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Monday, 23 December, 2024
होमदेश‘नानाजी मोदी के बारे में गलत थे’- व्लॉग पर कश्मीर की आवाज उठा रही महबूबा की बेटी इल्तिजा की बेबाक राय

‘नानाजी मोदी के बारे में गलत थे’- व्लॉग पर कश्मीर की आवाज उठा रही महबूबा की बेटी इल्तिजा की बेबाक राय

अपने परिवार के गुपकर रोड स्थित आवास पर बैठकर इल्तिजा मुफ्ती ने बिजनेस, भाजपा और नूपुर शर्मा समेत तमाम मुद्दों पर बात की. वह अब सिर्फ महबूबा मुफ्ती की बेटी से कुछ ज्यादा आगे बढ़ना चाहती हैं.

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जम्मू/कश्मीर: इल्तिजा मुफ्ती बात करना चाहती हैं. दरअसल, वह सिर्फ अपनी बात कहने से ज्यादा लोगों की बात सुनना चाहती हैं. वह कहती हैं कि कश्मीरी इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं और इसी बात को पुरजोर तरीके से उठाने के लिए उन्होंने वीडियो ब्लॉग को अपना हथियार बनाया है. हर पखवाड़े जारी होने वाले उनके इस व्लॉग का टाइटल #AapKiBaatIltijaKeSaat है. वह पूरी दृढ़ता के साथ कहती हैं कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम से कतई प्रेरित नहीं है.

कश्मीर के प्रमुख दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की कमान संभालने वाले सियासी परिवार की सबसे कम उम्र की सदस्य इल्तिजा ने तीन साल पहले राजनीति में कदम रखा, जब उन्होंने अपनी मां महबूबा मुफ्ती का ट्विटर हैंडल संभालना शुरू किया, जो अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जेल में बंद थीं.

फिर, 27 मई को 35 वर्षीय इल्तिजा ने उस समय राजनीतिक अटकलों को हवा दी, जब उन्होंने पीडीपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने ‘खामोशी और खौफ का माहौल’ बनाने के लिए भाजपा की आलोचना की और कश्मीरियों से आग्रह किया कि इसके खिलाफ अपनी ‘आवाज उठाएं.’

इल्तिजा का कहना है कि इस पोस्ट का उनके राजनीति में सक्रिय होने से कोई लेना-देना नहीं है, और वो तो केवल एक संवाद शुरू करना चाहती हैं. लेकिन कई राजनेता अपने करियर की शुरुआत इसी तरह करते हैं. हिलेरी क्लिंटन ने सीनेट के लिए रेस में शामिल होने से पहले 1999 में अमेरिका में ‘लिसनिंग टूर’ शुरू किया था. वहीं, राहुल गांधी ने 2000 के दशक के अंत में अपने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ दौरों के तहत देश के दूरदराज के तमाम इलाकों की यात्रा की.

वह इस बात पर जोर देती है, ‘मैं एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखती हूं, और जब चाहूं राजनीति में आ सकती हूं. इस संदेश का इरादा मेरे राजनीति में सक्रिय होने की घोषणा करना नहीं, बल्कि उन कश्मीरियों के साथ बातचीत की शुरुआत करना था, जिन्हें बोलने की अनुमति नहीं है.’

जून की एक दोपहर श्रीनगर के गुपकर रोड स्थित अपने आलीशान पारिवारिक आवास में बैठीं इल्तिजा ज्यादातर कश्मीर और कश्मीरियों के बारे में ही बात करना चाहती हैं. फिर भाजपा, जिसकी वह तीखी आलोचना करती है, को लेकर अपनी राय रखना चाहती हैं जिसमें पार्टी की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणियों को लेकर घाटी में विरोध-प्रदर्शन भी शामिल है. उनका दावा है कि उनके बारे में कोई बात करने से ज्यादा ‘उपयुक्त’ होगा कि ऐसे मुद्दों पर चर्चा की जाए.

