अमृतसर: अमृतसर में रविवार सुबह सड़क पर तेजी से गुजरते वाहनों के बीच बटाला रोड के किनारे एक युवती छोटी-सी दुकान पर अचार और चिप्स के पैकेट संभालते नजर आ रही है और यह सब देखने में एकदम सामान्य नजर आता है, सिवाए वहां लगे एक बोर्ड के, जिस पर ‘रंधावा मशरूम फार्म’ लिखा है. दुकान पर उपलब्ध सभी खाद्य पदार्थों में भी मुख्य तौर पर मशरूम का ही इस्तेमाल किया गया है.
दुकान के ठीक पीछे स्थित ग्रे कलर की एक वेयरहाउस जैसी इमारत में बगीचे के बीच से गुजरकर वहां लगे गेट से अंदर जाया जा सकता है, जिसकी चौकीदारी एक चौकन्ने पिट बुल टेरियर और एक अमेरिकी बुली ने संभाल रखी है.
अंदर कदम रखने पर आपको एक अलग ही तरह की दुनिया नजर आती है, सर्द, नमी, और मिट्टी की सोंधी महक के बीच कुछ खास किस्म की फसलें उगी दिखती हैं, कुछ प्लास्टिक की लटकती थैलियों पर उग आई सीपियों जैसी लगती हैं, वहीं कुछ गहरे रंग की खाद पर चिकनी-सफेद सी दिखाई देती हैं.
यही वह जगह है जहां 66 वर्षीय उद्यमी हरजिंदर कौर रंधावा और उनके चार बेटे मशरूम की एक तमाम किस्में उगाते हैं, उन्हें प्रोसेस करते हैं और पैकेजिंग करके स्टोर करते हैं. यहां आपको सबसे ज्यादा प्रचलित बटन किस्म के साथ-साथ ऑएस्टर, किंग ऑएस्टर, शिटेक और पैडी स्ट्रा जैसी विदेशी किस्में तक मिलेंगी.
वैसे आमतौर पर मशरूम सर्दियों के महीनों में उगाए और बेचे जाते हैं- नवंबर से फरवरी के बीच. लेकिन वातानुकूलित फार्म के जरिये यह परिवार पूरे साल भर इस व्यवसाय को चलाने में सक्षम है.
रंधावा परिवार सही मायने में पंजाब में काफी लोकप्रिय ‘प्रगतिशील किसान’ की परिभाषा में फिट बैठता है, यानी ऐसे किसान जिन्होंने धान-गेहूं के मोनोकल्चर- जिसे उगाना काफी खर्चीला होता है और पानी की भी बहुत ज्यादा जरूरत पड़ती है- को छोड़कर फसलों की विविधता के लिए नए तरीके अपनाए हैं.
हरजिंदर कौर कहती हैं, ‘अगर कोई गेहूं-धान के चक्र से बाहर आना चाहता है, तो बिना इनोवेशन के खेती करना बहुत मुश्किल है.’
एक शौक जो धीरे-धीरे व्यवसाय में बदल गया
हरजिंदर कौर बताती है कि मशरूम की खेती के साथ उनका पहला प्रयोग 1989 में अमृतसर जिले के धारदेव में उनके घर के आंगन में शौकिया तौर पर शुरू हुआ, जब उन्होंने पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से एक कोर्स पूरा किया.
हरजिंदर कौर ने बताया, आखिरकार, 1990 के दशक के मध्य में उन्होंने इसकी खेती घर से करीब तीन किलोमीटर दूर बटाला रोड स्थित मौजूदा फार्म की जगह चार एकड़ के भूखंड पर शुरू की, और कुछ अतिरिक्त उपज को बेचना शुरू कर दिया.
पहले तो उनका यह उद्यम ज्यादातर सर्दियों में ही चलता था, लेकिन फिर रंधावा परिवार को एहसास हुआ कि अगर वे सही तापमान बनाए रखने में सफल हो जाएं तो अपने कारोबार के महीनों को बढ़ा सकते हैं. हरजिंदर के 42 वर्षीय बेटे मनदीप सिंह रंधावा बताते हैं कि उन्होंने इसके लिए शुरू में तो शेड बनाए और एयर कूलर और वाटर स्प्रिंकलर का इस्तेमाल किया.
मनदीप बताते हैं कि 2020 में परिवार ने 1.5 एकड़ में वातानुकूलित इमारत को अपनी जमीन पर बनाया और इसके बाद से ही वे अपना कारोबार साल भर चालू रखने में सफल हुए.
