scorecardresearch
Saturday, 20 April, 2024
होमदेश'आरएसएस शाखा ने हमें बहादुर बनना सिखाया': जहांगीरपुरी हिंसा में बच्चों को कैसे जोड़ा गया?

‘आरएसएस शाखा ने हमें बहादुर बनना सिखाया’: जहांगीरपुरी हिंसा में बच्चों को कैसे जोड़ा गया?

जहांगीरपुरी में निचली जाति के समुदाय में युवा पीढ़ी सहित एक गरीब के लिए 'हिंदुत्ववाद का समर्थन करना, समाज में आगे बढ़ने का रास्ता है.

Text Size:

नई दिल्ली: 15 साल के सागर* का कहना है कि वह उस समय अपना होमवर्क करना चाहता था लेकिन हनुमान रैली में शामिल होना उससे कहीं ज्यादा जरूरी था. उसने कहा, ‘शाखा ते बोलेछे (हमारी आरएसएस शाखा ने हमें ऐसा करने के लिए कहा था)’

उसके आसपास खड़े छह से सात अन्य बच्चे भी उसकी हां में हां मिलाने लगे. इनमें से कुछ की उम्र तो 10 साल के तकरीबन होगी. इन बच्चों में से कुछ ने उस दिन हनुमान जयंती रैली में भाग लिया था. वो रैली जो दिल्ली के जहांगीरपुरी के ब्लॉक जी से शुरू हुई और सांप्रदायिक झड़पों में बदल गई. उस दिन की वो तीसरी रैली थी. इसके वीडियो में कई युवा लड़के हॉकी स्टिक, तलवारें और यहां तक कि बंदूकें भी लहराते हुए नजर आ रहे थे. ब्लॉक जी में मुख्य रूप से बंगाली हिंदू रहते हैं जिनमें से अधिकांश का संबंध निचली जातियों से हैं.

बच्चों का कहना है कि रैली में शामिल होने का उनका ये फैसला पल भर में बहाव में आकर नहीं किया गया था. उनके मुताबिक वे विशेष रूप से स्थानीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आह्वान पर यहां आए थे. इस शाखा को सुकेन सरकार संचालित करता है. सरकार जहांगीरपुरी हिंसा के सिलसिले में अब तक गिरफ्तार किए गए 23 लोगों में से एक है. उनके भाई सुरेश ने भी इलाके के बच्चों को रैली में शामिल होने के लिए तैयार किया था. वह हिंदू वाहिनी और बजरंग दल के सदस्य होने का दावा करता है.

दिप्रिंट से बातचीत में 43 साल के सुरेश सरकार ने साफ किया कि हमेशा से जाति के नाम पर उत्पीड़ित इस समुदाय के लिए यह अपनी व्यापक हिंदू पहचान के जरिए एक साझे दुश्मन—मुसलमानों—के खिलाफ अपनी उपस्थिति जताने का एक तरीका था.

वह बांग्ला में कहता है ‘अच्छा हुआ कि झड़पें हुईं… नहीं तो हिंदू कैसे जागेंगे?’

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

सुरेश सरकार एक फूड डिलीवरी एजेंट है. इसके अलावा वह कबाड़ इकट्ठा करने और उसे बेचने का काम भी करता है. दिल्ली पुलिस ने सरकार से भी पूछताछ की थी लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया गया. वह कहता है कि अब वह अच्छे काम – अगली पीढ़ी को लड़ने और जरूरत पड़ने पर धर्म के नाम पर हत्या करने के लिए तैयार करना- को जारी रखने की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार है.


यह भी पढ़ें- मिट्टी खोदने वाली साधारण मशीन की तरह बनाया गया था BJP का बुलडोजर, भारत में इसे JCB कहा जाता है


बंगाली समुदाय के लिए हनुमान और हिंदुत्व 101

ब्लॉक जी के बंगालियों के लिए दुर्गा पूजा हमेशा से बड़ा धार्मिक आयोजन रहा है. वास्तव में किसी ने भी इस साल से पहले कभी हनुमान जयंती नहीं मनाई थी. इन दोनों सरकार भाइयों ने पहली बार पड़ोस के छोटे से मंदिर में हनुमान की मूर्ति स्थापित की और निवासियों से रैली में शामिल होने का आह्वान किया.

