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Thursday, 19 December, 2024
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BJP संसदीय बोर्ड से बाहर रखे जाने पर भी योगी ने साध रखी है चुप्पी, क्या यह मोदी-शाह के लिए संदेश है?

भाजपा ने इस सप्ताह अपने संसदीय बोर्ड का पुनर्गठन किया, जिसमें अब किसी भी मुख्यमंत्रियों को नहीं रखा गया है. लेकिन अपने समकक्षों के उलट योगी ने नए सदस्यों को बधाई देने के वाला कोई ट्वीट नहीं किया है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दो दिनों से ट्विटर पर काफी सक्रिय थे. उन्होंने कृषि ऋण योजना के लिए पीएम को धन्यवाद दिया, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं दीं, अपनी गतिविधियों से संबंधित पोस्ट भी अपडेट कीं.

लेकिन एक अहम मुद्दे पर वह चुप्पी साधे नजर आए और वो था बुधवार को भाजपा संसदीय बोर्ड में किया गया फेरबदल.

पार्टी की तरफ से प्रमुख निर्णय लेने वाले बोर्ड के पुनर्गठन की घोषणा के 48 घंटों के भीतर भाजपा के सभी मुख्यमंत्रियों ने ट्वीट कर सदस्यों को बधाई दी.

इस सूची में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (जिन्हें हाल ही में बोर्ड से बाहर किया गया है), असम के हिमंत बिस्वा सरमा—जिनके प्रतिद्वंद्वी और पूर्व सीएम सर्बानंद सोनोवाल बोर्ड में शामिल नए सदस्यों में शुमार है—और कर्नाटक के बसवराज बोम्मई आदि शामिल रहे. बोम्मई तो कथित तौर पर अपने ‘गुरु’ रहे बीएस येदियुरप्पा को बोर्ड में शामिल होने पर बधाई देने निजी तौर पर उनके घर भी पहुंचे.

इस सब पर चुप्पी साध लेने वाले केवल योगी आदित्यनाथ रहे.

योगी के करीबी माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘हालांकि, अभी तक उन्होंने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं किया है लेकिन सभी को उम्मीद थी कि उन्हें संसदीय बोर्ड में शामिल किया जाएगा. वैसे संसदीय बोर्ड को तो छोड़ ही दीजिए, वह निर्णय लेने वाली किसी भी इकाई का हिस्सा नहीं है—यहां तक कि चुनाव समिति में भी नहीं हैं.’

फिलहाल 11 सदस्यीय बोर्ड में कोई मुख्यमंत्री नहीं है और भाजपा आलाकमान ने अभी तक इसका हिस्सा रहे एक मात्र मुख्यमंत्री चौहान को भी हटा दिया है. कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि योगी को भी इससे बाहर रखा जा सके.

भाजपा के कुछ अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, यह निर्णय दिल्ली और लखनऊ के बीच भरोसे में आती कमी को ही दर्शाता है.

आम तौर पर एक धारणा है कि भाजपा आलाकमान की मंशा यही है कि सत्ता दिल्ली में केंद्रित रहे और 2024 के लोकसभा चुनावों से लोकप्रिय मुख्यमंत्रियों, खासकर योगी का कद बहुत ज्यादा न बढ़ पाए.

भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘यह दिखाया गया है कि योगी भी अन्य मुख्यमंत्रियों के बराबर ही हैं.’ उन्होंने कहा कि हालांकि इस मसले को लेकर तनाव तो है लेकिन यह किसी ‘खतरे के स्तर’ तक नहीं पहुंचा है.

यह पूछे जाने पर कि क्या योगी को जानबूझकर दरकिनार किया गया, भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी से राज्यसभा सांसद अशोक बाजपेयी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है.

बाजपेयी ने ने कहा, ‘कोई अन्य पद भारत के इतने बड़े राज्य के मुख्यमंत्री जितना महत्वपूर्ण नहीं है. योगी अभी 50 साल के हैं, और उनके पास काफी मौका है. वह बोर्ड में है या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. यह भी एक तथ्य है कि कोई मुख्यमंत्री बोर्ड में नहीं है—पार्टी को भौगोलिक प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखकर लोगों के चयन के बारे में सोचना पड़ता है.’

भाजपा की आंतरिक राजनीति में योगी हाल ही में कुछ असहज स्थिति में रहे हैं, क्योंकि उनके कुछ आलोचक अधिक मुखर हो गए थे.

उदाहरण के तौर पर संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन से एक दिन पहले उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल की प्रशंसा करते नजर आ रहे हैं और यूपी में 2017 की पार्टी की जीत का श्रेय उन्हें देते हैं.

UP Chief Minister Yogi Adityanath with Deputy CM Keshav Prasad Maurya at the latter's Lucknow residence Tuesday | Twitter | @kpmaurya1
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ | ट्विटर | @kpmaurya1

यह बात इसलिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि मौर्य को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का काफी करीबी माना जाता है और चुनाव हारने के बावजूद उन्हें योगी कैबिनेट में शामिल किया गया था. बंसल भी शाह के करीबी हैं और यूपी में पार्टी के प्रमुख पदों पर रहते हुए योगी के साथ उनके रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं.

