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Saturday, 20 April, 2024
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असम में अतिक्रमण मामले में 3 महीनों में भी नहीं शुरू हुई न्यायिक जांच, अब पहला कर्मचारी नियुक्त

सितंबर में दारांग जिले के सिपझार में असम पुलिस की ‘क्रूरता’ और फोटोग्राफर द्वारा एक ग्रामीण के शव को लातें मारने का वीडियो सामने आने पर काफी बवाल मचा था. अवैध कब्जा हटाने के दौरान हिंसा की इस घटना में कम से कम 2 लोग मारे गए थे.

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गुवाहाटी: सिपझार में अवैध कब्जा हटाने के दौरान असम पुलिस की बर्बर कार्रवाई और एक ग्रामीण के शव पर फोटोग्राफर द्वारा लातें मारे जाने की तस्वीरों के बाद राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आई घटना को तीन माह से ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन अब तक इस मामले में जांच शुरू नहीं हो पाई है क्योंकि इसकी न्यायिक जांच के लिए नियुक्त गौहाटी हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस बी.डी अग्रवाल को कोई सपोर्ट स्टाफ नहीं मिला था.

जांच की स्थिति पर बात करते हुए जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि उनके कर्मचारियों की नियुक्ति के बाद जनवरी में जांच शुरू होगी.

उन्होंने 27 दिसंबर को दिप्रिंट को बताया था, ‘मेरे स्टाफ और सेक्रेटरी की नियुक्ति नहीं हुई है. जैसे ही उनकी नियुक्ति हो जाएगी, निश्चित तौर पर मैं घटनास्थल पर जाकर जांच शुरू कर दूंगा.’ साथ ही कहा कि इन नियुक्तियों के लिए नामों की सिफारिश की गई है.

उन्होंने कहा, ‘न्यायिक प्रक्रिया को कार्यकारी जांच के साथ नहीं जोड़ा जा सकता. आप न्यायपालिका से जुड़े हैं तो जांच निष्पक्ष होनी चाहिए. हम बहुत जल्द, जनवरी तक जांच शुरू कर देंगे.’

फिर, 30 दिसंबर को राज्य के गृह विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मंगलवार, 28 दिसंबर को एक सेक्रेटरी की नियुक्ति कर दी गई थी, और उसने गुरुवार को कार्यभार संभाला लिया. अधिकारी ने कहा, ‘आयोग बहुत जल्द जांच शुरू करेगा.’

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आयोग 23 सितंबर को दारांग जिले के सिपझार क्षेत्र के धौलपुर 1 और धौलपुर 3 गांवों में ‘अवैध कब्जाधारियों’ के खिलाफ सरकार के बेदखली अभियान के बाद शुरू हुई झड़पों की जांच करेगा. इस दौरान हिंसा में कम से कम दो लोगों की मौत हो गई थी.

बेदखली अभियान के कुछ घंटों बाद सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो गया जिसमें लाठी लेकर पुलिस की तरफ दौड़ते एक ग्रामीण को करीब से गोली मारे जाते देखा जा सकता है. गोली लगने के बाद उनके बेजान शरीर पर एक फोटोग्राफर लातें मारता नजर आ रहा है, जिसकी पहचान जिला प्रशासन की तरफ से काम पर रखे गए फोटोग्राफर बिजय शंकर बनिया के रूप में हुई है.

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तब घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए थे.


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विपक्ष बोला—‘जानबूझकर देरी की जा रही’

असम विधानसभा में नेता विपक्ष, कांग्रेस के देवव्रत सैकिया ने कहा कि पूछताछ को आम तौर पर सरकार द्वारा आक्रोश पर काबू पाने कदम के तौर पर देखा जाता है, और यह ‘सिर्फ जानबूझकर देरी करने की रणनीति’ का हिस्सा है.

सैकिया ने ‘जबरन बेदखली’ के खिलाफ गुवाहाटी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने ‘अनिवार्य तौर पर इसके सामाजिक असर के मूल्यांकन’ के लिए अदालत की तरफ से दखल की मांग की और साथ ही कहा कि भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापना अधिनियम, 2013 में निहित सिद्धांतों पर अमल सुनिश्चित किया जाए.

नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि बिजय शंकर बनिया को गिरफ्तार किया गया है. उसके खिलाफ मामला आपराधिक जांच विभाग को सौंप दिया गया है.


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‘पुनर्वास का कोई इरादा नहीं’

क्षेत्र से बेदखल किए गए 1,000 से अधिक परिवारों के लिए जीवन एक कड़ा संघर्ष बना हुआ है.

धौलपुर निवासी और ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (एएएमएसयू) के सदस्य इदरीस अली ने कहा, ‘जिन लोगों को क्षेत्र से हटाया गया थे, वे बहुत ही खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं. सरकार की ओर से अब तक कोई सहायता नहीं मिली है.’ उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है. उनके लिए खाना भी मुहाल हो गया है.’

असम भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापना अधिनियम, 2015 के तहत, प्रशासन प्रभावित परिवारों से सहमति लेने के बाद उनके पुनर्वास और पुनर्स्थापना की योजना तैयार करता है.

धौलपुर गांवों के करीब एक कस्बे मंगलदोई के निवासी और एएएमएसयू से जुड़े ऐनुद्दीन अहमद का कहना है कि एक हजार से अधिक परिवार सिर्फ 1,000 बीघा, या लगभग 330 एकड़ भूमि पर रह रहे हैं.

उन्होंने यह आरोप भी लगाया, ‘जिन लोगों को बेदखल किया गया है, उनके पुनर्वास का कोई इरादा नहीं है. वे अस्थायी तौर पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाएंगे और फिर वह उन्हें किसी दूसरी जगह पर ले जाया जाएगा.’

अहमद ने दावा किया कि प्रशासन फिलहाल 420 और परिवारों को इलाके से बेदखल करने की कोशिश में जुटा है. हालांकि, दारांग के उपायुक्त प्रणब कुमार सरमा ने कहा कि परिवार खाली कराए गए क्षेत्र के पास हैं, और उनके ‘पुनर्वास की प्रक्रिया पर विचार चल रहा है.’ सरमा ने कहा, ‘हम इसे जल्द ही पूरा कर लेने की उम्मीद कर रहे हैं.’

पिछले हफ्ते, दो संगठनों सेंटर फॉर माइनॉरिटी स्टडीज, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और असम एंड बीटीएडी सिटीजन राइट्स फोरम की तरफ से तैयार एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बेदखल किए जा रहे परिवार 1971 से पहले ही यहां आकर बस गए थे और उनके पास मौजूद ‘लिगेसी डेटा’ इसकी पुष्टि करता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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