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Sunday, 28 April, 2024
होमदेश‘जबरन Kiss, चुप रहने की रिश्वत’— उन्नाव में स्कूल के हेडमास्टर ने 2 साल तक छात्राओं का किया यौन उत्पीड़न

‘जबरन Kiss, चुप रहने की रिश्वत’— उन्नाव में स्कूल के हेडमास्टर ने 2 साल तक छात्राओं का किया यौन उत्पीड़न

माना जाता है कि स्कूल के कर्मचारियों द्वारा उजागर किया गया, उन्नाव प्रकरण एक शैक्षणिक संस्थान में यौन अपराध के सबसे घृणित मामलों में से एक के रूप में उभरा है. हेडमास्टर को पिछले हफ्ते गिरफ्तार किया गया था.

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उन्नाव: सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली की छात्रा उस समय सदमे में आ गई जब वह दो महीने पहले उन्नाव के एक सरकारी स्कूल में अपने हेडमास्टर के कैबिन में गई. प्रधानाध्यापक-51 वर्ष की आयु का व्यक्ति जिसने कथित तौर पर लड़की को पकड़ लिया और उसे जबरदस्ती चूमना शुरू कर दिया.

लड़की ने विरोध किया और वहां से भागने लगी. जब उसने अपने दोस्तों से इस बारे में  चर्चा की, तो उन्हें समस्या की गंभीरता का पता चला.

हेडमास्टर राजेश कुमार द्वारा कथित तौर पर यौन उत्पीड़न की शिकार छात्राओं में से एक की मां ने कहा, “अन्य लोगों ने अपनी आपबीती साझा की और बताया कि वो उनका भी यौन उत्पीड़न कर रहा था.”

“तब, अगस्त के आसपास, आखिरकार उन्होंने एक टीचर को बताया कि असल में हो क्या रहा था.”

मामले को स्कूल के कर्मचारियों द्वारा उजागर किया गया जिस पर स्टूडेंट्स ने भरोसा किया, हाल के दिनों में एक शैक्षणिक संस्थान में यौन अपराध की एक घिनौनी गाथा है. यह प्रकरण हरियाणा के जिंद के एक पब्लिक स्कूल से इसी तरह का मामला सामने आने के कुछ हफ्ते बाद आया है.

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उन्नाव मामला एक ‘कंपोजिट’ को-एड स्कूल में (प्री-प्राइमरी से कक्षा 8 तक) हुआ जिसमें 189 स्टूडेंट्स हैं, जिनमें से 86 लड़कियां हैं.

अब तक, अनुमानित 17 स्टूडेंट्स कुमार द्वारा हमले के आरोपों के साथ आगे आई हैं. इनमें चूमने के आरोप, गर्दन, छाती, पेट और निजी अंगों को अनुचित तरीके से छूने और चुप रहने के लिए रिश्वत दिए जाने के आरोप शामिल हैं.

पीड़ितों में सबसे उम्रदराज 14 साल और सबसे छोटी लड़की साढ़े छह साल की है.

हेडमास्टर स्कूल में मैथ्स और साइंस पढ़ाता था और कथित तौर पर इसका इस्तेमाल स्टूडेंट्स को अपने कैबिन में बुलाने के लिए किया करता था.

दिप्रिंट से बात करते हुए, उन्नाव बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की अध्यक्ष प्रीति सिंह ने कहा कि यौन उत्पीड़न पिछले दो वर्षों से चल रहा था.

उन्होंने कहा, “तीन पूर्व छात्र जो अब स्कूल से पास हो चुके हैं और इंटरमीडिएट में पढ़ रहे हैं, उन्होंने भी पुष्टि की है कि जब वे कंपोजिट स्कूल के स्टूडेंट्स थे तो उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था.”

सिंह ने कहा, “हमने अब तक 17 छात्राओं के बयान दर्ज किए हैं जिन्होंने यौन उत्पीड़न और बुरे स्पर्श (Bad Touch) के आरोपों की पुष्टि की है.”

राजेश कुमार को 27 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354, धारा 294, धारा 9एफ, और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 10 के तहत मामला दर्ज किया गया.

