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Monday, 6 May, 2024
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बीजेपी के निशाने पर आए वीएम सिंह- यूपी के करोड़पति किसान ही नहीं मेनका गांधी के कज़िन भी हैं

बीजेपी के निशाने पर आए मालामाल किसान वीएम सिंह, मेनका के कज़िन और बहुत कुछ हैं. एमएसपी गारंटी का एक विशेष क़ानून बनवाने के लिए,सरकार से अलग से बातचीत की पेशकश करके, सिंह ने आंदोलनकारी किसानों की नाराज़गी भी मोल ले ली है.

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चंडीगढ़: रविवार को, दिल्ली में किसान आंदोलन की अगुवाई कर रही, एक  प्रमुख इकाई ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएसएससी) ने, अपने राष्ट्रीय संयोजक वीएम सिंह को, उनके पद से हटा दिया.

सिंह धारा के खिलाफ चले गए थे- किसान दृढ़ता के साथ तीन कषि क़ानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर अड़े हैं, लेकिन संयोजक ने शनिवार को पेशकश कर दी थी, कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)  की गारंटी का क़ानून बनवाने के लिए, वो अलग से सरकार से बात कर सकते हैं.

छह दौर की बातचीत के बाद भी, गतिरोध बरक़रार रहने के बीच, आंदोलनकारी किसानों ने कहा कि सिंह के खिलाफ कार्रवाई का मक़सद, किसान इकाइयों को बांटने के ‘ताज़ा प्रयासों’ को रोकना था, चूंकि खालिस्तानी, नक्सलवादी, और ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ बताकर,उन्हें बदनाम करने की कोशिशें नाकाम हो गईं थीं.

तब तक, वो सोशल मीडिया पर पहले ही हलचल मचा चुके थे,चूंकि बीजेपी ने उनकी संपत्ति के लेकर उनपर निशाना साधा था. पार्टी के आईटी सेलप्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया, कि जब सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर, 2009 में यूपी के पीलीभीत से, बीजेपी के वरुण गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा था, जो इत्तेफाक़ से उनके भांजे भी थे, तो उन्होंने 632 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की थी.

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अपनी संपत्तियों और किसान आंदोलनों में अपनी मौजूदगी की तरह, सिंह बहुत विरोधाभासी नेचर के हैं. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा है, लेकिन सिंह पूर्व बीजेपी मंत्री मेनका गांधी के ममेरे भाई हैं.

कई मौक़ों पर उनके आंदोलनकारियों के साथ मतभेद भी रहे हैं, और कभी कभी वो सरकारी लकीर पर चलते दिखाई पड़ते हैं.


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दिल्ली चलो से पहले अलग हुए

एआईकेएससीसी के राष्ट्रीय संयोजक होने के नाते, सिंह उस सात सदस्यीय किसान समिति का हिस्सा थे, जिसे पूरे दिल्ली चलो विरोध को कार्यान्वित करना था. इसके अलावा उन्हें पश्चिम यूपी के किसानों को भी, ‘दिल्ली चलो’ के लिए जुटाना था.

लेकिन 26 नवंबर को दिल्ली मार्च से कुछ पहले ही, सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो संदेश पोस्ट किया, जिसमें किसानों से आग्रह किया गया था, कि वो कोविड-19 महामारी की वजह से, राष्ट्रीय राजधानी की ओर न बढ़ें. उन्होंने चेतावनी दी कि वो सब ‘बीमार’ पड़ जाएंगे, चूंकि रात में उनके ठहरने के लिए, कोई इंतज़ाम नहीं थे.

अगले दिन, जब हज़ारों किसान सिंघू बॉर्डर पर पहुंच गए,तो सिंह ने एक वीडियो संदेश पोस्ट किया, जिसमें किसानों से बुराड़ी मैदान शिफ्ट हो जाने के लिए कहा गया था. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भी यही मांग थी.

क्रांति किसान यूनियन पंजाब के अध्यक्ष, औरएआईकेएससीसी वर्किंग ग्रुप के सदस्य, डॉ दर्शन पाल ने दिप्रिंट से कहा, ‘सिंह को तब सात-सदस्यीय कार्यकारी समिति से हटा दिया गया था, जिसके बाद से हमारा, उनसे कोई लेना-देना नहीं रहा है.

सिंह अपने कुछ समर्थकों के साथ, बुराड़ी ग्राउंड शिफ्ट हो गए, और हाल ही तक वहां डेरा डाले हुए थे, जब उन्होंने एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कहा, कि सरकार ने उन्हें और बुराड़ी मैदान पर उनके 55 अन्य किसान नेताओं को, बेवक़ूफ बना दिया था.

उन्होंने कहा, ‘हमसे कहा गया था कि बुराड़ी में बैठी संस्थाओं को,सरकार के साथ बैठकों के लिए बुलाया जाएगा, लेकिन हमें इन बैठकों के लिए नहीं बुलाया जा रहा है’.