भले ही वह आधिकारिक तौर पर यह घोषित करें या नहीं, लेकिन इल्तिजा ने टेलीविजन पर अपनी उपस्थिति और सार्वजनिक तौर पर सक्रियता के बलबूते न केवल अपनी मां की बेटी के रूप में पहचान बना ली है, बल्कि उन्हें भविष्य में पीडीपी का चेहरा भी माना जाने लगा है.

महबूबा की तरह इल्तिजा भी पूरी आक्रामकता के साथ भाषण देने में कुशल है, लेकिन अपनी मां के विपरीत वह अपने बालों को खुला रखती हैं. उनके उच्चारण में श्रीनगर से ज्यादा नई दिल्ली की छाप नजर आती है, और वह खुलकर दावा करती हैं कि पीडीपी के दिवंगत नेता और उनके नाना मुफ्ती मोहम्मद सईद ने एक 2015 में भाजपा के साथ गठबंधन करके ‘गलती’ की थी.


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‘मां की बेटी’ बन रहीं

शुद्ध उर्दू के साथ अंग्रेजी बोलते हुए इल्तिजा कभी-कभी अपनी हिंदी भाषी बोलचाल पर आ जाती है, खासकर जब वह आक्रोशित होती हैं.

उदाहरण के तौर पर, कश्मीर में कथित तौर पर हिरासत में मौतों के बारे में बात करने के दौरान वह कहती है, ‘कनपट्टी पे बंदूक रखकर… उनको ठोंक दिया जाता है.’

हिंदी भाषा पर उनकी शानदार पकड़ स्वाभाविक है. आखिरकर, उनका जन्म दिल्ली में हुआ था और उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा राष्ट्रीय राजधानी और शिमला से पूरी की है.

इल्तिजा मुफ्ती अपनी मां और बड़ी बहन इर्तिका के साथ | फोटोः स्पेशल अरेंजमेंट

घर से दूर, वह कई मायनों में एक ‘बाहरी’ हुआ करती थीं, इसी बात ने उन्हें किताबों की ओर आकृष्ट किया और इससे वह विभिन्न नजरियों को समझने और उनके साथ तालमेल बैठाने की समक्ष हो पाईं.

इल्तिजा ने बताया, ‘मुझे बचपन में डिस्लेक्सिया था और मैंने खुद को किताबों की दुनिया में समेटना बेहतर समझा. सीखने में अक्षम व्यक्ति के तौर पर मुझे लगा कि पढ़ना गैर-परंपरागत ज्ञान, दिलचस्प पात्रों और विभिन्न दृष्टिकोणों से भरी एक नई दुनिया ही आपके सामने पेश कर देता है.’ साथ ही बताती हैं कि उन्हें खासकर इतिहास पर आधारित फिक्शन, पौराणिक गाथाएं और मानव विज्ञान और मानव मन के बारे में नॉन-फिक्शन पढ़ने में मजा आता है.

उनके पसंदीदा उपन्यासों में अमिताव घोष का द ग्लास पैलेस और रोहिंटन मिस्त्री का ए फाइन बैलेंस शामिल है, जो दोनों ही मजबूत राजनीतिक अंतर्धाराओं के साथ गढ़ी गई गाथाएं हैं, जिसका कथानक आम लोगों को केंद्रबिंदु बनाकर उनके इर्द-गिर्द रचा गया है.

मनोविज्ञान और साहित्य के प्रति अपनी रुचि के बावजूद इल्तिजा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज से अपनी स्नातक डिग्री की पढ़ाई के लिए राजनीति विज्ञान को चुना. उसके बाद, उन्होंने यूके के लिए उड़ान भरी, जहां वारविक यूनिवर्सिटी से इंटरनेशनल रिलेशंस में मास्टर्स डिग्री हासिल की.

किसी भी अन्य युवा महिला की तरह इसके बाद के सालों में उन्होंने विभिन्न करियर विकल्पों को तलाशा, जिसमें कुछ समय के लिए दुबई में गल्फ न्यूज में काम करना और फिर दिल्ली स्थित एक थिंक टैंक में एक रिसर्च असिस्टेंट की नौकरी करना शामिल है.

