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Thursday, 25 July, 2024
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नीतीश की हालिया यात्रा का BJP क्यों उड़ा रही है मजाक- ‘थकी हुई जद (यू), पूरा शो एक नाटक की तरह’

छपरा जहरीली शराब त्रासदी के बाद की टिप्पणी को लेकर नीतीश कुमार को खासी आलोचना का सामना करना पड़ा है. डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के लिए रास्ता बनाने के लिए जद (यू) प्रमुख के लिए सहयोगी राजद की ओर से भी दबाव बढ़ रहा है.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 5 जनवरी से पश्चिम चंपारण के भितिहरवा गांधी आश्रम से एक और राज्यव्यापी यात्रा शुरू करने जा रहे हैं.

दरअसल 2005 की ‘न्याय यात्रा’ के बाद से, 1917 में महात्मा गांधी द्वारा स्थापित आश्रम उनकी यात्राओं के शुरुआती बिंदु के लिए नीतीश की पहली पसंद रहा है. इस यात्रा को उन्होंने खंडित जनादेश मिलने के बाद विधानसभा को भंग किए जाने का विरोध करने के लिए किया था. इसके चलते राज्य में नए सिरे से चुनाव कराए गए और उनके सत्ता में आने का रास्ता खुल गया था.

71 वर्षीय जनता दल (यूनाइटेड) या जद (यू) प्रमुख तब से राज्य में एक दर्जन से अधिक यात्राएं कर चुके हैं. इसमें ‘प्रगति’ और ‘धन्यवाद’ से लेकर ‘प्रवास’ और ‘अधिकार’ यात्राएं  शामिल हैं. सबसे हालिया, ‘समाज सुधार अभियान यात्रा’ दिसंबर 2021 में शराबबंदी के फायदों को उजागर करने और दहेज एवं बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए आयोजित की गई थी.

अगले सप्ताह शुरू होने वाली उनकी यात्रा इन्हीं विषयों के आसपास होगी. पिछले अगस्त में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से बाहर निकलने के बाद और दिसंबर में कुरहानी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के हाथों पार्टी को मिली हार के बाद से यह नीतीश का पहला जनसंपर्क कार्यक्रम है.

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पूर्व सांसद विजय कृष्ण ने कहा, ‘नीतीश यात्रा का इस्तेमाल प्रेशर कुकर की तरह करते हैं जो भाप छोड़ता है. जनता के साथ बातचीत करना हमेशा फायदेमंद रहता है, भले ही आपको परेशान किया जाए या ताना मारा जाए. यह आपके खिलाफ लोगों के गुस्से को दूर करता है.’ विजय ने 2004 के लोकसभा चुनावों में बाढ़ निर्वाचन क्षेत्र से नीतीश को हराया था.

हालांकि नीतीश के महागठबंधन सहयोगी राजद और  अन्य लोगों के बीच उम्मीद की जा रही है कि यह यात्रा पूरी तरह से एक ‘जेडी (यू) -शो’ साबित होगा. लेकिन सार्वजनिक रूप से इस पर अपने विचार व्यक्त करना बाकी है. बिहार के राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि एक बार फिर से नीतीश पदयात्रा का इस्तेमाल राज्य के राजनीतिक विमर्श को नई दिशा देने के लिए कर सकते हैं.

यह नीतीश की तरफ से छपरा जहरीली त्रासदी के बाद दिए गए विवादास्पद ‘शराब पीने वाले तो मरेंगे ही’ बयान पर मिली आलोचना पर मरहम लगाने का एक प्रयास भी हो सकता है. इस त्रासदी में 70 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी.

इसके अलावा, नीतीश के लिए सहयोगी राजद की ओर से दबाव बढ़ रहा है कि वह राज्य में सत्ता की बागडोर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को सौंप दें. पिछले साल दिसंबर में, जद (यू) प्रमुख ने घोषणा की थी कि महागठबंधन राजद के नेतृत्व में 2025 का बिहार चुनाव लड़ेगा.

पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष एन.के. चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘नीतीश अपने जीवन की सबसे मुश्किल राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं. वह सीएम हैं लेकिन उनके शासन मॉडल पर हमला हो रहा है और लगभग 18 साल तक सत्ता में रहने के बाद उनकी राजनीतिक ताकत कम हो गई है.

भाजपा के मुताबिक, नीतीश की यात्राएं ‘तैयार’ की जाती हैं और यहां तक कि जद (यू) के मंत्री भी ऐसी यात्राओं से उकता गए हैं.

जद (यू) के एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘ऐसा लगता है, मानों जब भी सीएम पटना में बैठे-बैठे बोर हो जाते हैं, तो वे एक यात्रा कर देते हैं. इससे वह कुछ दिनों के लिए राजधानी के दबाव से दूर हो जाते है.’

उन्होंने कहा, ‘ऐसी यात्राओं का एकमात्र फायदा यह है कि वह जिन सरकारी भवनों का दौरा करते हैं, उनकी सफेदी हो जाती है और जब वह वहां होते हैं तो जिला प्रशासन अपने पैर की उंगलियों पर खड़ा होता है.’

‘जनता से बहुत कम संवाद’

2005 में जब नीतीश ने अपनी पहली राज्यव्यापी यात्रा शुरू की थी, तब समर्थकों ने उन्हें घेरे हुआ था. उसके बाद से बहुत कुछ बदल गया. तब उन्होंने जनसभाओं के दौरान मंच से अधिकारियों को उनके फोन नंबर भी दिए. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनकी यात्राएं सिर्फ सरकारी यात्राएं बनकर रह गई हैं.

नीतीश के मंत्रिमंडल में जद (यू) प्रमुख के साथ अपने अनुभवों को याद करते हुए भाजपा के सम्राट चौधरी ने दिप्रिंट से कहा, ‘जब मैं मंत्री था तब मैं नीतीश कुमार के साथ था. जनता से बहुत कम संवाद होता है. वह सिर्फ स्थानीय पदाधिकारियों और पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलते हैं. अधिकांश भीड़ में दीदी (स्वयं सहायता समूहों के सदस्य) और आशा कार्यकर्ता शामिल होती हैं जिन्हें सरकार से पैसे मिलते हैं. पूरे शो नाटकीय लगता है.

बिहार विधान परिषद में विपक्ष के नेता चौधरी ने दावा किया कि अधिकारी नीतीश की यात्राओं के लिए रास्ते का ‘चयन’ करते हैं. वहां सड़कें, पानी की आपूर्ति और अन्य बुनियादी ढांचे सब को दुरुस्त कर दिया जाता है. दौरे के बाद फिर से पहले वाली स्थिति वापस आ जाती है. यह यात्राएं अब राजनीतिक समर्थन पैदा नहीं करती हैं. बल्कि सिर्फ उन लोगों को नाराज करने का काम करती हैं जो खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं.

नीतीश की राज्य में यात्रा की घोषणा पूर्व सहयोगी प्रशांत किशोर की टिप्पणी के बाद की गई है. किशोर ने कहा था कि उन्हें पश्चिम चंपारण में अपनी पदयात्रा के दौरान नीतीश के खिलाफ जनता के बीच गुस्सा देखने को मिला है और उन्होंने नीतीश को बिना सुरक्षा के बिहार के किसी भी गांव में जाने की चुनौती भी दी थी.

सरकारी मशीनरी के साथ, नीतीश अब इस सप्ताह के अंत में शुरू होने वाली अपनी यात्रा के हिस्से के रूप में गांवों का दौरा करने की योजना बना रहे हैं. लेकिन बिहार में अब कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या उनकी यात्रा का कोई चुनावी फायदा होगा या फिर यह प्रेशर वाल्व के रूप में काम करेगी, जिससे जमीनी स्तर पर अपनी सरकार के खिलाफ सुलग रहे गुस्से को दूर किया जा सकेगा.

(अनुवादः संघप्रिया मौर्या | संपादनः ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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