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Wednesday, 24 April, 2024
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ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के शिकार लोगों के परिवार बीते 6 दिनों से अपनों की तलाश में बेताब

दो जून की दुर्घटना में 288 हताहतों की संख्या में से 87 शव अभी भी अज्ञात हैं. इस बीच, अस्पतालों में परिवारों द्वारा पहचान के बावजूद शवों का पता नहीं लगाया जा सकता है.

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कटक/भुवनेश्वर: हंसराज कुमार प्लास्टिक के स्टूल पर बैठकर एलईडी स्क्रीन पर उड़ीसा ट्रेन हादसे के शिकार लोगों की तस्वीरें देख रहे हैं. वे अपने 22-वर्षीय बेटे की तलाश कर रहे हैं, जो कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार था, जो 2 जून को दो अन्य ट्रेनों से जुड़ी दुर्घटना का शिकार हो गई. उस दुर्घटना में मरने वालों की आधिकारिक संख्या 288 है, जिसमें 87 शव का अभी भी पता लगाया जाना बाकी है.

उन्होंने एम्स भुवनेश्वर में दिप्रिंट से कहा, “मैंने इसे अब भगवान पर छोड़ दिया है. मैं सुबह से फोटो देख रहा हूं…कोई इन लोगों को पहचान सकता है क्या? शव इतने क्षत-विक्षत हैं कि पहचान में नहीं आ रहे हैं…मुझे नहीं पता कि मेरा बेटा कहां है. यहां तक कि अगर वे मर भी गया है, तो मैं उसके शरीर की पहचान कैसे करूंगा?.”

उनका बेटा हरदेव कुमार (22), पश्चिम बंगाल के शालीमार से पिछले शुक्रवार दोपहर तीन अन्य लोगों के साथ एक्सप्रेस ट्रेन में सवार हुआ. झारखंड के दुमका के ये निवासी, काम की तलाश में चेन्नई जा रहे थे.

हंसराज ने कहा, “हमने उसे गांव छोड़ने से रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने नहीं सुनी,” कुमार याद करते हैं जो घातक दुर्घटना के बाद से मुश्किल से सो पाए हैं. परिवार पहले बालासोर गया, लेकिन वहां हरदेव का पता नहीं चल सका. इसके बाद वे भुवनेश्वर आ गए. हंसराज ने बताया, “चार में से केवल दो शव बरामद किए गए हैं.”

अस्पताल में मुर्दाघर के बगल में एक विशेष हेल्प डेस्क स्थापित किया गया है. ओडिशा में दुर्घटना में मारे गए लोगों की तस्वीरों वाली सर्पिल बाउंड बुक के अलावा, मृतकों और सौंपे गए शवों की अलग-अलग सूची भी रखी जाती है.

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डॉक्टरों, ओडिशा पुलिस, भुवनेश्वर नगर निगम और ईस्ट कोस्ट रेलवे यात्रियों के परिजनों की मदद के लिए एम्स में स्थापित इन कियोस्क की देखरेख कर रहे हैं.

इस बीच, पारादीप बंदरगाह से लाए गए पांच विशेष कंटेनर, एम्स के एनाटॉमी भवन के अंत में खड़े हैं, जहां सुरक्षा और पुलिस कर्मियों का पहरा है. यहीं पर 87 अज्ञात शव पड़े हैं. डॉ. पात्रा ने दिप्रिंट को बताया, “शवों को -18 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है. इस तापमान पर, उन्हें हफ्तों तक स्टोर किया जा सकता है.”

The containers at AIIMS Bhubaneswar where the unidentified bodies are being preserved | Sreyashi Dey | ThePrint
एम्स भुवनेश्वर में कंटेनर जहां अज्ञात शवों को संरक्षित किया जा रहा है | श्रेयशी डे/दिप्रिंट

नाम न बताने की शर्त पर ड्यूटी पर मौजूद एक अन्य डॉक्टर ने कहा, दुर्घटना इतनी भीषण थी कि शव इतने क्षत-विक्षत हो गए थे कि पहचान में नहीं आ रहे. वे आगे कहती हैं, “हम परिजनों से पूछ रहे हैं कि क्या वे जिस शरीर की तलाश कर रहे हैं, क्या उसकी पहचान करने के लिए कोई बर्थमार्क या टैटू है.”

ओडिशा के बहनागा बाज़ार में शुक्रवार को कोरोमंडल एक्सप्रेस, यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी की टक्कर में कम से कम 288 लोगों की मौत हो गई. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने दुर्घटना की जांच अपने हाथ में ले ली है और अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की है.


