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Tuesday, 19 November, 2024
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पेगासस जासूसी विवाद: ‘दो जासूस करे महसूस….हर चेहरे पे नकाब है’

1975 में आई राज कपूर और राजेंद्र कुमार अभिनीत फिल्म दो जासूस  इन दिनों काफी चर्चा में है. इसी जासूसी फिल्म और हिन्दी में जासूसी पर बनी फिल्मों के बारे में दिप्रिंट आपको बता रहा है.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को आरोप लगाया कि मोदी सरकार देश को ‘सर्विलांस स्टेट’ बनाना चाहती है. पेगासस जासूसी कांड के सामने आने के बाद पूरी दुनिया में निजता और सर्विलांस को लेकर बहस तेज हो गई है.

भारत समेत दुनिया भर के कई नेताओं, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन पर निगरानी रखे जाने की बात सामने आई है. भारत की विपक्षी पार्टियों ने इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की है. लेकिन भारत में जासूसी का ये कोई पहला मामला नहीं है. पूर्व मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को तो कथित जासूसी के कारण अपनी गद्दी तक गंवानी पड़ गई थी.

रविवार को, मीडिया संगठनों के एक वैश्विक संघ द्वारा किये एक खुलासे से पता चला कि इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल भारत में कथित तौर पर 300 मोबाइल फोन नंबरों की गुपचुप निगरानी करने के लिए किया गया था.

इनमें दो वर्तमान केंद्रीय मंत्री, तीन विपक्षी नेता, एक संवैधानिक प्राधिकारी (अथॉरिटी), सुरक्षा से जुड़े संगठनों के पूर्व एवं वर्तमान प्रमुख, कई प्रशासक और 40 से भी अधिक वरिष्ठ पत्रकार और कार्यकर्ताओं के नंबर भी शामिल थे. कई अंतर्राष्ट्रीय नाम भी इस सूची में शामिल हैं.

लेकिन केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने संसद में सरकार का बचाव करते हुए कहा कि इस रिपोर्ट का कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है और ये भारतीय लोकतंत्र की छवि खराब करने के लिए किया जा रहा है. उन्होंने दावा किया था कि भारत में अवैध तरीके से निगरानी नहीं हो सकती.

हालांकि मोदी सरकार अपने पर लग रहे सभी आरोपों को खारिज कर रही है. बुधवार को एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी बयान जारी कर पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की है.

हालांकि संसद के मौजूदा मानसून सत्र में ये मुद्दा और भी जोर पकड़ने की उम्मीद है लेकिन राजनीति से इतर भारतीय फिल्मों और धारावाहिकों के लिए भी जासूसी एक पसंदीदा विषय रहा है. दूरदर्शन पर तो कई सालों तक जासूसी धारावाहिकों ने खूब लोकप्रियता हासिल की जिसमें व्योमकेश बक्शी, जासूस विजय, डिटेक्टिव करण, तहकीकात शामिल है.

1975 में आई राज कपूर और राजेंद्र कुमार अभिनीत फिल्म दो जासूस  इन दिनों काफी चर्चा में है. इसका एक गाना- दो जासूस करे महसूस….ये दुनिया बड़ी खराब है…को लोग सोशल मीडिया पर काफी शेयर कर रहे हैं और पेगासस जासूसी कांड पर निशाना साध रहे हैं. इसी जासूसी फिल्म और हिन्दी में जासूसी पर बनी फिल्मों के बारे में आज दिप्रिंट आपको बता रहा है.


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‘दो जासूस’

जासूसी तो देश दुनिया में सदियों से ही होती रही है. जासूसी का नाम और काम समय के साथ बदलता रहा है. जासूसी जब देश के लिए की जाती है तो इंटेलीजेंस की बात की जाती है. जब देश में बड़ा हमला हो जाता है तो उसे इंटेलीजेंस फेल्योर भी कहा जाता है. हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक जासूसी फिल्में खूब पसंद की जाती रही हैं. जेम्स बांड 007 तो सीरीज ही है..पिछले 50 से अधिक वर्षों से जेम्स बांड जिस रूप में स्क्रीन पर आया पसंद ही किया गया.

ठीक वैसे ही भारतीय सिनेमा में जासूसी पर कई फिल्में बनीं हैं. निर्देशकों के लिए ये काफी पसंदीदा विषय रहा है. 1975 में आई दो जासूस में राज कपूर और राजेंद्र कुमार ने धरमचंद और करमचंद नाम के दो जासूसों की भूमिका निभाई है.