10 अप्रैल को शिशु पार्क के मंदिर में स्थापित की गई हनुमान प्रतिमा | फोटो: तनुश्री पांडे | दिप्रिंट

उन्हें बड़ों और बच्चों से एक समान उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली. वास्तव में, वहां रहने वाले लोगों से बात करते हुए साफ पता चल रहा था कि हाशिए में रह रहे समुदायों के कई लोगों ने ‘हिंदुत्ववाद’ में शामिल होकर एक मजबूत संस्था और शक्ति की भावना प्राप्त की.

ऊपर जिस बच्चे के साथ बात की गई है, वह सुरेश सरकार के बड़े बेटे किशोर सागर हैं. इस बार वह 10वीं क्लास की बोर्ड की परीक्षा देंगे लेकिन झड़प के बाद से वह स्कूल नहीं जा पाए हैं. उनकी नजर में यह ‘हिंदुत्व के लिए’ एक छोटा सा बलिदान है.

रैली में उनके हाथों में तलवार थी. इस बारे में उन्होंने कहा, ‘क्योंकि, मुहर्रम के दौरान मुसलमान भी तलवारें और अन्य हथियार अपने साथ रखते हैं … हम क्यों नहीं?’

जब उनसे पूछा गया कि यह सब कहां से सीखा तो उन्होंने कहा कि 10 साल से ज्यादा समय से शाखा चला रहे हैं उनके चाचा सुकेन सरकार ने उनसे ऐसा कहा है.

रैली में भाग लेने वाले अन्य किशोर भी गर्व के साथ इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. इनमें से कुछ तो ‘हिंदुत्ववाद’ का मतलब तक बता पाने में सक्षम नहीं हैं लेकिन शाखा और उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें जो भी सिखाया है, उस पर वो भरोसा करते हैं.

आरएसएस के दिल्ली राज्य कार्यकारी सदस्य राजीव तुली ने संगठन के साथ सुकेन के ‘आधिकारिक’ जुड़ाव से इनकार किया लेकिन इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि ब्लॉक जी निवासी ने ‘सामाजिक कार्यों’ में ‘मदद’ की है.

जहांगीरपुरी में ‘हिंदू-बंगाली समाज’ की बिल्डिंग | फोटो: तनुश्री पांडे | दिप्रिंट

‘हमें सिखाया जाता है कि मुसलमानों से कभी न डरें’

आठवीं क्लास में पढ़ने वाले 13 साल के छात्र रोहन* की आंखों में शर्मिंदगी है. वह रैली का हिस्सा थे लेकिन हिंसा भड़कने पर वहां से भाग आए.

रोहन ने कहा, ‘बांग्लादेशी मुसलमानों ने हमारी तलवारें छीननी शुरू कर दीं और हम वहां से भागाने लगे. मुझे बुरा लग रहा है कि मैं वहां से भाग आया. हमें शाखा में बहादुर बनना और मुसलमानों से कभी नहीं डरना, सिखाया गया है. हम हिंदुओं को ही उनसे अपने देश को बचाना है.’

वह रैली के बाद से शांत है और जिस हिंसा को उन्होंने देखा, उससे आहत हैं लेकिन इसके लिए वह सिर्फ मुसलमानों को दोष देते हैं.

35 साल की सुकन्या हलदर को गर्व है कि उनके बेटे ने रैली में भाग लिया, भले ही वह वहां से भाग आया हो.

