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शुक्रवार, 18 अप्रैल, 2025
होमदेश‘इस सुरंग ने मुझसे कुछ छीन लिया, जिसे मैं वापस लेने आया हूं’ — सिल्कयारा टनल का हुआ ब्रेकथ्रू

‘इस सुरंग ने मुझसे कुछ छीन लिया, जिसे मैं वापस लेने आया हूं’ — सिल्कयारा टनल का हुआ ब्रेकथ्रू

नवंबर 2023 में उन 41 परिवारों और पूरे देश ने उन लोगों के लिए प्रार्थनाएं की, जो निर्माणाधीन हिस्से के ढहने के बाद 17 दिनों तक फंसे रहे. उनमें से कुछ ने फिर से पहाड़ों पर लौटने की हिम्मत की.

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नई दिल्ली: “पिछली बार जब मैं इस पहाड़ के अंदर था, तो मुझे नहीं पता था कि मैं ज़िंदा बाहर निकल पाऊंगा या नहीं, लेकिन आज, मैं उस टीम का हिस्सा हूं जिसने (सिल्कयारा सुरंग) को सफलतापूर्वक खोला है”, यह शब्द हैं, उत्तर प्रदेश के रहने वाले अखिलेश कुमार के जो उन 41 मजदूरों में से एक हैं, जो नवंबर 2023 में इसी सुरंग में 17 दिन तक फंस गए थे.

उन्होंने कहा, “यह गर्व और सुकून देने वाला है”.

2023 सुरंग ढहने के बाद बचाए गए कुछ मज़दूरों के लिए यह एक भावुक कर देने वाला पल था, जो बुधवार को उत्तराखंड में सुरंग के ब्रेकथ्रू के वक्त मौजूद थे. कुमार और 40 अन्य साथी मज़दूरों के लिए, ढह गई सुरंग के अंदर फंसे 17 दिन यादों से पूरी तरह से मिटाए नहीं जा सकते. आखिरकार, उन्होंने मौत को बहुत करीब से देखा.

असम के एक मज़दूर ने कहा, “मुझे उस समय की खामोशी याद है. यह डरावना था. अब, मशीन की आवाज़ सुनकर…ऐसा लगा जैसे पहाड़ ने सांस छोड़ी हो. इस बार, हम अपनी मर्ज़ी से बाहर निकले.”

अपने शब्दों में कहें तो, मज़दूरों का मानना है कि वह उस काम को पूरा करने के लिए वापस लौटे हैं जिसे उन्होंने “डर के साथ शुरू किया था, लेकिन पूरी ताकत के साथ पूरा किया.”

उन्होंने कहा, “इस सुरंग ने मुझसे कुछ छीन लिया — नींद, शांति, हिम्मत. मैं इसे वापस लेने के लिए लौटा हूं.”, “जब मैं फंसा हुआ था, तब मेरी बेटी का जन्म हुआ. मुझे लगा था कि मैं उसे कभी नहीं देख पाऊंगा, पर अब, मैं उसे बताऊंगा कि मैंने इस सुरंग को बनाने में मदद की है.”

एक तरह से बुधवार की सफलता बहादुर पुरुषों के इस छोटे समूह के लिए एक सुखद एहसास रहा, जिन्होंने डेढ़ साल से भी कम समय पहले हुई घटना की भयावह यादों को एक तरफ रखकर काम पर लौटने का फैसला किया.

बुधवार को सुरंग के ब्रेकथ्रू से ठीक पहले सिल्कयारा सुरंग के अंदर का दृश्य | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
बुधवार को सुरंग के ब्रेकथ्रू से ठीक पहले सिल्कयारा सुरंग के अंदर का दृश्य | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक (परियोजना-सिल्कयारा-बरकोट सुरंग) मोहम्मद शादाब इमाम ने दिप्रिंट को बताया, “स्ट्रक्चर बनाने का काम पूरा होने के साथ, सुरंग अब अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर रही है.”

अधिकारियों का कहना है कि 2025 के अंत में ट्रायल रन किया जाएगा, उसके बाद 2026 की शुरुआत में इसे चालू करने की उम्मीद की जा रही है.

सुरंग परियोजना की परिकल्पना चार धाम महामार्ग विकास परियोजना के हिस्से के रूप में की गई थी, जो यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के चार तीर्थस्थलों को सभी मौसम में सड़क संपर्क प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख पहल है, इसकी आधारशिला 2018 में रखी गई थी.

राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) की देखरेख में बनाई जा रही यह सुरंग सिल्कयारा और बड़कोट के बीच की दूरी को लगभग 26 किमी कम कर देगी. सिल्कयारा और बड़कोट के बीच मौजूदा रास्ता खड़ी पहाड़ियों से होकर गुज़रता है और मौसम के कारण होने वाली बाधाओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है.

