नई दिल्ली : एमनेस्टी इंडिया की कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध वापस लेने की मांग पर राज्य के मंत्री प्रियांक खड़गे ने कहा, हमार पक्ष पूरी तरह साफ है. हम ऐसे किसी भी कार्यकारी आदेश की और जो भी बिल कर्नाटक की आर्थिक नीतियों के प्रतिकूल होगा उसकी समीक्षा करेंगे और जरूरी हुआ तो उसे रद्द करेंगे.
#WATCH | On Amnesty India demanding hijab ban in Karnataka be rolled back, State's minister Priyank Kharge says, "…We are very clear on our stand we will review any such executive order, we will review any Bill that is regressive to the economic policies of Karnataka, any Bill… pic.twitter.com/LYAN2H9n8R
— ANI (@ANI) May 25, 2023
राज्यमंत्री और कर्नाटक कांग्रेस के नेता प्रियांक खड़गे ने कहा, ‘जो भी बिल राज्य की छवि खराब करेगा, जो भी बिल आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोगी नहीं होगा, जो बिल रोजगार नहीं पैदा करता, जो भी बिल किसी भी व्यक्ति के अधिकारों को उल्लंघन करता है, जो भी बिल असंवैधानिक होगा उसकी समीक्षा की जाएगी और अगर जरूरी हुआ तो उसे रद्द किया जाएगा.’
गौरतलब है कि हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बंटा हुआ फैसला आया था और बाद में इसे अदालत की बड़ी बेंच के पास भेजा दिया गया था जहां पर यह अभी भी लंबित है.
गौरतलब है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च 2022 हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए यूनिफॉर्म को उचित बतया था और शिक्षा संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
#WATCH | When asked about RSS in the wake of Congress' stand on a ban on PFI and Bajrang Dal in the state, Karnataka Minister Priyank Kharge says, "Any organisation, either religious, political or social, who are going to sow seeds of discontent & disharmony in Karnataka will not… pic.twitter.com/a6H4pDSWIT
— ANI (@ANI) May 25, 2023
जब राज्य में पीएफआई और बजरंग दल पर प्रतिबंध को लेकर कांग्रेस के रुख के मद्देनजर आरएसएस के बारे में जब पूछा गया तो कर्नाटक के मंत्री प्रियांक ने कहा, ‘कोई भी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक संगठन, जो भी कर्नाटक में असंतोष और असामंजस्य के बीज बोएगा, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. हम उससे कानूनी और संवैधानिक तौर पर निपटेंगे- चाहे वह बजरंद दल हो, पीएफआई या कोई और संगठन. अगर वे कर्नाटक में कानून और व्यवस्था के लिए खतरा बने तो उन पर प्रतिबंध लगाने से हिचकेंगे नहीं.’
यह भी पढ़ें : हरियाणा की एथलीट और कोच जिसने एक मंत्री पर यौन शोषण का आरोप लगाया, अब उनका करियर ही दांव पर है
हिजाब मामला सुप्रीम कोर्ट में है लंबित
मामला सुप्रीम कोर्ट जाने पर इस पर पीठ ने बंट हुआ फैसला सुनाया था. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिकाओं को खारिज कर दिया था जबकि जस्टिस सुधांशु ने उन याचिकाओं को अनुमति दे दी थी.
जस्टिस सुधांशु धूलिया ने याचिकाओं को अनुमति देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था. न्यायमूर्ति धूलिया ने आदेश सुनाते हुए कहा था, ‘यह पसंद की बात है, इससे ज्यादा कुछ नहीं.’ बाद में इसे सर्वोच्च अदालत की बड़ी बेंच को भेज दिया था जहां पर यह मामला अभी लंबित है.
हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया था बंटा हुआ फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब मामले पर 13 अक्टूबर 2022 को बंटा हुआ फैसला सुनाया था.
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था और कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध को राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा था. जबकि धूलिया ने हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था.
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों में से एक ने कहा था कि मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा और वह तय करेंगे कि नई पीठ मामले की सुनवाई करेगी या मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाएगा.
जस्टिट गुप्ता ने कहा था, विचारों में भिन्नता है. मेरे आदेश में, मैंने 11 सवाल तैयार किए हैं. पहला यह कि क्या अपील को संविधान पीठ के पास भेजा जाना चाहिए.’
इससे पहले शीर्ष अदालत ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
मामले में 10 दिनों तक बहस चली थी जिसमें याचिकाकर्ता की ओर से 21 वकीलों और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज, कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने प्रतिवादियों के लिए दलीलें दी थीं.
