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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेश'पेंग्विन से छपी खुद की ही किताब रुकवा दी थी', विनोद कुमार शुक्ल को मिला PEN/नबोकोव लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार

‘पेंग्विन से छपी खुद की ही किताब रुकवा दी थी’, विनोद कुमार शुक्ल को मिला PEN/नबोकोव लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार

विनोद कुमार शुक्ल अपने विचारों में इतने डूबे रहते थे कि वे कई बार अपने बेटे को बाजार में छोड़कर चले आते थे.

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नई दिल्लीः पेन (PEN) अमेरिका ने 27 फरवरी को हिंदी शॉर्ट स्टोरी लेखक, उपन्यासकार, कवि और निबंधकार विनोद कुमार शुक्ल को साल 2023 का पेन/नबोकोव अवॉर्ड फॉर अचीवमेंट इन इंटरनेशनल लिटरेचर देने की घोषणा की है. उन्हें 2 मार्च को न्यूयॉर्क सिटी में अवॉर्ड दिया जाएगा. इनके साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय साहित्य में, और प्रशंसित नाटककार एरिका डिकर्सन-डेस्पेंज़ा को पेन/नबोकोव थियेटर अवॉर्ड प्रदान किया जा रहा है.

तत्कालीन मध्य प्रदेश और वर्तमान छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में 1937 में जन्में विनोद कुमार शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए पहचाना जाता है. वह उन लोगों और विषयों के बारे में लिखते हैं जिन्हें वह गहराई से जानते हैं. उनकी शैली को अक्सर “जादुई यथार्थवाद” के करीब माना जाता है यानी जो ‘कल्पनाशीलता’ के साथ भी ‘यथार्थ’ को धारण करने वाला है. खास बात यह है कि शुक्ल की भाषा और शैली अंतरराष्ट्रीय लेखन या वैश्विक साहित्यिक आंदोलनों से प्रभावित नहीं हुई.

लेखक प्रभात रंजन का इस बारे में कहना है कि, ‘विनोद कुमार शुक्ल के लेखन पर हिंदी की मूल धारा का प्रभाव नहीं है बल्कि वह उनकी भाषा और शैली उनकी खुद की ही तरह है. उन्होंने अपनी तरह की शैली को स्थापित किया है जिसमें एक लंबा समय लगता है. इनकी भाषा सीधी नहीं है बल्कि इन्होंने अपनी भाषा को तोड़कर उसके साथ अलग ही तरह का प्रयोग किया है.’

वहीं बधाई देते हुए राजकमल प्रकाशन के एडिटर सत्यानंद निरुपम ने दिप्रिंट से कहा कि, ‘यह हिंदी लेखन व हिंदी समाज के लिए काफी सम्मान की बात है. बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार के बाद अगले ही वर्ष एक और पुरस्कार हिंदी के हिस्से में आना यह दिखाता है कि हिंदी लेखन के प्रति लोगों का नजरिया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदला है. इससे युवाओं में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ेगा.’ दरअसल पिछले साल ‘गीतांजलि श्री’ की रचना रेत समाधि के अंग्रेजी संस्करण ‘टूम ऑफ सैंड’ को इंटरनेशनल मैन बुकर प्राइज़ मिला था.

आगे उन्होंने बताया इस वक्त तक उनकी 7 किताबें राजकमल प्रकाशन से छप रही हैं और दो और किताबें छपने वाली हैं. इनमें से एक है ‘खिलेगा तो देखेंगे’ उपन्यास और दूसरा इनका कविता संग्रह ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिन कर चला गया विचार की तरह’ छपने वाला है.

पेंग्विन से छपी किताब को रोक दिया था

दिप्रिंट ने लेखक प्रभात रंजन से बात की, उन्होंने कहा कि, ‘हिंदी के सबसे जीवित कवि और अपने आप में सबसे विलक्षण कवि को यह सम्मान मिलना दिखाता है कि साहित्य की साधना कभी भी बर्बाद नहीं जाती है. विनोद कुमार शुक्ल प्रेमचंद की परंपरा के लेखक नहीं है और मूलधारा के न होने के बावजूद यह पुरस्कार मिलना अपने आप में बड़ी बात है. इन्होंने भाषा को कला के स्तर पर ले जाना सिखाया. हिंदी भाषा के लेखक को यह पुरस्कार मिलना काफी बड़ा अचीवमेंट है.’

