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Friday, 5 September, 2025
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संभल हिंसा पर न्यायिक आयोग ने रिपोर्ट सौंपी, दंगे की साजिश की ओर इशारा

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लखनऊ, 28 अगस्त (भाषा) उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पिछले साल 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा के मामले की जांच के लिये गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने बृहस्पतिवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी।

नवंबर 2024 में संभल में हुई हिंसा की जांच कर रहे एक न्यायिक आयोग ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 450 पृष्ठों की एक रिपोर्ट सौंपी।

सूत्रों के अनुसार, इस हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई थी और 29 पुलिसकर्मी घायल हुए थे। इस रिपोर्ट में शहर में तेज़ी से हो रहे जनसांख्यिकीय बदलाव, हिंदुओं को निशाना बनाने की कथित साजिश और अशांति में कट्टरपंथी समूहों और बाहरी दंगाइयों की भूमिका की ओर इशारा किया गया है।

गृह विभाग के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद ने बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग ने मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।

आयोग के सदस्य अरोड़ा, 1979 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी अरविंद कुमार जैन और सेवानिवृत्त आईएएस अमित मोहन प्रसाद ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंपी।

संजय प्रसाद ने रिपोर्ट के विवरण के बारे में पूछे जाने पर कहा, ”रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद हम इस बारे में कुछ बता सकेंगे।”

आयोग का गठन 28 नवंबर 2024 को किया गया था। उसके बाद उसने एक दिसंबर को पहली बार गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा किया था।

न्यायिक आयोग में शामिल उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ए के जैन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘हां, हमने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है। यह एक विस्तृत रिपोर्ट है।”

जैन ने रिपोर्ट को ‘गोपनीय’ करार देते हुए उसमें शामिल की गयी बातों का खुलासा करने से इनकार कर दिया।

उन्होंने कुछ रिपोर्टों की प्रामाणिकता के बारे में पूछे गए सवालों का भी जवाब नहीं दिया, जिनमें दावा किया गया था कि रिपोर्ट में जनसांख्यिकीय बदलाव का जिक्र किया गया है जिसके मुताबिक संभल में हिंदुओं की आबादी घट रही है।

कुछ कथित रिपोर्टों के अनुसार न्यायिक आयोग ने अपनी लगभग 450 पृष्ठों की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि संभल में कैसे हिंदू आबादी अब घटकर लगभग 15 से 20 प्रतिशत ही रह गई है। यह पहले की तुलना में आधी से भी कम है।

हालांकि, जैन ने यह कहते हुए खुलकर बात नहीं की कि आयोग को रिपोर्ट की विषय-वस्तु का खुलासा करने का अधिकार नहीं है।

जैन ने आगे कहा, ”यह रिपोर्ट कैबिनेट और बाद में उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी एक प्रक्रिया के तहत पेश की जाएगी।”

न्यायिक आयोग ने अपने गठन के बाद से चार बार संभल का दौरा किया है। इसने पहली बार एक दिसंबर 2024 को संभल का दौरा किया था। उसके बाद 21 जनवरी 2025 को गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए एक बार फिर दौरा किया।

संभल की शाही जामा मस्जिद बनाम हरिहर मंदिर मामले को लेकर पिछले साल 19 नवंबर को हिंदू पक्ष की ओर से अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन सहित आठ लोगों ने संभल की जिला अदालत में याचिका दायर की थी। इसमें अदालत के आदेश पर 19 नवंबर को ही शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया गया था। उसके बाद 24 नवंबर को एक बार फिर टीम सर्वेक्षण करने पहुंची। इस दौरान व्यापक तौर पर हिंसा हुई और गोली लगने से चार लोगों की मौत हो गयी तथा 29 पुलिसकर्मी घायल हो गये।

इस मामले में पुलिस ने समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और शाही जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी के अध्यक्ष जफर अली समेत कई नामजद और 2,750 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सदस्य और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उन्हें विश्वास है कि रिपोर्ट निश्चित रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस शहर में जनसांख्यिकीय बदलाव को उजागर करेगी।

