अब, 2023 में क्या होने जा रहा है? अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से हासिल लाभों के बाद राहुल गांधी क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती साबित होंगे? और मोदी 2023 में क्या करेंगे?
राहुल की इस यात्रा पर गौर करने से तो यही लगता है कि कांग्रेस बड़ी उम्मीदों के साथ 2023 में कदम रखेगी. 2023 में कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों में उसका भाजपा से सीधा मुक़ाबले होगा. इन दोनों राष्ट्रीय दलों के लिए 2023 एक कठिन और समान रूप से चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है.
राहुल ने 150 दिनों में 12 राज्यों से होकर 3,500 किलोमीटर की यात्रा से अपनी शारीरिक क्षमता और फौलादी इरादों का प्रदर्शन करके कांग्रेस और दूसरे गैर-भाजपा दलों के नेताओं में अपनी धाक बढ़ाई है.
‘भारत जोड़ो यात्रा’ का वैचारिक महत्व
कांग्रेस ने इस यात्रा से यह प्रदर्शित करने की सबसे ऊर्जावान कोशिश की है कि वह भी भाजपा की तरह अखिल भारतीय स्तर का आयोजन करने में सक्षम है. राहुल के लिए परदे के पीछे से काम करने वालों ने एक कांग्रेस नेता को एक विशेष अवतार में पेश करके सोशल मीडिया का पूरा लाभ उठाया है और राहुल की ‘पप्पू’ वाली छवि को मिटाकर उन्हें करण जौहर की फिल्मों के उस नायक के रूप में पेश करने में सफलता पाई है, जो गठीली काया वाला है, वंचितों का हमदर्द है, सभी उम्र और तबके की महिलाओं की इज्जत करता है, और सबकी बातें ध्यान से सुनता है.
पुरानी पार्टी ने भी दिखा दिया है कि उसमें भीड़ जुटाने और ‘लोगो से जुड़ने’ का अपना सबसे बड़ा अभियान कुशलता से चलाने के लिए भरपूर साधन है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि विचारधारा के स्तर पर जो लड़ाई है उसमें राहुल ने बड़ी बढ़त ले ली है, लेकिन राजनीतिक निर्णय के मामले में वे अभी भी कमजोर बने हुए हैं.
भाजपा, प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस कांग्रेस के खिलाफ चाहे जो भी सार्वजनिक कटाक्ष करे मज़ाक उड़ाये या राजनीतिक जवाब दे , वे किसी विचारधारा को हल्के में नहीं लेते. राहुल की यात्रा को जमीनी राजनीति के बारे में उनकी समझ से ज्यादा विचारधारा के स्तर पर उनके प्रयासों के लिए याद किया जाएगा. उन्होंने गुजरात से दूर रहने का फैसला किया, वी.डी. सावरकर के खिलाफ बातें की और महाराष्ट्र में अपनी सहयोगी शिवसेना को नाराज किया, और अब वे जम्मू-कश्मीर में अपनी यात्रा से जुडने के लिए महबूबा मुफ्ती को न्यौता दे रहे हैं.
गौरतलब है कि राहुल ने अपनी यात्रा में भाजपा की विचारधारा के बारे में अपने सोच के मुताबिक उसको अपना एकमात्र निशाना बनाया. लेकिन वे भाजपा के रणनीतिकारों को गंभीर रूप से हतोत्साहित नहीं कर पाए हैं. इसकी वजह यह है कि कांग्रेस ने राहुल की यात्रा की मदद के बगैर हिमाचल प्रदेश का चुनाव जीता और भाजपा के मतदाता उनसे कुलमिलाकर दूर ही रहे.
बल्कि यात्रा के खिलाफ भाजपा के रोज-रोज के हमलों से प्रभावित भाजपा समर्थक मतदाताओं का एक तबका ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को ‘हिंदू विरोधी’ ही मानता है. एक टीवी चैनल पर यात्रा के फुटेज देखते हुए मुंबई में मोदी समर्थक एक फिल्म निर्माता-निर्देशक ने राहुल और कमल हासन की ओर इशारा करते हुए कहा, “राहुल केवल मशहूर हिंदू विरोधी ‘सेलिब्रिटियों’ को ही क्यों निमंत्रित कर रहे हैं?”
