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Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतहुसैन ओबामा, मोदी UCC पिच, बकरीद बकरी-टीवी चैनलों की मुसलमानों के प्रति बेवजह की सनक

हुसैन ओबामा, मोदी UCC पिच, बकरीद बकरी-टीवी चैनलों की मुसलमानों के प्रति बेवजह की सनक

भारत के अखबार भारतीय टीवी समाचारों की तरह ‘मुसलमान’ के पीछे नहीं भागते और कहानियां कुछ भी हो सकती हैं जब तक कि मुसलमान शामिल हों और उनका नाम लिया जा सके.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद, अखबारों के नहीं केवल टीवी के सबसे बड़े सितारे बनने के लिए मुसलमानों ने क्या किया है?

क्यों, क्या सच में कुछ भी नहीं. मीडिया ने उनके साथ यही किया है. टेलीविजन समाचार चैनल उनके बिना नहीं रह सकते, हां, अखबार ऐसा कर सकते हैं.

यही कारण है कि मंगलवार को भोपाल में अपने भाषण के दौरान जब प्रधानमंत्री ने कहा कि विपक्षी दल “हम पर…लेकिन सच्चाई यह है कि ये लोग ही मुसलमान, मुसलमान…” कहते हैं, तो वे पूरी तरह सटीक नहीं थे. टीवी समाचार – अंग्रेज़ी से अधिक हिंदी समाचार चैनल – हर दिन, साल के 365 दिन ‘मुसलमान मुसलमान’ का जाप करते हैं.

और अक्सर वह (टीवी चैनल) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित सभी दलों के राजनेताओं और बजरंग दल या ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) जैसे संगठनों का हवाला देकर ऐसा करते हैं.

प्रिंट मीडिया, कम से कम अंग्रेज़ी डिपार्टमेंट, मुसलमानों या हिंदुओं के संदर्भ में बहुत कंजूस है. क्या यह अंतर इसलिए है क्योंकि “मुसलमान” टीवी के दर्शकों को आकर्षित करता है या इसलिए कि यह बहुसंख्यकवादी राजनीतिक आख्यान में सटीक रूप से फिट बैठता है?

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कारण जो भी हो, यह हफ्ता एक अच्छा उदाहरण रहा है: सबसे पहले भारत में “मुसलमानों” पर सीएनएन इंटरनेशनल में बराक ओबामा की टिप्पणी पर विवाद हुआ था. इसके बाद मोदी (इंडिया टुडे) ने अपने भोपाल भाषण में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को “2024 के एजेंडे” में शामिल किया. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की “भारत में कई हुसैन ओबामा” के बारे में उपहासपूर्ण टिप्पणी समाचार चैनलों पर एक हाई ऑक्टेव हेडलाइन बन गई थी.

प्रधानमंत्री की ‘एक राष्ट्र, एक कानून’ की वकालत एक बड़ी खबर है और इसे अखबारों में भी जगह मिली है, लेकिन ओबामा की घटना को हिंदुस्तान टाइम्स, द हिंदू, द टाइम्स ऑफ इंडिया में बमुश्किल ही जगह मिली है और जब सोमवार को ऐसा हुआ, तो इसकी वजह केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा ओबामा को डांटा जाना था.

एक बार जब उन्होंने बोल दिया, तो समाचार चैनलों को उनके शब्द मिल गए: टाइम्स नाउ ने कहा, “ओबामा के दोहरे भाषण का पर्दाफाश हो गया…निर्मला ने अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति पर तंज कसा”. इसके सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ नवभारत ने ओबामा का खंडन करने के लिए एक मुस्लिम एंगल ढूंढा: “मोदी के साथ मुसलमान.”

कुछ समाचार चैनलों ने ओबामा किस्से पर मंडराती साजिश की काली छाया का पता लगाया: इंडिया टीवी ने कहा, “मुसलमान पर टक्कर, अंतर्राष्ट्रीय अध्याय”. जो हमें किसी और के नहीं बल्कि अर्नब गोस्वामी के पास लेकर आया — “बराक ओबामा टुकड़े-टुकड़े गैंग में शामिल हो रहे हैं,” उन्होंने चिल्लाते हुए पूर्व राष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को धूमिल करना शुरू कर दिया और उन्हें “खून का प्यासा” कहा, जिनके हाथों किसी और की तुलना में अधिक “मुस्लिमों की मौतें” हुई हैं.

इस तरह का अभिनय केवल दर्शकों को आकर्षित करने के लिए हो सकता है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित बीजेपी के अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने “ओबामा जी” की जमकर तारीफ की और टीवी ने कर्तव्यपरायणता से उनमें से प्रत्येक के बारे में ज़ोर से गाना गाया. ओबामा की “आलोचना” करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे असामान्य शब्द समाचार चैनल यूएससीआईआरएफ के पूर्व आयुक्त जॉनी मूर का था, जिन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया में भी अपनी जगह बनाई, जहां अखबार ने कहा कि वह “ओबामा से मुकाबला करते हैं”.