शीर्ष अदालत में पेश की अपीलों में से एक ने आरोप लगाया था कि ‘सरकारी अधिकारियों के सौतेले व्यवहार ने छात्रों को अपने विश्वास को प्रैक्टिस करने से रोका है और जिससे अवांछित कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा हो गई है. अपील में कहा गया था है कि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में ‘अपने दिमाग के इस्तेमाल में पूरी तरह से विफल रहा है और स्थिति की गंभीरता के साथ-साथ भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत निहित आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के मूल पहलू को समझने में असमर्थ रहा है.’
हालांकि बाद में मामले को शीर्ष अदालत की बड़ी बेंच को भेज दिया गया था.
यह भी पढ़ें : मणिपुर की ताजा हिंसा के बाद बिष्णुपुर की महिलाओं ने सुरक्षा बलों का रास्ता रोका, बोलीं- मूक दर्शक है RAF
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब पर प्रतिबंध को रखा था बरकरार
गौरतलब है कि इससे पहले 15 मार्च को एक सुनवाई में कर्नाटक हाईकोर्ट ने हिजाब को लेकर छात्रों के विरोध को गलत बताया था और इस पर प्रतिबंध बरकरार रखते हुए यूनिफॉर्म को उचित बताया था.
हाईकोर्ट ने कहा था, ‘हमारी सुविचारित राय है कि मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लामी आस्था में एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है. हमारा मानना है कि स्कूल यूनिफॉर्म संवैधानिक रूप से स्वीकार्य एक उचित प्रतिबंध है, जिस पर छात्र आपत्ति नहीं कर सकते हैं.’
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पीठ ने कहा था कि 5 फरवरी के सरकारी आदेश को अमान्य करार देने का मामला नहीं बनता है.
कोर्ट ने उस समय की भाजपा सरकार के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें स्कूलों और कॉलेजों के यूनिफॉर्म नियमों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया गया था. इसने यह भी कहा था कि हिजाब पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाएं निराधार हैं.
कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष अपने फैसले का बचाव किया था और कहा था कि हिजाब पहनना इस्लामी में आवश्यक धार्मिक प्रैक्टिस नहीं है.
राज्य की ओर से पेश महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा था कि याचिकाकर्ताओं ने अपने दावे को साबित करने के लिए कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, इसको लेकर कोई भी सबूत सामने नहीं रखा है.
पत्रकारों से बात करते हुए नवदगी ने कहा था कि व्यक्तिगत पसंद पर संस्थागत अनुशासन प्रबल होता है, जो कि अनुच्छेद 25 की एक उचित व्याख्या है.
ऐसे शुरू हुआ था हिजाब पहनने को लेकर विवाद
हिजाब विवाद जनवरी 2022 में तब शुरू हुआ था जब उडुपी के गवर्नमेंट पीयू कॉलेज ने कथित तौर पर हिजाब पहनने वाली छह लड़कियों को संस्थान में प्रवेश से रोक दिया था. प्रवेश नहीं दिए जाने पर छात्राएं कॉलेज के बाहर धरने पर बैठ गईं थीं.
इसके बाद उडुपी के कई कॉलेजों के लड़के प्रतिक्रिया में भगवा स्कार्फ पहनकर कक्षाओं में जाने लगे थे. यह विरोध राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया और कर्नाटक में कई स्थानों पर विरोध और आंदोलन शुरू हो गया था.
नतीजा यह हुआ था कि उस समय कर्नाटक की बोम्मई सरकार ने सभी छात्रों को कॉलेज यूनिफॉर्म का पालन करने को कहा था और एक विशेषज्ञ समिति द्वारा इस मुद्दे पर निर्णय लेने तक हिजाब और भगवा स्कार्फ दोनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. 5 फरवरी को, प्री-यूनिवर्सिटी एजुकेशन बोर्ड ने एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कहा गया था कि छात्र केवल स्कूल प्रशासन द्वारा तय यूनिफॉर्म पहन सकते हैं और कॉलेजों में किसी अन्य धार्मिक पोशाक की अनुमति नहीं होगी.
आदेश में यह भी कहा गया था कि अगर प्रबंधन समितियां यूनिफॉर्म तय नहीं करतीं, तो छात्रों को ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो समानता और एकता के विचार से मेल खाते हों और सामाजिक व्यवस्था न बिगाड़ने वाले हों.
वहीं दूसरी तरफ शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने की इजाजत के लिए कुछ लड़कियों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में सरकार के के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी.
10 फरवरी को, हाईकोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि जब तक अदालत अंतिम आदेश जारी नहीं करती तब तक छात्रों को कक्षाओं में कोई धार्मिक पोशाक नहीं पहननी चाहिए. हिजाब मामले से जुड़ी सुनवाई 25 फरवरी को पूरी हुई थी और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
यह भी पढ़ें : ‘राष्ट्रपति मुर्मू का अपमान’, नये संसद भवन के उद्घाटन का कांग्रेस समेत 18 पार्टियां करेंगी बहिष्कार