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Tuesday, 23 April, 2024
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शिवसेना, TDP, JD(S) और अब JMM? राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मुर्मू ने विपक्ष को विभाजित किया

पीएम मोदी और झामुमो के झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन के बीच मंगलवार को हुई मुलाकात के बाद से चर्चाओं का दौर गर्म है, लेकिन अभी तक पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को लेकर अपना रुख साफ नहीं किया है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बीच मंगलवार को देखी गई दोस्ती और गर्मजोशी ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. प्रधानमंत्री देवघर हवाई अड्डे सहित कई परियोजनाओं के शुभारंभ के लिए राज्य में आए हुए थे.

यह मुलाकात काफी खास है क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने अभी तक बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने पर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है. राज्य की पूर्व राज्यपाल मुर्मू के जेएमएम के साथ बहुत करीबी संबंध रहे हैं.

जेएमएम कांग्रेस की सहयोगी है और उसके साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई है.

जब वे मंगलवार को मिले तो हेमंत सोरेन मोदी सरकार के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए काफी आगे तक चले गए और ‘सहयोग’ के लिए उनकी सराहना की.

उधर मोदी ने भी अपनी ओर से झारखंड सरकार या सत्तारूढ़ दलों पर हमला करने से परहेज किया जो कि गैर-एनडीए शासित राज्य में पीएम के लिए असामान्य था.

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उन्होंने बस इतना ही कहा कि ‘जो लोग शॉर्ट-कट की राजनीति करते हैं वे कभी नए हवाई अड्डे नहीं बनाएंगे, कभी नए और आधुनिक हाईवे नहीं बनाएंगे.’

उन्होंने कहा कि झारखंड सालों से पिछड़ा राज्य रहा है और ‘अब यह केंद्र और राज्य सरकारों के सहयोग से आगे बढ़ रहा है.’

सोरेन ने बताया, ‘आज माननीय प्रधानमंत्री की उपस्थिति में देवघर हवाईअड्डे और अन्य योजनाओं का उद्घाटन किया जा रहा है और आधारशिला रखी जा रही है. देवघर एयरपोर्ट को लेकर करीब एक दशक पहले हमने जो सपना देखा था वह आज साकार हो गया है. इसके लिए मैं माननीय प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं.’

हालांकि, जेएमएम ने इसे एक सामान्य मुलाकात बताया और कहा कि इस आयोजन को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.

लोकसभा सांसद विजय कुमार हंसदक ने कहा, ‘किसी भी मेहमान को सर्वोच्च सम्मान देना एक आदिवासी परंपरा है और वह तो हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं.’

उन्होंने आगे बताया ‘कोई इसे राजनीतिक रंग क्यों दे? यह आयोजन हमारे राज्य के विकास से जुड़ा था और अगर मुख्यमंत्री ने पीएम की अगवानी की या उन्हें सम्मान दिया और उस कार्यक्रम में मौजूद रहे तो इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए’


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मुर्मू पर सवाल

राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवारों विपक्ष के यशवंत सिन्हा और द्रौपदी मुर्मू के झारखंड से संबंध हैं.

पूर्व केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा झारखंड से आते हैं. उन्हें विपक्षी दलों के एक समूह ने मैदान में उतारा है.

वहीं ओडिशा की एक आदिवासी मुर्मू झारखंड के राज्यपाल के रूप में काम कर चुकी हैं. उन्हें मैदान में उतारने के बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के फैसले ने जेएमएम को उसके आदिवासी समर्थन आधार को देखते हुए मुश्किल में डाल दिया है.

जेएमएम ने अभी तक सिन्हा के लिए अपना समर्थन घोषित नहीं किया है लेकिन मुर्मू को समर्थन देने की ओर झुकता दिखाई दे रहा है.

सिन्हा ने पहले कहा था कि ‘उनकी उम्मीदवारी पर विपक्ष के बीच सहमति एक अच्छा संकेत है’

लेकिन मुर्मू की उम्मीदवारी ने विपक्ष की एकता को चुनौती दे दी है. शिवसेना उनके लिए अपना समर्थन व्यक्त करने वाला नया विपक्षी संगठन है.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि मुर्मू को समर्थन देने का फैसला उनके आदिवासी होने के कारण लिया गया है और शिवसेना के किसी भी सांसद ने उन पर ऐसा करने के लिए दबाव नहीं डाला है.

ठाकरे ने मंगलवार को बताया, ‘दरअसल मौजूदा समय में राजनीतिक माहौल को देखते हुए मुझे उनका समर्थन नहीं करना चाहिए था लेकिन हम छोटी सोच रखने वालों में से नहीं हैं.’

तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने भी मुर्मू को अपना समर्थन देने का वादा किया है. 2018 में गठबंधन से बाहर होने से पहले टीडीपी एनडीए की सहयोगी हुआ करती थी.

कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) ने भी संकेत दिया है कि वह मुर्मू को अपना समर्थन देगी. मुर्मू के बेंगलुरु दौरे के दौरान जद (एस) नेता एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा था कि इस पर जल्द ही अंतिम फैसला लिया जाएगा.

2018 में जब कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी तो उनका शपथ ग्रहण समारोह सभी विपक्षी दलों को प्रतीकात्मक रूप से मंच पर एकजुट करने का मंच बन गया था. तब जद (एस) ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी मुर्मू पर अपना रुख नरम किया है और कहा है कि अगर बीजेपी ने घोषणा से पहले नामांकन पर चर्चा की होती तो वह राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार को लेकर विपक्ष की बैठक में बातचीत करतीं.

उन्होंने कहा, ‘अगर हमें इस बारे में संकेत मिलते कि उनका (बीजेपी का) उम्मीदवार कौन है तो हम सर्वदलीय बैठक में चर्चा कर सकते थे…’

बंगाल में कम से कम पांच लोकसभा सीटों पर आदिवासियों की एक बड़ी उपस्थिति है और इसलिए मुर्मू की उम्मीदवारी ने बनर्जी को मुश्किल में डाल दिया है – जिन्होंने सर्वसम्मति से उम्मीदवार का फैसला करने के लिए विपक्ष के प्रयासों का नेतृत्व किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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