भारतीय अर्थव्यवस्था की तेज़ी और देश में युवा शक्ति के उभार को देखते हुई आम राय यह बन रही है कि भारत 2047 तक विकसित राष्ट्रों में शुमार हो जाएगा. चूंकि तब तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन जाएगा इसलिए स्वाभाविक है कि वह विश्व की एक महाशक्ति के रूप में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का उपयोग करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा और तमाम देशों के बीच अपना अपेक्षित प्रभाव डालने की कोशिश करेगा. यहां यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह ताकत उसे तभी मिलेगी जब वह सेना को बेहतर बनाएगा.
हमारे मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन ने 2049 तक एक महाशक्ति बनने के राष्ट्रीय लक्ष्य को सामने रखकर अपनी पीपुल्स लिबरेशन (पीएलए) को बदलने की प्रक्रिया 2015 से शुरू कर दी. समय सीमाएं साफ तय कर दी. 2020 तक सेना का पूर्ण मशीनीकरण (‘मेकनाईजेशन’) करने और उल्लेखनीय रूप से ‘सूचनाकेंद्रित’ (‘इनफॉर्मेशनाईजेशन’) बनाने का लक्ष्य तय किया और 2027 तक ‘मेकनाईजेशन’, ‘इनफॉर्मेशनाईजेशन’ और खुफियाकेंद्रित (इंटेलिजेंटाइजेशन) के मेल से समेकित विकास करने, 2035 तक राष्ट्रीय प्रतिरक्षा का संपूर्ण अत्याधुनिकीकरण करने का लक्ष्य तय किया. इस तरह, 2049 तक पीएलए का संपूर्ण कायापलट करके उसे विश्व स्तरीय सेना बना देने का लक्ष्य रखा.
बदकिस्मती से हमारी दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों — भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (आइएनसी) — के चुनाव घोषणापत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना को बेहतर बनाने के बारे में दूरदर्शी तथा समग्र दृष्टिकोण का अभाव दिखता है. घोषणापत्रों में केवल क्रमिक परिवर्तन के लिए ‘उपायों’ की सूची दी गई है. घोषणापत्रों में उन्हीं बातों को दोहराया गया है, जो रणनीति के जानकारों की बिरादरी एकमत से कहती है, कि भारत के पास राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई औपचारिक दृष्टिकोण नहीं है, सुसंगत राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति और प्रतिरक्षा नीति का अभाव है और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों को ‘संकट-दर-संकट’ निबटाता रहता है.
चुनावी चर्चा से गायब राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा
2014 के चुनावी अभियान में भाजपा की एक चाल कांग्रेस पर यह आरोप लगाने की थी कि वह बाहरी और आंतरिक सुरक्षा के मामलों में कमजोर रही है. पुलवामा में आतंकवादी हमले और बालाकोट में आतंकवादियों के अड्डों पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के मद्देनज़र 2019 में भाजपा का चुनावी अभियान काफी हद तक राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर केंद्रित था और इसने उसे भारी जीत भी दिलाई.
लेकिन 2024 के चुनावी अभियान में राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे गायब हैं. भाजपा को कई सवालों के जवाब देने हैं, मसलन 2020 में चीनी घुसपैठ और भारत के नियंत्रण और गश्त क्षेत्र से 1,000 वर्गकिमी इलाके का छिन जाने, मणिपुर में जारी संकट और सेना में बदलाव लाने में सुस्ती के मामलों को लेकर, पार्टी ने इनके बारे में चुप्पी साध रखी है. पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को मारने के बड़बोलेपन, पूर्वी लद्दाख में जमीन खोने से इनकार करने, पीओके को अपना इलाका बताने, सेना में धर्म आधारित आरक्षण देने के कांग्रेस के कथित वादे पर हमले करने के सिवा राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भाजपा के चुनावी अभियान से गायब रहा है.
वैसे तो कांग्रेस को भाजपा के बेजान कामकाज को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना चाहिए था, लेकिन 2004-14 के दौरान अपनी सरकार के फीके कामकाज के मद्देनज़र धारणाओं के संघर्ष में पस्त होने के डर और मौजूदा सरकार के राजनीतिक प्रचार को ही आगे बढ़ाने वाली मीडिया के चलते कांग्रेस कन्नी काट रही है.
राष्ट्रीय सुरक्षा : दृष्टि एवं रणनीति
हैरानी की बात यह है कि भाजपा का घोषणापत्र ‘विकसित भारत 2024 के लिए विकसित सेना’ के सवाल पर मौन है. राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में दीर्घकालिक दृष्टिकोण और सेना के परिवर्तन की रणनीति का इसमें कोई ज़िक्र नहीं किया गया है.
