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Friday, 26 April, 2024
होममत-विमतकोविड-19 के कारण स्वास्थ्य क्षमताओं की हकीकत और सूचनाओं का कुप्रबंधन उजागर हुआ है

कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य क्षमताओं की हकीकत और सूचनाओं का कुप्रबंधन उजागर हुआ है

जैसे युद्ध के लिए भावी तैयारियां की जाती हैं, वैसे ही आपदाओं के लिए भी तैयारी करनी होगी. इसके लिए दुनिया की श्रेष्ठतम दिमागों को खुद को झोंकना होगा.

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कोविड-19 महामारी ने वैश्विक जन-जीवन को बदल कर रख दिया है. राष्ट्र अपनी सीमाओं को बंद कर रहे हैं. कुछ देशों में लॉकडाउन है और दूसरों में सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध है. कारोबारियों के व्यापार पर असर पड़ रहा है. सबसे ज़्यादा प्रभावित परिवहन, पर्यटन, होटल और रेस्तरां जैसी चीजें हुई हैं. विश्व अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में प्रवेश कर रही है. मौजूदा संकट इतना अभूतपूर्व है कि सरकारों और समाजों को इस वैश्विक महामारी का सामना करने के लिए पुराने उदाहरणों को पीछे छोड़कर सोचना होगा.

आम तौर पर आपदा प्रबंधन का मतलब एक सीमित भौगोलिक क्षेत्र के भीतर विकट रूप ले चुकी किसी घटना का जवाब देने से होता है. सुनामी, सूखे और बाढ़ की भयंकर स्थितियां, तूफान, भूकंप और परमाणु संयंत्र में दुर्घटना आदि आपदाओं का क्षेत्र सीमित ही होता है. अधिकांश आपदाएं, चाहे वे भू-भौतिकीय, जलवायु-संबंधी या मौसमीय मूल की हों, का सीमित भौगोलिक प्रभाव होता है. ऐसी आपदाओं का प्रभाव क्षेत्र सीमित होने के कारण इनसे होने वाले नुकसान की भरपाई देश या अन्य जगहों के संसाधनों को एकत्र करके की जा सकती है. जैसे-जैसे आपदाओं का अनुभव बढ़ा है, वैसे-वैसे उनसे निपटने के तरीकों में भी निरंतर सुधार हुआ है. उदाहरण के लिए, भारत के पूर्वी तट पर आए गंभीर चक्रवात से तटीय गांवों में हज़ारों लोगों की जान जा सकती थी लेकिन मोबाइल फ़ोन पर समय रहते दी गई अग्रिम चेतावनी और ठीक वक़्त पर प्रभावित आबादी को खाली कराने से जान-माल का नुकसान न के बराबर हुआ. हाल के दशकों में संक्रामक रोगों और यहां तक कि महामारियों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर शायद ही कोई असर रहा हो.

चीन ने कोरोनावायरस को नए किस्म का वायरस बताने वाले एक डॉक्टर की रिपोर्ट को शुरुआती स्तर पर मानने में देरी की. इसके साथ ही शुरुआती स्तर पर वायरस से जुड़ी गलत जानकारियों का प्रसार हुआ. ये दोनों ही बातें गैर-जिम्मेदाराना थीं और इससे बचा जा सकता था. बात यहीं खत्म नहीं होती. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जिस तरह बीच-बीच में विरोधाभासी सुझाव सरकारों को दिए, उससे उसकी कार्यशैली पर भी सवाल उठते हैं.

खुद सरकारों को अपनी रणनीति में समय-समय पर फेर-बदल करने पड़े हैं और ये स्थिति अब तक जारी है. भविष्य के लिए सबसे बड़ा सबक ये है कि स्थिति की गंभीरता को छिपाने या कम करके दिखाने के बजाय पारदर्शी ढंग से उसे प्रेषित किया जाए. दूसरी चुनौती इससे भी अधिक बड़ी है- अब हमें अधिक प्रभावी तरीकों के लिए विश्व के सर्वोत्तम विशेषज्ञों की आवश्कयता है. ऐसे विशेषज्ञ जो अप्रत्याशित चीज़ों का सामना करने के लिए तैयार हों और जल्द से जल्द किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर उस पर काम करें.


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आईपीसीसी की रिपोर्ट एक अच्छा उदाहरण है. हालांकि ऐसा कहना आसान है और करना कठिन. यह कठिनाई इस बात से और बढ़ जाती है कि हमें नतीजे बहुत जल्दी चाहिए. हालांकि शुरुआती देरी के बाद अब इस दिशा में काम हो रहा है. बेहतर, सस्ती और तेज नतीजे देने वाली टेस्टिंग किट सामने आई हैं. मौजूदा दवाओं के साथ उपचार के सभी संभव तरीकों को आजमाया जा रहा है और वैक्सीन विकसित करने पर काम पहले से कहीं अधिक तेजी से हो रहा है. जैसे-जैसे सरकार की रणनीति में फेर-बदल हुए हैं, वैसे-वैसे वास्तविक आंकड़ों के आधार पर विभिन्न रणनीतियों की प्रभावोत्पादकता पर भी जरूरी सबक लिए जा रहे हैं.

