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Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतखान मार्केट, जॉर्ज सोरोस गैंग, बुलडोजर राजनीति- TV की दुनिया के ये हैं कुछ पसंदीदा शब्द

खान मार्केट, जॉर्ज सोरोस गैंग, बुलडोजर राजनीति- TV की दुनिया के ये हैं कुछ पसंदीदा शब्द

राजनीति ही सब कुछ है. यह टीवी समाचारों पर खूब चलता है. सब कुछ एक लड़ाई है 'सिसोदिया बनाम बीजेपी', 'आप बनाम केंद्र' से लेकर 'योगी बनाम माफिया राज' तक.

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शब्द में क्या है? क्यों, सब कुछ.

और इसलिए होली के बाद, आइए कुछ पसंदीदा शब्दों और वाक्यांशों पर नज़र डालते हैं जो हम भारत में टेलीविजन समाचार चैनलों पर अक्सर सुनते हैं.

डिस्क्लेमर: यह लेख मजाक में लिखा गया है. वास्तविकता से इसका कोई लेना देना नहीं है अगर इसमें कोई भी समानता मिलती है तो यह पूरी तरह आकस्मिक है.

सबसे पहले ‘ब्रेकिंग न्यूज’, जो आपकी स्क्रीन पर इतनी बार चमकती है कि यह आश्चर्य की बात है कि हमने उन्हें टुकड़े-टुकड़े में नहीं तोड़ा है- ये ‘टुकड़े-टुकड़े’ बिट्स, जो टीवी न्यूज की कमजोरी है. लेकिन इसके बारे में और भी बहुत कुछ पर बात करेंगे जल्द ही.

यह ‘ब्रेकिंग न्यूज’ तब भी ‘लाइव’ है जब यह मृत्यु के बारे में है (क्षमा करें, बहुत घटिया मजाक). यह कभी-कभी ‘एक्सक्लूसिव’ और ‘केवल आपके चैनल पर’ होता है- ये अलग बात है कि हर दूसरा चैनल उसी समय में एक ही एक्सक्लूसिव न्यूज चला रहा होता है.

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ऐसे मौके भी आते हैं जब ब्रेकिंग न्यूज ‘विस्फोटक’ में बदल जाती है- ‘विश्व युद्ध’ (टीवी9 भारतवर्ष) के दौरान यूक्रेन में एक ताजा बमबारी और जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा मनीष सिसोदिया की पूछताछ, जो कि ‘सूत्रों’ द्वारा उजागर किए गए. कौन हैं ये रहस्यमय ‘सूत्र’? ठीक है, हम कभी भी सटीक रूप से नहीं जानते, क्योंकि इन ‘सूत्रों’ के स्रोत की शायद ही कभी पहचान की जाती है. उदाहरण के लिए, इस मामले में, क्या वे सीबीआई के ‘सूत्र’ हैं?

अगला ‘इकोसिस्टम’ वो है जो ये चैनल बनाते हैं. यह अंग्रेजी समाचार एंकरों के होठों पर सबसे लोकप्रिय शब्द है, जब भी उन्हें अपने झुंझलाहट को दिखाना होता है- “छद्म-धर्मनिरपेक्ष वाम-उदारवादी”. चूंकि इस विशेष प्रजाति के सभी सदस्यों को समान राजनीतिक राय रखने वाला माना जाता है, इसलिए आश्चर्य है कि क्या हमें इसे ‘इको-सिस्टम’ नहीं कहना चाहिए.

न्यूज चैनलों में ‘इकोसिस्टम’ के पर्यायवाची शब्द: हालांकि ‘लुटियन्स दिल्ली’ अभी राजपथ के कर्तव्य पथ में बदलने के बाद से थोड़ा बाहर हो गया है. और इसके बदले ‘लुटियंस’ ने कई और गिरोहों को जन्म दिया है जिसमें ‘खान मार्केट गैंग’, जो थोड़े समय के लिए ‘जॉर्ज सोरोस गैंग’ में भी बदल गया. और फिर एक मोस्ट वांटेड गैंग भी है- हां, आपने सही अनुमान लगाया- एकमात्र ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग.

इस समूह के गैंग-स्टर ‘देशद्रोही’ या ‘मोदी-विरोधी’ हैं, जो समाचार चैनल आपको बताते हैं, एक ही बात है. इसके अलावा, वे ‘बातचीत’ करते हैं, जहां सरकार उनपर निशाना साधती है: ‘अनुराग ठाकुर ने राहुल गांधी की भारत विरोधी बात पर निशाना साधा’ (रिपब्लिक टीवी).

