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Thursday, 28 March, 2024
होमदेश'शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि'- क्यों 2031 तक लखनऊ में गहरा सकता है पानी का संकट

‘शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि’- क्यों 2031 तक लखनऊ में गहरा सकता है पानी का संकट

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के अध्ययन में नीतिगत स्तर पर भी हस्तक्षेप करने को कहा गया है और जल प्रबंधन के लिए सामुदायिक स्तर पर लोगों को जोड़ने की सिफारिश भी की गई है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को आने वाले कुछ सालों में पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा सकता है. साल 2031 तक लखनऊ के कई महत्वपूर्ण इलाकों में भूजल (ग्राउंडवॉटर) का स्तर अभी के मुकाबले 20-25 मीटर तक नीचे गिर सकता है.

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) और दिल्ली विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग ने मिलकर ये अध्ययन किया है. दिप्रिंट ने विस्तार से इस रिपोर्ट का अध्ययन किया है.

अध्ययन में ज़ोन आधारित रणनीति बनाकर लखनऊ में ग्राउंडवॉटर के मैनेजमेंट (भूजल का प्रबंधन) का सुझाव दिया गया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में प्रोफेसर शशांक शेखर, जो इस अध्ययन करने वाली टीम के सदस्य भी हैं, उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि पूरे भारत में ये इस तरह की पहली इंटीग्रेटिड स्टडी है, जिसमें जनसंख्या, सरफेस वॉटर, भूजल के स्तर का विस्तृत अध्ययन किया गया है.

इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘सस्टेनेबल ग्राउंडवॉटर मैनेजमेंट इन लखनऊ सिटी’ है. प्रोफेसर शेखर बताते हैं, ‘बीते सालों के भूजल दोहन के डेटा और उसके पीछे के विज्ञान के जरिए भविष्य का एक मॉडल तैयार किया गया है. इस मॉडल के तहत भारत के और शहरों में भी काम किया जा सकता है.’

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इस अध्ययन के निष्कर्ष टीईआरआई द्वारा किए गए भूजल ऑडिट और शहर के कई इलाकों में भूजल की उपलब्धता, मांग, निष्कर्षण और उपयोग के विस्तृत मूल्यांकन पर आधारित हैं.

रिपोर्ट में लखनऊ की अर्थव्यवस्था में भूजल का कितना योगदान है और इसके प्रबंधन के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर कई सिफारिशें भी सुझाई गई हैं.


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भूजल की मांग

भारत के कई शहरों में पानी का मुख्य स्त्रोत भूजल ही है, जिस कारण तेज़ी से पानी का स्तर गिरता जा रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भी पानी के संकट से जूझ रही है और कोरोना महामारी ने इसे और भी गहरा दिया है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पानी के लिए ज्यादातर गोमती नदी पर आश्रित है. गर्मियों के मौसम में सरफेस वॉटर के ज्यादातर स्त्रोतों में पानी की कमी हो जाती है जिस कारण भूजल ही आखिरी सहारा बचता है.

टीईआरआई के इस अध्ययन में लखनऊ में भूजल की बढ़ती मांग का पता लगाने के लिए शहर को विशिष्ट जोन्स और उसके डेमोग्राफिक स्थिति के आधार पर बांटा गया है.

अध्ययन के मुताबिक वर्तमान में मॉनसून से पहले ही लखनऊ में 17 गुना ज्यादा ग्राउंडवॉटर का इस्तेमाल हो जाता है, जो बारिश और गोमती नदी से होने वाले ग्राउंडवॉटर सिस्टम रिचार्ज से कहीं ज्यादा है.

इसमें ये भी निकल कर आया कि लखनऊ में करीब 73 प्रतिशत घरों में भूजल का इस्तेमाल होता है और 71 प्रतिशत घरों में ‘जल संस्थान’ के द्वारा पानी सप्लाई की जाती है. ये इस बात की तरफ इशारा करता है कि करीब 43 प्रतिशत घरों में दोनों स्त्रोतों का इस्तेमाल हो रहा है.

दक्षिण और पूर्व लखनऊ के मुकाबले पानी की सबसे ज्यादा सप्लाई पश्चिम और उत्तर लखनऊ के क्षेत्रों में हो रही है. करीब 25 प्रतिशत कमर्शियल उपभोगताओं ने कहा कि पानी का स्तर गिरते जाने के कारण उन्हें 100 मीटर तक बोरवेल की गहराई बढ़ानी पड़ी है.

अध्ययन के मुताबिक ज्यादतर परिवारों को पानी की गुणवत्ता से कोई शिकायत नहीं है लेकिन यही लोग बिना प्यूरीफायर के इसे पीने के लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं. तकरीबन 64 प्रतिशत घरों में वॉटर प्यूरीफायर है जिसमें से तीन चौथाई आरओ (रिवर्स ओसमोसिस) का इस्तेमाल करते हैं.


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2031 तक लखनऊ के कई इलाकों को झेलनी होगी पानी की किल्लत

लखनऊ में जिस स्तर पर भूजल का दोहन हो रहा है, ऐसी स्थिति में अगले एक दशक में शहर के महत्वपूर्ण इलाकों में लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है.

प्रोफेसर शेखर कहते हैं, ‘ये स्टडी एक चुनौतीपूर्ण काम था. पहले हम गंगा बेसिन के एक बड़े क्षेत्र का अध्ययन कर रहे थे. लेकिन डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार लखनऊ शहर में पानी का स्तर काफी नीचे जा रहा है. जिसके बाद हमने इस पर काम करना शुरू किया.’