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एक कड़वी वास्तविकता जिसका दुनिया भर में लोग सामना कर रहे हैं, वह यह कि अमेरिका और यूरोप जैसी जगहों की स्वास्थ्य प्रणालियों में भी अतिरिक्त क्षमताओं का अभाव है. न्यूयॉर्क और लंदन जल्द से जल्द सघन स्वास्थ्य सुविधाओं वाले अस्पताल बनाने की कोशिश में है. वेंटिलेटर नहीं हैं और उनका उत्पादन बढ़ाया जा रहा है. यहां तक कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मास्क और दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक चीज़ों की आपूर्ति भी एक चुनौती है जिसके उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता है. भविष्य के लिए एक स्पष्ट सबक ये है कि अतिरिक्त स्वास्थ्य सेवा क्षमता के साथ-साथ वर्तमान संकट जैसी स्थिति से निपटने के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी हो. भारत को अपनी अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा क्षमताओं को युद्ध स्तर पर कई गुना बढ़ाने की आवश्यकता है.

वर्तमान संकट ने दिखाया है कि भारत के लिए एक ऐसे संकट से निपटना कितना मुश्किल है जिसने किसी क्षेत्र विशेष को नहीं बल्कि पूरे देश को अपनी चपेट में लिया हुआ है. वर्तमान संकट में ड्यूटी पर मौजूद चिकित्साकर्मियों और पुलिसकर्मियों के लिए निजी सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी है. इन उपकरणों की आवश्यक आपूर्ति के लिए ऐसे भंडार बनाने की जरुरत है जिसकी निरंतर सक्रिय ढंग से निगरानी हो सके. इन उपकरणों के लिए ऐसी आपूर्ति चेन को भी बनाए रखने की आवश्यकता है जिसमें क्षेत्रीय व्यवधान कम से कम हों. आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रक्रियाओं का अपनी जगह होना बेहद जरूरी है.


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जब कोई संकट राष्ट्रव्यापी होता है आवश्यक चीजों की आपूर्ति करने में कठिनाई आती है क्योंकि कोई भी क्षेत्र सामान्य नहीं रह जाता. इस तरह के आकस्मिक हालातों के लिए भंडार और बुनियादी ढांचे का होना आवश्यक हो जाता है. वर्तमान संकट को ध्यान में रखते हुए आवश्यक दवाओं के पर्याप्त स्टॉक को बनाए रखने और उसके उत्पादन को कई गुना बढ़ाने की ज़रूरत है. इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति चेन में कोई बाधा न आए.

वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय दवा उद्योग चीन के सक्रिय दवा एजेंटों (एपीआई) की आपूर्ति पर पूरी तरह से निर्भर है. मुख्य सबक यह है कि आपूर्ति और उत्पादन की सुरक्षा के लिए आपूर्ति का एक वैकल्पिक भौगोलिक स्रोत होना चाहिए. यही बात अन्य तरह के सामानों के लिए भी सही है. वर्तमान संकट के दौरान वैकल्पिक स्रोत ना होने का ही नतीजा था कि जब चीन से वस्तुओं की आपूर्ति बंद हुई तो दुनिया भर में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति चेन बाधित हो गई. आपदा तैयारी का एक प्रमुख घटक यह है कि मूल्य चेन के किसी भी स्तर पर आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति पर किसी देश का एकाधिकार न हो. भारत के पास ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिसमें किसी संकट के समय में भी आवश्यक वस्तुओं की उत्पादन और आवाजाही निर्बाध चलती रहे.

सूचना प्रबंधन की चुनौती

वर्तमान महामारी के दौरान सूचना प्रबंधन की अतिरिक्त और विशिष्ट चुनौती भी सामने आई है. जैसे ही इस वायरस और इसके प्रसार के बारे में खबरें दुनिया भर में आईं, वैसे ही मीडिया और विशेषकर सोशल मीडिया में सूचनाओं, गलत सूचनाओं और विश्लेषण की बाढ़ आ गई. इसने और अधिक घबराहट फैलाई. इस इंटरनेट युग में आपदा प्रबंधन को सोशल मीडिया और वैश्विक कनेक्टिविटी की सच्चाई को समझकर ही आगे बढ़ना होगा. वर्तमान संकट में भय और घबराहट का माहौल कहीं ज्यादा है. कौन सोच सकता था कि अमेरिका और ब्रिटेन के स्टोर्स में टॉयलेट पेपर ख़त्म हो जाएंगे. वास्तव में इस मामले में सरकारें सच ही बयान कर रही थीं. असल चुनौती यह रही है कि किस तरह घबराहट के माहौल को कम किया और उसे सही परिप्रेक्ष्य में लाते हुए संतुलित किया जाए. उदाहरण के लिए, यह देखा जा सकता है कि इटली में पिछले साल किसी दिन विशेष में इस साल उसी दिन विशेष की तुलना में कितनी मौतें हुईं. यह भी देखा जा सकता है कि इस साल हुई कुल मौतों में कोविड-19 से कितनी मौतें हुईं. लेकिन इन सबके लिए सही सूचनाएं तलाशनी होंगीं.


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इस तरह मौजूदा संकट की तरह आए अप्रत्याशित संकट से भावी परिदृश्य की कल्पना और उससे जुड़ी तैयारियां करके ही निपटा जा सकता है. इनमें से प्रत्येक के लिए कुछ उचित समाधान पहले से ही तैयार किए जा सकते हैं. जैसे युद्ध के लिए भावी तैयारियां की जाती हैं, वैसे ही आपदाओं के लिए भी तैयारी करनी होगी. इसके लिए दुनिया की श्रेष्ठतम दिमागों को खुद को झोंकना होगा. दुनिया भर में अतिरिक्त स्वास्थ्य सेवा क्षमताएं निर्मित करनी होंगी. संचार और सूचनाओं का प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती होगी.

(अजय शंकर द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (टेरी)में प्रतिष्ठित फेलो हैं और अवनि रिसर्च एसोसिएट हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं)

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