उनकी आवाज में एक रौब था. वह कहती हैं, ‘हां, मेरा बेटा रैली में गया था और हो सकता है कि कुछ समय के लिए उसने तलवार भी पकड़ी हो लेकिन इसमें कुछ भी गलत नहीं है. आखिर वे बच्चे ही तो है. हम भले ही निचली जाति के हों लेकिन हम पहले एक कट्टर हिंदूवादी हैं.’

वह चेतावनी देते हुए कहती हैं कि लोगों को हिंदू-मुस्लिम एकता के बहकावे में नहीं आना चाहिए. वे किसी भी समय बदल सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘मुसलमान शैतान हैं. अगर मौका दिया गया तो वे हम पर हावी हो जाएंगे. इसलिए देश में उन्हें अंगूठे के नीचे रखना होगा.’

पास ही में 15 साल के सोहम* का घर है. उसके विचार भी रोहन से अलग नहीं हैं. उनके पिता दिल्ली के वजीराबाद में एक कारखाने में सफाईकर्मी हैं और ये सब उन्होंने ही सोहम को सिखाया है.

सोहम ने कहा, ‘मेरे स्कूल में मुस्लिम लड़के हैं. वे अच्छे लगते हैं लेकिन मेरे पिता कहते हैं कि उन पर कभी भरोसा न करें.’  वह आगे कहते हैं, ‘उन्होंने मुझे कश्मीर का एक वीडियो दिखाया जिसमें मुसलमानों ने शिशुओं को मार डाला. उसके बाद मैंने फैसला किया कि मैं कभी किसी मुसलमान से दोस्ती नहीं करूंगा. मुझे उनसे नफरत है.’

जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल की रैली में भाग लेने वाले बच्चों का एक समूह. इनमें कुछ के पास हथियार भी थे | फोटो: तनुश्री पांडे | दिप्रिंट

जैसे कि दिप्रिंट ने पहले भी एक रिपोर्ट की थी कि जहांगीरपुरी के कई युवा नियमित रूप से वीडियो, मीम्स, फॉरवर्ड और भगवा पॉप के कामों में लगे हुए हैं. इस तरह की गतिविधियां न केवल हिंदू बाहुबल को बढ़ावा देती हैं बल्कि मुस्लिम पौरुष के खौफ को भी बढ़ाती हैं. देश को मुसलमानों की बढ़ती आबादी से ‘बचाने’ के लिए सभी जातियों और हिंदुओं को एकजुट होना चाहिए. कोई भी इस सामग्री के ‘तथ्यों’ पर और न ही उग्र राष्ट्रवाद पर सवाल उठाता है जिसे कुछ टीवी चैनल और फिल्में बढ़ावा दे रहे हैं.

इन सबके बीच बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे संगठन, लोगों के बीच डर पैदा करने वाले मीम्स लेकर आते हैं और लोगों को लामबंदी कर वास्तविक ‘कार्रवाई’ के रास्ते खोलते हैं.

उदाहरण के तौर पर ब्लॉक जी निवासी 16 साल के सोनकर* को ले सकते हैं. वह कहते हैं कि उन्हें शाखा में जाना पसंद है क्योंकि इससे उन्हें एक हिंदू होने का ‘आत्मविश्वास’ मिलता है.

सोनकर ने बताया, ‘सुकेन दा और सुरेश दा मेरे भाई जैसे हैं. उन्होंने हमें बताया कि ये मुसलमान बांग्लादेश से हैं. या तो वे जय श्री राम कहें या हमारा देश छोड़ दें. सुकेन दा कहते हैं कि अगर हमने उन्हें काबू में नहीं किया तो वे हमारे देश को कश्मीर और पाकिस्तान जैसा बना देंगे’

सोनकर का कहना है कि वह भी रैली में थे. नाच रहे थे और एक ऐसे व्यक्ति के पीछे चल रहे थे जो बंदूक लहरा रहा था. इस पिस्तौल से ये किशोर डरा नहीं, बल्कि उसे उससे सुरक्षा की भावना मिल रही थी. वह जानता था कि यह हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि दूसरे समुदाय के लोगों के लिए है.