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अंतहीन इंतज़ार

उन लोगों के लिए दुख कम नहीं है जिन्होंने अपने परिजनों के शवों की पहचान कर ली है लेकिन–वे अभी तक उन्हें ढूंढ नहीं पाए हैं. बंगाल के दक्षिण 24 परगना के जगन्नाथ बनर्जी, जो अपने भाई शुभाशीष की तलाश कर रहे हैं, ने दिप्रिंट से कहा, “हम एम्स भुवनेश्वर गए और स्क्रीन पर उसकी तस्वीर देखी. वो नंबर 153 पर था, लेकिन जब हमने शव पर दावा करने की कोशिश की, तो अधिकारियों ने हमें बताया कि वह यहां एम्स में नहीं है.”

Jagannath searches at the Cuttack SCB Hospital for his brother whose body can’t be traced | Sreyashi Dey | ThePrint
जगन्नाथ अपने भाई के शव के लिए कटक एससीबी अस्पताल में तलाश कर रहे हैं | श्रेयशी डे/दिप्रिंट

सुभाशीष (27) रेलवे द्वारा कॉनट्रैक्ट कर्मचारी के रूप में काम मिलने के बाद वे ड्यूटी ज्वाइन करने के वास्ते चेन्नई जा रहा था. पश्चिम बंगाल के कुलपी के 6 लोग शालीमार से कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार हुए थे. उनमें से चार के शवों की पहचान कर ली गई है और एक व्यक्ति हादसे में बच गया, लेकिन सुभाशीष के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

उन्होंने कहा, “जैसे ही हमें दुर्घटना के बारे में पता चला हम ओडिशा के लिए रवाना हो गए. चूंकि ट्रेन की लाइनें बंद थीं, इसलिए हमने बालासोर पहुंचने के लिए 30,000 रुपये में एक कार किराए पर ली. हमें बालासोर जिला अस्पताल की किताब में उसके शव की तस्वीर मिली. उन्होंने हमें एम्स भुवनेश्वर जाने के लिए कहा था.”

कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जगन्नाथ कहते हैं, “एक बार जब हम वहां गए, तो हमने फिर से शव की पहचान की, लेकिन वे उसे ढूंढ नहीं पाए. उसके शरीर पर नंबर 153 चिपका हुआ है, लेकिन यह कहीं नहीं मिला है.” “उन्हें अंतिम संस्कार के लिए शरीर के साथ घर लौटने की उम्मीद है.”

झारखंड के फिरोज कुमार (18) पिछले शुक्रवार से एक पल के लिए भी नहीं सोए हैं. उनका होजराज कुमार (25) बहनागा बाज़ार रेलवे स्टेशन पर मालगाड़ी से टकराई हुई ट्रेन में सवार था. फिरोज ने दाढ़ी से अपने भाई को पहचाना, लेकिन जब वे शव का दावा करने के लिए एम्स में हेल्प डेस्क पर गए, तो उन्हें पता चला कि भागलपुर का एक और परिवार पहले ही दावा कर चुका है और मंगलवार को इसे अपने साथ ले गया.

फिरोज ने अब डीएनए टेस्ट के लिए अपना ब्लड सैंपल दिया है. फिलहाल प्रशासन ने शव को भागलपुर से भी कब्जे में ले लिया है. डीएनए टेस्ट से पता चलेगा कि शव किसका है.

पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के गोपाल हेब्रम (20) दो जून को संतरागाछी स्टेशन से कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार हुए. वे तमिलनाडु की एक प्लाईवुड फैक्ट्री में काम शुरू करने जा रहे थे.

उन्होंने शुक्रवार शाम 6:30 बजे अपनी पत्नी तुसी हेब्रम से बात की.

तुसी ने कहा, “मेरे पति के साथ तीन अन्य लोग यात्रा कर रहे थे. वे सभी बच गए और बालासोर अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि एक बड़ी दुर्घटना हुई है और मेरे पति को पुलिस मौके से ले गई है. हमें कटक के अस्पताल के आईसीयू में उसकी इलाज के दौरान की एक तस्वीर मिली है, लेकिन हम उसका पता नहीं लगा सकते हैं.”

उनकी शादी को सिर्फ दो साल हुए हैं. अब तुसी कटक के एससीबी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में अपने माता-पिता, भाई और सास के साथ बैठी है, अपने पति के साथ घर लौटने की उम्मीद कर रही है.

वे कहती हैं, “मेरे पति नहीं मिल रहे हैं, हम उनकी स्थिति नहीं जानते हैं, हम उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में खोज रहे हैं…मैं उन्हें इस तरह नहीं खो सकती.” वे ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर के साथ वे पहले ही हर वार्ड, एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक तलाश कर चुकी हैं, लेकिन उन्हें यहां उनका पति नहीं मिला.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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