दिप्रिंट ने एनएचआईडीसीएल के प्रबंध निदेशक कृष्ण कुमार और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग सचिव वी. उमाशंकर से सिल्कयारा-बड़कोट मार्ग पर उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए कॉल और व्हाट्सएप मैसेज के ज़रिए से संपर्क किया. उनकी ओर से कोई भी जवाब मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.


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‘हमने दो शहरों को जोड़ा’

अखिलेश ने कहा, “मुझे वापस आना ही था. लोगों ने मुझसे कहा, ‘तुम्हें वहां क्यों लौटना है जिसने तुम्हें लगभग मार डाला था?’ लेकिन इसे ऐसे ही छोड़ना ठीक नहीं लगा. हमने जो शुरू किया, उसे पूरा करना था.”

उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक काम नहीं, यह एक अधूरा काम था, जिसे पूरा किया जाना था.”

अखिलेश उन दर्जन भर मज़दूरों में से हैं जो अपने इस दर्द से उबरने के बाद साइट पर वापस आए. साइट पर उनकी वापसी आसान नहीं थी. कई मज़दूरों ने पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षणों का अनुभव किया — रात में नींद न आना, फ्लैशबैक, तनाव.

जयदेब दास, जो अब सुरंग में भारी मशीनरी चलाते हैं, उनका भी यही मानना है, “जब मैं रेस्क्यू के बाद पहली बार फिर से सुरंग में गया, तो मैं कांप रहा था, लेकिन फिर मैंने दीवार को छुआ और खुद से कहा- इस पहाड़ ने मुझे दफनाने की कोशिश की, लेकिन मैं अभी भी यहां हूं. मैं इसे पूरा करूंगा.”

बिहार के एक मज़दूर ने कहा, “वापस आना एक तरह की थेरेपी थी. हमें इस जगह के बारे में बुरे सपने आते थे.”

पश्चिम बंगाल के एक मज़दूर सोविक ने याद किया, “जब दीवार को भेदा गया और दूसरी ओर से रोशनी आई, तो मैं रो पड़ा. हम एक वक्त पर दुनिया से कटे हुए थे. अब, हमने दो शहरों (बड़कोट और सिल्कयारा) को जोड़ दिया है.”

‘पहले से ज़्यादा सतर्क’

इस सुरंग को बनाने के लिए न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (NATM) का इस्तेमाल किया जा रहा है.

अधिकारियों का कहना है कि इस बार सुरक्षा सर्वोपरि है. शादाब ने दिप्रिंट से कहा, “हर कदम की दोबारा जांच की जाती है. चट्टान की हर परत की निगरानी की जाती है. हम एक और हादसा बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे.”

उन्होंने कहा कि मुख्य खुदाई और स्ट्रक्चर का काम पूरा हो चुका है. “जो बचा है वह है लाइनिंग, फ्लोरिंग और फिनिशिंग.”

अगले फेज़ में सेफ्टी और इमरजेंसी सिस्टम के साथ महत्वपूर्ण मशीनरी लगाने का काम किया जाएगा. NHIDCL के शीर्ष अधिकारी ने कहा, “हमें मैन इलेक्ट्रोमैकेनिकल सिस्टम स्थापित करने हैं, जिन्हें यूरोपीय देशों से आयात किया जा रहा है. इनमें लाइटिंग, वेंटिलेशन और अग्नि-सुरक्षा तंत्र शामिल हैं.”

उन्होंने कहा कि सुरंग के अंदर आग लगने की किसी भी संभावना से निपटने के लिए उच्च दबाव वाले वाटर मिस्ट सिस्टम (HPWMS) का इस्तेमाल किया जा रहा है. “HPWS तेजी से आग बुझाने, धुएं पर नियंत्रण और सुरंग के बुनियादी ढांचे की सुरक्षा प्रदान करता है.

NHIDCL के शीर्ष अधिकारी का कहना है कि सिल्कयारा सुरंग पहली परियोजना थी जिसमें HPWMS को तैनात किया गया था.

इंटरनेशनल टनलिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड डिक्स ने दिप्रिंट को बताया, “मैं बहुत खुश हूं कि सुरंग पहाड़ के बीच से होकर गुज़र रही है. मैं एक्साइटेड हूं कि तीर्थयात्रियों के लिए इसका काम जल्द पूरा हो जाएगा. मैं कुछ हफ्ते पहले ही वहां गया था.”

ब्रेकथ्रू के बाद के फेज़ के लिए बेस्ट प्रैक्टिस के बारे में, विशेष रूप से लाइनिंग, वेंटिलेशन और अग्नि सुरक्षा के संदर्भ में, डिक्स ने कहा कि अतीत के सबक भविष्य की कार्रवाई तय करेंगे.