ओह, कहीं हम भूल न जाएं, ये गिरोह तब ‘लॉबी’ बन सकते हैं जब न्यूज एंकर या रिपोर्टर उनके प्रति थोड़ी अधिक सहानुभूति महसूस कर रहे हों. और ‘टूलकिट’ का क्या हुआ? ऐसा लगता है कि अभी के लिए ‘इकोसिस्टम’ से बाहर हो गया है.

राहुल गांधी का उल्लेख करें और यह पूरे ‘परिवार’ और पार्टी की शुरुआत करता है: रिपब्लिक टीवी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नाम ‘वाड्रा कांग्रेस’ कर दिया है. यह ‘वंशवाद’ की राजनीति के लिए ज़िम्मेदार है. टाइम्स नाउ का कहना है, ‘राहुल गांधी ने भारत को फिर नीचा दिखाया.’

कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसने अभी तक टेबल मैनर्स भी नहीं सीखा है. पवन खेड़ा अक्सर अपनी तीखी टिप्पणियों से प्रधानमंत्री का ‘अपमान’ करते हैं.


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ड्रमबीट राजनीति- यह कौन बेहतर करता है?

भारतीय टीवी समाचारों पर जो कुछ भी होता है वह एक लड़ाई है, ‘फेस ऑफ’- यह हमेशा ‘सिसोदिया बनाम बीजेपी’, ‘आप बनाम केंद्र’ से लेकर योगी बनाम माफिया राज’ या ‘राष्ट्रवाद बनाम टुकड़े गैंग’ (टाइम्स नाउ) होता है. यह वास्तव में एक बहुत ही निराशाजनक तस्वीर है. रूस और यूक्रेन के बीच वास्तविक ‘युद्ध’ के अलावा, हिंदी और अंग्रेजी समाचार चैनलों से युद्ध की गूंज सुनाई दे रही है: ‘महायुद्ध’, ‘धर्म युद्ध’, ‘महासंग्राम’ एक साथ चल रहे हैं. आजकल, ‘दिल्ली दंगल’ टीवी समाचारों पर सबसे गर्म शो है क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच मामला गर्मा गया है.

संसद के अंदर और बाहर, ‘हाई ड्रामा’, ‘हाई ऑक्टेन ड्रामा’ है जो टीवी स्टूडियो में ‘न्यूज़क्वेक’ (इंडिया टुडे) की ओर ले जाता है. वैकल्पिक रूप से, देश के किसी कोने में हमेशा ‘हमला’, ‘हंगामा’, ‘हल्ला बोल’ होता है जो इस महान राष्ट्र की शांति के साथ ‘कहर बरपाता’ है. स्वाभाविक रूप से, यह प्राइम-टाइम टीवी बहसों में ‘वाक्य युद्ध’ की ओर ले जाता है.

समाचार चैनल विपक्षी दलों द्वारा रची जा रही साजिश और हर कुर्सी के नीचे घोटालों को देखते हैं- दिल्ली की सत्ता की सीट पर ‘शराबी कांड’ (टीवी 9) के बारे में सोचें.

यह सब विपक्षी दलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उस पसंदीदा शब्द की ओर ले जाता है जिसने टीवी समाचारों की सुर्खियों में अपना रास्ता खोज लिया है: ‘प्रतिशोध की राजनीति’.

आह, राजनीति. राजनीति ही सब कुछ है- यह टीवी समाचारों का ड्रमबीट है. स्टूडियो में ‘सियासी हमला’ अक्सर इतनी जोर से बजाया जाता है कि ‘हल्ला बोल पॉलिटिक्स’ बन जाता है. और क्या कभी किसी ने कल्पना की थी कि मशीनरी का एक टुकड़ा ‘बुलडोजर राजनीति’ को जन्म देगा- जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वस्तुतः अपना ब्रांड बना लिया है और अब शेष भारत इसे अपना रहा है?

जब सुर्खियों की बात आती है तो हिंदी समाचार चैनल कहीं अधिक आविष्कारशील और मनोरंजक हो सकते हैं. उनकी अनूठी विशेषता तुकबंदी है: ‘पहले बुलडोजर अब एनकाउंटर’, ‘8 दिन 2 एनकाउंटर, अगला किसका नंबर’, ज़ी न्यूज़ पर यह चलाया गया. एक और पर नजर डालिए, ‘डिप्टी सीएम अंदर, अगला किसका नंबर?’

ओह ठीक है, बहुत हो गया यह शब्द खेल, हमारी संख्या ऊपर है, दोस्तों. हम अगले सप्ताह को थोड़ा और गंभीरता से लेंगे. क्यों ठीक है न…

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन-कृष्ण मुरारी)


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