चीन से खतरे, ‘एलएसी’ पर विस्फोटक हालात, और अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति की बहाली की ज़रूरत को लेकर उसका घोषणापत्र मौन है. हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा की बात तो की गई है लेकिन वहां खतरे क्या हैं, इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है.
कांग्रेस की हालत कोई बेहतर नहीं है, लेकिन उसने समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति तैयार करने का वादा किया है, जो काम भाजपा सरकार ने 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) को सौंपा था. कांग्रेस ने चीन की ओर से गंभीर खतरे और पूर्वी लद्दाख में अपनी ‘2,000 वर्गकिमी’ ज़मीन गंवाने को खास तौर से रेखांकित किया है और इस बात को भी प्रमुखता से उभारा है कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन को क्लीन चिट देकर भारत को वार्ता में कमजोर पक्ष बना दिया है”. हालांकि, घोषणापत्र में साफ तौर पर नहीं कहा गया है, लेकिन मीडिया में यह खबर व्यापक तौर पर आई है कि काँग्रेस एलएसी पर अप्रैल 2020 से पहले वाली स्थिति बहाल करने को प्रतिबद्ध है.
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सेना को बेहतर बनाने की रक्षा नीति
सेनाओं में परिवर्तन लाने की समग्र रक्षा नीति को लेकर दोनों दलों के घोषणापत्र मौन हैं, लेकिन कांग्रेस ने रक्षा मंत्री द्वारा 2009 में जारी ‘ऑपरेशनल’ निर्देश की समीक्षा करने और नया निर्देश जारी करने का वादा किया है और तब से जारी किया गया निर्देश ही वास्तव में दोनों मोर्चों पर खतरे से लड़ने के लिए मौजूदा रक्षा नीति है.
भाजपा का घोषणापत्र कीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति को सेना में सुधार के प्रशंसनीय कदम के रूप में प्रस्तुत किया है और चलते-चलते यह टिप्पणी की है कि “आगे हम सेना के थिएटर कमांड स्थापित करेंगे…”, लेकिन इसकी कोई समय सीमा नहीं बताई गई है. थिएटर कमांड स्थापित करने की दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है, सरकार अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति को लागू करने में विफल रही है. कांग्रेस ने सीडीएस की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी और सेना में आम सहमति पर आधारित बनाने का वादा किया है, लेकिन थिएटर कमांड के बारे में उसने कुछ नहीं कहा है.
परिवर्तन के लिए समग्र आधुनिकीकरण का कोई उल्लेख किए बिना भाजपा ने संक्षिप्त टिप्पणी की है कि हम सेनाओं और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल को अत्याधुनिक हथियारों, साजोसामान और टेक्नोलॉजी से लैस करेंगे…” कांग्रेस ने भी इसी तरह का वादा किया है और सेना तथा सुरक्षा बालों के लिए देश में साजोसामान बनाने की क्षमता का विस्तार करेंगे. विडंबना यह है कि भाजपा ने प्रतिरक्षा के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल करने के अपने बहुप्रचारित सुधारों को उछाला नहीं है, शायद इसलिए कि इस दिशा में प्रगति सुस्त है.
भाजपा ने सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास को रेखांकित किया है, जो कि वास्तव में कामयाबी की कहानी कहती है.
प्रतिरक्षा के क्षेत्र में उच्च प्रबंधन
कांग्रेस ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, एनएसए कार्यालय और उसके नियंत्रण वाली सभी एजेंसियों को संसद की जांच के दायरे में लाने का वादा किया है.
भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा के ढांचे में 2018 में कई बड़े सुधार किए थे, लेकिन वो संसद की निगरानी की व्यवस्था को नापसंद करती रही है.
राष्ट्रीय सुरक्षा के दूसरे दायरे
भाजपा ने साइबर सुरक्षा एजेंसियों और इन्फ्रास्ट्रक्चर के नियमन तथा निगरानी का, मजबूत साइबर सुरक्षा नीति जारी करने का वादा किया है. वह डिजिटल संप्रभुता को मजबूत करने और खतरों को बेअसर करने के लिए भी प्रतिबद्ध है.
कांग्रेस ने भी डेटा, साइबर, वित्तीय संचार और व्यापार सुरक्षा के मामलों के लिए उपयुक्त नीतियां बनाने का वादा किया है.
रक्षा बजट
कांग्रेस ने कुल खर्चों में प्रतिरक्षा पर खर्च के अनुपात में गिरावट को उलटने का वादा किया है. 1963 से 2010 तक तमाम सरकारों के तहत रक्षा बजट जीडीपी के 3 प्रतिशत या उससे ऊपर के बराबर रहता आया था.
