. पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 15 से सेनाओं को हटाने का प्रस्ताव लगभग उस समय किया गया था जब चीनी विदेश मंत्री वांग यी 24-25 मार्च को भारत के दौरे पर थे. भारत ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि चीन चाहता था कि भारत अपनी सेना वापस करम सिंह चौकी पर ले जाए, जो कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पीछे 30-35 किलोमीटर दूर है, बेशक तिरछी दिशा में. यह होता तो भारतीय सेना पीपी-15 और 16 तक नहीं पहुंच सकती थी, जबकि चीनी सेना ठीक उसके पीछे चली जाती.

इस ‘सरकारी खबर लीक’ के पीछे की मंशा साफ नहीं है क्योंकि पीपी-15 को लेकर असहमति 10 अक्टूबर 2021, 12 जनवरी 2022, और 11 मार्च 2022 को हुई कोर कमांडर स्तर की क्रमशः 13वीं, 14वीं और 15वीं वार्ता में सामने आई थी. सो, या तो भारत सरकार वांग यी के दौरे को सफल बताने या यथास्थिति बनाए रखनेकी चीन की भोली कोशिश का
खुलासा करना चाहती थी. सरकार ने अखबार में छपी इस खबर का खंडन नहीं किया है. वैसे, इससे यह भी संकेत मिलता है कि चीन चांग चेनमो सेक्टर को लेकर कितना अडिग रुख रखता है.

चीनी घुसपैठ और पूर्वी लद्दाख में गतिरोध के लगभग दो साल होने जा रहे हैं. बफर ज़ोन (मुख्यतः एलएसी के अंदर हमारे क्षेत्र में) के साथ सेनाओं की वापसी गलवान नदी, पैंगोंग त्सो के उत्तर तथा दक्षिण, और गोगरा/चांगलुंग नाला क्षेत्रों से हो चुकी है जिसमें कोई गश्ती न करने, सेना की कोई तैनाती न करने और इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास न करने की व्यवस्था शामिल है. चीन ने देप्सांग मैदानी क्षेत्र, पीपी-15, चार्डिंग-निंग्लुंग नाला क्षेत्र में और डेमचोक के दक्षिण के बीच जो घुसपैठ की थी उस पर काबिज है.

पिछलेदो वर्षों में नक्शों/उपग्रह चित्रों के साथ कोई सरकारी ब्रीफिंग नहीं की गई. जनता को उधर के भौगोलिक इलाके और फौजी कार्रवाई की स्थिति के बारे में कुछ पता नहीं है और सरकार खंडन और लीपापोती करके कन्नी काटती रही है. मैं यहां चांग चेनमो सेक्टर के सामरिक महत्व के बारे में और चीन के अडिग रुख के कारणों के बारेमें बताने की कोशिश करूंगा.


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चांग चेनमो सेक्टर का महत्व

चांग चेनमो सेक्टर अक्साई चिन के दक्षिणी भाग के लिए दरवाजे के जैसा है और यही भारतीय सेना और चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच 21 अक्टूबर 1959 (राष्ट्रीय पुलिस दिवस) को पहली टक्कर हुई थी, जब सीआरपीएफ के 20 जवानों के गश्ती दल को कोंग्का ला में घेर लिया गया था. सीआरपीएफ के 10 जवान मारे गए थे और सात को युद्धबंदी बना लिया गया था. इस सेक्टर में एलएसी और 1959 वाली दावा रेखा एक ही है और मई 2020 से किसी इलाके को लेकर कोई भिन्न धारणा नहीं थी. पीएलए ने 1962 में इस इलाके पर कब्जा कर लिया था लेकिन युद्ध के बाद वह वापस 1959 वाली दावा रेखा पर लौट गई थी.

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Annotated Google Earth Image Chang Chenmo Sector.
चांग चेनमो सेक्टर की एनोटेट गूगल अर्थ इमेज।

चांग चनमों क्षेत्र की गूगल इमेज इस सेक्टर से तीन रास्ते अक्साई चिन की ओर जाते हैं. एक रास्ता कोंग्का ला से पूरब की ओर लनक ला तक जाता है, जिससे तिब्बत-झिंजियांग नेशनल हाइवे जी-219 गुजरता है. दो रास्ते कुगरंग नदी और चांगलुंग नाला (पीपी-17 और 17ए) होते हुए उत्तर की ओर जाते हैं और जियानन दर्रे से (पीपी-16 और 15) होते हुए 30 किमी ऊपर तक जाते हैं. दोनों रास्ते साम्ज़ुंग्लिंग के करीब गलवान नदी के ऊपरी क्षेत्रों तक जाते हैं. 1962 में हमारी सेना ने चांगलुंग नाला से होते हुए गलवान तक एक चौकी बनाई थी जहां जोरदार लड़ाई लड़ी गई थी. इन रास्तों का इस्तेमाल करके हम गलवान नदी घाटी के 70-80 किमी क्षेत्र को अलग कर सकते हैं और पीएलए को पीपी-14 से गुजरने वाली दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड को अलग करने से रोक सकते हैं.