लेकिन मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा अपनी पुरानी दुश्मन कांग्रेस की कामयाबी की मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती, चाहे वह कामयाबी उसके लिए गंभीर राजनीतिक खतरा भी क्यों न हो.
समय हमेशा से राजनीति का सबसे अहम तत्व रहा है. राहुल जब श्रीनगर में अपनी यात्रा का सफल समापन करके दिल्ली के तुग़लक लेन पर अपने निवास में लौट आएंगे तब उन्हें महसूस होगा कि उन्होंने यह अभियान चलाने में थोड़ी देर कर दी.
यह भी पढ़ें: भारतीय पुलिस को महिलाओं की पसंद पर पहरा लगाना बंद कर देना चाहिए
चीनी संकट पर भाजपा का रुख
प्रधानमंत्री मोदी 2023 में एक और महत्वाकांक्षी योजना पर काम करेंगे. ‘जी-20’ की अध्यक्षता के इस साल में, मोदी भारत को अलग दिशा में ले जाना चाहते हैं और लोगों को एक नये विमर्श से जोड़ना चाहते हैं. मोदी के ऊपर चढ़ते केरियर के लंबे ग्राफ में जी-20 उनके लिए बड़े मौके से आया अवसर है.
मोदी सरकार किसी संकट पर किस तरह कार्रवाई करती है, इस पर भी गौर करना जरूरी है. उसका बुनियादी सिद्धांत यह है कि बहस को कभी अपने हाथ से फिसलने मत दो. संसद का शीतकालीन अधिवेशन शुरू होते ही चीन ने अरुणाचल प्रदेश में एलएसी पर भारतीय जमीन पर अतिक्रमण किया. उसकी कोशिशों को भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया.
भाजपा ने योजना बना ली थी कि यात्रा के कारण नये जोश में आई कांग्रेस संसद के सत्र के दौरान चीनी हमले तथा दूसरे मुद्दों को लेकर बहस में हावी न हो जाए. संसद का सत्र शुरू होते ही राहुल और कांग्रेस ने चीन के मुद्दे को लेकर सरकार पर जोरदार हमला बोला. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने वरिष्ठ मंत्रियों से कहा कि वे सत्र के दौरान नाश्ते पर चुनिंदा मीडिया को ब्रीफ़ करें. इन मंत्रियों को अपने मंत्रालय से इतर विषयों पर बोलने के लिए विस्तार से ‘जानकारियां’ दी गईं.
केंद्रीय पर्यावरण एवं श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव ने कई रिपोर्टरों को नाश्ते पर बुलाकर इंटरव्यू देने का सिलसिला शुरू किया. उन्होंने विस्तार से बताना शुरू किया कि सरकार गरीबों के कल्याण के लिए क्या-क्या कदम उठा रही है. मीडिया के साथ बातचीत में सभी कैबिनेट मंत्रियों के साथ एक राज्यमंत्री और दो भाजपा सांसद होते थे. ये राज्यमंत्री और सांसद बाद में और ज्यादा पत्रकारों में सूचनाएं प्रसारित करते. एक सप्ताह के अंदर दिल्ली के 100 से ज्यादा पत्रकारों को इन सूचनाओं से लाड़ दिया गया कि मोदी सरकार विकास के मोर्चे पर और शासन में सुधार तथा गरीबों की मदद के लिए क्या-क्या कर रही है.
यादव ने पूरे विस्तार से आंकड़े दिए कि मोदी सरकार ने कोविड महामारी के दौरान किस तरह मुफ्त राशन दिया और अभी भी जनकल्याण के कई उपायों को जारी रखे है और अभावग्रस्त लोगों को किस तरह पैसा उनके हाथ में पहुंचाया जा रहा है.
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जनजातियों के मसले पर बताया कि उनके लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं, तो रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सुशासन के कदमों के बारे में बताया. वैष्णव अपने मंत्रालय को छोड़ दूसरे विषयों के बारे में ज्यादा जानकार दिखे.