पिछले 10 साल में भाजपा सरकार के तहत रक्षा बजट जीडीपी के 3 फीसदी से भी कम रहा. अब भी इस पार्टी ने इसमें वृद्धि करने का कोई वादा नहीं किया है. इस तरह सेना के परिवर्तन की इसकी योजना पर सवाल ही खड़ा होता है.
सुरक्षा बल में महिलाएं
भाजपा और कांग्रेस के लुभावने सियासी नारों के बावजूद सेनाओं और सीएपीएफ में महिलाओं को समान अवसर देने का मुख्य श्रेय सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्टों को जाता है.
कांग्रेस घोषणापत्र कहता है कि पार्टी युद्ध और युद्ध से इतर भूमिकाओं में महिलाओं को ज्यादा अवसर देने के लिए प्रतिबद्ध है. उसने सीएपीएफ में महिलाओं को 33 फीसदी प्रतिनिधित्व देने का वादा किया है.
सैनिकों का कल्याण
कांग्रेस ने भाजपा द्वारा लाई गई ‘वन रैंक, वन पेंशन’ योजना की विसंगतियों को दूर करने का वादा किया है. उसने ‘अग्निपथ’ योजना को रद्द करने और सैनिकों को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा देने के लिए पुरानी स्थिति बहाल करने का भी वादा किया है.
प्रतिकूल नतीजे की आशंका से भाजपा घोषणापत्र ने इस “ऐतिहासिक सुधार” का न तो बचाव किया है और न इसे अधिक आकर्षक बनाने के लिए इसे सुधारने का वादा किया है, जबकि इसे जनता के बीच राजनीतिक तौर पर प्रचारित किया गया और जिसका सेना ने भी बचाव किया था.
दोनों दल सेना की सेवा के दौरान विकलांग हुए सैनिकों के लिए मानवीय नीतियां बनाने और उन्हें आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्यूनल से अनुकूल फैसला मिलने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में न घसीटने का वादा करने में विफल रहे हैं. भाजपा ने 2014 में यह वादा किया था मगर उसे पूरा नहीं किया.
आंतरिक सुरक्षा
भाजपा ने आतंकवाद से लड़ने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है. उसने वामपंथी उग्रवाद को नष्ट करने का वादा किया है, लेकिन जम्मू-कश्मीर और मणिपुर के हालात पर चुप्पी साध ली है. उसने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू करने का वादा किया है, जिस पर कांग्रेस ने चुप्पी साधी है ताकि उस पर कोई प्रतिकूल असर न पड़े.
कांग्रेस ने नफरत भरे भाषणों-बयानों, नफरत से किए गए अपराधों, सांप्रदायिक दंगों, महिलाओं के खिलाफ अपराधों, भीड़ द्वारा हत्याओं, और बुलडोजर मार्का न्याय आदि पर रोक लगाने का वादा किया है. राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड और राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी केंद्र (2008 का अधूरा एजेंडा) को सक्रिय करने का भी वादा किया है.
राज्यों की पुलिस को मजबूत करने का वादा तो उसने किया है मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पुलिस सुधारों को लागू करने पर खामोश है. जम्मू-कश्मीर, वामपंथी उग्रवाद, और मणिपुर के मसलों पर भी उसने कोई साफ वादा नहीं किया है. दोनों दलों ने ड्रग्स के खतरे को नष्ट करने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है.
विकसित भारत को चाहिए विकसित सेना
सेना में परिवर्तन किए बिना भारत वैश्विक महाशक्ति नहीं बन सकता. प्रमुख दलों से कम से कम इतनी तो अपेक्षा की जाती है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर एक दृष्टिकोण, एक रणनीति का खाका पेश करेंगे और सेना को बदलने की एक रक्षा नीति प्रस्तुत करेंगे और इसके लिए जरूरी वित्तीय वादे भी करेंगे और उसके प्रमुख मसलों का संक्षिप्त ब्योरा भी प्रस्तुत करेंगे. लेकिन हमें किए जाने वाले असंगत कामों की सूची मिली है, जिनके लिए वित्तीय व्यवस्था क्या होगी और उनकी समय सीमा क्या होगी यह सब नहीं स्पष्ट किया गया है.
हम 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनना चाहते हैं लेकिन हम अपने मौजूदा और संभावित प्रतिद्वंद्वियों का नाम तक नहीं बता सकते. तब हम उनसे होने वाले खतरों का सामना करने के लिए अपनी सेना को कैसे तैयार करेंगे? हमें इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि विकसित भारत विकसित सेना के बिना बन जाएगा. इसलिए समय आ गया है कि राजनीतिक दल इसका खाका बनाने में जुट जाएं.
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटा.) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड थे. रिटायर होने के बाद वो आर्म्ड फोर्सेज़ ट्रिब्यूनल के सदस्य थे. व्यक्त विचार निजी हैं)
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