इस फार्म को बनाने में रंधावा परिवार को करीब 3 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े, लेकिन उनका कहना है कि इससे मिलने वाला रिटर्न काफी अच्छा है. मनदीप का दावा है कि बिजली, लेबर, और खाद जैसी लागतों के भुगतान के बाद भी वे प्रति वर्ष लगभग 50 लाख रुपये का लाभ कमाते हैं.
फैमिली अपने उत्पाद ग्राहकों को सीधे, फेसबुक पेज सहित, बेचती है, लेकिन मार्केटिंग के लिए किसी एजेंसी को नियुक्त नहीं किया गया है.
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तापमान का है सारा खेल
वातानुकूलित भवन एक मंजिला है, केवल एक हिस्से को छोड़कर जिसमें दो मंजिलें हैं. खेती के लिए 12 डार्क रूम हैं और इसमें से प्रत्येक करीब 600 वर्ग फुट का है, जिसमें दोनों तरफ लोहे की रैक लगी हैं और इसमें खाद से भरे प्लास्टिक बैग रखे हैं.
धीमी रोशनी के बीच इन थैलियों से बटन मशरूम की चमकीली टोपियां निकलती नजर आती हैं. मनदीप रंधावा कहते हैं कि ये मशरूम उनके कुल उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा हैं.
मुख्य भवन के साथ लगे एक अलग शेड में बांस के मचानों से लटकते पंचिंग बैग दिखते हैं. ये भी, खाद से भरे बैग हैं, जिनमें स्पैटुला के आकार की टोपी और एक सेंट्रल स्टिप के साथ स्प्रिंग ऑएस्टर मशरूम के गुच्छे उगे नजर आते हैं.
मनदीप रंधावा बताते हैं कि सही तापमान निर्धारित करना महत्वपूर्ण है, और खेती के हर चरण के दौरान तापमान को सही ढंग से नियंत्रित करने की जरूरत पड़ती है.
पहले 15 दिनों को स्पॉनिंग फेस कहा जाता है, जिसमें तापमान 25 से 22 डिग्री सेल्सियस के बीच बनाए रखना पड़ता है. फिर अगले 15 दिनों यानि केसिंग फेस के दौरान तापमान 22 से 17 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए, और शेष 35-40 दिनों तक, जो इसके फलने का चरण होता है, तापमान 17 डिग्री सेल्सियस से कम रखना पड़ता है.
मनदीप बताते हैं कि भंडारण के लिए, एक अलग इकाई है जो पैक किए गए मशरूमों को 3 से 4 डिग्री सेल्सियस के बीच संरक्षित करती है.
रंधावा परिवार के पास करीब 100 लोग काम करते हैं, जिनमें ज्यादातर नजदीकी गांवों की महिलाएं हैं. ये श्रमिक फसल उगाने से लेकर पैकेजिंग और प्रोसेसिंग तक सभी यूनिट्स में तैनात हैं. इस प्रोसेसिंग यूनिट में मशरूम से चिप्स, अचार, भुजिया और अन्य तरह की खाद्य सामग्री तैयार की जाती है, जो खेत के बाहर काउंटर पर डिस्प्ले भी की जाती है.
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से जुड़े किसानों के एक संगठन किसान क्लब के सलाहकार मनप्रीत सिंह ग्रेवाल कहते हैं कि मशरूम की खेती इसका एक ‘अच्छा उदाहरण’ है कि कैसे पंजाब में किसानों ने फसलों की विविधता पर काम करना शुरू कर दिया है.
उन्होंने कहा, ‘ऐसी आधुनिक खेती बढ़ी है, खासकर पिछले 10 सालों में, जबसे किसानों ने यूट्यूब और फेसबुक पर वीडियो अपलोड करना भी शुरू कर दिया है.’
उन्होंने आगे कहा कि हालांकि, ऐसी खेती में एक कमी यह है कि इसमें शुरुआत में अच्छी-खासी लागत आती है.
ग्रेवाल कहते हैं, ‘यद्यपि धान-गेहूं के चक्र से बाहर आना एक तात्कालिक जरूरत है, लेकिन इस तरह की आधुनिक खेती को विकल्प के तौर पर पेश करना गलत होगा. मैं ऐसा इसलिए कहता हूं क्योंकि इसमें शुरुआती निवेश बहुत अधिक होता है, जिसे पंजाब के ज्यादातर किसान वहन नहीं कर पाएंगे.’
हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि आधुनिक खेती अंततः अधिक सुलभ हो जाएगी. उनके मुताबिक, ‘इन किसानों के पास कुछ खास तरह के कौशल हैं, जो अंततः फसलों की विविधता के अधिक किफायती विकल्प खोजने में मददगार हो सकते हैं.’
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