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Saturday, 4 May, 2024
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वर्ल्ड रोलर गेम्स में स्केटिंग के लिए समय के साथ होड़ लगा रही हैं UP की तंजीला खान, पैसा बना बाधा

अलीगढ़ की तंज़ीला ख़ान अकेली एथलीट नहीं हैं जिन्होंने क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म्स का रुख़ किया है. लेकिन क्या वो समय रहते रोलर स्केटिंग फेडरेशन ऑफ इडिया को 2.6 लाख रुपए अदा कर सकती हैं?

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नई दिल्ली: तंजीला खान के पास 24 घंटे से कम बचे हैं 2.65 लाख रुपए जुटाने के लिए, जिससे वो अर्जेंटीना में होने वाले वर्ल्ड रोलर गेम्स 2022 में भारत का प्रतिनिधित्व कर पाएगी. अलीगढ़ के एक मामूली परिवार से आने वाली तंज़ीला, अपने सपने के लिए क्राउडफंडिंग कर रही है.

अभी तक 61 लोग 2 लाख रुपए से अधिक का योगदान क्राउडफंडिंग मंच मिलाप पर कर चुके हैं, जिसका हाल के वर्षों में एथलीट्स के बीच रुझान बढ़ रहा है.

लेकिन समय तेजी से भाग रहा है. अगर वो नेशनल रोलर डर्बी टीम का हिस्सा बनना चाहती है, जो अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए अक्तूबर में अर्जेंटीना के लिए उड़ान भरेगी, तो 15 जुलाई तक उसे रोलर स्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को 2.65 लाख रुपए का भुगतान करना है.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से शारीरिक शिक्षा में ग्रेजुएट डिग्री रखने वाली खान ने कहा, ‘फिलहाल मेरे पास यूनिवर्सिटी की तरफ से वजीफे की शक्ल में कोई मदद नहीं है. मेरे नेशनल कोच (संदीप भटनागर) ने मुझसे सरकारी छात्रवृत्तियों के बारे में पता करने के लिए कहा, जो देश में काफी आम हैं, लेकिन फिलहाल यूपी सरकार मुझे स्पॉन्सर नहीं कर सकती’.

हालांकि रोलर स्केटिग फेडरेशन ऑफ इंडिया को एक औपचारिक इकाई के तौर पर मान्यता मिली हुई है, लेकिन उसे सरकार से पैसा नहीं मिल सकता क्योंकि दो सप्ताह पहले तक रोलर स्केटिंग राष्ट्रीय खेलों की सूची में दर्ज नहीं था. कारण? विश्व ऑलंपिक संगठन ने उसे मान्यता नहीं दी हुई थी. भटनागर ने कहा, ‘लेकिन अब इसे ‘खेलो इंडिया मिशन’ के तौर पर सूची में जोड़ लिया गया है, जिससे पहले स्केटबोर्डिंग को टोक्यो ऑलंपिक्स में एक खेल के तौर पर शामिल कर लिया गया था’.

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यही वजह है कि खिलाड़ियों को खुद अपना खर्च उठाना पड़ता है. ‘तंजीला एक प्रमुख खिलाड़ी है. उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी हैं और परिवार अपने बल पर जरूरी रकम अदा नहीं कर सकता. लेकिन मुझे ये कहने में खुशी हो रही है कि 15 सदस्यों की टीम में ज़्यादातर लड़कियां अपने लिए स्पॉन्सर जुटाने में कामयाब हो गई हैं’.

खान ने ठानी हुई है कि वो निजी फंड्स की कमी को, विश्व प्रतियोगिता के अपने अवसर की राह में आड़े नहीं आने देगी.


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फंडिंग का एक नया माध्यम

क्रिकेट-उन्मत्त भारत में वो अकेली एथलीट नहीं है जिसने क्राउडफंडिंग मंचों का रुख किया है. कोच और एथलीट्स में फंड्स जुटाने के नए नए तरीक़े अपनाने का रुझान बढ़ रहा है और ऑनलाइन क्राउडफंडिंग एक लोकप्रिय संसाधन बनकर उभरा है, जिसका एनजीओज भी फायदा उठा रही हैं. ये एनजीओज अकसर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को ट्रेनिंग देती हैं और उनमें से कुछ करों में रिआयतें भी दिलाती हैं.

जानी-मानी एथलीट पीटी ऊषा, जिन्हें पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से नवाजा जा चुका है, और जिन्होंने 100 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मेडल जीते हैं, उन्होंने 2002 में पीटी ऊषा स्कूल ऑफ एथलेटिक्स शुरू किया था, जहां वो जहां वो अंतर्राष्ट्रीय ट्रैक और फील्ड स्पर्धाओं के लिए भारतीय लड़कियों को ट्रेनिंग देती हैं. इस आवासीय स्कूल का, जिसमें ज़्यादातर वंचित पृष्ठभूमि की छात्राओं को रखा जाता है, मिलाप पर एक क्राउंडफंडिंग पेज है.