इसलिए, भी यह बात नजरअंदाज नहीं हो पाई, क्योंकि मौर्य ने एक समारोह में योगी की मौजूदगी में ही कहा कि यूपी के ‘असली नायक’ बंसल थे और राज्य में भाजपा को ‘शून्य से शिखर’ तक पहुंचाने का श्रेय उन्हीं को जाता है.

यह, सब संसदीय बोर्ड के पुनर्गठन के समय होना, शीर्ष स्तर की तरफ से एक संदेश माना गया. बहरहाल, योगी के करीबी इस बात पर जोर देते हैं कि कोई भी चीज उनके नेता को दबा नहीं सकती है.


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‘दिल्ली के लिए योगी की लड़ाई 2027 में शुरू होगी’

यूपी में भाजपा के कई नेता योगी को संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने को लेकर दुखी हैं, लेकिन कई का मानना है कि उनके राष्ट्रीय स्तर के नेता बनने में बस कुछ ही समय बाकी है, जैसे नरेंद्र मोदी को गुजरात के सीएम की कुर्सी से देश के पीएम पद तक पहुंचने में लगा था.

यूपी से भाजपा के एक सांसद ने कहा, ‘यह एक झटका है. सबको लग रहा था कि महाराजजी को बोर्ड में लाया जाएगा. वह भारत के सबसे बड़े राज्य के सीएम हैं, उन्होंने यहां दो बार (2017 और 2022 में) भाजपा की सरकार बनाई है, मोदी जी के बाद वही हिंदू हृदय सम्राट हैं.’

उन्होंने कहा कि बोर्ड के कई वरिष्ठ नेता ‘राज्यपाल’ पद के लिए ज्यादा उपयुक्त होते, लेकिन कहा कि योगी को कोई जल्दी नहीं है.

सांसद ने कहा, ‘दिल्ली के लिए उनकी लड़ाई 2027 में शुरू होगी. तब तक, उनके पास सिर्फ विकास पर ध्यान देने वाले एक सार्थक नेता के तौर पर अपनी छवि बनाने का समय है.

योगी कैबिनेट में शामिल एक दूसरे मंत्री ने भी कहा कि सीएम की प्राथमिकता सुशासन देना और अपनी उद्योग-समर्थक छवि को मजबूत करना होना चाहिए, ताकि वह आगे चलकर एक ‘कद्दावर’ छवि बना सकें.

उन्होंने कहा, ‘मुझे बताओ, आज मुख्यमंत्रियों में कौन सुरक्षित है? सबको ही पता है कि लगातार चुनाव जीतना कुर्सी बचाने की पहली कसौटी है. महाराजजी के सामने अभी तो 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी तरह 60 से अधिक सीटें (80 में से) जीतने की चुनौती है. नहीं तो वे डेंजर जोन में होंगे.’

कानपुर से भाजपा सांसद सत्यदेव पचौरी, जो योगी की पहली कैबिनेट में मंत्री रह चुके है, ने कहा कि पार्टी संसदीय बोर्ड के चयन को लेकर बहुत ज्यादा मायने नहीं निकाले जाने चाहिए.

पचौरी ने कहा, ‘आखिरकार, हमें मोदी के नाम पर वोट मिलते हैं. बोर्ड में कौन है और कौन नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. यह केवल भाजपा की आंतरिक राजनीति के लिए प्रासंगिक है. उन्होंने बोर्ड के पुनर्गठन से पहले तमाम फैक्टर पर विचार किया होगा.’


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लखनऊ और दिल्ली के बीच तनातनी

पिछले कुछ महीनों में, कुछ घटनाएं ऐसा संकेत दे रही हैं कि योगी और भाजपा आलाकमान के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा.

जुलाई में योगी कैबिनेट में जल संसाधन मामलों के कनिष्ठ मंत्री दिनेश खटीक ने अपना पद छोड़ने की पेशकश की, यह दावा करते हुए कि विभाग के अधिकारियों ने उनकी उपेक्षा की, उन्हें काम नहीं दिया गया, और उन्हें महसूस हुआ कि एक दलित होने के नाते उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है.

उन्होंने यह दावा भी किया कि तबादलों और पोस्टिंग में भ्रष्टाचार हुआ है. सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने योगी, या भाजपा अध्यक्ष या यहां तक कि अपने ही वरिष्ठ मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को नहीं बल्कि सीधे अमित शाह को पत्र भेजा था.

हालांकि, खटीक ने कुछ ही समय में अपना इस्तीफा वापस ले लिया और कहा कि सभी मुद्दों का ‘समाधान’ हो गया है, लेकिन इससे पहले पत्र को सोशल मीडिया पर व्यापक स्तर पर शेयर किया जा चुका था.

इसके कुछ हफ्ते पहले ही, केशव मौर्य के साथ सह-डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य विभाग भी संभाल रहे ब्रजेश पाठक ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (स्वास्थ्य) अमित मोहन प्रसाद को लिखे पत्र में डॉक्टरों के तबादले पर नाराजगी जताई थी.