स्वास्थ्य मंत्री मनसूख़ मांडविया ने शिक्षा के बारे में बात की, तो जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत अर्थव्यवस्था पर बोले. नागरिक विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकार द्वारा किए गए अहम फैसलों की जानकारी दी. सूचना व प्रसारण और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर को राष्ट्रीय सुरक्षा, और आतंकवाद जैसे मसलों पर बोलते हुए सुनना अपने आपमें आश्चर्यजनक था.
कल्पना कीजिए कि सरकार द्वारा जारी की गई इन उतनी-नयी-नहीं सूचनाओं ने तब अखबारों और टीवी समाचारों में कितनी जगह घेरी होगी, जबकि कांग्रेस सीमा पर चीन की कारस्तानियों के मामले में सरकार पर संसद के अंदर और बाहर हमले कर रही थी.
विश्व जोड़ो यात्रा
मोदी के जीवन में अविश्वसनीय उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. उनके अपने सार्वजनिक जीवन में पहली महत्वपूर्ण घटना 1972 में घटी जब वे आरएसएस के प्रचारक के रूप में काम करने लगे. इससे पहले वे गौरक्षा आंदोलन, महंगाई विरोधी आंदोलन, और दूसरे आंदोलनों में भाग ले रहे एक कार्यकर्ता थे. दूसरा अहम दौर वह था जब उन्होंने अपने वरिष्ठ नेताओं केशुभाई पटेल, और शंकर सिंह वाघेला के साथ मिलकर भाजपा को 1995 में गुजरात विधानसभा के चुनाव में ऐतिहासिक जीत दिलाई थी. 2001 में, मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने और उस राज्य की राजनीति में एक नया युग शुरू किया. 2014 में जब वे प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति की पुरानी शैली को खत्म कर दिया और वह सब कर रहे हैं जिनकी कल्पना दो दशक पहले नहीं की जा सकती थी.
बहत्तर साल की अपने उम्र में वे उस दौर में कदम रख रहे हैं जब उन्हें 1972, 1995, 2001, और 2014 में नयी दिशा देने वाले अपने जीवन के कार्यों को एक भव्य मंच पर प्रस्तुत करने का मौका मिलेगा. मीडिया को ब्रीफ़ करने वाले उनके एक कैबिनेट मंत्री ने मुझसे कहा, “मोदी जी ने तब गुजरात और देश की सेवा की थी, और आज वे एक विश्व मंच के जरिए पूरी मानवता की सेवा करने जा रहे हैं.”
भारत को ‘विशगुरु’ बनाने का सपना कोई नया नहीं है. भाजपा कई बार यह कह चुकी है लेकिन 2023 में अगर मोदी सरकार विश्व नेताओं, विश्व अर्थव्यवस्था और विश्व की जनता से ज्यादा संपर्क बनाने की सोच रहे हैं तब विकास के मुद्दे को किसी अकादमिक या राजनीतिक दृष्टि से नहीं बल्कि वास्तविक दृष्टि से केंद्र में लाना पड़ेगा.
राहुल जब 30 जनवरी गांधीजी की पुण्यतिथि पर भारत जोड़ो यात्रा का समापन करेंगे और तब आरएसएस और भाजपा पर देश में “बढ़ती नफरत और हिंसा” के लिए दोषी ठहराएंगे, तब मोदी अपने ‘विश्व जोड़ो यात्रा’ शुरू करेंगे. आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों, चीन के साथ तनातनी, निर्णायक विधानसभा चुनावों, नये जोश से भारी कांग्रेस और जी-20 की महत्वाकांक्षी योजनाओं आदि के मद्देनजर ऐसा लगता है कि साल 2023 मोदी के जीवन के सबसे व्यस्त वर्षों में एक साबित होगा.
(शीला भट्ट दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sheela2010 हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: नीतीश की हालिया यात्रा का BJP क्यों उड़ा रही है मजाक- ‘थकी हुई जद (यू), पूरा शो एक नाटक की तरह’