Headmaster Rajesh Kumar was arrested over the allegations last week | By special arrangement
हेडमास्टर राजेश कुमार को पिछले हफ्ते गिरफ्तार किया गया था | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

लेकिन प्रभावित छात्राएं अभी भी इस घटना के दुष्परिणाम से जूझ रहा हैं — कई को दुर्व्यवहार को पहले नहीं बताने के लिए माता-पिता की निंदा का सामना करना पड़ रहा है, जबकि अन्य पर कलंक के डर से चुप रहने का दबाव है.

सातवीं कक्षा की एक छात्रा की मां ने कहा कि उसके शराबी पिता ने लड़की की पिटाई की थी और रिपोर्टर को घर से जाने के लिए भी कहा था. एक अन्य ने कहा कि उसने खुद ही अपनी बेटी को कड़ी सुरक्षा दी क्योंकि उसने पहले अपने टीचर्स पर भरोसा किया था.

कई अन्य माता-पिता ने कहा कि उन्होंने वैकल्पिक संस्थानों की तलाश में अपनी बेटियों को मिड सेशन में स्कूल भेजना बंद कर दिया है.

बाल कल्याण अधिकारियों का कहना है कि कलंक का डर लड़कियों को बोलने से रोक रहा है, जो अंततः मामले को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने के प्रयासों को नुकसान पहुंचा सकता है.

उन्नाव सीडब्ल्यूसी की प्रीति सिंह ने कहा, “हमारे सामने समस्या यह है कि माता-पिता छात्राओं को हमसे बात करने से रोक रहे हैं.” उन्होंने आगे कहा, “हम उन्हें कानूनी सहायता और परामर्श प्रदान करना चाहते हैं.”

मामला कैसे हुआ सार्वजनिक

उन्नाव मामला 25 नवंबर को सामने आया, जब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और उन्नाव सीडब्ल्यूसी की एक टीम ने स्कूल का दौरा किया.

वे एक “गोपनीय सूत्र” से मिली शिकायत पर कार्रवाई कर रहे थे.

टीम का नेतृत्व करने वाली एनसीपीसीआर सदस्य प्रीति भारद्वाज ने कहा कि जिन लड़कियों ने यौन उत्पीड़न की बात स्वीकार की है, उनकी उम्र 6.5 से 14 साल के बीच है.

जानकारी मिली है कि उनमें से कम से कम तीन-चार ने “गंभीर यौन उत्पीड़न” की बात को स्वीकार किया है.

सिंह ने कहा, लगभग सभी 17 छात्राओं ने हेडमास्टर द्वारा पैसे दिए जाने की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि राशि ज्यादातर 5-10 रुपये के बीच थी, लेकिन कम से कम दो लड़कियों को 100 रुपये दिए गए थे.

सिंह के अनुसार, प्रधानाध्यापक “उन्हें किसी को मत बताना और तुम जब बड़ी हो जाओगी, तब तुमसे बात करेंगे” जैसी बातें कहते थे.

प्रधानाध्यापक से लड़ने वाली सातवीं कक्षा की छात्रा की मां ने कहा कि उनकी बेटी ने एनसीपीसीआर-सीडब्ल्यूसी अधिकारियों के स्कूल पहुंचने से दो दिन पहले उन्हें हमले के बारे में बताया था.

उन्होंने कहा, “मैंने उसे सलाह दी कि वह उसके कैबिन में जाना बंद कर दे और उसे आश्वासन दिया कि हम टीचर्स से बात करेंगे, लेकिन इससे पहले कि हम ऐसा कर पाते, एनसीपीसीआर की टीम आ गई और लड़कियों के बयान दर्ज कर लिए.”

अपनी बेटी द्वारा बताई गई बातों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, “जब लड़कियां अपनी नोटबुक चैक करवाने हेडमास्टर के कैबिन में जाती थीं, तो वह उन्हें जबरदस्ती चूमता और परेशान करता था.”

उन्होंने कहा कि कुछ स्टूडेंट्स को स्पोर्ट्स इवेंट्स की तैयारियों के वास्ते रविवार को भी स्कूल बुलाया जाता था.

