मुंबई, सात अक्टूबर (भाषा) मुंबई के एक सरकारी अस्पताल में नर्सों के एक समूह ने प्रबोधनकर ठाकरे और एक अन्य समाज सुधारक द्वारा लिखी गई किताबें एक अधिकारी पर कथित रूप से उछालीं। इस घटना से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हो गया जिससे विवाद खड़ा हो गया।
पीड़ित अधिकारी ने सेवानिवृत्ति से पहले ये किताबें उपहार के रूप में वितरित की थी।
नर्सों ने दावा किया कि इन किताबों से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि अधिकारी की सेवानिवृत्ति से लगभग एक महीने पहले 29 जुलाई को हुई इस घटना की जांच जारी है।
शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (उबाठा) के एक नेता और नर्सों ने दावा किया कि किसी पर कोई किताब नहीं उछाली गई जबकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने कहा कि प्रबोधनकर ठाकरे जैसे समाज सुधारक का अपमान पूरे राज्य का अपमान है।
प्रबोधनकर ठाकरे (1885-1973) शिवसेना के संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के पिता थे।
बृहन्मुंबई नगर निगम द्वारा संचालित कस्तूरबा अस्पताल के सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी ने 19 सितंबर को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उन्हें बदनाम करने के लिए यह वीडियो प्रसारित किया जा रहा है।
पुलिस के एक अधिकारी ने मंगलवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि शिकायत के आधार पर असंज्ञेय आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है।
अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है।
अधिकारी ने प्रबोधनकर ठाकरे द्वारा लिखित ‘देवलांचा धर्म आणि धर्माची देवले’ (मंदिरों का धर्म और धर्म के मंदिर) और दिनकरराव जावलकर द्वारा लिखित ‘देशचे दुश्मन’ (देश के दुश्मन) नामक पुस्तकें वितरित की थीं।
सूत्रों ने मंगलवार को बताया कि अधिकारी ने अपनी सेवानिवृत्ति से लगभग एक महीने पहले मुंबई के कस्तूरबा अस्पताल में सद्भावना स्वरूप ये पुस्तकें भेंट की थीं।
प्रबोधनकर ठाकरे की पुस्तक अंध-विश्वास, धार्मिक पाखंड और धर्म के व्यावसायीकरण की आलोचना करती है।
यह पुस्तक लोगों से सच्ची आध्यात्मिकता को ईश्वर के नाम पर किए जाने वाले कर्मकांडीय शोषण से अलग करने का आग्रह करती है, जबकि जावलकर की पुस्तक इस ओर इशारा करती है कि भारत के असली दुश्मन विदेशी ताकतें नहीं बल्कि आंतरिक शोषक हैं, जो धर्म, जाति और अंधविश्वास का इस्तेमाल समाज को बांटने व नियंत्रित करने के लिए करते हैं।
वीडियो में एक नर्स को अधिकारी से यह सवाल करते हुए सुना जा सकता है कि उसने ऐसी किताबें क्यों दीं, जो हिंदू धर्म का अपमान करती हैं।
नर्सों के समूह ने बाद में अधिकारी को अधीक्षक के कार्यालय में बुलाया और उनसे इस बारे में सवाल किये।
बातचीत के अंत में एक नर्स कमरे से बाहर निकलने से पहले अधिकारी पर दो किताबों वाला एक सफेद लिफाफा कथित तौर पर फेंकती हुई दिखाई दी।
वीडियो में अधिकारी को हाथ जोड़कर नर्सों से माफी मांगते हुए भी देखा जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि बाद में यह वीडियो कस्तूरबा अस्पताल की नर्सों के एक व्हाट्सएप ग्रुप में प्रसारित किया गया, जहां से इसे लीक कर साझा किया गया और फिर यह सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
अग्रीपाड़ा थाने के वरिष्ठ निरीक्षक संजय नाले ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि यह घटना 29 जुलाई को हुई थी जो अधिकारी की सेवानिवृत्ति से लगभग एक महीने पहले की है।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि अधिकारी ने 19 सितंबर को पुलिस में शिकायत की थी कि व्हाट्सएप ग्रुप पर घटना का वीडियो प्रसारित कर उनकी बदनामी की जा रही है, जिसके आधार पर एक असंज्ञेय अपराध दर्ज किया गया।
अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक चंद्रकांत पवार ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है।
इस बीच, स्थानीय विधायक मनोज जमसुतकर और मुंबई की पूर्व महापौर किशोरी पेडनेकर सहित शिवसेना (उबाठा) नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को अस्पताल का दौरा किया।
पेडनेकर ने कहा कि जिस व्यक्ति ने किताब बांटी थी, उसके विचार सदियों पुराने थे और उनमें से एक किताब पर तो प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त अधिकारी के खिलाफ कई शिकायतें थीं।
पूर्व महापौर ने कहा, “किसी पर कोई किताब नहीं उछाली गई। किताब फेंकने और उसे न लेने में अंतर है। एक लिफाफे में दो किताबें बांटी गईं। जब नर्स ने पहली किताब (देशाचे दुश्मन) देखी, तो उसने उसे लेने से इनकार कर दिया। दूसरी किताब (प्रबोधनकर ठाकरे की) नर्सों को नहीं दिखाई दी।”
अस्पताल में 32 साल से नर्स के तौर पर काम कर रही रुतुजा धड़ाम ने बताया कि किताबें बांटने के लिए अनुमति नहीं ली गई थी।
उन्होंने कहा, “मैंने किताबें लेने से इनकार कर दिया लेकिन वह (अधिकारी) जिद करते रहे कि मैं उन्हें ले लूं। वह 20 मिनट तक जिद करते रहे। उन्होंने फिर मुझसे कहा कि मैं किताब ले लूं, इससे मेरे ‘प्रबोधन’में मदद मिलेगी। मैंने उनसे कहा कि मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती,जिससे समाज में फूट पड़े।”
रुतुजा ने कहा कि फिर भी उन्होंने (अधिकारी ने) तीन अलग-अलग लिफाफों में किताबों की तीन प्रतियां दीं।
उन्होंने कहा कि बाल ठाकरे की वजह से ही मराठी महिलाओं को नर्स की नौकरी मिली और वे गर्व से काम कर सकती हैं।
मनसे नेता संदीप देशपांडे ने कहा कि प्रबोधनकर ठाकरे जैसे समाज सुधारक का अपमान महाराष्ट्र का अपमान है और उनके खिलाफ की गई टिप्पणी ‘मूर्खता की सारी हदें पार कर गई हैं’।
देशपांडे ने कहा, “क्या वह व्यक्ति (जिसने यह टिप्पणी की) जानता है कि प्रबोधनकर कौन थे? क्या उसने प्रबोधनकर की रचनाएं पढ़ी हैं? उन्होंने महाराष्ट्र को सुधारवादी परंपराओं की ओर अग्रसर किया और समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। मुझे लगता है कि इन लोगों द्वारा फैलाया जा रहा जहर समाज के लिए हानिकारक है।’
भाषा जितेंद्र नरेश
नरेश
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