प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने रेडियो कार्यक्रम, मन की बात, में प्रसिद्ध असमिया गायक जुबिन गर्ग को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा कि दिवंगत गायक असम की सांस्कृतिक विरासत का चमकता हुआ रत्न थे. पीएम ने कहा कि वह हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेंगे और अपने इस बयान को ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर साझा किया.
जुबिन कथित तौर पर सिंगापुर में समुद्र में तैरते समय डूब गए थे, जिससे पूरे असम में शोक और दुख की लहर दौड़ गई.
असम के मुख्यमंत्री हेमंता बिस्वा सरमा ने पीएम मोदी के ‘एक्स’ पोस्ट का हवाला देते हुए कहा कि जुबिन राज्य का रत्न थे और असम तथा भारत की सांस्कृतिक छवि में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. बीजेपी नेताओं द्वारा असमिया और भारतीय संस्कृति में जुबिन के योगदान को सराहना उनके विचारों को लेकर महत्वपूर्ण है. 2018 में, दिवंगत गायक ने असमिया एथलीट हिमा दास को ताकत के लिए बीफ खाने की सलाह दी थी.
2019 में उन्होंने कहा कि वह ब्राह्मण हैं, लेकिन उन्होंने अपना जनेऊ तोड़ दिया था. उन्होंने कहा कि ऐसे ब्राह्मणों को मार देना चाहिए, जिससे काफी विवाद हुआ.
उनका यह भी कहना कि भगवान कृष्ण भगवान नहीं बल्कि इंसान थे, भी विवादों में रहा. उन्होंने कई बार कहा, “मेरी कोई जाति नहीं, कोई धर्म नहीं, कोई भगवान नहीं. मैं आज़ाद हूं. मैं कंचनजंगा हूं.”
प्रसिद्ध संगीतकार राजनीतिक रुख अपनाने से भी डरते नहीं थे. उन्होंने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का विरोध करने वालों का समर्थन किया. अपने आखिरी इंटरव्यू में, जो उनके निधन के बाद प्रसारित हुआ, उन्होंने बताया कि जब वे विरोध प्रदर्शन के चरम पर बीमार पड़ गए तो एंटी-सीएए आंदोलन कमजोर पड़ गया.
जुबिन द्वारा कही गई कई बातें बीजेपी नेताओं जैसे सरमा को शायद पसंद न आई हों. लेकिन असम में लोकप्रियता हासिल करने वाले गायक के बारे में कोई भी राजनीतिज्ञ कुछ नहीं कर सकता था.
असमियों के लिए वह सिर्फ गायक, संगीतकार या अपनी बात बोलने वाले आइकनोक्लास्टिक व्यक्ति नहीं थे. वह एक शानदार इंसान भी थे, जिनका दिल सोने जैसा था—उन्होंने 15 वंचित बच्चों को गोद लिया, और जब कोई सड़क पर उनसे मदद मांगने आता, तो वह अपनी जेब से पैसे निकाल देते. इसी वजह से हर राजनेता, चाहे किसी भी राजनीतिक और वैचारिक पृष्ठभूमि का हो, जुबिन का प्रशंसक होने का दिखावा करने की कोशिश कर रहा है.
जुबीन राजनीतिक बहस का केंद्र
दिवंगत गायक अचानक चुनावी असम की राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गए हैं. इसकी वजह यह है कि मुख्यमंत्री सरमा ने बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) चुनाव में बीजेपी की हार को जुबीन की मौत से जोड़कर समझाने की कोशिश की है. इससे पहले कि हम चर्चा करें कि 2026 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की किस्मत के लिए दिवंगत गायक क्यों अहम हैं, पहले BTC चुनाव परिणाम देखते हैं.