मां ने कहा, “कभी-कभी, जब कर्मचारी सरकारी योजनाओं से संबंधित काम के लिए स्कूल आते थे, तो हेडमास्टर बिना किसी कारण के लड़कियों को बुला लेते थे.” मां ने कहा, “शिक्षकों ने हेडमास्टर पर नज़र रखना शुरू कर दिया था”.

एक अन्य स्टूडेंट की मां ने कहा कि जिस टीचर को सबसे पहले इसका पता चला, उसने “सबसे पहले स्टूडेंट्स को हेडमास्टर के कैबिन में अकेले नहीं जाने की सलाह दी”.

माना जाता है कि इसी टीचर ने स्टूडेंट्स से अपने माता-पिता को यह सब बताने के लिए भी कहा था.

उन्होंने कहा, “टीचर ने बच्चों से कहा कि वे केवल ग्रुप्स में ही उनसे मिलें और वह भी केवल तभी, जब उन्हें अपनी नोटबुक चैक करानी हो.”

मां ने कहा, “बाद में अन्य सभी टीचर्स को भी पता चला.”, उन्होंने आगे कहा, “रसोइयों ने पिछले हफ्ते कुछ स्टूडेंट्स को अपनी आपबीती के बारे में चर्चा करते हुए सुना. इसके बाद टीचर्स के एक ग्रुप ने सामूहिक रूप से लड़कियों से बात की.”

भारद्वाज ने कहा कि वे घटना पर “एक रिपोर्ट तैयार कर रही हैं” और इसे एनसीपीसीआर अध्यक्ष को सौंपेंगी, जिसके बाद उनकी सिफारिशें उन्नाव प्रशासन को भेजी जाएंगी.

उन्होंने कहा, अपनी रिपोर्ट के हिस्से के रूप में, वह जिला प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के लिए एक सिफारिश देंगी कि बच्चों और उनके माता-पिता को बाल अधिकार विशेषज्ञों द्वारा नियमित परामर्श प्रदान किया जाए.

उन्होंने कहा, “जिला प्रोबेशन अधिकारी (डीपीओ) और बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन इसमें मदद कर सकते हैं.”


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माता-पिता द्वारा पिटाई, बदनामी का डर

इस प्रकरण ने स्कूल में लड़कियों के माता-पिता के बीच भय और घबराहट का माहौल पैदा कर दिया है.

छठी कक्षा की एक स्टूडेंट की मां – जो उन 17 लोगों में से एक है जिनका बयान एनसीपीसीआर द्वारा दर्ज किया गया है – ने खुद को आरोपों से दूर रखने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, “हमारे मोहल्ले की एक लड़की ने मुझे अपने ऊपर हुए हमले के बारे में बताया है. मेरी बेटी को किसी भी चीज़ का सामना नहीं करना पड़ा और उसने मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं बताया.” उन्होंने आगे कहा, “कृपया चले जाइए और मेरे पति के सामने (इस बारे में) बात मत कीजिए. वह गुस्सैल हैं.”

सातवीं कक्षा की एक स्टूडेंट की मां ने कहा कि वह स्थानीय अदालतों और पुलिस थानों में जाने से डरती हैं.

उन्होंने कहा, “हम डरे हुए हैं. हमने कभी नहीं सोचा था कि कोई गुरु ऐसा काम कर सकता है.” उन्होंने कहा कि हमले का सामना करने वाले कई स्टूडेंट्स “आगे नहीं आ रहे हैं.”

एक अन्य माता-पिता ने कहा कि उनकी “12-वर्षीय बेटी ने उन्हें नहीं बताया था कि प्रधानाध्यापक उसे पैसे दे रहा था.”

उन्होंने आगे कहा, “जब मुझे पता चला कि उन्होंने टीचर्स को बताया है कि हेडमास्टर ने उसे गलत तरीके से छुआ है, तो मैंने उसकी पिटाई की क्योंकि मैं गुस्से में थी कि उसने मुझसे कुछ भी शेयर नहीं किया.”

उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहतीं कि उनकी बेटी किसी सरकारी अधिकारी या पुलिस कर्मी से बात करे.