उन्होंने गैर-भाजपा सरकारों पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा, ”मैं खुद एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रहा हूं और हकीकत जानने के लिए राज्य भर में विभिन्न पदों पर काम कर चुका हूं। हिंदू आबादी में उल्लेखनीय गिरावट का संकेत देने वाली रिपोर्ट में जरूर इसका जिक्र होगा। इतनी स्पष्ट बात कैसे नजरअंदाज की जा सकती है।”

दिलचस्प बात यह है कि जहां न्यायिक आयोग के सदस्यों ने बताया कि रिपोर्ट गोपनीय है, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ सदस्य इस बात को लेकर बेहद आश्वस्त दिखे कि न्यायिक आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे क्षेत्र में हुए कई सांप्रदायिक दंगों में ”हिंदुओं को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया।”

भाजपा के प्रान्तीय प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, ”संभल में देखा गया कि ऐसा जनसांख्यिकीय परिवर्तन देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ा ख़तरा है। संभल में बार-बार हुए सांप्रदायिक दंगों, जिनमें हिंदुओं को निशाना बनाया गया और उनकी हत्या की गई। इसकी वजह से समुदाय का उस जगह से पलायन हुआ। संभल हिंसा पर न्यायिक आयोग की रिपोर्ट भी यही संकेत दे रही है।”

सूत्रों ने बताया कि इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 1947 के बाद से हर दंगे में हिंदू ‘लगातार मुख्य निशाना रहे हैं’, और नवंबर 2024 के दंगों में उन्हें फिर से निशाना बनाने की साजिश रची गई थी।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश पुलिस को नवंबर में हुए दंगों के दौरान हुए ‘नरसंहार’ को रोकने का श्रेय दिया गया है।

इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि ज़िले में ‘बाहर से दंगाइयों को लाया गया था’, तथा तुर्क और पठान समुदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे तनाव के कारण आंतरिक झड़पें हुईं।

सूत्रों ने बताया कि रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि हरिहर मंदिर को लेकर विवाद को बाबर की विरासत का हवाला देकर और भड़काया गया, जिससे ‘सांप्रदायिक माहौल और बिगड़ गया’।

यह रिपोर्ट आज़ादी के बाद से संभल में हुए महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर चिंता व्यक्त करती है, जब संभल की नगरपालिका आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां संभल में हिंदू अल्पसंख्यक (15 प्रतिशत) रह गए हैं, वहीं मुस्लिम आबादी में तेज़ी से वृद्धि हुई है (85 प्रतिशत)।

रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्र को अस्थिर करने के लिए कट्टरपंथी संगठनों के साथ-साथ अवैध हथियारों और नशीले पदार्थों के नेटवर्क को भी सक्रिय किया गया था और सरकार को स्थिति को नियंत्रित करने के लिए त्वरित कार्रवाई करने का श्रेय दिया गया है।

सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि संभल में सांप्रदायिक दंगों का इतिहास रहा है, जिसकी शुरुआत 1953 में एक घातक शिया-सुन्नी संघर्ष से हुई, जिसके बाद 1956, 1959 और 1966 में दंगे हुए। 1962 में, जनसंघ के पूर्व विधायक महेश गुप्ता को मुस्लिम समुदाय के सदस्यों द्वारा चाकू मारने के बाद हिंसा भड़क उठी थी।

सूत्रों ने बताया कि 1976 में एक मस्जिद समिति के विवाद में एक मौलवी की हत्या के बाद एक बड़ा विवाद हुआ। राजकुमार सैनी से जुड़ी एक अफवाह के बाद सूरजकुंड और मानस मंदिरों पर जवाबी हमले हुए, जिसके कारण एक सप्ताह तक कर्फ्यू लगा रहा।

इसमें आगे बताया गया है कि 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 1976 के दंगों में शामिल लगभग दो दर्जन लोगों को ‘लोकतंत्र सेनानी’ के रूप में मान्यता दी थी, जिसके लिए उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पिछले एक साल में, अधिकारियों ने 1,000 से ज़्यादा अवैध अतिक्रमणों को हटाकर 68 हेक्टेयर ज़मीन पर कब्ज़ा लिया है और 35 अनाधिकृत धार्मिक ढांचों को ध्वस्त करके दो हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन वापस हासिल की है।

भाषा

सलीम जफर किशोर रंजन रवि कांत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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