उन्होंने कहा, ‘लखनऊ शहर में भूमिजल की स्थिति एक भंवर की तरह हो गई है. जिस कारण अन्य जिलों और आसपास के क्षेत्रों से पानी की सप्लाई करनी पड़ रही है. इसलिए इस शहर में भूमिजल का प्रबंधन करने की तुरंत जरूरत है.’

अध्ययन के मुताबिक 2031 तक लखनऊ के मध्य में स्थित इलाके जैसे कि चारबाग रेलवे स्टेशन, कंटोनमेंट क्षेत्र, लखनऊ विश्वविद्यालय में भूजल का स्तर 2020 के मुकाबले 20-25 मीटर नीचे तक जा सकता है. इसके इतर लखनऊ शहर से सटे इलाकों में भी 2031 तक 5-10 मीटर तक भूजल का स्तर गिर सकता है.

भूजल निकास के वर्तमान स्थिति को देखते हुए अध्ययन के दौरान शहर को 5 विशिष्ट जोन्स ( ए से लेकर ई) तक में बांटा गया है. जोन ए जिसमें आलमबाग, चारबाग रेलवे स्टेशन, गोमती नगर, लखनऊ विश्वविद्यालय को शामिल किया गया है, वहां देखा गया कि पानी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल (1968 (m3/ day/ km2) यहीं हो रहा है. वहीं लखनऊ से सटे इलाकों में भूजल का दोहन कम हो रहा है.


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शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि मुख्य कारण

इस अध्ययन में कहा गया है कि शहरीकरण, लोगों के जीवन स्तर में सुधार और जनसंख्या में तेज वृद्धि कुछ ऐसे प्रमुख कारण हैं जिसकी वजह से लखनऊ शहर में पानी का संकट गहराता जा रहा है.

प्रोफेसर शेखर ने दिप्रिंट से कहा, ‘लखनऊ शहर के घने आबादी वाले क्षेत्रों में भूजल का प्रबंधन करने में मुश्किल होगी और टीआरईआई द्वारा सुझायी सिफारिशों को लागू करना चुनौती होगी लेकिन इसे मजबूत हौसले के साथ किया जा सकता है.’

2011 की जनगणना के अनुसार लखनऊ की कुल आबादी करीब 45.9 लाख है, जिसमें 23.94 लाख पुरुष और 21.95 लाख महिलाएं हैं. शहर में जनसंख्या बढ़ने की रफ्तार करीब 25.82 प्रतिशत है जो कि 2001 की जनगणना के मुकाबले (32.03%) घटी है.

इस स्थिति को आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान और भी गहरा सकता है. अध्ययन के मुताबिक लखनऊ की जीडीपी में भूजल की करीब एक तिहाई (1/3) हिस्सेदारी है, जो कि लगभग 8400 करोड़ रुपए बैठता है.


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भूजल प्रबंधन के लिए सिफारिशें

भूजल के गिरते स्तर को देखते हुए ये जरूरी है कि जोन आधारित रणनीति अपना कर लखनऊ शहर में भूजल का प्रबंधन किया जाए.

जोन ए, बी, सी में सबसे ज्यादा भूजल का दोहन हो रहा है. इसे देखते हुए इन क्षेत्रों में ग्राउंडवॉटर एब्सट्रेक्शन को कम करना होगा. इसके लिए 4-स्तरीय अप्रोच सुझाया गया है.

वर्षा जल संग्रहण (रेनवॉटर हार्वेस्टिंग), भूजल की मांग में कमी, विकेंद्रीकृत वेस्टवॉटर ट्रीटमेंट प्लांट और सरफेस वॉटर का इस्तेमाल करना, इसमें शामिल हैं. इन क्षेत्रो में सरफेस वॉटर के कुछ स्त्रोत मौजूद हैं जैसे की हैदर कैनाल और मोती झील. इसे पानी की किल्लत दूर करने के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है.

जोन डी और ई के लिए अनुमान लगाया गया है कि इन क्षेत्रों में मौजूदा ग्राउंडवॉटर एब्सट्रेक्शन करीब 150 एमएलडी है. लेकिन भविष्य में शहर के विस्तार के साथ ही इन क्षेत्रों में पानी की मांग बढ़ेगी. इसे देखते हुए वेस्टवॉटर रीसाइकलिंग और डिमांड मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी पर काम करने की जरूरत है.

टीईआरआई द्वारा सुझायी गई सिफारिशों को लागू करना कितना मुश्किल है, इस पर प्रोफेसर शेखर कहते हैं, ‘दो चीज़े सबसे आसान हैं. पहला, सरफेस वॉटर का सप्लाई हाई राइज़ अपार्टमेंट्स (एचआरए) में किया जाए. इसे मोती झील और हैदर कैनाल के जरिए आसानी से किया जा सकता है.’

‘दूसरा तरीका है, शहर में हॉर्टीकल्चर, रेलवे यार्ड, पार्क और गार्डनिंग के लिए काफी पानी का इस्तेमाल होता है. इन इलाकों में ट्रीटेड वॉटर सप्लाई शुरू की जानी चाहिए.’

अध्ययन में कहा गया है कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए तुरंत ही पर्याप्त फंड मुहैया कराने की जरूरत है और इसे जल्द ही लागू किया जाना चाहिए. इसके अलावा, पानी से जुड़े कामों पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने के लिए तुरंत काम करना होगा.

अध्ययन में नीतिगत स्तर पर भी हस्तक्षेप करने को कहा गया है और जल प्रबंधन के लिए सामुदायिक स्तर पर लोगों को जोड़ने की सिफारिश भी की गई है.


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