उन्होंने कहा, “पिछला हादसा हमें बताता है कि सभी काम बहुत सावधानी से किए जाने चाहिए. यह अभी भी वही नाज़ुक पहाड़ है. इसका मतलब है कि चट्टानों के विरूपण पर सावधानीपूर्वक नज़र रखना और प्रतिक्रिया को समायोजित करने के लिए हमेशा तैयार रहना. रेस्क्यू की तरह, मेरी भी यही सलाह है: शांत रहे, बहुत तेज़ न चलें.”

2023 सिल्कयारा सुरंग बचाव के दौरान टेलीविज़न स्क्रीन पर एक जानीमानी शख्सियत बन चुके ऑस्ट्रेलियाई ने कहा कि भारत के साथ उनका रिश्ता और भी मज़बूत हो गया है.

डिक्स ने कहा, “रेस्क्यू एक चमत्कार था. मैं हर साल धन्यवाद देने के लिए वापस आऊंगा. धन्यवाद कि सभी 41 लोग सुरक्षित और बिना किसी चोट के बाहर आ गए और धन्यवाद कि बचाव दल का कोई भी सदस्य घायल या मारा नहीं गया. मैं हर साल वापस आऊंगा.”


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बौखनाग देवता

आधुनिक तकनीक ही एकमात्र ऐसी शक्ति नहीं है जो इस परियोजना को दिशा दे रही है, बल्कि आस्था भी इसमें अहम भूमिका निभा रही है. सुरंग के प्रवेश द्वार के पास स्थानीय पर्वत देवता बाबा बौखनाग को समर्पित एक मंदिर बनाया गया है. कई ग्रामीणों और मज़दूरों का मानना ​​है कि उचित पूजा के बिना पहाड़ों को परेशान करने के कारण 2023 में यह हादसा हुआ था.

सिलक्यारा निवासी देवेंद्र रावत ने कहा, “दुर्घटना के बाद, हमें पता था कि हमें भगवान से माफी मांगनी होगी. हमने सीएम से सम्मान दिखाने के लिए यहां एक मंदिर बनाने का अनुरोध किया. अब हर सुबह, मज़दूर काम पर जाने से पहले यहां प्रार्थना करते हैं.”

इस सफल आयोजन में, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने स्थानीय देवता का उल्लेख किया. “हम सभी को 12 नवंबर, 2023 का दुर्भाग्यपूर्ण दिन याद है, जब निर्माण के दौरान सुरंग ढह गई थी…मैंने घोषणा की थी कि बाबा बौखनाग जी का मंदिर बनाया जाएगा और आज, हमने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की है.”

सीएम ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को सुरंग का नाम बाबा बौखनाग के नाम पर रखने का प्रस्ताव दिया है.

बिहार के एक मज़दूर ने कहा, “मंदिर का निर्माण डर से नहीं हुआ था. इसे सम्मान के लिए बनाया गया था. अब हम अपने काम की शुरुआत प्रार्थना से करते हैं, न केवल हमारे लिए, बल्कि पहाड़ के हम पर दयालु बने रहने के लिए.”

असम के मज़दूर के लिए मंदिर शांति लाता है. उन्होंने ज़ोर दिया, “हम इसे अंधविश्वास के रूप में नहीं देखते हैं. यह पहाड़ों के लिए सम्मान है, अन्य दुर्घटनाओं में खोई गई जानों के लिए और हमें मिले दूसरे मौके के लिए.”

सिल्कयारा और आस-पास के गांवों के स्थानीय निवासियों के अनुसार, सुरंग पहले से ही उनकी ज़िंदगी में बदलाव ला रही है. बड़कोट के एक होटल मालिक जगत सिंह ने कहा, “पहले, हल्की बारिश भी घंटों तक सड़क बंद हो जाती थी, सुरंग सब कुछ बदल देगी. पर्यटकों की आवाजाही से लेकर हमें कितनी जल्दी सामान मिल पाएगा.”

मज़दूरों के लिए सिल्कयारा सुरंग एक रास्ते से कहीं अधिक है. यह डर का सामना करने, दोस्तों को बचाने और ज़िदंगी को फिर से बनाने का प्रतीक है.

अखिलेश ने कहा, “यह सुरंग एक निशान और एक पदक दोनों है. हम दोनों को साथ लेकर चलेंगे.”

कुछ मज़दूर आखिरी बोल्ट ड्रिल होने तक यहीं रहने की योजना बना रहे हैं. कुछ लोग ब्रेकथ्रू के पहले ही साइट छोड़ चुके हैं, लेकिन वह पहाड़ों और सुरंग की बदौलत हमेशा के लिए जुड़े हुए हैं, जिसे पूरा करने में उन्होंने मदद की.

एक मज़दूर ने कहा, “यह सिर्फ सुरंग नहीं है. यह याद दिलाता है कि पहाड़ों को भी दिल है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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