तबादलों का आदेश कथित तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) की तरफ से दिया गया था. इस मामले में भी आंतरिक स्तर का पत्र वायरल हो गया. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि दिल्ली में बैठे नेताओं को सीएम और उनके डिप्टी के बीच मुद्दा सुलझाने में दखल देना पड़ा.

जुलाई में फिर हंगामा हुआ, जब यूपी लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के मंत्री जितिन प्रसाद कथित तौर पर अपनी शिकायत लेकर दिल्ली चले गए, और उन्होंने यह कदम तब उठाया जब इंजीनियरों के तबादलों और पोस्टिंग में अनियमितताओं के आरोप पर उनके ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (ओएसडी) को हटा दिया गया और पांच अन्य को निलंबित कर दिया गया.

भाजपा के एक दूसरे सांसद ने कहा, ‘भ्रष्टाचार के आरोप में ओएसडी को हटाना जितिन प्रसाद को शर्मसार करने का प्रयास था और रही बात दिल्ली की तो…आखिरकार जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल करने और उन्हें अहम मंत्रालय देने का फैसला दिल्ली ने ही किया था. जितिन प्रसाद 2021 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे.

BJP President J.P. Nadda greets Jitin Prasada after he joined BJP, at his residence in New Delhi, 9 June 2021 | PTI
नई दिल्ली में 9 June 2021 बीजेपी ज्वाइन करने पर जितिन प्रसाद को बधाई देते हुए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा | पीटीआई

योगी खेमे को लग रहा है कि कैबिनेट में दरार उन्हें असहज करने के लिए डाली गई है.

दूसरे भाजपा सांसद ने कहा, ‘क्या आपको लगता है कि कोई मंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े मुख्यमंत्री के खिलाफ इस तरह की शिकायतें कर सकता है अगर उन्हें दिल्ली से पूरी तरह शह न मिल रही हो? यह दिखाता है कि केंद्रीय नेतृत्व योगी को नियंत्रित रखना चाहता है ताकि वह कल्याण सिंह या येदियुरप्पा की तरह न बन जाएं.

‘हिंदू हृदय सम्राट’ माने जाने वाले कल्याण सिंह ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ टकराव मोल लिया था और 1990 के दशक में एक चैलेंजर के तौर पर उभरने की कोशिश की थी. वहीं कर्नाटक के पूर्व सीएम येदियुरप्पा ने 2012 में पार्टी छोड़ दी थी और यहां तक कि भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए 2013 में एक क्षेत्रीय पार्टी भी बनाई थी, जिससे पार्टी को हार का सामना करना पड़ा (2014 में पार्टी का विलय हुआ).

यह अटकलें नई नहीं हैं कि भाजपा आलाकमान योगी की महत्वाकांक्षाओं को दबाने की कोशिश कर रहा है.

2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भी, कई पर्यवेक्षकों ने कहा कि यह योगी के लिए एक झटके की तरह ही था कि पार्टी ने फैसला किया कि उन्हें अयोध्या या मथुरा के बजाय गोरखपुर से चुनाव लड़ना चाहिए, जो देश के सबसे महत्वपूर्ण हिंदू धार्मिक केंद्रों में से एक है.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि महसूस किया गया था कि योगी को उतारने से मोदी की ‘हिंदू हृदय सम्राट’ वाली छवि कमजोर हो सकती है.

एक आम धारणा यह भी है कि योगी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से भाजपा आलाकमान ने यूपी के राजनीतिक और नौकरशाही हलकों में अपने भरोसेमंद सदस्यों को बैठाना सुनिश्चित किया है.

कहा जाता है कि चुनाव से पहले केंद्रीय आवास सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा को उनकी सेवानिवृत्त से ऐन पहले यूपी के मुख्य सचिव के तौर पर उनके गृह कैडर में वापस लाने का फैसला इसी का एक उदाहरण है. ऐसा तब किया गया जब तत्कालीन मुख्य सचिव आर. के. तिवारी, जिनके योगी के साथ अच्छे समीकरण थे, 2023 तक सेवानिवृत्त होने वाले भी नहीं थे.

यही बात सेवानिवृत्त नौकरशाह ए.के. शर्मा के मामले में भी लागू होती है, जिन्हें अक्सर ‘मोदी मैन’ बताया जाता है. 2021 के शुरू में सेवा छोड़ने के बाद वह राजनीति में आए और जल्दी ही उन्हें यूपी में पार्टी उपाध्यक्ष बना दिया गया. यूपी विधान परिषद के सदस्य शर्मा ने इस साल योगी कैबिनेट में मंत्री के तौर पर शपथ ली है.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘दिल्ली में किसी नियामक निकाय में तैनात करने के बजाय शर्मा को यूपी भेजा गया. यह केवल यही दर्शाता है कि दिल्ली चीजों पर कितनी बारीकी से नजर रखने की कोशिश में है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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