बीजेपी के लिए यह बड़ा झटका है. 40 सदस्यीय परिषद में इस बार बीजेपी की संख्या घटकर पांच रह गई, जबकि 2020 में उसके पास नौ सीटें थीं. मुख्यमंत्री सरमा को शायद पहले से अंदेशा था. शुक्रवार को मतगणना शुरू होने से एक दिन पहले उन्होंने X पर लिखा. “बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल चुनावों में बीजेपी का मजबूत रुझान था. लेकिन #BelovedZubeen के दुखद निधन के कारण हमने प्रचार वापस ले लिया. इसका हमारे प्रदर्शन पर नकारात्मक असर पड़ा होगा. लेकिन मैं चिंतित नहीं हूं. कल NDA जीतेगा.”
जुबीन की मौत 19 सितंबर को हुई थी और परिषद चुनाव 22 सितंबर को निर्धारित थे. सरमा ने प्रतिष्ठित गायक की मौत से पहले बोडोलैंड क्षेत्र—कोकराझार, चिरांग, बाक्सा, उदालगुरी और तमुलपुर—के पांच जिलों में व्यापक प्रचार किया था. असफलताओं के लिए पहले से बहाने बनाना सरमा के स्वभाव के विपरीत है. दो और दिन का प्रचार बीजेपी की किस्मत को चुनाव में बहुत ज़्यादा नहीं बदल सकता था.
बीजेपी के लिए चिंता की बात क्या है?
बीजेपी के लिए चिंता की बात है उसके सहयोगी-से-विरोधी-से-मुमकिन सहयोगी बने हगरामा मोहिलारी के नेतृत्व वाली बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (BPF) की जीत. BPF ने परिषद में 28 सीटें जीतीं. 2020 में 17 सीटें जीतने के बावजूद मोहिलारी को किनारे कर दिया गया और बीजेपी ने पोस्ट-पोल गठबंधन यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (UPPL) से कर प्रमोद बोरों को BTC का मुख्य कार्यकारी सदस्य बना दिया.
इस घटनाक्रम ने मोहिलारी को 2021 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. पिछली विधानसभा में उसके पास 12 सीटें थीं, जिनमें से वह सिर्फ चार ही बरकरार रख सका.
अब जबकि BPF ने बोडोलैंड क्षेत्र—जहां 126 विधानसभा सीटों में से 16 आती हैं—पर फिर से कब्जा कर लिया है, सवाल यह है कि मोहिलारी अगले साल विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ जाएंगे या कांग्रेस के साथ.
शनिवार को हिमंता सरमा ने ‘X’ पर लिखा. “मैं हगरामा मोहिलारी और BPF को #BTCPolls में जीत की बधाई देता हूं. BPF NDA का सहयोगी है और अब BTC की सभी 40 सीटें NDA साझेदारों के पास हैं. कांग्रेस शून्य पर सिमट गई है. यही है उनके कलंकित नेता का प्रदर्शन.”
हकीकत यह है कि बीजेपी, BPF और UPPL ने BTC चुनाव में अलग-अलग लड़ाई लड़ी. हालांकि, सरमा पूरी तरह गलत भी नहीं हैं. यही उत्तर-पूर्व की राजनीति की प्रकृति है. क्षेत्रीय दल केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी से दूरी नहीं बना सकते. मोहिलारी को दिसपुर और दिल्ली दोनों से अच्छे संबंध रखने होंगे. इसलिए हैरानी नहीं होगी अगर मोहिलारी के नेतृत्व वाले प्रशासन में बीजेपी के कुछ सदस्य भी शामिल हो जाएं.
हालांकि, इस बात की कोई गारंटी नहीं कि 2026 विधानसभा चुनाव में BPF और बीजेपी साथ आएंगे. 2021 विधानसभा चुनाव के बाद BPF ने बीजेपी से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की थी. 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का समर्थन जैसे प्रतीकात्मक कदम उठाए गए, लेकिन असली मेलजोल नहीं हुआ. उदाहरण के लिए, कोकराझार लोकसभा सीट पर बीजेपी ने UPPL उम्मीदवार के लिए जमकर प्रचार किया ताकि BPF हार जाए.
