नयी दिल्ली, सात अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को नगा विद्रोही संगठन एनएससीएन-आईएम की स्वयंभू कैबिनेट मंत्री अलेमला जमीर को आतंकवाद वित्तपोषण के एक कथित मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि वह इस समय जमानत देने के पक्ष में नहीं है क्योंकि मुकदमा जारी है।
पीठ ने कहा, ‘‘आरोप बेहद गंभीर हैं और हमारी अंतरात्मा को झकझोरने वाले हैं।’’
शीर्ष अदालत ने अधीनस्थ अदालत को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा अपनाने और मुकदमे को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया। अदालत ने जमीर को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया और मामले की सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में तय की।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 जनवरी को जमीर को जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि आरोपों, सबूतों और उनके पति के फरार होने के तथ्य के मद्देनजर उनकी जमानत याचिका को खारिज करने के आदेश के खिलाफ दूसरी बार उनकी अपील का कोई औचित्य नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश मुकदमे में तेजी लाने की कोशिश कर रहे हैं और अभियोजन पक्ष भी जल्द से जल्द मुकदमे को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।
उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘जल्दबाजी में दिया गया न्याय, न्याय को दफनाने के समान है। हम इस बात को भी नजरअंदाज़ नहीं कर सकते कि मुकदमे से पहले पेश किए गए साक्ष्यों की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जा सकता।’’
अदालत ने जमीर के भागने की आशंक के मद्देनजर कहा था कि वह कथित तौर पर एनएससीएन-आईएम में एक उच्च पद पर थी और गवाहों को प्रभावित करने और सबूतों से छेड़छाड़ करने की स्थिति में भी थी।
आदेश में कहा गया, ‘‘इसलिए वर्तमान अपील खारिज की जाती है।’’
जमीर को 17 दिसंबर, 2019 को दिमापुर के लिए उड़ान भरने से पहले दिल्ली हवाई अड्डे पर रोककर पूछताछ की गई थी और इसके बाद राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने जमीर के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
भाषा सुरभि वैभव
वैभव
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.