फिर भी, कश्मीर और राजनीति से कभी बहुत दूरी नहीं रही.

दुबई और दिल्ली में नौकरी करने के बीच जुलाई 2015 में वह कुछ समय के लिए घर चली गईं, जब उनके नाना पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में बतौर मुख्यमंत्री कार्यरत थे. वह लगभग 80 वर्ष के थे और वह बैठकों को ट्रैक करने और नोट्स बनाने में उनकी छोटी-मोटी मदद करती रहती थीं.

जनवरी 2016 में नाना की मृत्यु के बाद उनकी मां—जिन्हें अक्सर मीडिया में और यहां तक कि उनके खिलाफ एक पुलिस डोजियर में भी ‘डैडीज गर्ल’ कहा जाता रहा है—ने पदभार संभाल लिया और इल्तिजा उनकी मदद के लिए फिर वहां पहुंच गईं. उस समय तक सब कुछ उसकी मां के नियंत्रण में था.

लेकिन ऐसा ज्यादा समय तक नहीं चला. भाजपा ने जून 2018 में गठबंधन तोड़ दिया, यह दावा करते हुए कि कश्मीर में उग्रवाद और कट्टरता बढ़ रही है. भाजपा के राष्ट्रीय मुखपत्र कमल संदेश ने यह भी कहा कि पीएम की ‘मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रतिबद्ध दृष्टिकोण’ क्षेत्र में ‘स्थायी शांति और विकास’ की राह खोलेगा.

इसके बाद जम्मू-कश्मीर फिर राज्यपाल शासन के अधीन आ गया, फिर छह महीने बाद राष्ट्रपति शासन लग गया. यह स्पष्ट होने लगा था कि जल्द ‘सामान्य’ स्थिति लौटने वाली नहीं है. राज्य में सैन्य और अर्धसैनिक बलों की मौजूदगी काफी ज्यादा बढ़ गई, कई स्थानीय नेताओं को नजरबंद कर दिया गया और इंटरनेट सेवाओं को अक्सर निलंबित किया जाने लगा.

कश्मीर में लगातार गंभीर होते माहौल के बीच इल्तिजा एक बार फिर घर लौट आईं. कुछ महीने बाद 5 अगस्त 2019 को संसद ने अनुच्छेद 370 निरस्त करने पर अपनी मुहर लगा दी, जिससे तहत कश्मीर को खास दर्जा और ‘स्वायत्तता’ मिली हुई थी. जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म हो गया और यह भाजपा-नीत केंद्र सरकार के तहत एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया.

उसी दिन महबूबा मुफ्ती और कश्मीर के अन्य नेताओं को नजरबंद कर दिया गया और उन्हें सार्वजनिक जीवन से अलग-थलग कर दिया गया. यही वह समय था जब इल्तिजा ने अपनी ‘मां की बेटी’ बनने का फैसला किया, यहां तक कि 2020 में एक प्रेस मीट में भी उन्होंने यह बात कही.

इल्तिजा ने अपनी मां के साथ-साथ पीडीपी के भी ट्विटर अकाउंट की बागडोर संभाली, हालांकि इससे पहले कभी सोशल मीडिया यूजर नहीं रही थी. (‘यह व्यक्तिगत विकास को प्रभावित करता है.’)

घाटी में करीब छह महीने तक इंटरनेट पर पाबंदी रही थी, लेकिन इल्तिजा का कहना है कि वह सिस्टम को ‘बेवकूफ’ बनाने में कामयाब रहीं और उनका ब्रॉडबैंड चालू रहा. यह एक तरह का रिस्क था, लेकिन इसने बातचीत जारी रखने में मदद की.