प्रभात रंजन इनके जीवन का एक किस्सा शेयर करते हुए कहते हैं कि इनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ का अंग्रेजी उपन्यास पेंग्विन से छपा था ‘शर्ट ऑफ अ सर्वेंट’ के नाम से. जिसे इन्होंने सिर्फ इसलिए वापस ले लिया था क्योंकि पेंग्विन के जो मालिक थे उन्होंने इन्हें मिलने का समय नहीं दिया था. वह बताते हैं कि शुक्ल जी ने कहा कि ‘जब आपके पास लेखक से मिलने का समय नहीं है तो आप किताब को प्रकाशित करके क्या करेंगे’ और उन्होंने किताब को डंप करने के लिए कहा. यह बात साल 2000 के आसपास की बात है. उस समय पेंग्विन अतंर्रराष्ट्रीय स्तर का बड़ा प्रकाशक था.

इसके अलावा उन्होंने बताया कि एक बार शुक्ल जी महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पोलैंड जा रहे थे और इन्होंने कोई कपड़े नहीं लिए थे. सिर्फ एक पैंट शर्ट और हाफ स्वेटर पहन रखा था जबकि उस वक्त पोलैंड में -20 डिग्री ठंड थी. प्रभात रंजन बताते हैं कि उन्हें इनको लेकर चिंता हुई तो उन्होंने यह बात इनके समकालीन लेखक मनोहर श्याम जोशी को बताई. जिसके बाद उन्होंने शुक्ल को अपना ओवरकोट निकालकर दे दिया था. रंजन बताते है कि वह काफी निश्छल रहे हैं ऐसे में यह सम्मान हिंदी की ठेंठ निश्छलता का सम्मान है.

प्रकाशकों पर लगाया था ठगी का आरोप

साल 1999 में अपने उपन्यास ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए साहित्य एकेडमी पुरस्कार पाने वाले विनोद कुमार शुक्ल ने पिछले साल हिंदी के दो बड़े प्रकाशन समूहों पर ठगी का आरोप लगाया था. उनका आरोप था कि उन्हें कम रॉयल्टी दी जा रही थी और साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रकाशकों ने बिना उनसे पूछे उनकी किताबों के ई-संस्करण छाप दिए थे. सोशल मीडिया पर वायरल हुए उनके एक वीडियो में वह कह रहे थे कि उनकी किताबें जैसे बंधक हो गई हैं और वे उन्हें मुक्त कराना चाहते हैं. एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि लोग उनके पास आते हैं और बताते हैं कि उनकी किताब ‘नौकर की कमीज़’ काफी बिक रही है. फिर यह कैसे संभव है कि अकेले 6 किताबों की रॉयल्टी इतनी कम मिली.

दिप्रिंट ने विनोद कुमार शुक्ल के बेटे शाश्वत गोपाल से बात किया उन्होंने कहा कि यह हम सभी के लिए गर्व की बात है और पूरे देश को बधाई. पिता के जीवन के बारे में कुछ बातें साझा करते हुए उन्होंने कहा कि, उन्होंने मुझे और दीदी को केवल अच्छा मनुष्य बनने को कहा. यह कभी नहीं कहा कि तुम यह या वह पढ़कर यह या वह बन जाओ बल्कि हमेशा अच्छा मनुष्य बनने की प्रेरणा देते रहे. एक बात हमेशा कही कि उत्कृष्ट ऐसा रचो कि वह आने वाली पीढ़ियों के काम जरूर आए. दो शब्द ‘संतुष्टि’ और ‘बचत’ के गहरे अर्थों के साथ सुखी जीवन का मंत्र उन्होंने हमें दिया.

बेटे को बाजार भूलकर आ जाते थे

शाश्वत गोपाल ने कहा कि दादा विचारों में कुछ यूं खोए रहते थे कि तमाम चीजें भूल जाते थे. एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, ‘दादा मुझे भी बाजार भूल कर आ जाते थे. कई बार ऐसा होता था कि वे बाजार से सामान लाने के लिए मुझे मुझे स्कूटर से लेकर जाते थे और बाद में सामान तो घर पहुंच जाता था लेकिन मैं बाजार में ही छूट जाता था यानी वह मुझे बाजार में भूलकर घर चले आते थे.’ वह आगे कहते हैं कि यह अब भी जारी है अब 90 की इस उम्र में वह हमारे साथ कहीं जाते हैं तो अपने काम में इतना खो जाते हैं कि यह भूल जाते हैं कि किसके साथ आए हैं.

क्या है पेन-नबोकोव पुरस्कार

यह पुरस्कार हर साल उस लेखक को दिया जाता है जिसका कार्य मौलिकता और उत्कृष्ट शिल्प कौशल वाला होता है. इससे पहले यह पुरस्कार न्गुगी वा थिओन्गो, ऐनी कार्सन, एम. नोरबे से फिलिप, सैंड्रा सिस्नेरोस, एडना ओ’ब्रायन और एडोनिस को दिया जा चुका है.


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