दो जासूस फिल्म में एक लड़की का पता लगाने का जिम्मा उसका पिता दो जासूसों को देता है लेकिन गलती से फोटो बदल जाने के कारण, जासूस गलत लड़की की तलाश में लग जाते हैं. जिस लड़की की तलाश जासूस करते हैं वो एक खून की चश्मदीद गवाह होती है. खून करने वाला इस लड़की के पीछे पड़ जाता है और उसे मार देना चाहता है लेकिन जासूसों के कारण वो सफल नहीं हो पाता.

जासूस का काम सिर्फ किसी व्यक्ति विशेष की हर खुफिया जानकारी निकालना होता है. चाहें वो जानकारी समय-समय पर पीछा कर के निकाली जाए या फिर मोबाइल में घुसकर. जैसा की पेगासस में किया गया..चूंकि अब बैंक से लेकर आपकी रुचि की हर बात फोन से होकर गुजरती है इसलिए सबसे बड़ा आपका जासूस आप हाथ में लिए हर समय चल रहे हैं. पेगासस स्पाई ने और कमाल कर दिया है वो आपकी बातचीत तक आपके बारे में रुचि रखने वालों को पहुंचा रहा है. आप किस समय कहां थे ये तो मोबाइल बता ही देता है लेकिन अब ये बता देता है कि आपके साथ कौन था और आपने क्या-क्या किया.


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जासूसी पर बनी हिन्दी फिल्में

सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म व्योमकेश बक्शी, 2014 में राजीव खंडेलवाल की फिल्म सम्राट, अरशद वारसी की फिल्म मिस्टर जो बी कारवालो, 1992 में आई अक्षय कुमार की फिल्म मिस्टर बॉन्ड, 2015 में आई जग्गा जासूस, 1982 में आई गोपीचंद जासूस, संजय दत्त की फिल्म चतुर सिंह, शाहरुख खान की बादशाह, विद्या बालन की बॉबी जासूस और निर्देशक बुद्धदेव दासगुप्ता की फिल्म अनवर का अजब किस्सा कुछ ऐसी ही हिन्दी फिल्में हैं जो जासूसी पर आधारित है.

समय के साथ जासूसी के तरीकों में काफी बदलाव आया है. तकनीक के विस्तार के बाद कई सॉफ्टवेयर के जरिए जासूसी की जाती है. हालिया पेगासस जासूसी कांड में भी स्पाइवेयर के जरिए टार्गेट लोगों के फोन को निशाना बनाया गया और उनकी जानकारी ली गई. गौरतलब है कि इजरायली कंपनी एनएसओ सिर्फ संप्रभु सरकार को ही ये स्पाइवेयर बेचती है इसलिए मोदी सरकार से ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या उसने लोगों के फोन की निगरानी की.

दिप्रिंट ने बीते दिनों अपने संपादकीय में मोदी सरकार से दो अहम सवाल पूछे थे. पहला, क्या उसने भारत में पैगासस का इस्तेमाल किया? और दूसरा, क्या लोगों को निशाना बनाया जा रहा था और क्यों?

दुनिया भर के अखबार इस मुद्दे पर प्रमुखता से छाप रहे हैं और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मान रहे हैं. तकनीक से घिरी इस दुनिया में जब डेटा की सुरक्षा को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं, ऐसे में पेगासस का ये मुद्दा एक बार फिर इस बात की ओर ध्यान खींचता है कि हमारी जानकारी कितनी सुरक्षित है, क्या सरकार अपने ही लोगों की जासूसी करा रही है और क्यों और किस हद तक हमारी निजता सुरक्षित है?

ऐसे में मोहम्मद रफी और मुकेश की आवाज़ में दो जासूस फिल्म का ये गाना आज के हालात में मौजूं है और इस बात की तरफ इशारा करता है कि हर वक्त कोई न कोई हम पर निगरानी कर रहा है और हर चेहरे पर नकाब है.

दो जासूस करे महसूस के दुनिया बड़ी खराब है
कौन है सच्चा कौन है झूठा हर चेहरे पे नक़ाब है
ज़रा सोचो ज़रा समझो ज़रा संभलके रहियो जी
ज़रा सोचो ज़रा समझो ज़रा संभलके रहियो जी


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