तबसे, अभी तक चुनावों के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है और पीडीपी की तरह ही नेशनल कॉन्फ्रेंस और जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी जैसे क्षेत्रीय दल भी राजनीतिक संवाद कायम करने की कोशिशों से जूझ रहे हैं. इस साल कई नागरिकों की मौत के बीच सुरक्षा-व्यवस्था काफी कड़ी है और घाटी के कई हिस्सों में आवाजाही पर पाबंदी लगी हुई है.

महबूबा 20 महीने की कैद के बाद कुछ समय पहले वापस आ चुकी हैं, लेकिन इल्तिजा ने जो कुछ शुरू किया था, उसे अब रोकना नहीं चाहतीं. भले ही वह और उनकी मां हमेशा एक-दूसरे से सहमत न होती हों.


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‘घर पर अब मेरी चलती है’

मुफ्ती परिवार के घर में डिनर टेबल पर बातचीत ज्यादातर राजनीति और घाटी की स्थिति के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन कई बार हल्के-फुल्के क्षण भी आए.

इल्तिजा बताती हैं, ‘मैं अपनी मां से बहुत बहस करती हूं…और मुझे घर पर हुक्म चलाने में बहुत मजा आता है.’ कभी-कभार नाराज होने के बावजूद उनकी मां ‘एक दोस्त से कहीं अधिक’ और विश्वस्त हैं.

वह कहती हैं, ‘मेरी मां लोगों को बहुत अच्छी नकल कर लेती हैं और उनका सेंस ऑफ ह्यूमर जबर्दस्त है इसलिए हम मजेदार किस्से भी साझा करते रहते हैं.’

ह्यूमर के मामले में इल्तिजा भी अपनी मां से कम नहीं है, खासकर जब वह अपने घर आ चुके विभिन्न राजनेताओं को याद करती हैं. उनकी शुरुआती और सबसे जीवंत यादें लालू प्रसाद यादव से जुड़ी हुई हैं जो बेहद खूबसूरती से सजाए गए कमरे में बैठे थे, मुंह में पान चबाते जा रहे थे और उसे बार-बार पीकदान में उगल रहे थे.

हालांकि, क्या मुफ्ती परिवार का हिस्सा होने के बावजूद ऐसा कोई जोखिम है कि इल्तिजा को प्रतिभाशाली बेटी के तौर पर खारिज कर दिया जाए कि वह पैराशूट की तरह कभी भी आती-जाती रहती हैं?

इल्तिजा मुफ्ती | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

लेकिन इल्तिजा ऐसा नहीं मानती, खासकर तब जब लगातार जुड़े रहने के लिए सोशल मीडिया एक बेहतर साधन है. जाहिर है, वह खुद को लोगों का चेहरा बनाना चाहती है—जिस भूमिका की लोगों को उनकी मां से अपेक्षा रही है.

उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ लोगों को एक उम्मीद देना चाहती हूं. हमारी आवाज हमारे पास सबसे बड़ा हथियार है और मैं कश्मीरियों की आवाज को बुलंद करना चाहती हूं.’

इल्तिजा के मुताबिक, ‘ऐसी जगह जहां हमें मुश्किल से अपने घर से निकलने की आजादी है, आपस में जुड़े रहने का एकमात्र तरीका सोशल मीडिया ही है… मेरी नानी भी पूरे दिन फोन पर व्यस्त रहती हैं—इसी से मुझे यह (कश्मीरियों के साथ ऑनलाइन जुड़ने का) आइडिया आया.

अब तक, उनके पहले वीडियो पर प्रतिक्रिया साधारण और मिलीजुली रही है. कुछ ने कहा कि उनका ‘अगला सीएम’ बनना तय है, दूसरों ने उन्हें ‘वंशवादी’ कहकर खारिज कर दिया.