चीन की तरफ से उत्तर-पूर्व और पूरब की ओर से दो हाइवे अक्साई चिन की ओर जाते हैं. उत्तर की ओर दो सड़कें इसे गलवान नदी घाटी से जोड़ती हैं ताकि दोहरा उपयोग किया जा सके. दक्षिण की ओर से यह खुर्नक फोर्ट जाने वाली सड़क से जुड़ा है और अब पैंगोंग त्सो के दक्षिण में बनाए गए नये पुल के जरिए भी जुड़ गया है और दोहरे इस्तेमाल की सुविधा हो गई है. चांग चेनमो सेक्टर पैंगोंग त्सो के उत्तरी सिरे पर लुकुंग से 100 किमी लंबी सड़क से जुड़ा है. यह सड़क मार्सिमीक ला दर्रे से गुजरती है. इस सड़क को हॉट स्प्रिंग्स, सोग्तसालू, और एनेला दर्रे से होते हुए फोब्रांग पर काटा जा सकता है. 1959 की दावा रेखा नक्शा बनाने की कलाबाजी की देन है जिसमें इलाके का अनूठा आकलन किया गया है. अगर हम  इसमें फेरबदल करने के लिए आक्रामक कार्रवाई नहीं करते तो हमारी मुख्य रक्षा पंक्ति के बड़े इलाके को अलग-थलग करके उन पर कब्जा किया जा सकता है. इलाके का आकलन और हमारी सेना की तैनाती हमें मजबूर करती है कि हम अपनी मुख्य रक्षा पंक्ति ऊपरी इलाकों पर बनाएं जो कि इस क्षेत्र में एलएसी से 80 किमी अंदर हैं.

इस विशाल अग्रिम क्षेत्र की रक्षा और आक्रामक कार्रवाई के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए हम 2007 से एलएसी तक सड़क बनाने की तेज कोशिश कर रहे हैं. पिछले आठ वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार ने सड़कों और सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर ज्यादा ज़ोर दिया है. हमने कुगरंग नदी क्षेत्र में 40 किमी लंबी सड़क बना ली है जिसके साथ दो फीडर रोड पीपी-16 सेजियनन दर्रे व पीपी-15 तक और पीपी-17 सेपीपी-17ए तक बनाई जा रही थी. हमने संवेदनशील क्षेत्रों में सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से पहले सेना न तैनात करने की बुनियादी भूल की. हम  इतने लापरवाह थे कि हमने इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस की चौकियों को भी शुरुआती रक्षा के लिए तैयार नहीं किया. समय-समय पर गश्त लगाने का काम चलता रहा, जैसे 60 साल से चलता रहा है. हम शायद यह मान बैठे थे कि सेना तैनात करने से चीन सवाल उठाएगा. लेकिन सवाल उठाए गए और चीन ने सीमा पर विकास के कामों को खतरा मान लिया. यह अप्रैल और मई 2020 में पीएलए की आक्रामक कार्रवाई का तात्कालिक बहाना बना.

हॉट स्प्रिंग्स में ऑपरेशनल स्थिति

मई 2020 में, करम सिंह हिल, गोगारा/पीपी-17 और कोंग्का ला के पश्चिम में हॉट स्प्रिंग्स में भारत की आईटीबीपी की चौकियां थीं. यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि सरकारी स्रोत और मीडिया भी एक ठिकाने के रूप में ‘हॉट स्प्रिंग्स’ का चलताऊ इस्तेमाल करता रहा है. मूल नाम चांगलुंग नाला में एलएसी से चीन के अंदर के इलाके में गरम पानी के झरने के नाम पर बनाया गया है. कोंग्का ला से पश्चिम में हॉट स्प्रिंग्स नाम की केवल एक चौकी है जिसे गूगल मैप्स में गलत नाम ‘गोगरा’ दिया गया है. गोगरा करम सिंह हिल के उत्तर में पीपी-17 के पास मशहूर चारागाह है.