निजी खिलाड़ियों को भी, जो अपने हालात से बाधित हो जाते हैं और जो अथॉरिटीज की ओर से पर्याप्त सहायता हासिल नहीं कर पाते, उन्हें क्राउडफंडिंग साइट्स पर दानदाता मिले हैं. तंजीला ने कहा, ‘फिलहाल मेरी कुछ पारिवारिक समस्याएं हैं और मेरे पिता जो एक निजी सहायक क्लर्क का काम करते हैं उन्हें दिल की बीमारी है, जिसकी वजह से पैसा जुटाना एक समस्या है’. तंजीली ने मिलाप पर 3 लाख रुपए की इच्छा जताई है. अतिरिक्त 35,000 रुपए का इस्तेमाल वो सफर तथा दूसरे खर्चों के लिए करेगी, जिन्हें उसे प्रतियोगिता से पहले उठाना है.

जीवन भर स्केटिंग

हालांकि रोलर-स्केटिंग संपर्क खेल मुख्य रूप से अमेरिका में खेला जाता है, लेकिन भारत में इसने चार साल पहले रफ्तार पकड़नी शुरू की और अब ये एक औपचारिक खेल बन गया है जिसका प्रतिनिधित्व एक राष्ट्रीय फेडरेशन करती है. ये विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में लोकप्रिय है, लेकिन जैसा कि कम प्रसिद्ध खेलों के साथ होता है, इसमें भी फंडिंग एक समस्या है.

राष्ट्रीय टीम के पांच सदस्य अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हैं. यूनिवर्सिटी के स्केटिंग कोच अली अकबर के पास खिलाड़ियों के लिए सिर्फ अच्छे शब्द थे, खासकर खान के लिए, जिसे उन्होंने एक ‘समर्पित और मेहनती’ खिलाड़ी बताया. उन्होंने भी ज़्यादा फंडिंग की जरूरत पर जोर दिया.

शारीरिक शिक्षा में स्नातक डिग्री लेने वाली खान ने कम उम्र से ही खेलों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. उसका खेल करियर ट्रैक (दौड़) से शुरू हुआ, जिसके बाद वो तैराकी की ओर चली गई, जहां उसने अलीगढ़ की नुमाइंदगी की और ज़िला स्तर पर कई पदक हासिल किए.

उसने स्केटिंग को ऐसे अपनाया जैसे मछली पानी में जाती है. उसने कहा, ‘मैंने भारत में स्पीड स्केटिंग में यूपी की नुमाइंदगी की और दो कांस्य पदक हासिल किए. यूपी कोच संदीप भटनागर ने देखा कि मैं स्पीड स्केटिंग में अच्छी थी और उन्होंने मुझे स्टेट रोलर डर्बी टीम में शामिल होने की कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित किया’. संयोगवश, भटनागर को भारतीय रोलर स्केटिंग फेडरेशन ने राष्ट्रीय टीम का कोच बनने के लिए चुन लिया.

पिछले तीन साल से वो यूपी रोलर डर्बी टीम की कप्तानी कर रही है. उसके अंतर्गत टीम ने राष्ट्रीय स्पर्धाओं में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, और कांस्य, स्वर्ण तथा इसी महीने एक रजत पदक हासिल किया है. अपने प्रदर्शन के बल पर उसे राष्ट्रीय टीम में जगह मिल गई.

ये उसकी बड़ी बहन का विचार था कि अंजान लोगों से दान लिए जाएं. खान का रुख सकारात्मक बना हुआ है, और उसका ध्यान खेल पर लगा है. उसने कहा, ‘अगर किसी को भी कुछ पैसा दान करके मेरी मदद करने से खुशी मिलती है, तो वो मुझे मेरे मक़सद के करीब ले जाएगा. मेरा परिवार और ख़ुदा मेरे साथ है और अगर क्राउडफंडिंग से भी काम नहीं बनता, तो वो कर्ज से या कोई न कोई दूसरा रास्ता निकालकर पैसा जुटा लेंगे’.

भटनागर और बाक़ी टीम को भी पूरा भरोसा है, कि खान को जरूरी फंड्स मिल जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘मुझे कल ही उन तमाम खिलाड़ियों के ड्राफ्ट मिले हैं, जो वर्ल्ड रोलर गेम्स के लिए जा रहे हैं और उसका नाम उनमें था’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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