लेकिन, दिप्रिंट के साथ अपनी बातचीत के दौरान इल्तिजा ने इस बात पर जोर दिया कि वह ‘लोगों को खुश करने’ के बजाये ‘सच’ बोलने में अधिक रुचि रखती हैं. फिर भी, किसी अन्य राजनेता की तरह वह भी अपनी छवि की परवाह करती हैं. इंटरव्यू शुरू करने से पहले, उन्होंने कैमरे के फ्रेम को जांचा, और उसे मनमुताबिक पाया और बोलीं—’यह मेरी प्रोफ़ाइल दिखाता है. क्या आपको नहीं लगता कि इसे सीधा होना चाहिए?’


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एंग्री यंग वुमेन

पिछले महीने के वीडियो में इल्तिजा ने उम्मीदों की बात तो की, लेकिन उनका ज्यादा जोर कश्मीरियों के ‘उत्पीड़न’, ‘अन्याय’ और ‘अपमान’ जैसे शब्दों पर रहा और उन्होंने एक शेर के साथ इसका समापन करते हुए धैर्य के साथ कठिनाइयों से जूझने की सलाह दी—‘कर लेता हू बर्दाश्त तेरा हर दर्द इसी आस के साथ; कि खुदा नूर भी बरसता है, आजमाइशों के बाद.’

बोलने की आजादी के लिहाज से नई परीक्षा घाटी के कुछ हिस्सों में शटडाउन और इंटरनेट पर पाबंदी के रूप में सामने आई है, जब भाजपा नेताओं नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैगंबर मुहम्मद पर की गई टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. नूपुर शर्मा को पार्टी निलंबित कर दिया गया और जिंदल को निष्कासित कर दिया गया है, लेकिन इल्तिजा इसे पर्याप्त नहीं मानती हैं.

उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई दो-राय नहीं हैं कि भाजपा ही कट्टरपंथी तत्वों को मुख्यधारा में लाई है. मुझे सबसे ज्यादा चिंताजनक तो यह लगता है कि इस सारी दिखावटी कार्रवाई के लिए भी भारत सरकार ने अरब देशों की नाराजगी का इंतजार किया. भारत में अल्पसंख्यकों के लिए भविष्य उज्ज्वल नहीं दिखाई देता है.’

भाजपा की आलोचना करना कुछ ऐसा है जो इल्तिजा अपनी मां की तरह ही पूरे जोश और वाक्पटुता के साथ करती हैं. उनकी आंखों में एक चमक आ जाती है. कई बार सत्तारूढ़ दल के बारे में बात करते-करते वह मूल मुद्दे से भी भटक जाती थीं.

वह कहती हैं, ‘घाटी में एक मजबूत भारत विरोधी भावना है. पर्यटन का मतलब यह नहीं है कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य हो गया है. स्थिति हर गुजरते दिन के साथ और खराब होती जा रही है.’

इल्तिजा इसके लिए पूरी तरह से केंद्र सरकार को दोषी ठहराती हैं. वह कहती हैं, ‘उन्होंने कश्मीर में भारत विरोधी भावना पैदा की है. वे घाटी में पाकिस्तान की राह आसान कर रहे हैं. राजनीतिक दलों को बदनाम करना एक बात है और कश्मीरियों को बदनाम करना दूसरी बात. इस सरकार ने हर कश्मीरी को बदनाम किया है.

इल्तिजा के मुताबिक, सरकार वोट पाने के लिए ‘आधे इतिहास’ का सहारा ले रही, और ‘वोट की खातिर’ सांप्रदायिक तनाव भड़काकर मुसलमानों, डोगराओं और कश्मीरी पंडितों को निराश कर रही है. इसके अलावा, वह कहती हैं कि भारत में कहीं और होने वाले सांप्रदायिक संघर्ष कश्मीर के युवाओं में कट्टरपंथी भावना भर रहे हैं.

वह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल और भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा पर भी कटाक्ष करती हैं, जो हाल ही में एक संरक्षित मंदिर में पूजा करके विवाद में घिरे नजर आ रहे हैं. इल्तिजा ने कहा, ‘मुझे उनकी आस्था से कोई समस्या नहीं है, लेकिन वह पूजा ज्यादा करते हैं और शासन कम.’