उन्होंने आगे कहा, “मैं उसे अब इस स्कूल में नहीं भेजूंगी. मैं उसे कोई बयान देने के लिए नहीं भेजूंगी. मैं उसका स्कूल बदल दूंगी.”

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर, उन्नाव डीपीओ छविनाथ राय ने कहा कि चूंकि ये मुद्दा उनके विभाग से “संबंधित नहीं” है, उन्हें माता-पिता द्वारा बच्चों को स्कूल जाने से रोकने के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

उन्होंने कहा, “(यौन उत्पीड़न मामले में) पुलिस जांच जारी है.”


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न्याय की राह में बाधा

दिप्रिंट से बात करते हुए, भारद्वाज ने कहा कि माता-पिता के प्रतिरोध और हतोत्साहन के कारण ही एनसीपीसीआर टीम के आने वाले दिन आधी से अधिक छात्राएं स्कूल से अनुपस्थित थीं.

भारद्वाज ने कहा कि उन्नाव में जो हो रहा है वह “हरियाणा के जिंद के मामले के समान है, जहां लगभग 143 छात्राएं शामिल हैं”.

उन्होंने कहा, “जब हम स्कूल पहुंचे तो 86 लड़कियों में से केवल 42 ही मौजूद थीं क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें आने से रोक दिया था.” उन्होंने कहा, “हमने अपनी यात्रा को गोपनीय रखा और पहले घंटों तक बच्चों को भरोसे में लिया, क्योंकि कई लड़कियों को उनके माता-पिता ने हमले के बारे में किसी से बात न करने के लिए सिखाया था.”

A team of NCPCR and CWC members interacting with district administration and police officers | Shikha Salaria | ThePrint
एनसीपीसीआर और सीडब्ल्यूसी सदस्यों की एक टीम जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों के साथ बातचीत करते हुए | फोटो: शिखा सलारिया/दिप्रिंट

मामले के उचित निष्कर्ष के लिए, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है, पुलिस के लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बच्चों को सिखाया-पढ़ाया न जाए या उन्हें अपनी आपबीती बताने से रोका न जाए.

सुप्रीम कोर्ट के वकील कुमार मिहिर ने कहा, “आखिरकार, सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बच्चे के बयान को किसी भी अन्य बयान पर प्राथमिकता दी जाएगी.”

मिहिर ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया को बच्चों के अनुकूल बनाने की जिम्मेदारी POCSO अदालतों पर भी है ताकि बच्चे से कोई आक्रामक पूछताछ और चरित्र हनन न हो.

उन्होंने कहा, “ऐसे मामलों में समस्या यह है कि लोग कानूनी प्रक्रिया से भयभीत हो जाते हैं, यही वजह है कि सज़ा की दर बहुत कम होती है.”

जुलाई 2022 में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद को बताया कि 2020 में POCSO के तहत 47,221 मामले दर्ज किए गए, उस वर्ष सज़ा की दर 39.6 प्रतिशत थी. दिसंबर 2022 के एक अन्य उत्तर के अनुसार, 2021 के लिए सज़ा की दर 32.2 प्रतिशत थी.

‘POCSO का एक दशक’ – 2012 और 2021 के बीच ई-अदालतों में आजमाए गए POCSO मामलों का विश्लेषण, एक थिंक टैंक, सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में जस्टिस, एक्सेस एंड लोअरिंग डिलेज़ इन इंडिया (JALDI) पहल द्वारा किया गया. विश्व बैंक में डेटा एविडेंस फॉर जस्टिस रिफॉर्म (DE JURE) कार्यक्रम के सहयोग से – पाया गया कि 43.44 प्रतिशत मुकदमे दोषमुक्ति में समाप्त होते हैं और केवल 14.03 प्रतिशत में सजा होती है.

मिहिर ने कहा, ज्यादातर मामलों में मीडिया का दबाव नागरिक समाज और एनसीपीसीआर और सीडब्ल्यूसी जैसे निकायों को मामले पर ध्यान देने और परिवारों को कानूनी सहायता देने में मदद करता है. उन्होंने कहा, “अन्यथा, मामले की गति खत्म हो जाएगी.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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