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Friday, 22 November, 2024
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यूपी की महिला जज ने सहकर्मी पर लगाया यौन उत्पीड़न का आरोप, CJI से मांगी आत्महत्या की अनुमति

'एक विशेष जिला न्यायाधीश और उनके सहयोगियों द्वारा' यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए, महिला सिविल जज का दावा है कि उन्हें 'जांच शुरू करने में छह महीने और एक हजार ईमेल' लगे.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश (यूपी) की एक महिला सिविल जज ने महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकथाम (POSH) अधिनियम, 2013 को “एक बड़ा झूठ” करार देते हुए, भारत में कामकाजी महिलाओं को “यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीखने” की सलाह दी. उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ को एक खुला पत्र लिखा, जिसमें एक जिला न्यायाधीश और उनके सहयोगियों द्वारा कथित यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच में “एक वर्ष से अधिक समय में बहुत कम प्रगति” के बाद अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी.

यह पत्र जो गुरुवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, कथित तौर पर आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिका बुधवार को “आठ सेकंड के भीतर खारिज” होने के बाद लिखा गया था. महिला ने अपने पत्र में आगे दावा किया है कि इसके बाद उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश की, लेकिन उनका पहला प्रयास असफल रहा.

इसलिए उन्होंने सीजेआई को “सबसे बड़े अभिभावक” के रूप में संबोधित करते हुए अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी, और उन्होंने लिखा, “मेरे जीवन का कोई उद्देश्य नहीं बचा है.”

महिला जज ने अपने पत्र में आगे आरोप लगाया, “एक विशेष जिला न्यायाधीश और उनके सहयोगियों द्वारा मेरा यौन उत्पीड़न किया गया है. मुझे रात में जिला जज से मिलने के लिए कहा गया. मैंने 2022 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के माननीय मुख्य न्यायाधीश और प्रशासनिक न्यायाधीश (उच्च न्यायालय के न्यायाधीश) से शिकायत की. आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. किसी ने भी मुझसे यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि ‘क्या हुआ, आप परेशान क्यों हैं’.”

दिप्रिंट को दिए एक बयान में सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने कहा, “सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देशों के तहत न्यायिक अधिकारी द्वारा सभी शिकायतों की वर्तमान स्थिति जानने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट को एक पत्र भेजा गया है, जिसमें आज [गुरुवार] सुबह 11 बजे तक महिला ने अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी थी. सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को कल रात फोन पर सूचित किया गया कि हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश ने भी ओपन लेटर का संज्ञान लिया है.”

यह दावा करते हुए कि आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) को POSH दिशानिर्देशों के तहत कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायतें प्राप्त करने और उनका निवारण करने के लिए अनिवार्य किया गया है, उसे “एक जांच शुरू करने में छह महीने लगे और एक हजार ईमेल” करने पड़े. महिला न्यायाधीश ने लिखा, “मैंने जुलाई 2023 में हाई कोर्ट की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) से शिकायत की. जांच शुरू करने में ही छह महीने और एक हजार ईमेल लग गए. प्रस्तावित जांच भी एक दिखावा है.”

महिला जज के मुताबिक उनकी शिकायतों की जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है.

यह कहते हुए कि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए जांच के लंबित रहने के दौरान आरोपी न्यायाधीश के स्थानांतरण के उनके अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया गया, उन्होंने आरोप लगाया, “जांच में गवाह जिला न्यायाधीश के तत्काल अधीनस्थ हैं. समिति गवाहों से अपने मालिक के विरुद्ध गवाही देने की अपेक्षा कैसे कर सकती है? ये मेरी समझ से परे है. यह बुनियादी बात है कि निष्पक्ष जांच के लिए गवाह को प्रतिवादी (अभियुक्त) के प्रशासनिक नियंत्रण में नहीं होना चाहिए.”

गुरुवार को दिप्रिंट से बात करते हुए महिला जज ने आरोप लगाया कि आरोपी “जानबूझकर उन्हें निशाना बना रहा है, परेशान कर रहा है क्योंकि उन्होंने रात में मिलने जैसी उनकी मांगों को अस्वीकार कर दिया है.”