लेकिन जब उनसे पूछा गया कि वह भविष्य को लेकर क्या सोचती हैं, तो बहुत निश्चितता नजर नहीं आई.


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‘मैं भारत विरोधी भावना से खुश नहीं हूं’

केंद्र सरकार और उसके प्रतिनिधियों के प्रति अपनी कड़वाहट स्पष्ट तौर पर जताने के बावजूद इल्तिजा का कहना है कि वह घाटी में ‘भारत विरोधी भावना से खुश नहीं हैं.’ लेकिन साथ ही कहा कि लोग जो महसूस करते हैं, उसके लिए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

उन्होंने कहा, ‘हमें कश्मीरियों के भारत के खिलाफ नाराजगी महसूस करने को लेकर एकदम बेचैन नहीं होना चाहिए. बल्कि इसके पीछे के कारण को समझना चाहिए और इसे दूर करने की दिशा में काम करना चाहिए.’

हालांकि, वह मानती हैं कि अभी उनके पास इसका समाधान सुझाने के लिए कोई ठोस प्रस्ताव नहीं है. उन्होंने कहा, मुझे पता है कि निरस्त किए गए अनुच्छेद 370 को फिर बहाल करना मुश्किल है. और मुझे यह भी नहीं पता कि अभी इस पर क्या किया जाना चाहिए. लेकिन मैं यह जरूर जानती हूं कि जहां चाह है, वहां राह है. और मेरे हिसाब से रास्ता यही है कि कश्मीरियों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते रहें.’

इस सारी अनिश्चितता के बीच, इल्तिजा का कहना है कि वह इस पर अपनी मां की सलाह पर अमल करती हैं कि समस्याओं को ‘गरिमा और मर्यादा’ के साथ कैसे संभाला जाए.

वह कहती हैं, ‘मेरी मां बाकायदा तर्कों के साथ मुझे यह समझाया कि हमारे व्यक्तिगत मूल्य राजनीति और ताकत की भावना को निर्धारित नहीं होने चाहिए. उन्होंने जो सबसे महत्वपूर्ण सलाह दी है, वो ये है कि जीवन वैसे ही चलता है जैसा आप इसे बनाते हैं, समस्याएं तो हमेशा आती-जाती रहती हैं. लेकिन मायने यह रखता है कि आप उनसे कैसे निपटते हैं.’

उन्होंने कहा कि एक राजनीतिक परिवार में पली-बढ़ी होने के नाते उन्होंने यह भी सीखा कि सत्ता और भौतिक सुख क्षणिक होते हैं, सबसे जरूरी है कि आप अपनी ‘आंतरिक शांति’ और ‘कृतज्ञता की भावना’ बनाए रखें.

फिर भी, वह अपने परिवार के सदस्यों की तरफ से लिए गए हर राजनीतिक निर्णय से सहमत नहीं है.


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‘मेरे नानाजी ने मोदी के बारे में गलत धारणा बनाई’

अपने नाना मुफ्ती मुहम्मद सईद के बारे में जिक्र आते ही इल्तिजा का चेहरा थोड़ा नरम हो जाता है.

ताजमहल के सामने एक बेंच पर उनके साथ बैठकर खिंचवाई गई एक तस्वीर साझा करते हुए, वह याद करती है, ‘फोटोग्राफर ने जोर देकर कहा कि हमें यह तस्वीर लेनी चाहिए. पहले तो मुझे बहुत संकोच लगा और मैंने इसके लिए मना भी कर दिया, लेकिन फिर फोटो खिंचवाने के लिए तैयार हो गई. अब मुझे खुशी है कि यह तस्वीर ली गई थी क्योंकि यह नानाजी के साथ मेरी आखिरी तस्वीर है.’

आखिरी तस्वीर जो इल्तिजा ने अपने दादा मुफ्ती मुहम्मद सईद के साथ की है | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

स्पष्ट तौर पर कश्मीर को लेकर इल्तिजा की उम्मीदें पीडीपी की ‘स्वशासन’ वाले व्यापक नजरिये के अनुरूप हैं—जिसे अक्सर ‘नरम अलगाववाद’ करार दिया जाता है—और वह ‘इस कश्मीर और उस कश्मीर’ के बीच मुक्त आवाजाही चाहती हैं.