शनिवार को सरमा के इस दावे पर कि परिणाम वाले दिन सुबह 4 बजे मोहिलारी उनसे मिलने आए थे, BPF प्रमुख ने कहा कि वह सुबह 4 बजे उठते ही नहीं. संदेश साफ है. मोहिलारी फिलहाल सरमा को गले लगा सकते हैं, लेकिन 2026 चुनावों के लिए बीजेपी BPF की साझेदारी को निश्चित मानकर नहीं चल सकती. बोडोलैंड क्षेत्र से सिर्फ 16 विधायक आते हैं, लेकिन करीबी चुनाव में यह अहम साबित हो सकते हैं.
सरमा यह सोचकर जश्न नहीं मना सकते कि कांग्रेस BTC चुनाव में शून्य पर सिमटी. दरअसल, कांग्रेस पहले भी इन चुनावों में खराब प्रदर्शन करती रही है. 2010 में शून्य, 2015 में शून्य और 2020 में सिर्फ एक सीट. यह दिखाता है कि जब कांग्रेस सत्ता में भी थी, 2010 और 2015 में, तब भी वह BTC चुनाव में शून्य पर रही.
कांग्रेस की गलती
हां. नतीजे यह दिखाते हैं कि कांग्रेस अभी भी असम में बीजेपी की जगह लेने के लिए तैयार नहीं है. देखिए कैसे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने असम में खुद ही गोल कर लिया जब उन्होंने सरमा सरकार द्वारा बेदखल किए गए लोगों को मुआवजा देने का वादा कर दिया. असम में अवैध प्रवासन मुद्दे की संवेदनशीलता को जो भी समझता है, वह जानता है कि कांग्रेस ने सीधे सरमा के हाथ में खेल दिया है.
गौरव गोगोई, जो असम में कांग्रेस का चेहरा हैं, शायद निराशा में अपना सिर पकड़ रहे होंगे. उन्होंने इस मुद्दे पर चुप्पी साधी है. हालांकि, वह जानते हैं कि वह इस मुद्दे से दूर नहीं रह सकते, क्योंकि सरमा ने बेदखली अभियान को मुख्य आधार बना दिया है और खड़गे ने गलती कर दी है. और जब गोगोई अपनी और अपनी पार्टी की स्थिति बेदखली पर साफ करेंगे, तो वह खड़गे की लाइन नहीं ले सकते.
जैसा कि है, आप सरमा को कांग्रेस पर दांव लगाने के लिए दोष नहीं दे सकते. लेकिन वह इतने चतुर नेता हैं कि आत्मसंतुष्ट नहीं होंगे. वह जानते हैं कि सबकुछ उनके पक्ष में है—उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता, कल्याणकारी योजनाएं, ‘घुसपैठिया’ नैरेटिव और, बेशक, कांग्रेस का हर तरह से अटूट समर्थन. लेकिन वह यह भी जानते हैं कि उनके व्यक्तिगत या सरकार के जुबीन की मौत की निष्पक्ष जांच पूरी करने की प्रतिबद्धता पर थोड़ी भी शंका 2026 के चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती है.
जरा सीएम की ‘एक्स’ टाइमलाइन देखिए. वह लगातार जुबीन के प्रशंसकों से संपर्क कर रहे हैं.
शनिवार को उन्होंने बताया कि असम पुलिस ने श्यामकानु महांता, जो सिंगापुर में नॉर्थईस्ट इंडिया फेस्टिवल के मुख्य आयोजक हैं जिसमें जुबीन शामिल हुए थे, और गायक के मैनेजर सिद्धार्थ शर्मा के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया है. सरमा ने लिखा, “वे अब भारत के किसी भी हवाईअड्डे, समुद्री बंदरगाह या भूमि सीमा से बाहर नहीं जा पाएंगे.”
यह कड़ा रुख अभी काम कर सकता है. लेकिन चुनाव छह महीने दूर हैं और ऐसी बयानबाजी उलटी भी पड़ सकती है. सरमा जुबीन की जांच को कैसे संभालते हैं और लोग इसे कैसे देखते हैं, इसका अगले साल की शुरुआत में उनके वोटिंग व्यवहार पर बड़ा असर पड़ेगा.
(डीके सिंह दिप्रिंट के पॉलिटिकल एडिटर हैं. उनका एक्स हैंडल @dksingh73 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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