उन्होंने संबंधित जज और जिला बार एसोसिएशन के दो पदाधिकारियों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, “POSH अधिनियम के अनुसार, मामले की जांच तीन महीने के भीतर समाप्त हो जानी चाहिए थी, लेकिन उस जांच को शुरू होने में ही छह महीने लग गए.”

जुलाई 2023 में जांच शुरू होने के बाद भी आरोपी उसी पद पर बने रहे, उन्होंने आरोप लगाया कि “अगर वे लोग उसी पद पर रहेंगे तो जांच निष्पक्ष नहीं होगी.”

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “उस तथाकथित पूछताछ का कोई उद्देश्य नहीं होगा. आरोपी ऊंचे पद पर हैं और ताकतवर हैं. मेरे सभी गवाह अधीनस्थ हैं.”

उन्होंने आगे दावा किया कि आरोपी अभी भी यूपी के बाराबंकी जिले में उसी पद पर कार्यरत है.


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‘शिकायत करोगी तो प्रताड़ित किया जाएगा’

सीजेआई को लिखे अपने दो पन्नों के ओपन लेटर में, महिला न्यायाधीश ने लिखा है कि वह केवल एक “निष्पक्ष जांच” चाहती थीं और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर उन्होंने इस महीने सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की थी, उसे बुधवार को “आठ सेकंड के भीतर” खारिज कर दिया गया.”

उन्होंने आगे लिखा, “मेरे साथ बिल्कुल कूड़े जैसा व्यवहार किया गया है. मैं किसी कीड़े जैसी महसूस कर रहा हूं और मैं दूसरों को न्याय दिलाना चाहती थी. मैं कितनी भोली हूं! मैं भारत की सभी कामकाजी महिलाओं से कहना चाहती हूं, यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीख लें. यह हमारे जीवन का सच है.”

उन्होंने आगे कहा, “अगर तुम शिकायत करोगी तो तुम्हें प्रताड़ित किया जाएगा. शांत रहें. और जब मेरा मतलब है, कोई नहीं सुनता, इसमें सुप्रीम कोर्ट भी शामिल है. आपको आठ सेकंड की सुनवाई मिलेगी, आपका अपमान होगा और [न्यायिक कार्यवाही के लिए] जुर्माना लगाने की धमकी दी जाएगी. आपको आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया जाएगा और यदि आप भाग्यशाली हैं (मेरे विपरीत) तो आत्महत्या का आपका पहला प्रयास सफल होगा.”

पत्र में आगे आरोप लगाया गया कि “अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेंगे, तो मैं आपको बता दूं, मैं ऐसा नहीं कर पाई और मैं एक जज हूं. मैं अपने लिए निष्पक्ष जांच भी नहीं करवा सकी. न्याय तो दूर की बात है. मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखें.”

यह दावा करते हुए कि उन्हें “पिछले डेढ़ साल में एक चलती फिरती लाश बना दिया गया है”, उन्होंने पत्र में आगे लिखा कि “अब इस बिना आत्मा और जिंदगी वाले इस शरीर को लेकर नहीं भटक सकती और अब इस जिंदगी का कोई मतलब बचा भी नहीं है.”

उन्होंने लिखा, “मैंने सोचा था कि उच्चतम न्यायालय ऐसी सीधी, सौम्य प्रार्थना अवश्य सुनेगा. मुझे क्या पता था? मेरी रिट याचिका बिना किसी सुनवाई, लेकिन मेरी प्रार्थनाओं पर विचार किए बिना आठ सेकंड में खारिज कर दी गई. बस एक वाक्य, और ख़ारिज कर दिया गया. मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरी जिंदगी, मेरी गरिमा और मेरी आत्मा को खारिज कर दिया गया है, यह व्यक्तिगत अपमान जैसा महसूस हुआ.”

उन्होंने आगे कहा, “कृपया मुझे अपना जीवन सम्मानजनक तरीके से समाप्त करने की अनुमति दें. मेरे जीवन को भी ख़ारिज करने की अनुमति दी जाए.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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