यह इलाका जैसा है और वहां हमारी सेना इतनी कम संख्या में तैनात है कि पीएलए ने इस पर आसानी से कब्जा कर लिया. जियानन दर्रा/पीपी-15 से पीएलए ने पीपी-15 और 16 के बीच करीब चार किमी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है. चांगलुंग नाला में करीब तीन किमी क्षेत्र पर कब्जा किया और वह गोगरा/पीपी-17 पर हमारी चौकी के ठीक सामने आ गई. इन दो अतिक्रमणों ने पीपी-15 और पीपी-17 तक फीडर रोड बनाने का काम रोक दिया. जिन ऊपरी क्षेत्रों पर कब्जा किया गया है उनसे नीचे कुगरंग नदी घाटी पर नियंत्रण रखा जा सकता है और संघर्ष बढ़ने पर उन पर कब्जा करने का मजबूत आधार बन सकते हैं. चीन का दावा है कि कब्जे वाले क्षेत्र वास्तव में एलएसी/ 1959 वाली दावा रेखा की सीध में हैं यानी इसका मतलब यह हुआ कि भारत ने बीते वर्षों में सीमा का उल्लंघन किया. हॉट स्प्रिंग्स में पूरब और दक्षिण की ओर से भी छोटी-मोटी घुसपैठ की गई ताकि कोंग्का ला की ओर सड़क बनाने से रोका जा सके. इस इलाके से सेना की वापसी जुलाई 2020 में हुई.

31 जुलाई 2021 को कोर कमांडर स्तर की 12वीं वार्ता में चीन और भारत ने गोगरा/पीपी-17 इलाके से सेना हटाने का फैसला किया. पीएलए पीपी-17ए पर एलएसी से पीछे चली गई है. मोदी सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया है, लेकिन मेरा आकलन है कि पीपी-17 और 17ए के बीच बफर ज़ोन बनाने पर सहमति हुई है, जो कि पूरी तरह हमारे क्षेत्र के अंदर है. मेरा मानना है कि इस इलाके से सेना हटाने का फैसला चीन ने इसलिए किया कि वह सामरिक रूप से मजबूत स्थिति में है और जब चाहे दोबारा कब्जा कर सकता है. 10 अक्टूबर 2021, 12 जनवरी 2022, 11 मार्च 2022 को कोर कमांडरों की तीन वार्ताएं जियानन दर्रे/पीपी-15 से सेना हटाने के सवाल पर हुईं लेकिन गतिरोध नहीं टूटा. चीन पीपी-15 से 17 के बीच 30 किमी लंबा बफर ज़ोन बनानेका दबाव डाल रहा है, जो कि पूरी तरह हमारे क्षेत्र के अंदर होगा. यह हमें मंजूर नहीं है. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने इस प्रस्ताव की खबर दी है.

चीन स्पष्ट अल्पकालिक रणनीतिक लक्ष्य लेकर चल रहा है ताकि संवेदनशील इलाकों में सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को रोका जा सके और उन इलाकों में 1959 वाली दावा रेखा को मजबूत किया जा सके जो मई 2020 से पहले हमारे नियंत्रण में थे या जहां हम गश्त कर रहे थे. चीन यह सिंधु घाटी में डेमचोक सेफु कचेतक के क्षेत्र, जिसे बसे हुए गांवों के कारण ऐतिहासिक रूप से अछूता छोड़ दिया गया है, को छोड़कर सभी क्षेत्रों में बिना गोली चलाए ऐसा करने में सफल रहा है.

चीन ने पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे के मामले में समझौता करने को सहमत हो गया, क्योंकि कैलाश रेंज को सुरक्षित करने के बाद हम इलाके के लिहाज से मजबूत स्थिति में थे. उसने इसे ‘अकेला’ समझौते के रूप में देखा और वह देप्सांग मैदानी क्षेत्र, पीपी-15, और चार्डिंग-निंग्लुंग नाला से अपनी सेना तब तक नहीं हटाएगा जब तक हम अपने क्षेत्र में विशाल बफर ज़ोन नहीं बनाते. क्षमता में अंतर, प्रतिकूल भू-भाग, और सीमित युद्ध का जोखिम सैन्य विकल्प को लगभग असंभव बनाते हैं. अब कड़वे घूंट पीकर रह जाना ही होगा और वार्ताओं के जरिए बफर जोनों के मामले में ज्यादा से ज्यादा हासिल करने की ही कोशिश की जा सकती है, जब तक कि हम चीन को आर्थिक और सैनिक चुनौती देने के लायक नहीं बन जाते.

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(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)


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