अन्यथा, प्रिंट मीडिया में ओबामा के प्रति उत्साह की अजीब कमी थी, शायद इसलिए, जैसा कि द इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय ‘ओबामा कोट अनकोट’ में लिखा था, “दिल्ली प्रतिष्ठान” की प्रतिक्रियाएं “अनएक्सपेक्ट्ड” थीं, भले ही पूर्व यू.एस. नेता का “समय और लहजा अजीब लग रहा था”.

जब मोदी अमेरिका में थे, तब ओबामा ने सार्वजनिक रूप से वही कहना क्यों चुना जो उन्होंने पहले कहा था, यह एक रहस्य है, लेकिन सीएनएन इंटरनेशनल और संवाददाता क्रिस्टियन अमनपौर इसे एक अंतरराष्ट्रीय घटना बनाने में सफल रहे.


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पीएम की पिच

जैसा कि उम्मीद थी, पीएम मोदी का “110 मिनट का स्टनर” जिसमें उन्होंने विपक्ष का “मज़ाक” बनाया, उनके भाषण के बाद (सीएनएन न्यूज़ 18) टीवी पर एकमात्र समाचार चैनल था. हमने रीप्ले सुना और फिर “मोदी बनाम बाकी” (सीएनएन न्यूज़ 18) पर चर्चा शुरू की. भारत एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, “मुसलमान भाई बहन” के कई संदर्भ थे, जो स्वाभाविक था क्योंकि प्रधानमंत्री ने उन्हें काफी समय दिया था — “पासमांदा मुस्लिम के साथ…बीजेपी का हाथ”.

जबकि टीवी चैनलों ने विपक्ष पर मोदी के “तीखे हमले” (टाइम्स नाउ) को भी उजागर किया, अखबारों ने इसे उनके भाषण में समान नागरिक संहिता के एंगल के साथ जोड़ दिया: टीओआई की हेडलाइन थी, “पीएम ने यूसीसी के लिए वकालत की, विपक्ष की ‘वोट बैंक राजनीति’ की आलोचना की”.

अखबारों ने सफलतापूर्वक अपने भाषण में मोदी की टिप्पणियों को स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने यूसीसी का समर्थन किया था. द हिंदू, टीओआई और एक्सप्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण की विस्तृत पृष्ठभूमि को प्रकाशित किया.

यह खबर नहीं है

अखबार टीवी समाचारों की तरह ‘मुसलमान’ के पीछे भागा नहीं करते हैं और टीवी कहानियां तब तक अंधाधुंध हो सकती हैं, जब तक इसमें मुसलमान शामिल हैं और उनका नाम लिया जा सकता है. इसलिए, “औरंगजेब बनाम सावरकर” अचानक टाइम्स नाउ नवभारत पर दिखाई दिया; इंडिया टीवी के पास एक युवा हिंदू लड़की की कहानी थी जिसने इस्लाम कबूल कर लिया था, लेकिन फिर उसके पति ने उसे छोड़ दिया और हिंसा और जान से मारने की धमकी दी.

बुधवार की सुबह ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ (टीवी 9 भारतवर्ष) की “लिफ्ट में बकरा” वाली थी और जल्द ही इंडिया टुडे ने भी इस जानवर के मुद्दे को उठाया: “बकरी को लेकर युद्ध”, इसमें बताया गया कि मुंबई में एक मुस्लिम परिवार एक बकरी लेकर आया था. बकरीद के लिए एक अपार्टमेंट बिल्डिंग में स्थित उनके फ्लैट और अन्य (हिंदू) निवासियों ने “जय श्री राम” के नारे के साथ विरोध जताया था.

यह टेबलॉयड पत्रकारिता है लेकिन यह ‘मुसलमान’ पर भी निशाना साधती है. क्या यह भी खबर है?

यदि कहानियां होनी ही हैं, तो बद्रीनाथ जैसी कहानियां क्यों नहीं हो सकतीं, जहां (न्यूज़ 24) मुस्लिम और हिंदू मिले और तय किया कि बकरीद जोशीमठ में मनाई जाएगी, बद्रीनाथ में नहीं?

(शैलजा बाजपेई दिप्रिंट की रीडर्स एडिटर हैं. कृपया अपनी राय, शिकायतें readers.editor@theprint.in पर भेंजे. लेखिका के विचार निजी हैं और उनका ट्विटर हैंडल @shailajabajpai है.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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