लेकिन, एक समय था जब ‘नरम अलगाववादी’ पीडीपी राष्ट्रवादी भाजपा के साथ तीन साल तक गठबंधन में थी, और यह नरेंद्र मोदी और मुफ्ती मोहम्मद सईद के बीच समझौते से संभव हुआ था, फिर महबूबा ने इस करार को तब तक आगे बढ़ाया जब तक भाजपा ने जून 2018 में संबंध तोड़ नहीं लिए.

तबसे ही महबूबा मुफ्ती भाजपा के साथ अपने पिता के गठबंधन का बचाव करके ‘जिन्न को बोतल’ में बंद करने का प्रयास करती रही हैं.

हालांकि, इल्तिजा इस सबकी बहुत परवाह नहीं करतीं. वह दो-टूक कहती हैं कि उनके नाना ने यह समझने में ‘गलती’ की कि भाजपा घाटी में कुछ भी अच्छा करेगी.

उन्होंने कहा, ‘मेरे दादाजी ने दो बातें मान रखी थीं. सबसे पहले, तो उन्हें लगता था कि मोदी यहां छा जाएंगे, वे कश्मीर में एक विशाल हस्ती बन जाएंगे. वह बेहद लोकप्रिय होंगे और दूसरी धारणा जो उन्होंने बना रखी थी और जो गलत साबित हुई, वो ये थी कि मोदी इस देश के लोगों की आकांक्षाओं के मुताबिक शासन करेंगे. लेकिन मोदी ने सभी में कट्टरता भर दी. वह इस देश की शांति भंग कर रहे हैं.’

भाजपा के साथ गठबंधन टूटने के साथ ही ‘फायरब्रांड’ नेता के तौर पर महबूबा की छवि भी खराब हुई, लेकिन इल्तिजा उनकी कोई आलोचना नहीं करती है. उनके मुताबिक, ‘भाजपा के साथ सरकार बनाने को लेकर मेरी मां के पास एक दृष्टिकोण था. जब तक पीडीपी वहां थी, हमने उन्हें अनुच्छेद 370 छूने भी नहीं दिया.’

वह यह रेखांकित करना सुनिश्चित करती हैं कि यद्यपि वह और उनकी मां दो अलग-अलग लोग हैं, वे दोनों एक ही चीज चाहती हैं.

विवादों में घिरा एक और मामला इस साल अप्रैल का है, जब बारामूला में सेना द्वारा संचालित एक स्कूल ने एक सर्कुलर भेजा कि स्टाफ मेंबर को स्कूल परिसर में हिजाब नहीं पहनना चाहिए. महबूबा मुफ्ती ने ‘बुलडोजिंग’ को लेकर भाजपा को फटकार लगाते हुए ट्वीट किया कि कश्मीर में लड़कियां ‘अपनी पसंद-नापसंद चुनने का अधिकार नहीं छोड़ेंगी.’

उसी तरह इल्तिजा भी कहती हैं कि यह कदम भाजपा की ‘गुंडागर्दी’ का एक उदाहरण था और यह काम नहीं करेगा, चाहे कोई महिला अपने बाल ढंकने में विश्वास करती हो या नहीं.

वह आगे कहती हैं, ‘मैं कभी अपना सिर नहीं ढकती. मेरी मां ऐसा करती हैं. लेकिन उन्होंने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा…महिलाओं को कभी भी हिजाब पहनने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए और अगर वे इसके साथ सहज हैं तो उन्हें इसे उतारने के लिए भी नहीं कहा जाना चाहिए. मर्जी उनकी होनी चाहिए.’ साथ ही सवाल उठाती है, ‘मुस्लिम सुधार करने वाली भाजपा कौन होती है?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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