3 दिसंबर को, सिंह बुराड़ी मैदान से ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर शिफ्ट हो गए.

मेनका गांधी के कज़िन

पीलीभीत से पूर्व विधायक, 61 वर्षीय वीएम सिंह एक अमीर राजनेता, और पश्चिम यूपी से किसान नेता हैं. वो धान के लिए ख़रीद केंद्र स्थापित किए जाने, और फसलों के बेहतर दाम के लिए लड़ते रहे हैं.एआईकेएससीसी के अलावा, वो राष्ट्रीय किसान मज़दूर संगठन के संयोजक भी हैं, जिसने गन्ना किसानों की बक़ाया राशि के, सूद समेत भुगतान की सफल कानूनी लड़ाई लड़ी थी.

वो पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मेनका गांधी के ममेरे भाई हैं. उनके पिता और मेनका की मां भाई बहन हैं. 2016 में आउटलुक पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में, सिंह ने कहा था कि एक समय, वो और मेनका गहरे दोस्त थे. उन्होंने कहा कि 1989 के आम चुनावों में, जब मेनका ने जनता दल उम्मीदवार के तौर पर, पीलीभीत से चुनाव लड़ा था, तो उन्होंने मेनका की जीत में मदद की थी. और उस साल जब वो पर्यावरण और वन राज्य मंत्री बनीं, तो सिंह उनके विशेष सचिव बने.   सिंह ने जनता दल उम्मीदवार के नाते,1993 का विधान सभा चुनाव लड़ा और विजयी रहे.


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पारिवारिक कलह

मेनका गांधी और सिंह 1996 में अलग हो गए,जब, जैसा उन्होंने उसी इंटरव्यू में कहा, उनमें किसानों के लिए आंदोलन करने काजुनून पैदा हो गया, और मेनका के अंदर जानवरों के लिए. उनके और मेनका के परिवारों के बीच संपत्ति के लिए, तीन दशकों तक लड़ाई चली, जो आख़िरकार 1995 में ख़त्म हुई.इंटरव्यू में वो कहते हैं, कि जब लड़ाई चल रही थी, तब भी उनके बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ते थे.

पिछले 20 सालों में सिंह को लगातार चुनावी हार का सामना करना पड़ा है. 2002 के विधानसभा चुनावों में, वो पूरनपुर से आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर खड़े हुए, लेकिन बीजेपी प्रत्याशी से हार गए. 2004 में, कांग्रेस उम्मीदवार के नाते उन्होंने मेनका गांधी के खिलाफ, संसदीय चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. 2007 के विधानसभा चुनावों में वो पूरनपुर से, कांग्रेस के टिकट पर खड़े हुए,और बीएसपी उम्मीदवार के बाद दूसरे नंबर पर आए.

2009 में, वो कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर, मेनका केबेटे और अपने भांजे वरुण के खिलाफ लड़े लेकिन जीत नहीं सके. 2012 विधान सभा चुनावों में, वो यूपी के बारखेड़ा से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लड़े और हार गए.

अमीर और विवादित

आउटलुक के इंटरव्यू में, सिंह ने कहा कि उनके दादा सर दातार सिंह, और पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान ने, बंटवारे के दौरान पश्चिम पाकिस्तान में ज़मीन की अदला-बदली की थी, और यही वजह थी कि उनके परिवार के पास, 1,500 एकड़ ज़मीन थी जिसमें से 1,200 एकड़ मुज़फ्फरनगर में फैली थी, और 300 एकड़ उत्तर-पश्चिम दिल्ली के पंजाब खोर में थी. पंजाब खोर की 200 एकड़ अभी भी उनके पास है.

उन्होंने ये भी दावा किया कि उनके दादा ने, साहीवाल नस्ल की गायों को ब्रीड करने में सहायता की थी, और 1967-68 की हरित क्रांति,दिल्ली में उनके फार्म से शुरू हुई थी.

2009 में वरुण गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए, सिंह ने अपनी कुल संपत्ति 632 करोड़ रुपए घोषित की थी, और उन चुनावों में सबसे अमीर उम्मीदवार बन गए थे.

उनके हलफनामे के मुताबिक़, उनके पास 400 करोड़ रुपए के मूल्य की कृषि भूमि थी, और 200 करोड़ रुपए की ग़ैर-कृषि ज़मीन थी. उनके घर की क़ीमत को मिलाकर, उनकी संपत्ति 632 करोड़ रुपए की बनती थी.

2017 के यूपी विधान सभा चुनावों से पहले, दिसंबर 2015 में सिंह ने अपना सियासी संगठन शुरू किया- राष्ट्रीय किसान मज़दूर पार्टी.

उन्होंने 21 उम्मीदवारों को उतारा, और उन सब की ज़मानत ज़ब्त हो गई. 2019 में वो फिर से कांग्रेस से टिकट की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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