यह भी पढ़ें: हर गली पर पुलिस का पहरा, पानी के लिए भी लोग परेशान; ‘बुलडोजर ऑपरेशन’ के बाद जहांगीरपुरी में हाल बेहाल


‘जरूरत पड़ने पर मेरे बेटे को जान से मारने के लिए भी तैयार रहना होगा’

हिंसक हुई रैली के आयोजक बजरंग दल के सदस्य सुरेश सरकार पूरी तरह बेफिक्र नजर आ रहे हैं.

सरकार मूल रूप से पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के जियागंज के रहने वाले हैं. 30 साल पहले जब वह काम की तलाश में दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में आए थे, तब उनकी उम्र महज 13 साल थी.

आज वे कहते हैं कि उन्हें काम की परवाह नहीं है. वह एक ‘असली हिंदू’ के रूप में अपने देश के लिए मरने के लिए तैयार हैं और युवा पीढ़ी को भी ऐसा करने के लिए तैयार कर रहे हैं.

सरकार का कहना है कि उनके और बजरंग दल के कुछ अन्य सदस्यों के पास हॉकी स्टिक और तलवारें थीं, जिन्हें बच्चों में बांट दिया गया था. उनका कहना है कि ‘भारत में रहना है तो जय श्री राम कहना है’ जैसे नारे उन्होंने ही लगाए थे.

यह पूछे जाने पर कि क्या इसका मकसद लोगों को भड़काना था, उन्होंने इससे इनकार कर दिया. वह कहते हैं, ‘यह मुसलमानों को दिखाने के लिए था कि यह हमारा देश है.’

उनके अनुसार,  रैली का प्रस्ताव विहिप और बजरंग दल के स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा दिया गया था. इस रैली का मकसद इस समुदाय के लोगों की बड़े उद्देश्य के प्रति निष्ठा को सामने लाना था. सरकार का कहना है कि संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भी वादा किया था कि अगर ‘कुछ भी अनहोनी’ होती है, तो वे अपना समर्थन देंगे.

वह कहते हैं, ‘अगर कल दंगे होते हैं तो जो कोई खुद को असली हिंदू समझता है, उसे मारने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.’

उन्होंने माना कि एक हाशिए पर पड़े समुदाय के सदस्य के रूप में वे खुद को अलग-थलग महसूस करते थे लेकिन अब उन्हें अहसास होता है कि वह एक बड़े हिंदू राष्ट्रवाद का हिस्सा हैं. विहिप और बजरंग दल जाति की सीमाओं को धुंधला करने के लिए काम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘देखो देश भर में क्या हो रहा है. मुसलमान हर जगह हिंदुओं को मार रहे हैं. वे सभी आतंकवादी हैं. तृणमूल कांग्रेस के मुस्लिम गुंडों ने हिंदू परिवारों को मार डाला, मुसलमानों ने कश्मीर में लाखों पंडितों को मार डाला – हम यह सब कभी नहीं भूलेंगे.’

हिंदुत्ववाद को बढ़ावा देने को लेकर सरकार पहले से काफी जोश में हैं. वह अपने 15 साल के बेटे के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहते हैं, ‘इस बार हम संख्या में कम थे … तुम देखना, अगली बार हम उन्हें मारेंगे.’

‘मेरे बारे में भूल जाओ, मैं तो अपने बेटे को भी हिम्मत दिखाना सिखा रहा हूं. वह एक शेर है. जरूरत पड़ने पर जान से मारने को भी तैयार रहेगा. यही कारण है कि हमने बच्चों को रैली में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होने के लिए प्रोत्साहित किया ताकि वे भी तैयार हो सकें’ यह सुनते ही उनकी पत्नी और 8 साल का छोटा बेटा मुस्कुराने लगते हैं.

*नाम बदल दिए गए हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : हनुमान चालीसा का पाठ करना है तो मेरे घर में आकर कीजिए, दादागिरी करने मत आइए- उद्धव ठाकरे


share & View comments